नैतिक मूल्य पर आधारित ४४ कहानिया | Naitik mulya par aadharit kahaniya

हेल्लो फ्रेंड्स, आज इस पोस्ट में  हम नैतिक मूल्य पर आधारित ४४ कहानिया देखनेवाले है. ये सभी कहनिया नैतिक सबक के साथ – साथ काफी मनोरंजक भी होनेवाली है. नीचे दी गई अनुक्रमणिका की लिस्ट में अपनी कहानी चुनकर उसपर क्लिक करे और कहानी पढे. तो चलिए शुरू करते है.

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सुनहरा शेर और लालची बिरजू | naitik mulya par aadharit kahaniya

तबला पुर गाँव में बिरजू नाम का एक गरीब किसान अकेला रहता था. उसकी झोपडी जंगल के नजदीक थी. बिरजू के पास दो भैंस थी, उन्हीं का दूध बेचकर वह अपना गुजरा करता था.

एक रात को जब बिरजू अपनी झोपडी में सोया हुआ था. तभी जंगल से एक बड़ा सुनहरा शेर बाहर आया और बिरजू की दोनों दो भैंसों को खा गया.

अगले दिन सुबह उठकर जब बिरजू दूध निकलने तबेले में गया. तो वहाँ पर दोनों भैंसों को नहीं पाकर. निचे बैठकर जोर-जोर से रोने लगा. हे  भगवान अब मैं क्या करू. अपना गुजरा कैसे करू.

मैं तो भूका ही मर जाऊंगा. बताओ भगवान मैं क्या करू. सुनहरा शेर भोजन रात को करने के बाद, वही झाड़ियों में बैठकर आराम कर रहा था.

किसान की सारी बाते उसने सुनली थी. शेर को अपनी गलती का पछतावा हुआ. की उसने एक गरीब किसान का नुकसान कर दिया. बिरजू वही बैठ कर रोए जा रहा था.

तभी शेरे उसके सामने आकर खड़ा हुआ और बोला किसान भैया मुझे माफ करना. मैंने ही तुम्हारी भैंसों को अपना भोजन बना लिया था. और मुझे इस बात का बुरा भी लग रहा है.

बिरजू बोला अरे शेर भैया अब आप ही बताओ. मैं क्या करू उन भैंसों का ही तो दूध बेचकर. मैं अपना गुजरा करता था. मैं तो अब भूका मरूँगा. शेर को बिरजू पर दया आ गई.

वह बोला मैं सोने से बना हुआ शेर हूँ. तुम मेरे कुछ सोने के बाल काटकर बेच दो और उन पैसों से अपने लिए नइ भैंस खरीद लो. फिर बिरजू ने शेर के कुछ बाल काटकर ले लिए.

और शेर वापस जंगले में चला गया. उन सोने के बालों को बेचकर बिरजू को बहुत सारे पैसे मिले.  इतने सारे रुपयों को एकसाथ देखकर उसके के मन में लालच आ गया.

फिर उसने ने सोचा की उस सुनहरे शेर के कुछ बालो को बेचकर. मुझे इतने सारे पैसे मिले. तो अगर मैं उसके सारे बाल काट कर बेच दूं. तो मैं एक दिन में ही आमिर बन जाऊंगा.

फिर बिरजू ने एक योजन बनाई. उसने सोचा की अगर मैं उस सुनहरे शेर को किसी तरह नींद की दवा खिला दूं, तो वह कुछ देर के लिए सो जायेगा. और तब तक में उसके सारे बाल काट लूँगा.

बिरजू ने गाँव के डॉक्टर से झूट बोलकर नींद की दवा ले ली. और बिरयानी बनाकर उसमे वह सारी दवा मिला दी. पूरी बिरयानी एक डब्बे में भरकर वह जंगल की तरफ शेर को ढूँढने निकल पड़ा.

जंगल में चलते-चलते कुछ ही दुरी पर उसे एक बड़ीसी गुफा दिखी. उसने गुफा के बाहर से ही शेर को आवाज़ लगाई. अरे ओ सुनहरे शेर राजा क्या तुम अन्दर हो?

शेर बेचारा अपनी गुफा ने आराम कर रहा था. उसको आवाज कुछ जानी पहचानी-सी लगी. इसीलिए वह बाहर आ गया.

शेर के बाहर आते ही बिरजू ने कहा शेर राजा तुमने मेरी बहुत बड़ी मदत की है. इसलिए मैं तुम्हारे लिए एक भेट लाया हूँ. शेर बोला कैसी भेट बिरजू  भैया.

तभी बिरजू ने उस डिब्बे का ढक्कन खोल दिया. और बिरयानी की खुशबू सूंघते ही शेर के मुंह में पानी आ गया.

शेर वही बैठ कर बिरयानी खाने लगा. कुछ ही मिनटों में उसने ने बिरयानी का डिब्बा सफा चट कर दिया. फिर उसे हलकी-हलकी नींद आने लगी. और वह जमाही लेते हुए वही लेट गया.

शेर को सोया हुआ देख. लालची बिरजू ने अपनी थैली में से कैंची निकली, और शेर के बाल काटने लगा. इसी वक्त अचानक से शेर की नींद खुल गई. और वह खुदके कटे हुए बालो को देख.

गुस्से में बोला लालची इंसान मैंने अपनी गलती की माफ़ी भी मांगी थी और तुम्हारी मदत भी की थी. अब ज्यादा धन कमाने के लालच में तुम मेरे सारे बाल काटना चाहते हो.

तुमने मेरे बारे में एक पल भी नहीं सोचा की मेरा रूप खराब दिखेगा. जंगल के प्राणी सही कहते है. इंसान का लालच कभी कम नहीं होता.

अभी में तुम्हे ही अपना भोजन बना लेता हूँ. इतना कहकर शेर उस लालची बिरजू को खा गया. और इस तरह एक लालची इंसान का अंत हुआ.

नैतिक सबक- लालच में आकार हमें कभी दूसरों के साथ गलत नहीं करना चाहिए

नैतिक सबक -अगर किसीने आपकी मदत की है. तो उसके साथ कभी बुरा व्यवहार मत करना.

आशावादी सोच का असर | bacchon ki shikshaprad kahaniyan

नुपुर नगर में श्रवण नाम का एक बुद्धिमान राज रहा करता था. उसके दो बेटे थे. उनके नाम थे राज और अभिराज. श्रवण राजा किसी न किसी बहाने अपने बेटों को कुछ न कुछ सिखाता रहता था.

एक दिन राजा ने बेटों की परीक्षा लेने की ठान ली. तो वह उन्हें श्याम के वक्त बगीचे में खेलने ले गया. बगीचे में बच्चों को खेलने के लिए छोड़कर.

राजा वही आस पास में टहलने लगा. जब उसने देखा की बच्चे अब खेलने में मगन हो गये है. तभी उसने अपने एक हाथ से सोने का कड़ा निकाल कर.

बगीचे में एक जगह छुपा दिया और बच्चों के सामने कुछ ढूँढने का नाटक करने लगा. अपने पिता को कोइ चीज ढूंडते हुए देखकर. दोनों उनके पास आ गये और पूछा,पिताजी आप क्या ढूंड रहे है?

श्रवण राजा ने कहा बच्चों मेरे हाथ से सोने का एक कड़ा. टहलते हुए बगीचे में कही गिर गया है. और अब मुझे वह मिल नहीं रहा है. तुम दोनों में से अगर कोई उसे ढूँढ कर देता है. तो मैं उसे एक बढ़िया इनाम दूंगा.

इनाम के बारे ने सुनते ही. वह दोनों कड़ा ढूँढने लगे. श्रवण राजा दुर से ही उन्हें देख रहा था. उसे मालूम था कि “राज” एक आशावादी सोच का लड़का है.

और “अभिराज” एक निराशावादी सोच वाला लड़का है. कुछ समय तक दोनों कड़ा खोजते रहे. पर जल्दी ही अभिराज ने खोजना बंद कर दिया.

उसने श्रवण राजा से कहा पिताजी कड़ा नहीं मिल रहा है और अब तो सूरज भी ढल जायेगा.  मै कल आकर ढूंढ लूँगा. इतना कहकर वह झूले पर आराम से बैठ गया.

पर “राज” अभी भी ढूँढ ही रहा था. सूरज लगभग ढल चूका था. फिर भी राज ने हार नहीं मानी, उसे उम्मीद थी की वह दिन ढलने से पहले कड़ा ढूंड लेगा.

इसी उम्मीद के सहारे ढूँढते-ढूँढते वह अभिराज बैठे हुए झूले के नजदीक पंहुचा और पिता को  खोया हुआ कड़ा राज को उसी झूले के नजदीक वाली झड़ियों में पड़ा हुआ मिला.

अभिराज आश्चर्य से देखता ही रहा. फिर राजा ने अभिराज को नजदीक बुलया और कहा. बेटा तुम्हारी निराशावादी सोच की वजह से.

तुमने जल्दी हार मान ली और “राज” की सोच आशावादी है. इसीलिए उसने सूरज ढलने तक कोशिश की और अंत मे उसे सफलता मिल ही गई.

क्योंकि हमारी आशावादी सोच से ही हमे सफलता मिलती है.

नैतिक सबक -अगर हमारी सोच आशावादी है. तो हमें लक्ष्य की प्राप्ति जरुर होती है.

बुद्धिमान मीनाक्षी | chhote bacchon ki kahaniyan

मीनू ने तीसरी कक्षा की परीक्षा पास करली थी. वह एक बुद्धिमान और साहसी बालिका थी. पढाई में होशियार होने के कारण मीनू के पिताजी ने उसका दाखिला. शहर के सबसे बडे स्कूल में करवाया था.

स्कूल घर से काफी दूर होने की वजह से पिताजी मीनू को रोज स्कूल छोड़ने और वापस लाने जाते थे.

और कभी-कभी जब पिताजी को स्कूल पहुँचने में देरी होती, तो मीनू स्कूल के गार्डन में ही उनका इतंजार करती थी.

एसे ही एक दिन पिताजी को स्कूल में पहुचने में देर हुई. मीनू स्कूल के गार्डन में उनका इतंजार कर रही थी. अचानक मीनू के पास एक अंजान आदमी आया और बोला. मीनू बेटा तुम्हारे पिताजी आज नहीं आएंगे.

उन्होंने मुझे तुम्हे घर ले जाने के लिए भेजा है, मैं उनका दोस्त हूँ. उसके ऐसा कहते ही,  मीनू को पिताजी की कही बात याद आ गई.

स्कूल में अगर तुम्हे कोइ अजनबी बोले की मैं तुहारे पिताजी का दोस्त हूँ और तुम्हे घर लेजाने आया हूँ. तो उसकी बात मत सुनना. क्योंकि चोर लुटेरे अक्सर बच्चों को झूट बोल कर अगवा कर लेते है और उन्हें विदेश में बेच देते है.

फिर मीनाक्षी ने बड़ी चतुरता से चोर को अपनी बातो में उलझाये रखा,और चलाखी से अपनी नई डिजिटल घड़ी में से फोन लगाकर पुलिस को बुला लिया.

नजदीक के इलाके में गश्त लगा रही पुलिस की एक टीम तुरंत वहां पहुंच गई. और तब तक उसके पिताजी भी स्कूल में पहुँच चुके थे. इस तरह मिना ने अपने साहस और बुद्धिमानी से.

एक बच्चा चुराने वाले अपराधी को पकडवा दिया. उसके बाद मीणा के साहस और बुद्धिमानी के चर्चे पूरे स्कूल में हुए. सभीने मीणा को शाबाशी दी.

नैतिक मूल्य – हमें हर संकट का सामना बिना डरे साहस और  बुद्धिमानी करना चाहिए.

कपटी गुल्लू भेड़िया | naitik mulya par aadharit kahaniya

एक दिन जंगले में गुल्लू नाम का भेडिया खरगोश  के पीछे भाग रहा था. और भागते भागते  वह एक शिकारी के बनाये हुए बड़े से गड्ढे में गिर गया.

शिकारी ने गड्ढा बहुत ही गहरा बनाया था. इस वजह से गुल्लू वहा से बाहर नहीं आ सकता था. गुल्लू  पूरा दिन मदत के इंतजार में वही बैठा रहा.

तभी श्याम के वक्त भोलू नाम का हाथी का बच्चा खेलते-खलते वहापर आ गया. उसकी आवाज गुल्लू ने पहचान ली. फिर गुल्लू ने कहा

अरे भोलू  इधर आ ना जरा. आवाज गड्ढे में से आ रही थी व देखकर, भोलू वहा गया और पूछा.अरे गुल्लू भैया आप इतने बड़े गड्डे में अकेले क्या कर रहे हो? गुल्लू एक कपटी भेडिया था.

उसे बस गड्ढे से बाहर निकलना था. उसने कहा भोलू यह पर बहुत सारे स्वादिष्ट फल है. इसलिए मै यहा सबसे छुपकर अकेले ही खा रहा हूँ.

तुम भी आओ यहाँ निचे हम दोनों साथ मिलकर. सभी मीठे-मीठे फल खाएंगे. मीठे फलो का नाम सुनते ही भोलू हाथी के मुंह में पानी आ गया.

और वो तुरंत ही उस गड्ढे में कूद गया. जैसे ही भोलू निचे गड्डे में उतरा. गुल्लू तुरंत ही उसकी पीठ का पर खडा होकर गड्ढे से बाहर आ गया. और वहां से भाग गया. जब भोलू ने देखा की गड्ढे में कोइ फल नहीं है.

और गुल्लू भी भाग गया है. तो भोलू वही बैठकर रोने लगा. रात होते ही भोलू की माँ उसे ढूंढते हुए वहा आयी.

और उसे गड्ढे से बाहर निकल कर घर ले गई. घर जाकर भोलू ने माँ को कपटी गुल्लू भेड़िये की सारी हकीकत बता दी

माँ ने कहा तो भोलू बेटा तुम्हे इस बात से क्या सीख मिली  फिर भोलू बोला की आंख मूंद कर कभी किसी पर विश्वास मत करो.

नैतिक सबक – बच्चों इस कहनी से आप को ये सीख मिलती है की हमें आंख मूंद कर कभी भी किसी पर भी भरोसा नहीं करना चाहिए.

घमंडी गधा | hindi naitik kahaniya

रामपुर गाँव में चिंपू नाम का एक कुम्हार (कुम्भार) रहता था. उसके बनाये हुए मिट्टी के बर्तन बाजार में बहुत तेजी से बिकते थे. चिंपू बहुत ही मेहनती था. सुबह सुबह जल्दी उठकर ही वो अपने मिटटी के बर्तन बनाने का काम को शुरू कर देता था.

उसके पास गिल्लू नाम का एक गधा था. चिंपू अपने गधे को लेकर हर रोज़ सुबह जंगल में मिट्टी लाने जाता था. इसी तरह एक दिन सुबह जब चिंपू अपने गधे पर जंगल से मिट्टी लादकर ला रहा था. उस वक्त गधे के मन में खयाल आया.

की मै अकेला ही सबसे ज्यादा मेहनत करता हु.अगर में न होता, तो यह चिंपू भूखा ही मर जाता. ऐसा सोच सोचकर गिल्लू गधे को अपनी मेहनत पर घमंड हो गया. उसने ठान लिया की अबसे वह कोइ काम नहीं करेगा.

और उसने अचानक से चिंपू को लाथ मार दी. चिंपू झड़ियो में जा गिरा. फिर गिल्लू ने पीठ पर लादी हुई सारी की सारी मिट्टी पुरे रस्ते पर इधर उधर गिरा दी.  चिंपू को लगा की उसे शायद किसी जंगली कीड़े ने काट लिया होगा.

इसलिए उसने घबराकर मिट्टी गिरा दी होगी. अगले दिन चिंपू गिल्लू को वापस जंगल में ले गया, और फिरसे मिट्टी लाद कर ले आया. जब आधे रस्ते पहुंचा. तब फिर एक बार गिल्लू ने सारी मिट्टी रस्ते पर इधर उधर गिरा दी.

पर इस बार चिंपू को बड़ा गुस्सा आया. उसने गधे को लकड़ी से बहुत पिटा बहुत पिटा और उसी दिन बाजार ले जाकर उसे बेच दिया और उसकी जगह दूसरा गधा ले आया.

नैतिक मूल्य – जिन्दगी में कभी भूलकर भी अपने किसी चीज का ” घमंड ” मत करना.

अपनी मदत खुद करो | bacchon ki shikshaprad kahaniyan

जंगल में मिंटू नामकी एक खरगोश रहती था. जंगले में उसके बहुत से जानवर दोस्त थे. एक दिन उसके खरगोश दोस्तों ने मिलकर एक बड़ी पार्टी रखी थी. उन्होंने मिंटू को भी अपने साथ पार्टी में बुला लिया.

सभी खरगोशों ने  जंगल में बहुत मजे किये. मीठे-मीठे गाजर खाए,तालाब के पानी में भी खेले इस तरह पार्टी बहुत मजे में चल रही थी.

पर जंगल में अचानक से शिकारी आया! शिकारी आया!. यह खबर बंदरो ने पुरे जंगल आग की तरह फैला दी. सभी  जानवर घबरा गए और घर की तरफ भागने लगे.

सभी खरगोश अपने अपने घरो में छुप गए. लेकिन मिंटू का घर वहासे काफी दूर था. इसीलिए मिंटू ने दुसरे खरगोशों से मदत मांगी. वह बोली  मुझे अपने साथ घर में छुपालो, नहीं तो शिकारी मुझे पकड़ लेगा.

पर खरगोश या किसी भी जानवर ने उसकी मदत नहीं की मिंटू अब बहुत बड़ी मुसीबत में थी. पर उसने धैर्य से काम लिया.

और झाड़ पत्तों के निचे छिपते-छिपते वह अपने घर तक पहुच गई. घर जाकर उसने पूरा किस्सा अपनी माँ को सुनाय. माँ बोली मिंटू बेटा तुमने इस बात से क्या सबक सिखा मिंटू बोली की अपनी मदत खुद करना सीखो. किसी पर भी निर्भर मत रहो.

नैतिक सबक – तो बच्चों आपको भी यही सीख मिलती ही की कभी किसी पर निर्भर मत रहो हमेशा अपनी मदत खुद करना सीखो.

बुरी संगत का असर | naitik kahaniya in hindi

चंदनपुर गाँव में कृष्णा नाम का एक युवक अपनी माता निर्मला के साथ रहता था. कृष्णा के पिताजी कुछ बरस पहले गुजर गए थे. इसलिए उसकी माँ ही घर-घर के कपड़े, बर्तन धोकर, और खाना बनकर घर चलती थी.

निर्मला अपने बेटे से बहुत प्यार करती थी. उसके पालन पोषण में कोई कमी ना रहे.

इसीलिए ज्यादा से ज्यादा  घरों के काम कर के वह पैसे जूटा रही थी. लेकिन कृष्णा को इस बात की जरा भी परवा नहीं थी. एक दिन निर्मला एक घर पर कपडे धोने का काम करने गई थी.

वहां की मालकिन ने बताया अरे निर्मला मैंने तेरे बेटे को कल गाँव में देख था. वह कुछ बुरे लड़को के साथ घूम रहा था.

वह लड़के चोरी और बदमाशी करते है. तू तेरे बेटे को समझा दे की उनकी संगत में ना रहे. कृष्णा बुरी संगत में फस गया है. यह खबर सुनकर निर्मला चिंतित हो गई.

घर जाकर उसने कृष्णा को खूब डांटा और उन बदमाश लडको की संगत छोड़ने के लिए कह दिया. उसके कुछ ही दिन बाद निर्मला अपने काम से घर लौट रही थी.

तभी उसने देखा की कृष्णा अब भी उन बदमाश लडको के साथ, जब कृष्णा घरपर लौट आया. तब माँ ने उसे समझया की बेटा मैं दिन भर घर-घर का काम करके तुजे पाल रही हु.

और तू उन बदमाशों के साथ घूमता रहता है. एक बात याद रखना “बुरी संगत का नतीजा बुरा ही होता है” कृष्णा ने अपनी माँ की बात को पूरी तरह से अनसुना करदिया.

उसके दुसरे ही दिन, गाँव में एक चोरी हो गई और पुलिस नुक्कड पर खड़े उन सभी बदमाश लड़कों के साथ-साथ कृष्णा को भी पकड कर ले गई.

कृष्णा ने चोरी तो की नहीं थी, लेकिन वह सिर्फ बदमाशों की संगत में था. इसीलिए पुलिस को उसपर भी संदेह हो गया और वे उसे भी पकडर ले गए थे. पुलिस थाणे की एक महिला पुलिस अधिकारी ने कृष्णा को देखते ही पहचान लिया.

क्योंकि कृष्णा की माँ निर्मला हर रोज़ उनके घर का काम करती थी. उसने तुरंत निर्मला को पुलिस स्टेशन बुलवा लिया.

निर्मला में बड़ी मिन्नतो से कृष्णा छुड़ा लिया.

पर उसे छोड़ते वक़्त उस महिला अधिकारी ने कृष्णा से वायदा लिया की वह बदमाशों की संगत हमेशा के लिए छोड देगा.

इस तरह निर्मला की वज़ह से कृष्णा को पुलिस ने छोड़ दिया. उस दिन कृष्णा ने एक सबक सिखा की बुरी संगत का नतीजा बुरा हो होता है.

नैतिक सबक – तो बच्चों आप भी ये बात समझ ले हमेशा सज्जनों की संगत में रहना चाहिए. क्योंकि आज नहीं तो कल बुरी संगत का नतीजा बुरा ही निकल ता है.

पेड़ का घमंड | shikshaprad kahani in hindi

नंदनवन नाम का के हरा भरा गाँव था. वो गाँव अपने घने जंगलो के लिए पहचाना जाता था. वहा के जंगलो में विविध आकार-प्रकार के टेढ़े मेधे पेड़ पेड़ थे.

और उन्ही पेड़ों के बीच में कुछ गिने चुने सीधे आकार पेड़ भी थे. एक दिन वही सीधे पेड़ दुसरे पेड़ों को बोलने लगे.

तुम सब टेढ़े मेधे पेड़ एकदम बेकार दीखते हो न कोई आकार है न कोई रूप है. बस किसी भी दिशा में बढते जा रहे हो. दुसरे पेड़ों को उनकी यह बात बुरी लगी.

उसदिन से जंगल के सारे सीधे पेड़ दुसरे पेड़ों को चिढ़ाने लगे. एक दिन जंगल में एक आदमी आया. उसने कुछ सीधे पेड़ों पर एक-एक सफेद निशान लगाया. और उनकी गिनती लिखकर अपने साथ ले गया.

उसके निशान लगने के बाद सीधे पेड़ों का रुबाब और भी बढ़ गया. वो बोले देखो सब लोग हमे एक अलग ही दर्जा दिया जा रहा है. पर सीधी पेड़ों का घमंड ज्यादा समय नही चल पाया.

उसके कुछ ही दिन बाद गाँव से कुछ लकड़हारे आए और निशान लगाये हुए सारे सीधे पेड़ों को काट दिया.

इस तरह सीधे पेड़ों का घमंड हमेशा के लिए टूट गया.

नैतिक सीख – अपने किसी भी रंग रूप का घमंड कभी मत करो.

जैसे को तैसा | naitik mulya par aadharit kahaniya

बहुत समय पहले जंगल में एक लोमड़ी रहा करती थी. उसकी गुफा के पास ही एक सुंदर-सा तालाब था. लोमड़ी उसी तालाब पर हर रोज़ पानी पिने जाती थी. एक दिन वहां पर मछली पकड़ने आयी हुई.

एक सारस पक्षी के साथ उसकी मुलाकात हो गई और जल्द ही दोनों अच्छे दोस्त बन गए. एक दिन लोमड़ी ने कहा,

हम इतने अच्छे दोस्त है. पर अभी तक एक दूसरे के घर नहीं गए. तुम कल मरे घर दावत पर आना. इसपर सारस ने भी दावत पर आने के लिए हाँ कह दिया.

सारस लोमड़ी के घर समय पर पहुंच गई. लोमड़ी ने चिकन सूप बनाया था. उसने वह सूप दोनों को पतली थाली में परोस दिया. थाली पतली होने की वजह से लोमड़ी ने वह सूप जबान से चाट कर. उसका पूरा स्वाद लेकर पिया.

पर सारस की चोंच लंबी होने के कारण थाली में परोसा हुआ. सूप वह पी नहीं पाई. घर जाते वक्त लोमड़ी ने सारस से पूछा की क्या हुआ बहन सूप तुम्हे पसंद नहीं आया?.

तुमने तो पिया ही नहीं, सारस ने कुछ जवाब नहीं दिया. वह सिर्फ  मुस्कुराकर घर निकल गई.

दुसरे दिन सारस ने लोमड़ी को मज़ा चखाने की ठानली. और उसने लोमड़ी को अपने घर दावत पर बुला लिया.

सारस ने मछली का सूप बनाया था. उसकी खुशबू से लोमड़ी के मुंह में पानी आ गया. पर जब दोनों दावत पर बैठे. तब सारस ने मछली का सूप दोनों को लंबी और पतली गर्दन वाली सुराही में परोसा.

दावत शुरू होते ही सारस ने सूप पीकर इसका भरपूर आनंद लिया. पर सुराही की लंबी और पतली गर्दन होने के कारण. लोमड़ी सूप को पी नहीं पाई सिर्फ सूंघती ही रह गई.

जब लोमड़ी घर वापस जाने के लिए निकली. तब सारस ने पूछा क्या हुआ बहन. मछली का सूप तुम्हें पसंद नहीं आया क्या?

उस वक्त लोमड़ी को अपनी गलती का एहसास हुआ.

नैतिक मूल्य – जैसे को तैसा जरुर मिलता है.

साधु की सादगी और शराबी की बदतमीजी | Naitik shiksha ki kahani

एक दिन जंगल से एक साधू राम राम जपते हुए गाँव की तरफ जा रहे थे. तभी रस्ते में उन्हें एक शराबी मिल गया. उसने साधु को कहा ए बुड्ढे कहा जा रहा है तू?  साधु एक क्षण के लिए रुके.

उसकी तरफ देखकर मुस्कान दी और फिर से राम राम जपते हुए. गाँव के तरफ चलने लगे. शराबी ने फिर से कहा ए ढोंगी कहा जा रहा है बे, जवाब क्यों नहीं देता? पर साधु ने उसकी किसी भी बात का प्रति उत्तर नहीं दिया.

वह सिर्फ राम राम जपते हुए गाँव की तरफ चलते रहे. शराबी ने साधू की ओर से कोई जवाब न मिलने पर और बुरा-भला कहना शुरू कर दिया.

ऐसा बहुत देर तक चलता रहा. पर साधु महाराज ने उसकी किसी भी बात का कोई जवाब नहीं दिया. वह सिर्फ राम राम कहते हुए चलते रहे. जब वो दोनों गाँव के मुख्य प्रवेश द्वार पर पहुंचे. तब साधु बाबा ने शराबी को अपने पास बुलाया.

और कहा बालक तुमने जंगल से गांव तक मेरा साथ दिया.इस बात के लिए में तुम्हारा धन्यवाद करता हूँ. पर अब तुम्हें अपने घर चले जाना चाहिए.

क्योंकि अगर गाँव के लोगों ने तुम्हे मेरे बारे में बुरा-भला कहते हुए सुना. तो वो सभी तुम्हे पीटेंगे. साधु की अपने लिए चिंता और दया का भाव देखकर. वह शराबी उनके पैरों में गिर गया.

शराबी को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह माफी मांगते हुए वो रोने लगा.

नैतिक सबक – विनम्र और सादगी भरे स्वभाव से आप मुसीबत से दूर रहते हो. औरलोगों के मन जीत भी सकते हो.

नैतिक सबक –  सच्चे साधु तपस्वी हमेशा विश्व का कल्याण चाहते है. अगर हमें कोई साधु या तपस्वी मिले. तो बड़े मन से उनका सम्मान करना चाहिए.

दयावान साधू और खूंखार शेर | naitik mulya par aadharit kahaniya

बहुत सालों पहले भारत के एक आश्रम से 2 साधू अपने गुरुजी के साथ, पहाड़ियों पर जड़ी बूटियां खोजने निकले थे. रास्ते में उन्हें एक जंगल से गुजरना पड़ा था. उस जंगल में भयंकर अकाल पड़ा हुआ था.

जंगल के सभी प्राणी और पक्षी जंगल छोड़कर जा चुके थे. साधुओं को जंगल में पेड़ के नीचे एक बूढ़ा शेर दीखता है. वह भूख से बेहाल था. उसके प्राण अब बस निकलने ही वाले थे. क्योंकि जंगल में कोई भी शिकार न होने से.

शेर बहुत दिनों से भूखा था. साधुओं के गुरुजी को उस शेर पर बहुत दया आयी  और उन्होंने अपने दोनों शिष्यों को उनके नजदीक ही लगे. तंबू से थोड़ा सा पानी और कुछ जड़ी बूटियां लाने के बहाने अपने से दूर भेज दिया.

और गुरुजी उस शेर के पास जाकर बोले. राजा शेर तुम मुझे खाकर अपनी जान बचा लो. शेर ने वैसा ही किया और गुरूजी को खाकर अपनी जान बचा ली.

कुछ समय बाद जब उनके शिष्य वहां पर पहुंचे. तब उन्हें अपने गुरुजी के खून से सने हुए कपड़े और रुद्राक्ष की माला मिली. वे समझ गए की गुरु जी ने. अपनी जान देकर उस बूढ़े शेर की जान बचाई है.

इस बात से शिष्यों की आँखे भर आयी. फिर आश्रम जाकर उन्होंने गुरूजी के बलिदान और दया की कहानी सबको सुनाई.

घमंडी मेंढक | naitik shiksha ki kahani

बहुत वर्षों पहले एक बड़ा सा तालाब था. उस तालाब में बहुत सारे मेंढक रहा करते थे. उनमे से एक मेंढक ऐसा था. जो आकार में सबसे बड़ा था.

और उसके बलवान शरीर का उसे बहुत घमंड भी था. वह सदा ही अपने बच्चों के सामने होशियारी मारता रहता. सभी बच्चों को अपने झूठे पराक्रम की कहानियां सुनाता रहता. उसके बच्चे भी मान गए थे.

की उनके पिताजी के समान इस दुनिया में कोई नहीं है. एक दिन सभी बच्चे खेलते-खेलते तालाब से बाहर घूमने गए थे.

घूमते-फिरते वह एक खेत में जा पहुंचे. उन्होंने दूर से देखा कि कोई अजीब-सा प्राणी एक गड्ढे से पानी पी रहा है.

फिर उन्होंने उसे थोडा नजदीक जाकर देखा. वह एक महाकाय प्राणी था. जो की एक किसान का बैल था.

उन्होंने इससे पहले बैल की कभी देखा नहीं था. इसलिए बस उसे देखते ही रह गए. पानी पीने के बाद बैल ने जोर से एक हुंकार लगाई. उसकी हुंकार से वे सब डर गए. और पिताजी पिताजी कहते हुए.

तालाब में जा पहुँचे, उस बड़े मेंढक ने पूछा क्या हुआ बच्चों किस से इतना डरकर भाग रहे हो.

बच्चे बोले हमने अभी-अभी दुनिया का सबसे बड़ा प्राणी देखा. जो आप से भी अधिक बड़े आकार का था.

अपने से बड़े आकार का कोई प्राणी इस दुनिया मे है. यह सुनकर उस बड़े मेंढक का अहंकार जाग उठा. उसने पूछा कहा पर देखा तुमने उसे?.

बच्चे उसे खेत वाले गड्ढे के पास ले गए और कहा हमने उसे यहां पर देखा था. इस गड्ढे में से वह पानी पी रहा था. मेंढक उस गड्ढे के पास गया. और उसमें से पानी पी कर थोडासा फुल गया.

उसने बच्चों से पूछा. क्या वह प्राणी इतना बड़ा था? बच्चों ने कहा नहीं पिताजी वह बहुत विशाल था.

फिर मेंढक ने और थोडा सा पानी पी लिया और फिरसे से पूछा क्या इतना बड़ा था? बच्चे बोले नहीं वह बहुत ज्यादा बड़ा था.

आप उसके जितना विशाल कभी नहीं बन सकते. यह बात सुनते ही तुरंत मेंढक के अहंकार को ठेस पहुँची.

वह सीधे उस गड्ढे के पानी में कूद गया और पानी पिता रहा – पिता रहा और फिर एक ऐसा समय आया की जब वह ज्यादा फूल नहीं सकता था.

तब वह घमंडी मेंढक वही के वही जोर से फट गया. इस तरह अपने अहंकार की वजह से मेंढक को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.

नैतिक सबक – हमें किसी भी बात पर घमंड नहीं करना चाहिए. क्योंकि कभी-कभी घमंड की वजह हमारा खुद का ही नुकसान हो सकता है.

डरपोक खरगोश | naitik mulya par aadharit kahaniya

बहुत समय पहले किसी जंगल में एक खरगोश रहा करता था. एक दिन वह खरगोश आम के पेड़ के नीचे सो रहा था.

दोपहर के वक्त आम के पेड़ पर दो नटखट बंदर आ गए. और पेड़ से आम जमीन पर गिराने लगे. तभी कुछ आम नीचे सोते हुए खरगोश के आस पास गिरे.

वह हड़बड़ा कर उठा और इधर उधर देखने लगा. और फिर से सो गया. बंदरों की नजर खरगोश पर पड़ी. उन्हें एक मजाक सूझा.

बंदरों ने पेड़ से एक आम तोड़कर खरगोश के सिर पर दे मारा. सिर पर अचानक कुछ गिरने से खरगोश ने समझा की आसमान ही गिर रहा है.

वह भयभीत होकर शेर राजा की गुफा की तरफ दौड़ने लगा. बेतहाशा भागते हुए. खरगोश को देख. उसे एक लोमड़ी ने पूछा.

क्या हुआ इतना जल्दी में कहा जा रहे हो?

खरगोश हाँफता-हाँफता बोला हमारे जंगल पर आसमान गिरने वाला है. यह खबर शेर राजा को देने जा रहा हु.

आसमान गिरने की बात सुनकर लोमड़ी भी खरगोश के साथ भागने लगी. इसी तरह जंगल के बहुत से प्राणी खरगोश के साथ भागने लगे.

जब भी शेर राजा के पास पहुंचे. तब उन्होंने पूछा क्या हुआ? सभी प्राणी अचानक यहाँ क्यों आए है?. खरगोश ने शेर राज का पूरा किस्सा सुना दिया.

शेर को दाल में कुछ काला लगा. इसलिए वह सभी प्राणियों को लेकर उस आम के पेड़ के पास पहुंचा. शेर राजा ने देखा कि पेड़ पर दो बंदर खेल रहे है.

और जमीन पर बहुत सारे आम पड़े हुए है. शेर को पूरी बात समझ में आ गई. और शेर ने वो सभी प्राणियों को भी समझा दी.

फिर सभी प्राणी उस डरपोक खरगोश की तरफ देखकर हंसने लगे.

नैतिक सबक – कभी भी किसी खबर की ठीक से पुष्टि किए बिना सिर्फ डर के आधार पर अफवाह मत फैलाओ.

फस गया ढोंगी गधा |naitik mulya par aadharit kahaniya

यह बहुत समय पहले की बात है. हरिलाल नाम का एक धोबी था. उसके पास एक गधा था.

वह गधा हमेशा घर से भाग जाया करता था.और हरिलाल उसे गांव में से ढूंढ कर लाता था.

एक दिन गधा हमेशा की तरह घर से भाग गया. पर इस बार वह पड़ोस के गांव में जाकर छुप गया. उस गाँव में मेला लगा हुआ था.

गधा उस मेले में घूमने लगा. तभी उसने देखा की एक आदमी शेर की खाल पहनकर लोगों को डरा रहा था.

वह किसी असली शेर की तरह लग रहा था. और इससे लोगों का मनोरंजन हो रहा था.

उस वक्त गधे के दिमाग में एक योजना आयी. रात को जब वह शेर की खाल वाला आदमी सो रहा था. तब गधे ने उसके तंबू में जाकर वह शेर की खाल चुरा ली.

और उसे पहनकर वह अपने गाँव भाग आया. जब उसने गाँव में प्रवेश किया.

तब गाँव वालो को सच में लगा के शेर आया है. सभी भयभीत होकर यहा वहा भागने लगे. कुछ लोग छत पर चढ़ गए. कुछ लोग अपने-अपने घरों में बंद हो गए थे.

पर उस गधे का वह ढोंग बहुत देर नहीं चला. गधा जब लोगों को डराते हुए. उनके पीछे भाग रहा था. तभी एक तेज हवा का झोंका आया और उस गधे के ऊपर की शेर की खाल को उड़ा ले गया.

जब लोगों ने देखा कि वह असली शेर नहीं बल्कि एक गधा है. जो अब तक शेर की खाल पहनकर
व्यर्थ में सबको डरा रहा था.

तब गाँव के सभी लोगों ने मिलकर. उस ढोंगी गधे को खूब पिटा.

लालची कुत्ता | chhote bacchon ki kahaniyan

एक गाँव में मोती नामका कुत्ता रहता था. एक दिन मोती घूमते-घूमते गाँव से बाहर गया. वहा पर एक होटल के मालिक ने उस ब्रेड का टुकड़ा दिया.

मोती ने वो ब्रेड पूछ हिलाते हुए ख़ुशी से ले लिया. उसने ने सोचा की घर जाकर ब्रेड आराम से बैठ के खाऊंगा.

फिर ब्रेड का टुकड़ा मुंह में दबाकर. मोती अपने घर की ओर निकल पड़ा. घर जाते वक़्त रस्ते में उसे एक छोटा झरना पार करना पड़ता था. मोती पानी में उतर गया. और धीरे धीरे झरना पर करने लगा.

तभी मोती की नजर पानी में दिख रहे. उसके प्रतिबिंब पर पड़ी.

उसे दिखा की उसके जैसा ही एक और कुत्ता. ब्रेड मुह में दबाकर झरना पार कर रहा है.

फिर उसके मन में लालच आगया. उसने सोचा की अगर मैंने उस दुसरे कुत्ते का ब्रेड छीन लिया.

तो मेरे पास दो ब्रेड के टुकडे हो जायेंगे. मै उन्हें घर जाकर बहुत मजे से खाऊंगा. फिर मोती ने उस दुसरे कुत्ते पर भौंकने के लिए जैसे ही मुंह खोला. वैसे ही उसके मुंह में से ब्रेड का टुकड़ा. झरने के पानी में बह गया.

और लालची की वजह से मोती भूका ही रह गया.

नैतिक सबक – बच्चों इस कहनी सीख मिलती है की कसी भी चीज का लालच करना अच्छा नहीं होता.

नकलची बंदर | chhote bacchon ki kahaniyan

बहुत समय पहले लालगंज नाम का एक गाँव था. उस गाँव में साल में दो दिन बहुत बड़ा बाज़ार लगता था. इसलिए आस पड़ोस गाँव के बहुत से व्यापारी वहा दुकान लगाने आते थे.

इसी तरह एक वर्ष उस बाज़ार में रंग बिरंगी टोपिया बेचने वाला एक व्यापारी आया. बाज़ार श्याम को शुरू होने वाला था. इसलिय दोपहर के वक़्त वह व्यापारी गाँव में एक पेड़ के निचे सो रहा था.

जब वह नीदं पूरी होने के बाद उठा. तब उसने देखा की टोपियो से भरा हुआ उसका झोला खाली था. जो टोपिय उसने बाजार में बेचने के लिए लायी थी वह टोपिया झोले में नहीं थी.

और जब उसकी नज़र पेड़ गई. तो पेड़ पर बहुत सारे बंदर उसकी टोपिया पहन के बैठे थे.

उसे बंदरो पर बहुत गुस्सा आया. उसने बंदरो से टोपिय वापस लेने की बहुत कोशिश की. पर एक भी टोपी बंदरो ने उसे लेने नहीं दी.

व्यापारी परेशान हो गया और सिर पकड कर निचे बैठ गया. उसे समझ में नहीं आ रहा था की अब वह क्या करेगा?.

तभी अचानक एक बंदर ने उसके सिर पर कसके एक आम दे मारा. और व्यापारी मुंह के बल गिर पड़ा.

फिर व्यापारी का गुस्सा भी आसमान छूने लगा. उसने निचे पड़ा हुआ एक आम उठाया. और बंदरो को फैंक के मारा.

बंदरो ने भी पेड़ से आम तोड़े और व्यापारी को दे मारे. व्यापारी को बहुत से आम लगे भी पर इसबार उसे एक बात समझ में आयी.

की बंदर उसकी नकल उतार रहे है. फिर उसने जेब से खुदकी टोपी निकली सिर पर पहनी और फिर से उतार कर ज़मीन पर फैंक दी. और फिर क्या बंदरो ने भी अपनी-अपनी टोपिया निकल के ज़मीन पर फैंक दी.

इस तरह व्यापारी ने बुद्धिमानी से अपनी सारी टोपिय बंदरो से वापस ली.

नैतिक सबक – तो  बच्चों आपको इस कहानी से ये सीख मिलती है की हमें हर परेशनी को में बुद्धि से हल करना चाहिए.

प्यासा कौवा | naitik kahaniya in hindi

बहुत वर्षो पहले जंगल में अकाल पड़ा था.अकाल की वज़ह से पूरे जंगले में कहिपर भी पानी की एक बूंद नहीं बची थी.

इसी वज़ह से जंगल के सारे पक्षी और पशु नए ठिकाने की तलाश में जंगल को छोडके चले गए थे.

पर एक कौवा उनसे पीछे रह गया था. फिर वह अकेला ही नए ठिकाने की तलश में भटक ने लगा.

असमान में बहुत कड़ी धुप थी. और कौवे को बहुत तेज प्यास भी लगी थी.

इसलिए उससे और दूर तक उड़ा नहीं जा सकता था. उड़ते-उड़ते उसे एक खंडहर दिखा.

वहा पर एक बडासा मिटटी का बर्तन रखा हुआ था.कौवे को ऊपर असमान से ही उस बर्तन में पानी दिख गया था.

पर जब वह निचे आया. तो उसे दिखा की उस बर्तन में पानी बहुत निचे था.

उसकी चौच भी वहा तक नहीं पहुँच पा रही थी. वह कुछ देर तक वही बैठ कर सोचता रहा.

फिर उसके मन में एक विचार आया और वह आसपास से जो कंकड़ और पत्थर वह उठा सकता था.

वे सभी उठाके उसने बर्तन में डालना शुरू किया.

थोड़ी ही देर में उन कंकड़ और पत्थर की वजह से बर्तन का पानी ऊपर तक अगया.

उसके बाद कौवे ने जी भरके पानी पिया.

नैतिक सबक  – तो बच्चों हमे इस कहानी से यह सीख मिलती है की आवश्यकता सभी आविष्कारों की जननी है .

नैतिक मूल्य – कठिन से कठिन कार्य सोच विचार और बुद्धिमता से पुरे किये जा सकते है.

सफलता का राज | naitik shiksha ki kahani

naitik mulya par aadharit kahaniya

बहुत समय पहले एक जंगल में बडासा तालाब था. उस तालाब में सिर्फ़ मेंढक ही मेंढक रहा करते थे. इसलिए उस तालाब को मेंढक को का तालाब कहा जाता था.

उसी तालाब में एक दुबला पतला-सा मेंडक था. उसका नाम बिरजू था. बिरजू बड़ा ही मेहनती और कभी हार ना मानने वाला मेंढक था.

एक वर्ष बारिश ना होने की वज़ह से अकाल पड गया. तालाब का पानी भी धिरे-धिरे सूखने लगा. इस वज़ह से तालाब के कुछ मेंढक तालाब छोड़ कर जा चुके थे.

क्योंकि उसमे बहुत कम पानी बचा था. बचे हुए मेंढक तालाब के उपर से दिखने लगे थे. इसलिए सबकी जान अब जोखिम में थी.

तभी जिसका सबको डर था वही हुआ. अचानक कही से एक बगुला आया और एक-एक करके तालाब के बचे हुए मेंढक निगलने लगा.

और जब उस बगुले ने बिरजू मेंढक को अपनी चोच में पकड लिया. और निगल ने लगा. तभी बिरजू ने साँस अन्दर खिंचके अपने आप को थोडास फुला लिया.

इस वज़ह से बगुले को उसे निगल ने में परेशानी होने लगी. फिर भी बगुलेने उसे निगलना चाहा.

पर बिरजू मेंढक भी हार मानाने वालो में से नहीं था.

उसने भी अपने पैरो की छट पटाहट बढ़ा दी. बिरजू का सिर उसकी चोच के अंदर फस चूका था.

पर पैर अब भी बाहर थे. उसका संघर्ष जारी था.वो हर मानाने के लिए बिलकुल तैयार नहीं था.

और अब बस बगुला उसे पूरी तरह निगलने ही वाला था. की अचानक मेंढक के अगले पैरो को बगुले की गर्दन लगी.

फिर उसने ने एडी चोटी का ज़ोर लगाके बगुले की गर्दन कसके दबा के रखी.

गर्दन दबाने से बगुले की साँस रुक गई और उसे चक्कर आने लगा.

फिर तुरंत ही उसने मेंढक को तालाब में फैंक दिया. और लडखडाता हुए वहासे दूर उड़ गया.

इस तरह कभी हार न मानने वाले एक मेंढक ने खुदकी और अपने साथी यो की जान बचाई.

नैतिक सबक – जिंदगी में कभी भी हार ना मानना. यही सफलता का रहस्य है.

Albert Einstein Quotes In Hindi

बहरे बनिए | naitik mulya par aadharit kahaniya

बहुत समय पहले की बात है. एक जंगल में बडासा तालाब था. उस तालाब में सिर्फ मेंढको का राज था. वहा पर मेंढको का एक राजा भी था.

उसी तालाब के बीचो बीच एक सीधी और लंबी बेल थी. उसकी सतह बिलकुल चिकनी थी. इतनी की जब भी कोई बेल के ऊपर चढने की कोशिक करता. वो तुरंत ही फिसल कर नीचे पानी में गिर जाता.

एक दिन मेंढक राजा अपने तालब की सैर कर रहा था. उसने देखा की कुछ बच्चे उस लंबी बेल पर चढने की कोशिश कर रहे है.

पर बार बार निचे गिर रहे है. राजा को एक कल्पना सूझी. उसने अपने प्रधानजी को बुलाया.

और कहा की हम एक प्रतियोगिता आयोजित करवा रहे है. हमारे तालाब में जो सबसे लंबी बेल है. उसकी चोटी पर कोई भी मेंढक अगर चढ़ के दिखाए गा.

तो उसे एक बढ़िया सा इनाम दिया जाये गा. तुम ये खबर हमारे नजदीक के सभी तालाबो मे भेज दो.

प्रधनमंत्री ने सैनिको द्वारा तुरंत ही प्रतियोगिता की खबर सभी तालाबो में भिजवा दी.

प्रतियोगिता के दिन बहुत सारे मेंढक उस बेल के नीच इकठा हो गए. मुकाबला शुरू हुआ.

पहले मेंढक ने चढने की शुरुवात की. वह थोडा सा ही ऊपर तक चढ़ पाया. पर बेल की चिकनी सतह पर से फिसलकर पानी में गिर गया.

उसके पानी में गिरते ही. आस पास के सभी मेंढको में चर्चा शुरू होगई. “अरे वो बेल तो काफी चिकनी सतह वाली है ” .”लगता नहीं कोई चोटी तक पहुच पाएगा.”

फिर दुसरे मेंढक की बारी आयी. उसने बेल पर चढना शुरू किया. तब तक वहा आस पास की भीड़ में. धीमी धीमी आवाज में चर्चा हो रही थी.

अरे ये मेंढक तो पक्का नहीं चढ़ पायेगा.और वही हुआ दूसरा प्रतिस्पर्धी भी पानी में गिरपड़ा.

भीड़ की बाते मुकाबले में हिस्सा लेने वाले भी सुन रहे थे. उसके बाद से बहुत से मेंढक चढ़ते और फिसल कर गिर जाते.

फिर अगले आने वाले प्रतियोगी को बोलते “उस बेल पर कोइ नहीं चद सकता” उसपर चढना नामुमकिन है. और भीड़ की आवाज भी तेज होगई थी. इस तरह से जो भी मेंढक बेल पर चढनेकी कोशिश करता.

वो भीड़ ने फैलाई हुए नकारात्मकता से पीड़ित हो जाता और हार मान कर पानी मे गिर जाता. और जब भी कोई मेंढक फिसलकर पानी में गिरता.

उसपर भी भीड़ खूब हंसती. हंसने वालो के डर से तो कुछ मेंढक स्पर्धा में भाग ही नहीं लेते थे. राजा ये सब ध्यान से देख रहा था. उसी वक़्त भीड़ में से एक मेंढक बाहर आया और बेल की ओर बढ़ा.

सभी की नजर एक एक करके उसके ऊपर पड़ने लगी. फिर उसने बेल पर चढना शुरू किया.

भीड़ की आवाज ने भी जोर पकड लिया. मेंढक बोलने लगे देखो तो इसको इतने बड़े बड़े तीसमार खां नहीं चढ़ पाए और अब ये चढ़ेगा.

पर भीड़ की कीसी भी बात का असर. उस आखिर में चढने वाले मेंढक पर नहीं हो रहा था. वो सिर्फ बेल चढने पर ध्यान दे रहा था.

भीड़ तो भीड़ दुसरे प्रतियोगि भी उसे कुछ ना कुछ ताना मर रहे थे. पर वो मेंढक टस से मस नहीं हुआ.

और फिर वो समय आया जब वो मेंढक आधी से ज्यादा बेल चढ़ चूका था. और भीड़ अब धिरे धिरे शांत होने लगी थी. और आखिर में उस मेंडक ने वो प्रतिस्पर्धा जित ली.

और उस लंबी बेल की चोटी पर सबसे ऊंचाई पर वो अकेला खड़ा था.

फिर सबने उसका जय जय कार किया. आखिर में जब राजा के पास अपना इनाम लेने गया था.
तब उसके साथ उसकी माँ थी. राजा ने पूछा तुमने ये कैसे किया?.

उसने कोई जवाब नहीं दिया. फिर उसकी माँ बोलो मेरा बेटा बहरा है. उसे कुछ सुनाई नहीं देता.

नैतिक सबक : तो बच्चों इस कहनी से आपको ये सीख मिलती है की . अगर आपको सफल होना है.

तो बहरा बनाना पड़ेगा. इसका मतलब की आपके आस पास जो भी नकारात्मक लोग है.

जो दुसरो को उनकी राह से भटकते है. उनको पूरी तरह अनसुना करना होगा.

फिर देखना सफलता आपके कदम चूमेगी.

कुएँ का मेंढक | naitik shiksha ki kahani in hindi

एक दिन समुंदर का एक मेंढक घुमने के लिए समुंदर से बाहर गया था. रस्ते में उसे एक कुआँ दिखाई दिया. समुंदर के मेंढकने सोचा. क्योंना आज एक डुबकी कुएँ के पानी में भी मार ली जाये.

ऐसा सोचकर वह मेंढक कुएँ के पास गया. वहा पर एक कुएँ का मेंढक बैठ हुआ था.

उस मेंढक ने पूछा अरे भैया तुम यहाँ नए लग रहे हो. कहा से आये हो तुम ?समुंदर के मेंडक ने जवाब दिया. जी मैं समुंदर से आया हूँ. कुएँ का मेंढक बोला समुंदर ये किस कुएँ का नाम है?

फिर समुंदर का मेंढक बोला समुंदर किसी कुएँ का नाम नहीं है. वह इस छोटेसे कुएँ से बहुत अधिक बड़ा होता है. कुएँ के मेंढकने पूछा ऐसा कितना बड़ा होता है?

क्योंकि कुंए के मेंडक ने समुंदर कभी देखा ही नहीं था.फिर वह कुंए के किनारे उछल-उछल कर थोडा दूर गया. और उसी जगह वापस आय. और बोला क्या इतना बड़ा होता है?.

समुंदर के मेंढक ने कहा नहीं समुंदर बहुत ही विशाल होता है. फिर उस कुएँ का मेंढक ने कुएँ में छलांग लगादी.

उसने पूरे कुँए को गोल चक्कर लगाया और एक जगह रूककर बोला. इससे ज्यादा बड़ा तो होही नहीं सकता.

फिर समुंदर का मेंढक मुस्कुराकर बोला. मित्र समुंदर सबसे विशाल होता है .और ये तो सिर्फ़ एक कुआँ है.

उसकी इस बात कुएँ का मेंढक को क्रोध आगया.

वह बोला तुम कुछ भी बोल रहे हो. मेरे इस कुएँ से विशाल और कुछ भी नहीं है.

एसा कहकर उसने उस समुंदर के मेंढक को वहा से निकाल दिया.

नैतिक सबक- तो बच्चों आप को इस कहनी से यह सीख मिलती है. की हमे कभी भी उस कुएँ का मेंढक की तरह नहीं बनाना चहिये.हम जितना जानते है. जितना हमारे पास ग्यान है.

ये ब्रह्माण्ड उससे कई गुना ज्यादा बड़ा है. इसलिए हमे हमेशा नइ चीजे सीखते रहना चहिये.
अपने ग्यान की सीमओं को बढ़ता रहना चाहिए.

बौनों का गुप्त शहर | baccho ke liye kahani

बहुत समय पहले मीकु नाम का एक छोटा बच्चा था. उसे अकेले घुमने जाना अच्छा लगता था. एक दिन उसने घने जंगलो में घुमने जाने की योजना बनाई. घर से निकल ते वक्त उसने अपने बैग में खाने की बहुत सारी चीजे ली.

उसने दो बोतल भरके गाय का दूध लिया. फ्रिज में से केक के पैकेट लिए. रोटी सब्जी फल सब कुछ लिया. वह सुबह सुबह अकेले ही जंगल की सैर पर निकल पड़ा. रस्ते में उसे उसका दोस्त बंदर मिला.

वह बोला कहा जा रहे हो रवि?. रवि बोला मै घने जंगल में सैर पे निकला हूँ. बंदर ने उसे शुभ कामनाये दी . और पेड़ पर से उछलते उछलते खेलने के लिए निकल गया. रवि चलते चलते थोडासा आगे पंहुचा.

वहा उसे एक हाथी मिला. हाथी ने पूछा कहा जा रहे हो रवि?. वो बोला हाथी भैया मै घने जंगल में घुमने जा रहा हूँ. हाथी बोला चलो मै तुम्हे वहा छोड़ देता हूँ.

मै भी उसी रास्तेसे जा रहा हूँ. फिर हाथी ने रवि को उसकी सुंड में पकड़ कर पीठ पर बैठाया. रवि को हाथी की सवारी करने मै बहुत मजा आया. हाथी ने उसे जंगल घने जंगल के बीच उतारा.

फिर रवि ने उसका धन्यवाद किया और उसे फल खिलाये. हाथी ने भी खुश होकर फल खाए. फिर वह उसके घर चला गया. अब रवि को भूक लगी थी.

इसलिए वो बैठने की जगह ढूंढने लगा. साफ जगह ढूंढते ढूंढते. उसे एक जगह उसे बहुत छोटे छोटे पैरो के निशान दिखे. वो पैरो के निशान किसके है. यह देखने के लिए रवीने उनका पीछा किया. वह निशान रवि को एक छोटीसी गुफा तक ले गए.

रवि उस गुफा से अन्दर गया. उसे गुफा में एक पूरा शहर मिला. पर उस शहर में सभो लोग रवि के घुटने से भी छोटे कद वाले थे.

वह लोग बड़े दयालु थे. उन्होंने रवि का स्वागत किया. फिर रवि ने उनके साथ बैठ के खाना खाया. उन लोगों को रवि की लायी हुई खाने की सारी चीजे अच्छी लगी.

उन्होंने दूध पिया फल खाए और केक भी बड़े आनंद से खाया. सभी बौनों ने रवि के साथ दोस्ती की. उसका का दिन बड़ा ही अच्छा गुजरा.

फिर रवि को उसकी मम्मी की याद आयी. वह बोला अब मुझे घर जाना चहिये. फिर कुछ बौनों ने मिलके जमीन में एक जादू का दरवाजा खोला . फिर रवि उस दरवाजे से उसके घर चला गया.

चिंकी की पिकनिक | bacchon ki acchi kahaniyan

चिंकी रविवार को पिकनिक जाने वाली है.

उसके साथ सभी स्कूल के दोस्त भी आने वाले है.

उनमे राजू ,ढोलू ,भोलू ,पिंकी ,मीणा और शिव भी है.

सभी अछे दोस्त है.कभी भी एक दुसरे से झगड़ ते नहीं.

पिंकी अपने साथ पिकनिक पर उसके पालतू कुत्ते टोबी को भी लाने वाली है.

ढोलू और भोलू उनकी बिल्ली चिनू को साथ लाने वाले है.

चिंकी इस पिकनिक पर जाने के लिए बहुत उत्सुक है.

क्योंकि वह अपने स्कूल के दोस्तों को अपने जंगल के दोस्तों से मिलाने वाली है.उनमे बंदर भाई है, शेरनी है , अजगर है ,और भालू चाचा भी है.

उसके जंगल के दोस्त बहुत अच्छे है. वो भी कभी एक दुसरे के साथ झगड़ते नहीं.

चिंकी उसके जंगल के दोस्तों के लिए बहुत सारे केक के पैकेट और शरबत की बोतले साथ में लेने वाली है.

चिंकी के पापा ने पिकनिक के लिए बस भी बुक करली है और अब चिंकी रविवार का इंतज़ार कर रही है.

सपना का सपना | bacchon ki hindi kahaniyan

सपना बहुत ही प्यारी लड़की है. उसके पिताजी उसे ररेलगाड़ी से घुमाने ले गए थे.

उनकी रेलगाड़ी सबसे पहले मुंबई में रुकी थी. वहा पर सपना अपने पिताजी के साथ समुंदर किनारे खेलने गई थी.

समुंदर किनारे उन्होंने रेत के महल भी बनाये थे. उसके बाद सपना और पापा समुंदर के पानी में भी खेले थे.

पानी से बाहर आने के बाद दोनों ने पानी पूरी खायी, वाडा पाव खाया. फिर पिताजी उसे चिड़ियाघर ले गए थे.

वहा पर उसने बहुत सारे जंगली पशु पक्षी देखे थे.उसने हाथी देखे जो सपना को देखके अपनी सुंड हिला रहे थे.

फिर उसने बंदरो को केले खिलाये थे.वहा पर बहुत सारे खरगोश भी थे.उनको सपनाने लाल लाल गाजर और सेब भी खिलाये थे.

फिर उसने जंगल के राजा शेर को देखा. उसने सपना को दखते ही जोर से दहाड़ लगाई थी.  शेर के बाजुमें बाघ का पिंजरा भी था. बाघ बहुत सुंदर और बलवान था.

चिड़ियाघर में बहुत सारे रंग बी रंगी पक्षी भी थे. उनमे सबसे सुंदर तोता था, मैना थी और सफेत कौआ भी काफी सुंदर था.

आते वक़्त सपना ने सभी जानवरों के साथ तस्वीरे निकली थी. और हां उसने अजगर और नागराज को भी देखा था.

फिर उसे मम्मी ने आवाज दी सपना ….सपना जल्दी उठजा बेटा सुबह हो गई है. पाठशाला जाने में देर हुई तो मास्टर जी मारेंगे.

बंदर की पालखी | shikshaprad kahaniyan

ये बहुत सालो पहले की बात है.एक जंगल में बंदरो का एक बडासा झुंड रहता था. उनका एक राजा था.

राजा हमेशा बंदरो से उलटे सीधे काम करवाता था. एक दोपहर को राजा पेड़ पर बैठा था. उसके बंदर सैनिक उसकी सेवा में लगे थे.

कोइ उसे फल खिला रहा था. कोई पैर दबा रहा था. कोई आस पास पहरा दे रहा था. तभी जंगल में एक बड़ीसी आलीशान पालखी आयी.

चार पहलवानों ने पालखी को अपने कंधो पर उठाया था. उसमें एक राजा बड़े शान से बैठ था.

उसके सैनिक उसका जय-जय कार कर रहे थे. राजा की पालखी जंगल में तालाब के पास कुछ समय के लिए रुकी थी.

तब बंदर राजा उसीको गौर से देख रहा था. और ये सोचकर उसके सेवक डर रहे थे. की बंदर राजा अब कुछ उलटा सीधा हुकुम जरुर देगा.

जब राजा की पालखी जंगल से वापस गई. तब जिसका सैनिको को डर था वही हुआ. बंदर राजा ने सभी बंदरो को एक पालखी बनाने का हुकुम दिया.

राजा के आदेश अनुसार बंदरो ने पालखी बनाना शुरू किया. उन्होंने आस पास से लकड़िया एक्कठी की और बरगत के पेड़ की टहनियों का इस्तेमाल करके.

एक काम चलाऊ पालखी बनाई थी. फिर भी राजा पालखी को देखकर बहुत खुश हुआ. अब राजा को चार पहलवान चाहिए थे.

पर उसके पास सिर्फ दुबले पतले बंदर ही थे. बंदर राजा बड़ी शान से पालखी में बैठा. और झुंड में से चार पतले बंदरो ने रोते रोते बड़ी मुश्किल से पालखी उठाई.

बंदर राजा की पालखी उसका जय-जय कर करते हुए. जंगल में से तालाब की ओर जा रही थी. तभी उनपर अचानक एक चीते ने हमला कर दिया.

सभी बंदरों की सिटी पिटी गुल हो गई. उन्होंने राजा की पालखी हवा में ही छोड़ दी और सभी चीखते हुए पेड़ों पर चढ़ गए.

राजा की पालख ज़मीन पर जोर से गिरने के बाद टूट गई. और बंदर राजा ने उस चीते बड़ी से मुश्किल से अपनी जान छुड़ाई.

उस दिन बंदर राजा को सीख मिली की जिसका काम उसी को साजे कोई और करे तो डंडा बाजे.

कहानीका नैतिक मूल्य – बंदर ने इंसानों की नकल की और इसका परिणाम बहुत भारी पड़ा. इसलिए हमें किसी की नकल नहीं करनी चाहिय बल्कि अपनी खुद की एक अलग पहचान समज में बनानी चाहिए.

दोस्ती का महत्व | naitik shiksha ki kahani in hindi

अक्षय एक बहुत ही होनहार लड़का है. एक वर्ष गर्मियों की छुट्टियों में वह अपने मामा के गाँव गया था.

उसने वहा बहुत सारे नए-नए दोस्त बनाये थे. छुट्टियों में सभी दोस्तों ने मिलकर ख़ूब उधम मचाया था.

रोज़ सुबह वह लोग गाँव में गिल्ली डंडा खेलते थे. दोपहर को एक साथ खेत में खाना खाते थे. और श्याम को सभी नदी में तैरने भी जाते थे.

गाँव के दोस्तों ने ही अक्षय को अच्छी तरह तैरना सिखाया था. एक दिन अक्षय खेत में खेलते हुए गिर गया था.

उसे पैर में गहरी चोट आयी थी. फिर उसके दोस्तों उसे घर ले गए थे. घरपर उसकी माँ में उसकी मरहम पट्टी की थी.

अक्षय के सभी दोस्तों का उसकी माँ ने धन्यवाद किया था.

दोस्तों की वज़ह से अक्षय की छुट्टियाँ बहुत शानदार रही थी. छुट्टियाँ खतम होने के बाद जब अक्षय घर लौट आया था.

तब उसे दोस्तों की याद आने आयी थी और फिर उसको दोस्ती का महत्त्व भी समझ आया था.

मोरल वैल्यू – हमें हमेश दोस्तों की कदर कानी चहिये.क्योंकि मुसीबत में वो हमेशा काम आते है.

जादू की छड़ी | baccho ki kahani in hindi

एक दिन राजू स्कूल से घर लौट रहा था. रस्ते में उसे एक चमकती हुई छड़ी मिली. उसने वह उठा ली.

राजू को भूक लगी थी.उसने सोचा मुझे अगर अभी आइसक्रीम मिल जाती.तो मैं उसे बड़े मजे से खाता. तभी उसके हाथ की छड़ी में से एक रौशनी निकली.

और राजू के दुसरे हाथ में एक बड़ी आइसक्रीम आ गई. राजू समझ गया की ये जादू की छड़ी है.

वह आइसक्रीम खाते-खाते मजे से घर गया.घर पहुचने के बाद उसने वह छड़ी अपनी स्कूल बैग में छुपा दी.

रातको राजूने छड़ी से केक माँगा और उस जादू की छड़ी में से रौशनी निकली. फिर राजू ने पेट भरके केक खाया.

राजू दुसरे दिन छड़ी को स्कूल में लेगाया. उसे स्कूल जाते वक़्त रस्ते कुछ में गरीब भूके बच्चे दिखे.

राजूने उस जादू की छड़ी से उनको पेट भरके खाना खिलाया. श्याम को स्कूल से आते वक़्त उसे रस्ते पर एक गरीब बीमार आदमी दिखा.

राजूने उसकी बिमारिया ठीक कर के उसे भी खाना खिलाया. फिर अचानक वो छड़ी हवा में उड़ने लगी और अचानक एक परी बन गई.

राजू आश्चर्य से देखता ही रहा. वह राजू को बोली. राजू तुम एक अच्छे बचे हो. तुमने एक बार भी इस छड़ी को बुरा इस्तेमाल नहीं किया.

लोगों की भलाई के लिए इसका इस्तेमाल किया. फिर उस परी ने राजू को आशीर्वाद दिया और असमान में उड़ गई.

नैतिक सबक – हमें हेमशा सच्चे दिलसे दुसरो की मदत करनी चाहिय.

जादूगर का खेल | baccho ki kahani in hindi

एक दिन बंटी के पिताजी उसे जादूगर का खेल दिखने लेगए थे. बंटी बहुत खुश था वह अपने पिताजी के साथ सबसे आगे की सिट पर बैठा था.

जादूके खेल की शुरवात में जादूगर एक छोटेसे संदूक में से बाहर निकला था. और फिर उसी संदूक से खरगोश निकाला.

बंदर निकला और एक घोडा भी निकला था. बाद में जादूगर ने अपना अंगूठा काट कर वापस जोड़ कर दिखाया था.

फिर उसके बाद जादूगर ने दर्शको में से किसी एक को बुलाया था.

उसवक्त बंटी के पिताजी जादूगर के पास गए थे. फिर जादूगर ने उन्हें एक बड़े से बक्से में बंद किया था.

और जब बक्सा वापस खोला तब वह गायब थे. फिर जादूगर ने कुछ मंत्र पढ़े और फिरसे बक्से को बंद कर के खोला था.

तब वह उसमे वह हस्ते हुए खड़े थे. इस जादू के लिए सभी ने ख़ूब ताली बजाई थी.

उसके बाद जादूगर ने आँख बंद करके. चाकू से निशाना लगाने वाला खेल भी दिखाया. उस खेल के वक़्त सभी साँस थाम के बैठे थे.

जादुगार ने आँख पर काली पट्टी बाँध कर भी अचूक निशाना लगाया था. आखिर में जादूगर बड़े से धुएँ में गायब होगया. तो इस तरह था जादूगर का खेल.

राम की अच्छी आदते | shikshaprad kahaniyan

राम एक अच्छा लड़का है.वह उसके सभी काम वक़्त पर करता है.राम हमेशा बड़ो का कहना मानता है.

राम की सभी आदते अच्छी है. वो सबकी मदत करता है.आज रविवार का दिन था.राम सुबह जल्दी उठा था. राम ने अपने हातों से स्नान किया.

फिर पूजा घर में जाकर दादी से तिलक लगावया. फिर रामने अपना सारा होम वर्क पूरा करलिया.

फिर नाश्ता करके.उसने थोड़ी देर TV देखा. बादमे मम्मी ने उसे घर का सामान लाने दुकान भेजा. राम ने दुकान जाते समय मम्मी से कपडे की थैली ली.

क्योंकि प्लास्टिक की थैली से पर्यावरण का नुक़सान होता है. राम ने यही बात दुकानदार को भी समझाई.

सामान लेते वक़्त दुकानदार ने गलती से राम को 10 रुपये ज़्यादा दिए थे.

राम ने तुरंत वह उसे वापस कर दिए.राम ने मम्मी को सब सामान लाकर दिया. उसके बाद राम को पिताजी ने मेडिकल से दवाइयां लाने भेजा.

मेडिकल से दवाइयां लेकर लौटते वक़्त रामने एक अंधे आदमी को सड़क पार करने में मदत की.

पिताजी की दवाइयां घर पहुचाने के बाद. राम अपने दोस्तों के साथ खलने चला गया था.

श्याम को राम अँधेरा होने से पहले घर लौट आया था. घर आने के बाद रामने हाथ मुंह धोकर सबसे

श्याम को राम अँधेरा होने से पहले घर लौट आया था. घर आने के बाद रामने हाथ मुंह धोकर सबसे पहले भगवान को हाथ जोड़े.

फिर उसके बाद उसने पिताजी के साथ थोडा वक़्त बिताया. बादमे रामने पूरे परिवार के साथ भोजन किया.इस तरह अच्छी आदतो वाले राम ने अपना दिन अच्छा बिताया.

नैतिक मूल्य – जिंदगी में हमारी अच्छी आदते ही हमे एक अच्छा और कामयाब इंसान बनती है.

धन का सदुपयोग | naitik kahaniya in hindi

ये बुहत पुराणी बात है. भारतनगर नाम के एक राज्य में भरत नाम का एक राजा रहता था. वह राजा बहुत ही ज्ञानी और गुणवान था.

उसने अपने बुद्धिमता के बलबूते पर शून्य से अपने राज्य का निर्माण किया था. वह एक कुशल व्यापारी भी था.

उसके राज्य के सभी व्यापारों को उसने अपने कौशल्य से सफलता के शिखर पर पहुंचाया था.

भारतनगर राज्य में धन का दुरूपयोग करना मना था.

क्योंकि राजा को मानना था. धन के सदउपयोग से सब खुशहाल रह सकते है.राजा खुद व्यपारी और नागरिक को का मार्गीदर्शन करता था.

भरत राजा अपने राज्य के सभी सुखो का खयाल रखता था. उसके राज्य में सभी नागरिक संतुष्ट थे. यह देखकर राजा को बहुत खुशी मिलती थी.

एक दिन राजा भरत अपने मंत्रियो के साथ पड़ोस के राज्य विवरानगर में घुमने गया था.

वहा उसने विवरानगर के लोगो से बातचीत की.उसे पताचला की उस राज्य के लोग बड़े ही दुखी है. क्योंकि उनके राज्य में मुलभुत सुविधाए भी नहीं थे.

जैसे की बच्चों के लिए पाठशाला.बिमारो के लिए अस्पताल.और वहा के व्यापारी भी कर्जे में डूबे हुए थे.

कुल मिलाकर राज्य का बुरा हाल था. विवरानगर घूमते हुए भरत राजा एक और चीज भी देखरह था.

वहा की हर गली. हर चौरहा ,और हर नुकड़ पर वहां के राजा धनानंद की सोने से बनी की मुर्तिया थी.

सभी बातो का बारीकी से निरिक्षण करने के बाद. भरत को लगा की इस राज्य की मदत करनी होगी.

फिर वह राजा धनानंद की राज्य सभा में जा पंहुचा. धनानंद ने भरत राजा को बड़े आदर के साथ राज्यसभा मे बैठाया.

तभी भरत राजा ने धनानंद से उसके राज्य के हालचाल पूछे. धनानंद अपनी मस्ती में रहने वाला एक मुर्ख राजा था. जिसे किसी भी चीज का ग्यान नहीं था.

इसलिए उसने ने अपना दुखड़ा रोना शुरू किया. की मेरे राज्य की आर्थिक स्तिथि बिगड़ी हुए है.

राज्य के खजाने ने में भी बहुत कम पैसे बचे है.

धनानंद की पुरे बात सुनने के बाद. भरत ने उसे बताया की उसके राज्य में जितने सोने के पुतले है.

उनको पिघलाकर उस बेच दे. और उससे मिलने वाले धन से.

अपने राज्य का कल्याण करे. क्योंकि एक राजा का पहला कर्तव्य होता है.

की वह पहले प्रजा की हित में सोचे है. भरत राजाने ग्यान की बाते सुनाकर धनानंद के कान खोल दिए.राजा भरत का यह सुझाव उस राज्य मंत्रियो को बहुत पसंद आया.

फिर कुछ दिनों में ही. धनानंद ने सभी सोने के पुतले पिघला दिए. और उससे मिलने वाले धन से बच्चों के लिए गुरुकुल बनाये.

बिमारो के लिए अस्पताल बनाये. व्यपारियो के लिए धन की व्यवस्था की. इसतरह पुरे राज्य का कल्याण हुआ. और भरत राजा ने के बार फिर अपनी बुद्धिमानि का परिचय दिया.

नैतिक मूल्य: तो बच्चों इस कहनी से आपको यह सीख मिलती है की.धन का सद उपयोग करने से ही समाज और खुदका कल्याण किया जा सकता है.

बबली क्यों नहीं हंसी ? | bacchon ki hindi kahaniyan

आज स्कूल में बहुत मस्ती चल रही है. बच्चे बहुत हँसी मजाक कर रहे है.

कोइ कागज का प्लेन फैंक रहा है. तो कोइ अगेवाले को बच्चे को पूछ लगा रहा है.

सब बच्च्चे उनकी दोस्त बबली का इंतजार कर रहे है.

क्योंकि बबली हमेशा खुश रहने वाली और सबको हंसाने वाली लड़की है.

देखो बबली आ गई. सब बच्चे उसको आवाज देने लगे है.

पर ये क्या उसने तो किसी की तरफ देखा भी नहीं.

ना बोली, ना हंसी सब बच्चे उसकी को ही देख रहे है.

पहले पिंकी उसके पास आयी. और बोली क्या हुआ बबली ?

तुम आज हंस क्यों नहीं रही हो?.और इतनी उदास क्यों हो?

बबली ने कुछ भी नहीं कहा.बस मुह फुला कर बैठी है.

उसके बाद टीना बोली क्या तुम्हारा पेट दुःख रहा है?. बबली ने कुछ नहीं कहा.

बादमे रमेश ने पूछा क्या तुम्हे घर जाना है?. बबली ने किसी के साथ बात नहीं की है.

फिर पिंकी बबली को हँसाने के लिए. भालू की नक़ल उतार रही है. टीना ने बंदर की नकल उतार रही है.

सभी लोगो बबली को हंसाने की कोशिश कर रहे है. पर बबली हंस क्यों नहीं रही?

सब बच्चों में चर्चा चालू है. की बबली क्यों नहीं हंसी ?

उतने में ही दूर खड़ी बबली की बेस्ट फ्रेंड शिवानी उसकी तरफ देख रही है.

हमेशा बक बक करने वाली. हंसने वाली बबली आज मुह फुलाकर बैठी है.

फिर शिवानी धीरे धीरे बबली के पास आ रही है. शिवानी को देखकर बबली सावधान हो गई है.

शिवानी ने अपनी स्कूल बैग खोल रही है.

और ये क्या शिवनी ने बैग से रबर का मेंडक निकल के टेबल पर उछाल दिया.

मेंडक को दखते ही. बबली की हंसी छुट रही है. और उसकी हंसी छुटते ही पूरा क्लास हंसने लगा है.

हा हा हा क्योंकि बबली के आगे के चार दांत गिर गए है.

हा हा हा हा इसलिए बबली आज हंस नहीं रही थी. हा हा हा हा

कहानिकी नैतिक सीख – बच्चों हमेशा हस्ते रहो तुम्हारी ख़ुशी में ही तुम्हरे माता पिता और सबकी की ख़ुशी है.

नफरत और प्यार | bacchon ki shikshaprad kahaniyan

इटली में अल्बाट्रोस नाम का एक राजा था. वह बड़ा ही क्रूर और निर्दयी था. वह अपनी प्रजा पर बहुत जुलुम करता था.

उसके पास बहुत गुलाम थे. उनमें से ही एक था पेंगुइन. वह एक दयालु और शांत स्वाभाव का इंसान था.

एक दिन पेंगुइन के हाथोसे गलतीसे अल्बाट्रोस के हाथ गर्म दूध की कुछ बुँदे गिर गई. इतनी छोटी सी बात के लिए.

राजा को पेंगुइन पर बहुत क्रोध आया. और उसने ने पेंगुइन को मौत की सजा सुना दी.

प्रजा में अपना भय उत्पन्न करने के लिए.उसने प्रजा के सामने पेंगुइन को एक बड़े से पिंजरे में डाल दिया. पुरे राज्य के लोग उसेही देखरहे थे.

कुछ ही देर में अल्बाट्रोस ने उस पिंजरे में एक अँधा शेर छोड़ दिया. पेंगुइन पिंजरे के एक कोने में बैठ कर अपने ईश्वर की प्रार्थना कर रहा था.

अंधा शेर गजब का भूखा था. क्योंकि राजा ने दो दिनों से उसे खाना नहीं दिया था. वह शेर पिंजरे में इधर उधर टकराते हुए.

पेंगुइन के नजदीक पहुंचा. क्रूर राजा और डरी हुए प्रजा की आंखे पेंगुइन और शेर पर ही टिकी थी. शेर पेंगुइन नजदीक पहुंचा.

पर पेंगुइन मारने के बजाय. शेर उसके के गाल पर चाटने लगा. यह नजारा देखर राजा अपने सिहांसन से उठ खड़ा हुआ.

प्रजा में चर्चा सुरु होगई. पर शेर अभभी पेंगुइन को खाने की जगह पूछ हिलते हुए. उसके पास बैठा था.

और देखते ही देखते. पेंगुइन भी उसेके गले से लिपटकर रोने लगा. राजा वह दृश्य देखकर दंग रह गया.

उसने सिपाहियों से कहकर पेंगुइन और शेर को पिंजरेसे बाहर निकाला. जब शेर को सिपाहि लेजाने लगे. तो शेर उनके हाथ से छूटकर पेंगुइन की बगल में जाकर अल्बाट्रोस के सामने खड़ा हो गया.

अल्बाट्रोस ने पेंगुइन से पूछ की तुमने इस भूके शेर को कैसे काबू किया. यह तो बिन बोले ही तुम्हरे साथ आकर खड़ा हुआ. पेंगुइन बोला मै जब छोटा था.

तब मेरे पिताजी एक चिड़िया घर में काम किया करते थे. वहा मै भी रोज जाता था. एक दिन चिड़िया घर के मालिक ने जंगल से एक शेर का बछड़ा लाया.

जिसकी देखभाल मैंने खुद की थी.और पेंगुइन ने निचे बैठ कर शेर का पंजा उठाकर. उसपर का एक काला निशान राजा को दिखाया.

और बोला यह वही बछड़ा है. जिसे मैंने पाला था. और मैंने इसे काबू नहीं किया. यह सब प्यार का जादू है.

पेंगुइन ने कहे इस वाक्य से राजा अल्बाट्रोस की जिंदगी बदल दी. उसने सभी गुलामो को आजाद करदिया. और एक अच्छा राजा बनकर राज्य करने लगा.

कहानीका नैतिक मूल्य- तो बच्चों इस कहनी से आपको यह सीख मिलती है की नफरत से इस दुनिया में कुछ हासिल नहीं होता. आपके दिल में जीतन प्यार और स्नेह होगा. उतना ही लोग आपको ज्यादा पसंद करेंगे.

राजू और जखमी हाथी | naitik mulya par aadharit kahaniya

रामपुर गाँव में राजू नाम का एक लकडहारा रहता था. एक दिन वह सुबह सुबह लकड़ियां काटने जंगल में गया था.

जंगल में घूमते घूमते उसे झाड़ियों पड़ा हुआ. एक हाथी नजर आया. हाथी की आँखों से आँसू बह रहे थे.

दर्द से वह चिंघाड़ रहा था. राजू उसको ही देख रहा था. तभी उसकी नजर उसके आगे के पैर पर गई.

तो उसमे एक बड़ा सा लकड़ी का घुसा हुआ था. इसी वजह से वह हाथी दर्द में रो रहा था.

लकडहारा राजू बिना डरे उसके पास जाकर बैठा. फिर उसने हाथी को सहलाते हुए.

थोडा प्यार जताया. और धीरे से उसके पैर से वह लकड़ी का नुकिला टुकड़ा निकल लिया.

और अपने साथ लाये पीने के पानी से. उसका जखम धोकर साफ कर दिया.

आखिर में उसने अपना गमछा निकाल कर उसकी जखम पर ठिकसे बांध दिया.

हाथी को अब बहुत राहत महसूस हो रही थी. उसका दर्द ठीक हो चूका था. हाथी धीरे धीरे उठ खड़ा हुआ.

और उसने अपनी लंबी सुंड से राजू को आशीर्वाद दिया. और धीरे धीरे चलते हुए जंगल में चला गया.

इसीतरह कुछ दिन बीते. एक दिन राजू घने जंगलो के बीच लकडिया कांटने में व्यस्त था.

तभी अचानक वहांपर एक बबर शेर आ गया. शेर को अपने सामने खड़ा देख राजू थर थर कांपने लगा.

शेर बस उसपर हमला करने ही वाला था की .वहाँपर एक हाथियों का झुण्ड दौड़ते दौड़ते अगया और जोर जोर से चिंघाड़ने लगे .

इतने सारे हाथियों की आवाज सुनकर बबर शेर डर गया. और तुरंत वह से दुम दबा कर भाग गया.

राजू वही खड़ा बस ये सब देखता रहा. फिर हाथियों के झुडं से एक हाथी राजू के सामने आकर खड़ा हो गया.

राजू की नजर उस हाथी के पैरो पर पड़ी. उसमे उसका गमछा बांधा हुआ. वह उस हाथी को पहचान गया.

फिर उसने हाथी को सहलाते हुए. थोडा प्यार जताया. फिर वह हाथी अपने दोस्तों को लेकर जंगल में चला गया.इस तरह हाथी ने राजू की जान बचाई.

नैतिक सबक- बच्चों आपको इस कहनी से यह सीखी मिलती है की. आपके किये हुए अछे कर्मो का फल आपको जरुर मिलता है.इसलिए हमेशा हमशा अछे कर्म करे.लोगो की सच्चे मन से मदत करे.

एक बंदर घर के अंदर | baccho ki kahani

एक दिन छोटे राजू की माँ मंदिर जा रही थी. और थोड़ी देर के लिय. माँ ने राजू को घर का ध्यान रखने के लिए कह दिया था.

फिर राजू की माँ घर का दरवाजा खुला रखकर मंदिर चली गई.

माँ के जाने तक राजू घर पर बैठा रहा. पर माँ के जाने के बाद राजू अपने दोस्तों के साथ खेलने चला गया.

तभी काहींसे एक बंदर आया गया. और घर का दरवाजा खुला देखकर. घर के अंदर घुस गया.

बंदर रसोईघर में गया. वहां उसने आटे का डिबा गिरा दिया. फ्रिज खोलाके उसमे से सारे फल खा लिए.

पानी की बोतले खोलके रसोई में पानी फैला दिया. फिर राजू को खेलते-खेलते अचानक घर का ध्यान हुआ.

वह भागते भागते घर पर पंहुचा. और देखा तो एक नट खट बंदर टीवी के ऊपर बैठा था.

घर की सारी चीजे बिखरीपड़ी थी. फिर राजू को आगया गुस्सा. राजू बंदर के पीछे ही पड गया.

उसने बंदर को डराया. बंदर ने भी राजू की नकल उतारी. राजू ने बंदर को तकिया फैंक के मारा.

बंदर ने वही तकिया राजू के मुंह पर दे मारा. और राजू जमीन पर गिर पड़ा.

फिर राजू बंदर पर चिल्लाया. बंदर ने भी उसकी नकल उतारते हुए उसको दांत दिखाए.

उछल कूद करते हुए बंदर सोफे पर जाकर बैठा. कुछ भी करके बंदर घर से बाहर जाने के लिए तैयार नहीं था. फिर राजू को एक युक्ति सूझी.

वह पड़ोस के घर से केले (banana)लेकर लाये. और उस बंदर के एक केला खिला दिया.

और बाकि बचे हुए केलों का लालच दिखा कर. बंदर अपने पास बुलाया.

फिर बंदरभी उसके नजदीक जाने लगा. फिर राजू उसे केलो का लालच देते हुए. धिरे धिरे दरवाजे से बाहर ले आया.

और फिर उसको केले देकर फट से घर का दरवाजा बंद करलिया.

इस तरह राजूने अपनी सूझ बुझ से उस नट खट बंदर को घर से बाहर निकला.

नैतिक सबक- बच्चों इस कहानी से आपको यह सीख मिलती है. की मुसीबत में हमेशा सूझबूझ से काम करना चाहिए.हमेशा बुद्धिमान की तरह बर्ताव करो.

बच्चों के लिए अच्छी आदते | bacchon ki shikshaprad kahaniyan

बच्चों यह पोस्ट पढने से पहले एक बात समझ लेना .आज जो भी आदते आप बनायेंगे. वाही आदते आपको भविष्य में कामयाबी दिलाएगी . इस जिंदगी में आप सिर्फ अपनी आदतों को बनते है. उसके बाद आपकी आदते आपकी जिंदगी बनती है.

  • सोने का समय: बच्चों को कम से कम 8 घंटे की नीदं लेने की आवश्कता होती है. इसलिए रातके खाने के बाद कमसे काम 10 बजे तक बच्चे बिस्तर में होने चाहिए.तो ही सुबह 6 या 7 बजे तक नीद पूरी होती है. और दिन भर शरीर और दिमाग में ताजगी महसूस होता है.
  •  सुबह जल्दी उठाना: रातको समय पर सोने के बाद सबह जल्दी उठाना भी जरुरी होता है. अगर बच्चे सुबह समय पर जल्दी उठते है.
  • तो उन्हें सभी कामो के लिय पर्याप्त समय मिलता है. जैसे की ठिकसे ब्रश करना. नहाना ,पढाई करना , और आखिर में सुबह का नाश्ता आराम से बैठ करना.
  • और समय पर स्कूल पहुँचाना. अगर बच्चे देर से उठते है.तो स्कूल में जाने के लिए देरी होगी. इस वजह से सभी काम वह जल्दबाजी में करते है.या कोइ जरुरी काम छुट भी जाता है. जैसे की बिना नाश्ता किये ही स्कूल जाना.
  • स्कूल का होमवर्क :बच्चों को एक बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए. स्कूल से आते ही सबसे पहले अपना होम वर्क पूरा करना चहिये.
  • उसके बाद ही खेल कूद और टीवी इत्यादि काम. यह आदत हमेशा काम आयेगी.और होमवर्क समय पूरा करने की अच्छी आदत से एग्जाम के दिनों में पढाई बोझ नहीं लगती.
  • खेल कूद का समय: खेल कूद शरीर और मन की तंदुरुस्ती के लिय बहुत जरुरी होता है.दिन में कमसे कम 1 घंटा मैदानी खेल खेलने के लिए नियत होना चहिये.
  • इससे बच्चों का कद बढ़ता है.उनको अच्छी तरह भूक लगती है. खाना ठिकसे हजम होता है. मोटापा दूर रहता है. मैदानी खेल के और भी बहुत सरे फायेदे है.
  • नियमोंका पालन: बच्चों को नियमो को पालन करने की आदत होनी चहिये. जैसी की हमेशा सडक के बाएं तरफ चलना. सडक पर करते वक़्त दाएं और बाएं देखना. जेब्रा क्रॉसिंग पर ही रास्ता पार करना.सड़क पार करते वक्त दौड़ना नहीं.इसी तरह जो नियम सबके हित में होते है उनका पालन करना भी एक कला है .
  • अनजान खतरे: बच्चों को यह बात भी ध्यान में रखनी होगी की. जब आप घर से बाहर होते हो.तो किसी भी अनजान व्यक्ति से बात नहीं करनी चाहिए. किसी ने अगर कुछ खाने की चीज दे.
  • तो उसे तुरंत मना करदे. स्कूल के बाहर अनजान आदमियों से नहीं मिले. अगर कोई संदेहजनक वक्ती दिखे.तो अपने टीचर या किसी बड़े को को सूचित करे. क्योंकि वह बच्चों का अपहरण करता भी हो सकता है.
  • बाहर का खाना: बच्चों के पास अगर माँ बाप थोड़े से भी पैसे देते है. तो वह ठेले पर बिकने वाली चीजे खाने में उन्हें खर्च कर देते है. बच्चों ये बात याद रखे. बाहर के खाने से ही सबसे ज्यादा बीमारियां फैलती है. और एक बात ज्यादा खयाल रखे.
  • स्कूल के एग्जाम से 1 या दो महीने पहलेही. बाहर का खाना पूरी तरह बंद कर दे. क्योंकि परीक्षा के समय बीमार होने का खतरा रहता है. और यह बात याद रखे की घर का आहार ही हमेशा पौष्टिक होता है.
  • पानी पिने के आदत: बच्चों को दिन में औसतन 8 से 9 गिलास पानी पिने के आवश्कता होती है. इससे शारीर से विषेले और अनचाहे तत्व बाहर निकल जाते है. पानी पिने की अच्छी आदत से भविष्य में होने वाली बीमारी से बचा जा सकता है.
  • डर का सामना: हर इंसान में किसी ना कसी चीज का डर होता है. डर को हराने का एकही तरीका है.उसका सामना करो. उदाहरण अगर किसी बच्चे को स्कूल में गणित विषय से डर लगता है. तो वह पुरे साल सभी विषयों का अभ्यास करता है.
  • पर गणित विषय को नजरअंदाज करता है. और आखिर में एक तो उसे गणित में कम नंबर आते है.या फ़ैल हो जाता है. तो इसलिए तैयारी पहले ही करे. अपने डर का सामना करते हुए. अपने टीचर या मम्मी पापा से बात करे. उनसे गणित विषय पर मार्ग दर्शन का अनुरोध करे.
  • पढ़ने की आदत: पढ़ने के आदत इंसान को सफलता की ऊंचाई तक जरुर ले जाती है. क्योंकि आज इस जगत में जितने भी सफल व्यक्ति हुए है.
  • उन सभी में एक आदत सामान है. और वह है पढ़ने की बेहतर आदत. इसलिए अगर आपको इस जीवन में कामियाब होने की जरसी भी चाहत है.तो अभी से पढने की आदत स्वीकार करे. वर्तमानपत्र, अपनी स्कूल की किताबे, और ग्यान देने वाली हर एक किताब को पढना शुरू करो.
  • गलित होने से डरना: बच्चों ये बात ध्यान में रखना. गलती करने या होने के डर से. अपने किसी भी अछे काम को कभी मत रोको. क्योंकि गलतिया होना स्वाभाविक है.उससे डरो मत अगर गलती हुई. तो अगली बार बहेतर प्रायस करो.
  • सफलता जरुर मिलेगी. महान वैज्ञानिक थॉमस एडिसन जिन्होंने बल्ब (लाइट )का अविष्कार कियाथा.वह भी कई बार फैल हुए थे. पर आखिर में उन्होंने लाइट बल्ब का अविष्कार कर ही दिया. क्योंकि वह गलती होने के डर से रुके नहीं.
  • दोस्ती यारी: हमारे जीवन में सीधा प्रभाव अगर किसका होता है. तो वह हमारे दोस्तों का होता है.जिनसे हम रोज बात करते है.उनके साथ समय बिताते है. इसी तरह अगर हमारी संगत बुरी है .तो हमे भी बुरी आदते भी लगा सकती है. तो बच्चों हमेशा अच्छे लोगों से दोस्ती रखनी चाहिए.
  • अच्छी सोच: जिस तरह आपकी सोच होगी .उसी तरह आपकी जिंदगी होगी. इसलिए अपने विचार हेमशा शुद्ध रखना. हमेशा अच्छी बाते सोचे. दीनहीन भावना से कभी ग्रस्त नहीं होना. यह भावना आपको असफलता की और लेजा सकती है. जैसा सोचोगे वैसा बनोगे.
  • स्वछता की आदत :जहाँ गन्दगी होती है.वहा पर बिमारिय होती है. इसलिए अपने घर को हमशा साफ रखना चाहिए. यही नहीं हम जब घर से बाहर जाते है. तब भी हमे स्वछता का ध्यान रखना चिहिए.जैसे की बस, ट्रेन, स्कूल, गार्डन सभी तरफ कूडा कचरा हमेशा कूड़ेदान में ही फेंकना चाहिये.
  • स्वाभाव: दोस्तों इस बात को ठिकसे याद रखना. आपके अच्छे स्वाभाव की वजह से ही दुनिया आपको याद रखती है.इसलिए हमेशा विनम्रता से पेश आये.लोगों से सभ्यता से बात करे. गुंडे मावली वाली भाषा का प्रयोग न करे.

पर्यावरण सुधार: हम सबको पर्यावरण के विषय में जागरूक रहना चाहिए. कोशिश करे की हमारे घर के आस पास हमेश पेड़ पौधे सलामत रहे.उन्हें कोइ काटे नहीं. घर में या टेरेस पर कुंडी में बहुत सारे पौधे लगाये.

स्कूल के मैदान में हर साल पेड़ों की संख्या बढती रहनी चाहिए.अगर हमारे आस पास पेड़ पौधे जिन्दा र्रेहंगे. तो ही हम सब जीवित रह सकेंगे.यह बात सबको समझाए.

नैतिक सबक – आज की अच्छी आदतों से ही एक इंसान भविष्य में प्रभवि हस्ती या कहो बड़ा आदमी बनता है

पेड़ ने दिया जीवनदान | naitik mulya par aadharit kahaniya

बहुत साल पहले. गंगापुर नाम का एक गाँव था. एकदिन जंगल में से एक ऋषिमुनी वहां रहने आये. उनका नाम था तरु. तरु का मतलब पेड़.

ऋषिमुनी ने गंगापुर में एक पहाड़ को अपना निवास स्थान बनाया था. वह एक निर्जन पहाड़ था. उसपर कोई पेड़ पौधे नहीं थे.

क्योंकि वहा के सारे पेड़ गाँव के लोगो ने चूल्हा और अदि उपयोग के लिए काट लिए थे.

तरु ऋषिमुनी ने उस पहाड़ पर एक बरगत के पेड़ लगाया. वह हर रोज उस पेड़ की बहुत सेवा करते थे.

वह पहाड़ के निचे उतरके हर रोज गाँव की नदी से पानी लाकर पेड़ को देते थे. इसी तरह वर्षो बीत गए बरगत का पेड़ अब एक विशाल वृक्ष बन गया था.

पर तरु ऋषिमुनी अभी भी बड़ी मेहनत से रोज उसे पानी डालते थे. उधर गाँव वालो ने लकड़ी के लिए हर पहड़ी, हर जंगल के पेड काट दिए थे.

पर ऋषि तरु उस बरगत के पेड़ की अपने बच्चे की तरह देखभाल करते थे.

एक दिन भयंकर अकाल पड़ गया. मेघराज जैसे रूठ से गए. धरती धिरे धिरे पानी के बिना सूखने लगी.

नदी ,तालाब और कुँए का पानी सूखने लगा. अकाल का प्रभाव इतना भयंकर हुआ था.की पानी की एक बूंद भी बची नहीं.

तरु ऋषि भी पेड़ का सहारा लेकर बैठे थे. पर अचानक शरीर में पानी की कमी से वह बेहोश होकर पेड़ की छाव में ही गिरपडे.

तभी कुदरत का एक चमत्कार हुआ. बरगत की टहनियों ने तरु ऋषि को सहारा देते हुए बैठा दिया. और उनपर पानी की बरसात कर दी.

पेड़ का ठंडा और शुद्ध पानी बरस ने से तरु ऋषिमुनी होश में आ गए.

उन्होंने हाथ आगे करके पेड़ से बरस ने वाला पानी पेट भरके पिया. और उठकर पेड़ को प्रणाम करते हुए. एक विनती की.

हे वृक्ष राज जिस तरह आपने मेरे प्राण बचाए. उसी तरह बाकि लोगों को भी पानी देकर उनके भी प्राण बचाए.

वृक्षराज बरगत ऋषिमुनी की सेवा से खुश थे. फिर बरगत के पेड़ ने मेघराज से बरस ने की विनती की.

पेड़ की विनती का मान रखते हुए मेघराज ने घनघोर बारिश कर दी. पूरी धरती को पानी मिला. सभी नदि, तालाब और कुंए पानी से भर गए. इसतरह एक पेड़ ने सबको जीवनदान दिया.

नैतिक मूल्य –  तो बच्चों आप सब को इस कहानी से यह सीख मिलती है .की हमे बहुत सारे पेड़ लगाने की आवश्कता है. क्योंकि धरती पर वृक्ष है तो ही जीवन है.

शरारत पड़ी भारी | shikshaprad kahaniyan

एक गाँव में वीरू नाम का एक लड़का था. वह दिन भर शरारते करके किसी न किसी को तंग करते रहता था.

सबह स्कूल में वह अपने टीचर को परेशान करता. जब टीचर क्लास में आते तो उनके कुर्सी के निचे किले लगाके रखता था. और टीचर जब पढ़ाने लगते. तब क्लास में जानवरों की आवाजे निकलता.

और हर रोज स्कूल के बच्चों से भी मारपीट करता. इतना ही नहीं उसकी शरारतों के शिकार जानवर भी होते थे.

स्कूल छुटने के बाद जब वीरू घर जाता था. तब रास्ते में अगर कोइ कुत्ता चैन की नीदं सो रहा होता तो उसे भी वह विचित्र आवाजे निकेल के डराता था.

उसकी इन्ही हरकतों का असर. उसके साथ रहने वाले दुसरे बच्चों पर भी पड़ने लगा था. वह भी उसके जैसे ही दुसरो को परेशान करने लगे थे.

एक दिन दीपावली थी. सभी बच्चे मैदान में इकट्ठा होकर पटाखे जला रहे थे.

वीरू भी उनके साथ अपने पटाखे जलने में मशगूल था. तभी वहा पर एक गधा आ गया.

गधे को देखते ही. वीरू को एक भयंकर शरारत सूझी. उसने अपने थैले में से एक बड़ीसी पटाखों की लड़ी निकली.

और चुपके से उस गधे की पूंछ से बांध दी और उसमें आग लगा दी. पटाखों के फूटते ही. गधा डर के मारे ढेचू-ढेचू की आवाज निकलते हुए.

इधर उधर भागने लगा. गधे को उछलता भागता देखकर. सारे बच्चे तालियां बजाने लगे.

पर देखते ही देखते. वीरू के मजाक ने एक भयंकर रूप धारण कर लिया.वह गधा गाँव के किसानो के खेतो में घुस गया.

और पूछ में जलरही पटाखों की अग्नि से फसलो में आग लगने लगी. इसी तरह वह उस बेचारे गधे ने गाँव की बहुत सी फसलों में आग लगा दी.

जिसमे वीरू के पिताजी की भी फसल जलकर राख बनगई. फिर गांव के किसानों ने वीरू के माता पिता के घर जाकर. उसकी शिकायत की.

और वीरू की वजह से उसके के माता पिता को पुरे गाँव के सामने शर्मिंदा होना पड़ा. अपने माता पिता को शर्मिंदा देख वीरू के आंखे भर आयी. फिर उसने कभी भी शरारते न करने की ठान ली.

नैतिक सबक – बच्चों याद रहे हद से ज्यादा शरारत कभी कभी बहुत नुकसान देह होती है. इसीलिए अपनी शरारतो को ठीक समय पर रोक देना चहिये.

घमंडी भालू | chhote bacchon ki kahaniyan

बहुत सालो पहले एक जंगल में मिंकू नाम का एक मोटा भालू रहता था. उसका स्वभाव बड़ा ही गुस्सेल था. इस वजह से छोटे छोटे कारणों से वह दुसरे भालुओं के साथ झगड़ता था.

और ज्यादातर अकेले ही जंगल में घुमता था.

एक बार सर्दियों का मौसम शुरू होने वाला था. तब भालुओं के मुखिया ने सभी भालुओं को झुडं बनाकर खाना इकट्ठा करने का आदेश दिया.

उसवक्त मिंकू भी एक छोटे झुडं में शामिल होकर खाना ढूंढने लगा. पर हमेशा की तरह झुडं के दुसरे भालुओं से झगड़ा करने लगा.और फिर मारपीट होने के बाद.

वह अकेले ही जंगल में खाना खोजने लगा. जंगल में घूमते घूमते वह एक बगीचे में जा पंहुचा. वहा एक आम के पेड़ पर बहुत सारे मधु मधुमक्खी के छत्ते थे.

और सभी छत्ते पेड़ के सबसे अधिक छते ऊंचाई पर थे. उसने बिना मदत के अकेले ही. उस पेड़ पर चढ़ने निर्णय लिया.

फिर मिंकू पेड़ चढ़ने लगा. जब वह छत्ते के बहुत नजदीक पहुंचा. तभी अचानक से पेड़ के डाली टूट गई .

और मिंकू धपाक से आकर जमीन पर गिरा. पीठ के साथ साथ उसके एक पैर में गहरी चोट आयी थी.

इसलिए वह उठ नहीं पा रहा था. और दर्द से कराहता वही बेहोश होगया. उसिवाक्त एक बंदर बाजु के पेड़ पर. बैठ कर ये मिंकू को ही देख रहा था.

वह बंदर भालुओं के झुडं को पहचानता था. बंदर ने जाकर भालुओं के साथियों को बुलाकर लाया.

फिर वह सब मिंकू को लेकर उसके घर पर गए और उसकी मरहम पट्टी की. मिंकू होश में आने के बाद.

उसकी माँ ने उसे बताया की उसके दोस्तों ने उसे बचाया. फिर मिंकू को दोस्ती का महत्व समझ आया. और उसने सबके साथ झगड़ा करने के लिय माफ़ी मांगी.

उसदिन से वह सबके साथ मिल जुल कर रहने लगा.

नैतिक सबक – बच्चों इस कहनी से आपको यस सीख मिलती है की घमंडी और झगड़ालू व्यकी आखिर में हमशा अकेला पड़ जाता है.इसलिय हम सबको अपना स्वाभाव मिलनसार रखना चाहिय.लोगो से छोटी छोटी बातो पर झगड़ा नहीं करना चाहिए.

एकता का बल | naitik shiksha ki kahani

ये बहुत पुराणी बात है. एक बार जंगल में एक छोटासा ज़ेबरा का बच्चा था.

वह खेलते खेलते अपने झुडं से बहुत दूर आ गया था.

खेलने में वह इतना मगन था. की वह कहा आ गया है. उसे पता ही नहीं चला.

और जब उसको ध्यान आया. की वह अपने झुंड से दूर आ गया है.

तब वह रोने लगा. पर उसकी माँ उसे ढूंडते हुए. वहां आ गई औ उसको लेकर वह से झुडं के पास आने लगी.

उस वक्त उस बच्चे की रोने की आवाज सुनकर. नजदीक ही गुफा में सोये हुए. चार गीदड़ वह आगये.

उन्होंने ज़ेबरा और उसकी माँ को घेर लिया. वह बस अब उन दोनों पर झपटने ही वाले थे.

तभी वहां की जमीन थर थर कापने लगी.और पल भर में ही वहां उन दोनों मा बेटे को ढूंड ते हुए.

उनका समूचा झुंड वहां आ गया. ज़ेबरा के जुंड ने उन चारो गीदड़ो को वहां से खदेड़ दिया.

इस तरह उन्होंने झुंड के सदस्य की रक्षा की. और एकता में बाल होता है. यह साबित होगया.

नैतिक सबक – इस कहानी से बच्चों को यह सबक मिलता है की अगर हम संघटित हो जाये तो कोई भी कठिन से कठिन काम कर सकते है.

चतुर खरगोश मूर्ख बाघ | shikshaprad kahaniyan

यह बहुत समय पहले की बात है.एक बहुत छोटा सा जंगल था. वहां सब शाकहारी जानवर आपस में मिलजुल कर रहते थे.

सबकी आपस में अच्छी दोस्ती थी.जंगल में हर तरफ ख़ुशी का मौहल था.पर एक दिन उस जंगल में एक बुढा बाघ घुस आया.

आते ही उस बाघ ने हिंसा शुरू करदी.पहले उसने हिरन मार दिए. और उसके बाद रोज दो तीन जानवरों को मारकर खाने लगा.

इसी तरह जंगल में प्राणियों की संख्या घटने लगी. रोज कोइ न कोइ अपने दोस्त, भाई,माता या पिता को खोने लगा था.

फिर जंगल के सभी जानवरों ने मिलकर एक सभा बुलाई. सभा का एकही विषय था. इस बाघ को कैसे सबक सिखाया जाय?.

उस सभा में जंगल का सबसे चतुर माना जाने वाला चिंटू खरगोश भी आया था. वह जंगल के प्राणियों को बोला.

मेरे पास इसका हल है. अगर जंगल के सभी प्राणी मेरा साथ दे. तो में उस बाघ को अच्छा सबक सिखा सकता हूँ.

जंगल के सभी प्राणियों को चिंटू पर पूरा भरोसा था. उन्होंने तुरंत ही हाँ करदी. फिर चिंटू सभी जानवरों को लेकर उस बाघ के पास गया.

सभी जानवर डर हुए थे. पर चिंटू ने कहा तुम सभी बस मेरी हाँ में हाँ मिलाते जाव. मै सब ठीक कर दूंगा.

फिर चिंटू ने बाघ को आवाज लगायी.बाघ अपनी गुफासे दहाड़ते हुए बाहर निकला. और अपनी कडक आवाज में बोला क्या हुआ?

जंगला के सभी जानवर यहाँ क्योंक जमा हुए है? खरगोश बड़ी चतुराई से बोला. महाराज अब आप ही इस जंगल के राजा हो.

और हम आपकी प्रजा. बाघ बोला हा वो तो में हूँ ही. मगर तुम सब यहा आये क्यों हो? यह बताव.

खरगोश बोला हम सभी जंगल के जानवरों ने मिलकर तय किया है.की. आप को रोज शिकार करने की तकलीफ नहीं होनी चाहिए.

इसलिय हम में से रोज एक प्राणी आपकी गुफा में हाजिर होगा . फिर आप उसे बड़े आराम से खा सकते है.

इस तरह बुढ़ापे में आपको शिकार के पीछे भागने के कष्ट भी नहीं होंगे. यह सुनकर बाघ खुश हुआ. और उसने चिंटू की बात मान ली.

और कहा कल ठीक समय पर जंगल से एक जानवर मेरी सेवा हाजिर होना चाहिए. यह कहकर गुफा में चला गया.

बाघ के जाते ही सभी जानवर चिंटू की तरफ गुस्से से देखने लगे. और बोले यह तुमने क्या कह दिया.

और अब कल कौन आयेगा?. इस बाघ का पेट भरने. चिंटू बोला आप सभी चिंता न करे.

कल से  इस जंगल में वह बाघ नहीं दिखे गा. कल मै खुद आऊंगा. फिर सभी जानवर अपने-अपने घर चले गए.

अगले दिन चिंटू बहुत देरी से बाघ की गुफा में पंहुचा. तो बाघ उसपर बरस पड़ा. यह क्या सिर्फ तुम अकेले आये हो. और वो भी इतनी देर से.

अब मेरी भूक मिटाने के लिय. मुझे और जानवर चाहीये. चिंटू बोला महाराज मै मेरे पुरे परिवार के साथ आपकी सेवा में आरहा था.

मगर जंगल में आपसे भी बड़ा बलवान एक और बाघ आ गया है. उसने ही आते वक्त रस्ते में मेरे परिवार को खा लिया.

और मै अकेला बड़ी मुश्किल से बचके आपकी सेवा में पंहुचा हूँ. चिंटू की पूरी बात सुनाने के बाद बाघ गुस्से में बोला.

क्या मुझसे भी बलवान बाघ. और उसकी हिम्मत कैसे हुई. मेरा शिकार खाने की.चलो दिखाओ मुझे कहा है. वह दूसरा बाघ.

फिर चिंटू उसको को जंगल के पुराने कुंए के पास ले गया. और कहा महाराज आपका शिकार खाने के बाद वह बाघ इस कूएँ में आराम कर रहा है.

बाघ बड़े ही गुस्से में था. वह दुसरे बाघ को दखने के लिय कुएं में झुका. तो पानी में उसे एक वह दूसरा बाघ दिखा.

फिर उसने आव देखा न ताव और उसे मारने के लिए कूएँ में कूद गया. वह मुर्ख बाघ पानी में खुदके प्रतिबिम्ब को पहचान नहीं पाया.

और कूएँ के पानी में डूब गया. बाघ के डूबने की खबर सुनकर पुरे जंगल में खुशहाली फिरसे लौट आयी. सभी में चतुर चिंटू का जय जय कार किया.

नैतिक मूल्य – बुदिमानी की कोई उम्र या कद तय नहीं होता.कोई भी दिमाग का इस्तेमाल करके बड़ी से बड़ी जंग जित सकता है.

चालबाज भेड़िया | naitik shiksha ki kahani

एक दिन जंगल में सुखा पड़ने की वजह से एक चालाक भेड़िया जंगल छोड़ कर शिकार की तालश में गाँव की तरफ आ गया.

गाँव के नजदीक आने आकार उसे बहुत सारी भेड़ दिखी. भेड़ को देखकर भेड़िये के मुँह में पानी आ गया.

भेड़िये ने उस जगह को अच्छी तरह देखा. और उसे महसूस हुआ. यहाँ पर भेड़ का शिकार करना आसान नहीं होगा.

भेड़िया नजदीक की झाड़ियो में बैठ कर सोचने लगा.अब मै भेड़ का शिकार कैसे करू?. तभी उसकी नजर वहा के मजदूरों पर पड़ी.

वह सब भेड़ की काटी हुई खाल. एक गोदाम में ले जाकर रख रहे थे. फिर भेड़िये को एक तरकीब सूझी.

वह चुपके से उस गोदाम में दाखिल हुआ.और वहां से भेड़ की एक खाल चुराकर पहन ली.

खाल पहनने के बाद वह भेड़िया जाकर भेड़ के झुंड केबीच खड़ा हो गया. और देखते ही देखते उसने वहा की एक भेड़ से दोस्ती कर ली.

और उस भेड़ को एक मजेदार चीज दखाने के बहाने जंगल में ले जाकर खा गया. इसी तरह वह रोज भेड़ की खाल पहनकर दावत उड़ाने लगा.

भेड़ के मालिक को संदेह हुआ. भेड़ रोज एक एक करके कम हो रही है. फिर मालिक ने भी वह योजना अपनाई.

मालिक ने भी एक भेड़ के खाल पहनली . और भेड़ों के झुंड में जाकर उनकी तरह खड़ा होगया.

और थोड़ी देर यहा वहा देखकर. मालिक को कुछ पता . फिर उसने अपनी आखरी चाल चली.

उसने भेड़ों की तरह मिमियाना शुरू करदिया. मिमियाना की आवाज सुनकर सभी भेड़ों ने भे बा….बा….बा ….करके मिमियाना चालू कर दिया.

उस वक्त भेड़िया भी उन भेड़ों के बीच घास चरने का ढोंग कर रहा था. भेड़ों का मिमियाना सुनकर भेड़िये ने भी मिमियाना चाहा.

पर उसके मुंह से आवाज निकली भेड़ियों की तरह — हु हु.हु..हु.हु…हु………..हु उसकी वक़्त भेड़ के मालिक को पता चला की वहां एक भेड़िया भी है.

फिर मालिक ने उसे डंडे से पिट पिट कर जंगल में खदेड़ दिया.

नैतिक सबक – इस कहानी से एक ही सीख मिलती है. हमारे आस पास भी. कई ऐसे लोग होते है. जो अच्छे बनाने का ढोंग रचते है. मगर असल में उनका इरादा बुरे कर्म करने का होता है.तो हमे ऐसे लोगों से सतर्क रहना चाहिए.

जिसकी लाठी उसकी भैंस | bacchon ki hindi kahaniya

बहुत साल पहले चंदनपुर गाँव में. गणेश नाम का एक किसान था. वह एक छोटेसे घर में अपनी पत्नी और एक बेटी के साथ रहता था.

उसके पास एक जमीन का टुकड़ा और 1 भैंस थी. वह आपने परिवार के गुजरे के लिए. उस जमीन और भैंस पर ही निर्भर था. चंदनपुर गाँव में हीरामणि नाम का एक जमीनदार भी था.

वह बहुत ही लालची और कपटी किस्म का आदमी था. उसके पास गाँव के हर एक आदमी का कुछ न कुछ गिरवी था. कर्ज की वजह से गाँव के सभी लोग जमीनदार से डर के रहते थे.

गाँव में गणेश ही एकलौता चतुर आदमी था. जो हीरामणि का कर्जदार नहीं था. भैंस का दूध और जमीन के टुकड़े से जितनी भी कमाई होती थी. उसमे ही वह और उसका परिवार खुश रहता था.

हीरामणि जभभी गणेश को देखता था. उसे उससे जलन महसूस होती थी. वह गणेश को भी अपना कर्जदार बनाना चाहता था. एक दिन जमीनदार अपने खेत में फसल देखने आया था.

तभी वहासे गणेश अपनी भैंस को खेत के तालाब पर पानी पिलाने के लिए ले जा रहा था. और नजदीक से गुजरने पर भी. गणेश ने हीरामणि को प्रणाम भी नहीं किया.

ये बात घमंडी और लालची जमीनदार को अच्छी नहीं लगी. उसने तुरंत ही उसके पास के खेत में काम कर रहे. एक आदमी. जिसका नाम बल्लू था.उसे अपने पास बुलाया.

और उसे कुछ पैसो का लालच देकर कहा. की तुम अभी जाकर उस गणेश से उसकी भैसं जबरदस्ती छीन कर लाव.

बल्लू ताकतवर पर कम अक्ल इंसान था. जमींदार के कहने पर.उसने एक बडिसी लाठी ली और तालाब की ओर गणेश को धुंडने निकलपडा.

रस्ते में उसे दिखा की गणेश अपनी भैसे के साथ लौट रहा है. फिर रस्ते में ही बल्लू ने उसे रोका और कहा. ए गणेश मुझे तुम्हारी भैंस दे दो नहीं तो. नहीं तो लाठी से मार मार कर तुम्हारा भरता बनादुंगा.

गणेश ने कहा तुम्हे मेरी भैसें क्यों चाहिए भैया. चोर तो पैसे लुटते है ना. बल्लू बोला पर मुझे आज भैंस की चोरी करने को कहा है. फिर गणेश ने पूछा किसने कहा है?. बल्लू बोला तुम्हे इस्ससे क्या मतलब?

फिर गणेश ने कहा देखो भैया. मै तुम्हे ये भैंस दे देता हूँ. पर मै खाली हाथ घर नहीं जा सकता. इसलिए तुम मुझे तुम्हारी लाठी देदो.

भैंस मिल रही है. ये सुनकर खुशीसे बल्लू ने तुरंत अपनी लाठी. गणेश को दी और उसके हाथ में से भैंस की रस्सी ले ली. फिर भैंस को लेकर चोर बल्लू जमींदार के पास पंहुचा.

उस समय गणेश ने भी छुपकेसे उस उसका पीछा किया था. और देखा की चोर भैंस जमीनदार को दे रहा है. उसी समय गणेश ने वहा जाकर.

अपनी लाठी से हीरामणि और चोर बल्लू को खूब सुता.और अपनी भैस और उस लाठी के साथ घर आया.

इस तरह गणेश में अपनी चतुराई और बल से जमीनदार को मजा चखाया. जिसकी लाठी उसकी भैंस

ईमानदारी का इनाम | hindi naitik kahaniya

एक रेलवे स्टेशन पर वीरू नाम का एक छोट लड़का चाय बेचता था. वह अपनी बीमार माँ के साथ स्टेशन के पास वाली झोपडी में रहता था. वीरू अपनी माँ का बहुत ध्यान रखता था.

लेकिन वीरू ने चाय बेचकर कमाए हुए. पैसे माँ की दवाई और डॉक्टर साहब का मेहनताना चुकाने में खर्च हो जाते थे. इसलिए कभी कभी माँ को रात का खाना खिलाता और खुद पाणी पीकर सो जाता.

और जब माँ उससे पूछती की बेटा तुम नहीं खोओगे खाना. वह कहता “मैने स्टेशन पर ही अपने दोस्तों के साथ भोजन करलिया है माँ. तुम खालो.

वीरू एक मेहनती लड़का था. साथही वह अपने चाय का छोटासा धंदा बड़ी लगन और ईमानदारी से करता था. उसकी बनाई गई चाय लोगो को बहुत पसंद आती थी.

एक दिन वीरू चाय की केतली लेकर रोजकी ट्रेन में चढ़ा था. आखरी स्टेशन पर उतरने से पहले वीरूने ने एक सूट बूट पहने सज्जन आदमी को चाय पिलाई.

उस सज्जन ने वीरू के चाय की दिल खोल के तारीफ की.और जैसे ही ट्रेन स्टेशन पर रुकी सभी लोग उतर के चले गए.

वीरू सबसे आखिर में उतर रहा था. तभी उसे एक सिट पर बटुआ मिला. जो पैसो से लबालब भरा था. उसने देखा की उस बटवे में उसी सज्जन की तस्वीर है.

जिसे उसने अभी-अभी चाय पिलाई थी. ट्रेन से उतर ने के बाद वह बटुआ लेकर. कुछ देर वह स्टेशन पर ही बैठा रहा. थोड़ी ही देर इंतजार करने के बाद वह आदमी अपना बटुआ दुंडते हुए.

स्टेशन पर वापस आया. उस आदमी को देखते ही वीरू उसके पास दौड़ता हुआ गया. और उसके हाथ में वो बटवा थमा दिया.और कहा ये लीजिये आपका बटुआ.

आप ने ट्रेन से उतरते वक्त गिरा दिया था.उस आदमी ने तुरंत ही बटुआ खोल कर कुछ पैसे वीरू को देने चाहे. पर वीरू ने वो पैसे लेने से मना कर दिया.और वहा से अपने घर चला गया.

दुसरे दिन वीरू के माँ की तबियेत अचानक से बहुत खराब होगई थी.और उसे तुरंत ही हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा. डॉक्टर ने वीरू से कहा तुम्हरी माताजी की तबियेत कुछ ज्यादा ही खराब है.

इसलिए उन्हें लगभग 1 महीने के लिए. हॉस्पिटल में ही रखना पडेगा. 1 महीने माँ को एडमिट करना पड़ेगा यह बात सुनकर वीरू परेशान हो गया. क्योंकि उसके पास बिलकुल भी पैसे नहीं थे.

इस सोच से दु:खी होकर.वह हॉस्पिटल में एक बेंच पर बैठ कर रो रहा था. तभी वहापर वही सज्जन आये. जिनका बटुआ रातको वीरू ने ईमानदारी से लौटाया था.

उन्होंने पूछा बेटा तुम क्यों रो रहे हो. फिर वीरू ने भी उन्हें अपनी परेशानी बतादी. और कहा की अब शायद मुझे मेरी माँ को घर ले जाना पड़ेगा.

वह सज्जन बोले बेटा तुम्हे अपनी माँ को कही ले जाने की जरुरत नहीं. तुम्हरी माँ अब ठीक होकर ही इस हॉस्पिटल से बाहर जाएगी. और तुम्हे कोई पैसे देने की आवश्कता नहीं है. क्योंकि मै इस हॉस्पिटल का मालिक हूँ.

और इसे तुम्हारी ईमानदारी का इनाम समझो. वीरू ने सज्जन का बहुत बहुत धन्यवाद किया.और कुछ ही दिनों में वह अपनी माँ को हॉस्पिटल से ठीक करके घर ले गया. इस तरह वीरू को आखिर उसकी ईमानदारी का इनाम मिल गया.

नैतिक सबक – हमेशा याद रखना किसी भी इंसान द्वरा किये गए. अच्छे कर्म जाया नहीं जाते. क्योंकि परमेश्वर हमे किसी ना किसी मार्ग से उसका फल अवश्य देता है.

हाथी और रस्सी की कहानी | naitik mulya par aadharit kahaniya

एक बार की बात है. एक शिव नाम का लड़का था. वह पढाई में बहुत कमजोर था. इस वजह से स्कूल में बच्चे हमेशा उसका मजाक उडाया करते थे. और बच्चों के मजाक उड़ने से उसका आत्मविश्वास और डगमगाता था.

जिससे उसका पढाई में कभी मन नहीं लगता था. वह हमेशा परेशान रहता था. उसे परेशान और मायूस देखकर. उसके माता पिता को बुरा लगता था.

एक दिन ऑफिस से घर लौटते वक्त शिव के पिताजी ने एक बस पर जंबो-सर्कस का पोस्टर देख लिया. तभी उनके मन में एक योजना आयी.

घर आते ही वह अपने बेटे को सर्कस दिखाने के लिए ले गए. वह सर्कस के स्थान पर. समय से थोडा जल्दी पहुंचे और शिव को लेकर उसे पिताजी सबसे पहले सर्कस के तंबू में हाथियों “Elephant” के पास जाकर खड़े हुए.

उन्होंने शिव से कहा बेटा इन सभी हाथियों को ध्यान से देखो.और मुझे बताओ की तुम्हे इनमे क्या दिख रहा है?. पिताजी की आज्ञा का पालन करते हुए. शिव सभी हाथियों को ध्यान से देखने लगा.

शिव को नजर आया की वहापर सभी हाथियों को एक पतली रस्सी से बांध कर रखा था. जो उनके विशाल आकार के सामने बहुत कमजोर थी. वह उस रस्सी को बडी आसानी से तोड़ भी सकते थे.

उन रस्सियों को देखते ही. शिव ने पिताजी से पूछा की वह सभी हाथी इतने बलशाली है. फिर भी सर्कस के मालिक ने उन्हें इतनी पतली रस्सी से क्यों बांधा है. उसके पिताजी ने कहा सही प्रश्न पूछा शिव.

मै तुम्हे इसीलिए यहा लाया हूँ. फिर उन्होंने कहा शिव ये जब ये सभी हाथी जब छोटे छोटे बच्चे थे. तब सर्कस के मालिक ने उन्हें यहा लाया था.

उस वक्त वह उन्हें इन छोटी-छोटी रस्सियों से बांधा करते थे. तब ये बात उनके आकार के हिसाब से सही भी थी. वह बच्चे लाख कोशिशों के बाद भी. रस्सियाँ तोड़ नहीं पते थे. और उनके मन में ये बात बैठ गई. की इन रस्सियों को नहीं तोडा जा सकता.

और अब ये सभी हाथी शरीर से बड़े हो चुके है. पर उन सभी के मन में अभी भी यह विश्वास-धारणा पक्की है. की वह इन रस्सियों को तोड़ नहीं सकते. इसलिए सर्कस के मालिक अभी भी उन्हें इन रस्सियों से बांधते है.

इसीतरह हमारे जीवन में भी विश्वास का बहुत महत्व है. हम जैसे विश्वास करते है. जैसी हमारी धारणा होती है. उस तरह हमारी जिंदगी बन जाती है. इसलिए हमे हमारी जिंदगी सकारात्मक विचारों के साथ पुरे आत्मविश्वास के साथ जिनी चाहिए.

और हेमेशा खुश रहना चाहिए. इस तरह शिव को समझाने के बाद उसदिन से शिव के जीवन में बदलाव आने लगे. वह अपने आप में एक अलग आत्मविश्वास महसूस करने लगा.और उसके जीवन की सारी परेशानीया दूर होगई.

नैतिक सबक – जैसा आप सोचेंगे, वैसा आप बनेंगे. हमारी जिंदगी हमारी धारण-विश्वास पर निर्भर है.

खुश रहो पर संतुष्ट नहीं | naitik mulya par aadharit kahaniya

भागलपुर गाँव में रंगराज नाम का एक चित्रकार रहता था. वह किसी चीज को एक बार देखकर ही. हु ब हु उसकी तस्वीर बनाने में माहिर था.

वह हर एक तस्वीर को बनाते बनाते.खुदही उसने गलतिय ढूँढता और उस तस्वीर को और बेहतर ढंग से बनाने की कोशिश करता.

देखते ही देखते उसकी बनाई तस्वीरे अन्य चित्रकारों से महँगी बिकने लगी. और एक दिन ऐसा आया की रंगराज सबसे बड़ा चित्रकार बन गया हर कोई उससे अपना चित्र बनवाने लगा.

उस दिन के बाद रंगराज ने भी खुदको सबसे बेहतर चित्रकार मान लिया.और उसने अपने चित्र में गलतिया निकलकर उसे बेहतर बनाना छोड़ दिया. जिससे कुछ ही दिनों में उसके हाथ से बनी तस्वीर को लोगो को पसंद करना भी बंद कर दिया.

और धीरे धीरे उसकी बनाई तस्वीरों के दाम भी गिरने लगे.

उसे अब काम मिलना बंद होने लगा था. इसलिए अब परेशान रहने लगा था. एक दिन उसकी दुकानपर एक बुड्ढा आदमी आया उसने रंगराज से अपनी तस्वीर बनवाई.

तस्वीर तैयार होने के बाद उसे देखते ही बूढ़े आदमी ने रंगराज से पूछा. क्या तुम इस तस्वीर को और बेहतर बना सकते हो. रंगराज बोला नहीं यही सबसे बेहतर तस्वीर है.

उस आदमी ने कहा इसी काम में पहले तो तुम कभी संतुष्ट नहीं होते थे. हमेशा अपने बनाये चित्र को और बेहतर बनाने में लगे रहते थे.

इसीलिए रंगराज आज तुम्हारी तस्वीरे किसी को पसंद नहीं आ रही है.क्योंकि तुम अपनी कला से संतुष्ट हो गए और उसे अधिक बेहरत बनाना छोड़ दिया है.

उस दिन रंगराज को अपनी गलती का एह्साह हुआ.और तभी से उसने अपनी कला से संतुष्टि को अलग कर दिया. और खुद को और बेहतर बनाना फिरसे शुरू किया.

नैतिक सबक : हमेशा अपने काम में खुश रहो पर संतुष्ट नहीं. हर दम खुद को खुद से बेहतर बनाने की कोशिश जारी रखो. संतुष्ट होना हमे किसी एक जगह ठहरा देता है. और इस वजह से प्रगति रुक जाती है.

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