kahani lekhan in hindi for class 10

१० वी कक्षा प्रेरक और रोचक कहनिया kahani lekhan in hindi for class 10

kahani lekhan in hindi for class 10 इस  पोस्ट में मैंने नई प्रेरक और रोचक कहानिया लिखी है. जो आपको एक अच्छी सीख प्रदान करेगी. यह सभी कहानिया पढने के लिए मनोरंजक भी है. कहानी के अंत तक पढने वाला बोर नहीं होगा. तो इन कहानियों को पूरा जरुर पढ़े.

kahani lekhan in hindi for class 10 in this blog post I have written new interesting stories. These all stories will teach you very important moral lessons. you will not get bored while reading my kahani lekhan in hindi for class 10

ठेले से कम्पनी तक (प्रेरक कहानी) kahani lekhan in hindi for class 10

एक दिन धीरू नाम का लड़का. गाँव से नौकरी की तलाश में मुंबई शहर आया था.वह सिक्यूरिटी गार्ड के पद लिए. इंटरव्यू देने एक कम्पनी में गया. वहापर इंटरव्यू में धीरू का परिचय सुनने के बाद.

इंटरव्यू लेने वाली लड़की धीरू का बायोडाटा और सर्टिफिकेट्स गौर से देख रही थी.जो एक सिक्यूरिटी गार्ड की नौकरी के लिए बिलकुल सही थे. लेकिन आखिर में उसने धीरू से एक सवाल पूछा.

उसने कहा मिस्टर धीरू इस बायोडाटा में तुम्हारा “E mail id” क्यों नहीं लिखा है? क्या तुम उसे लिखना भूल गए हो? चलो मुझे अभी बता तो मै लिख देती हूँ.

धीरू ने E mail id के बारे में सुना जरुर था. लेकिन उसे E mail id बनाना नहीं आता था. इसलिए उसने कहा की उसके पास कोई E mail id नहीं है.

इसपर वह लड़की बोली. तुम एक जॉब के लिए इंटरव्यू दे रहे हो. और तुम्हारे पास खुदका “E mail id” तक नहीं है. इतना कहकर उसने धीरू को नौकरी देने से साफ इन्कार कर दिया.

धीरू उस कंपनी भी से निराश होकर बाहर निकला. और वहीके एक हनुमान मंदिर की सीढियों पर जाकर बैठा. वह सोचने लगा अब अगर जल्दी नौकरी नहीं मिली. तो शायद मुझे गाँव वापस लौटना पड़ेगा.

तभी उसे एक आवाज सुनाई दी. सड़क की दूसरी तरफ एक आदमी आलू और प्याज बेच रहा था. उसके ठेले पर काफी लोगों की भीड़ लगी हुई थी.

देखते ही देखते उस ठेले वाले ने काफी अच्छा धंदा कर लिया. उसे देखकर धीरू के मन में एक विचार आया. क्योंना मै भी आलू और प्याज का एक ठेला खोल लूँ.

लेकिन उसके पास अभी इतने ही पैसे बचे थे की वह 4 से 5 दिन ही मुंबई में टिक सकता था.पर धीरू एक आखिरी दांव खेलना चाहता था. इसलिए उसने बचे -खुचे सारे पैसे बिज़नस में लगा दिए.

और उसी श्याम जाकर एक ठेला भाडेपर खरीद लिया.और एक थोक व्यापारी (wholesaler) से आलू और प्याज खरीद लिए. अगले दिनसे ही धीरूने मुंबई की गलियों में जाकर उन्हें बेचना शुरू कर दिया. उसने पहले ही दिन उमीद से अधिक पैसे का बिज़नस कर लिया.

इसी तरह धीरू हररोज गली-गली आलू व प्याज बेचने लगा. शुरुवात में वह कमाई का बडा हिस्सा व्यापार में ही लगता रहा. साथमे धीरुने अपनी मोठी बोली से काफी लोग से पहचान भी बना ली.

उसने ग्राहकों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए. धीरे-धीरे दूसरी सब्जिया भी बेचना शुरू कर दिया.

और सब्जियों के दाम नियंत्रित करने के लिए. वह सीधा गाँव के किसानो से सब्जीया खरीदकर बेचने लगा. इस तरह देखते ही देखते ठेले से एक कदम आगे बढ़ते हुए. धीरू ने मुंबई में अपनी खुदकी दुकान खरीदली. kahani lekhan in hindi for class 10

ठेलेवाला धीरू अब दुकानवाला सेठ धीरजलाल बन गया था. एक दिन धीरजलाल अपनी दुकान में बैठा था. तभी उसे मेजपर पड़े उसकी “धीरजलाल ट्रेडिंग कम्पनी” के. नए बिज़नस कार्ड दिखे.

धीरू ने उसमे से एक कार्ड हाथ में लिया. और उसे गौर से देखने लगा. और तभी उसकी नजर कार्ड पर छपे उसकी कम्पनी के ऑफिसियल E mail id पर पड़ी.

वह देख धीरू के मन में एक सवाल आया. अगर उस आखरी इंटरव्यू के दिन मेरे पास एक E mail id होता.

तो मै आज क्या होता. और उसका जवाब था सिर्फ एक “सिक्यूरिटी गार्ड ” यह सोचकर सेठ धीरजलाल अकेले ही ठहाके मारके हसने लगे.

मोरल : इंसान की जिंदगी में वक्त पलटने में देर नहीं लगती. हमे सिर्फ अलग सोच रखनी है. की हम और क्या बहेतर कर सकते है.

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समय सुचकता की कहानी kahani lekhan in hindi for class 10

एक दिन जय और विजय नाम के दो दोस्त जंगल में घुमने गए थे. तभी रस्ते में चलते-चलते जय को पैर पर एक साप ने काट लिया. और जय ने पैर पकडकर रोना-चिल्लाना शुरू कर दिया.

विजय ने साप को देखा.और जय से कहा दोस्त तू घबरामत. मै तुझे कुछ नहीं होने दूंगा. पर मारे घबराहट के जय की हालत मानो अधमरी सी होने लगी थी

विजय ने कुछ पल सोचा और दौड़ता हुआ. नजदीक की झाड़ियों गया.और वहासे एक झाड के कुछ पत्ते तोड़ लाया.

और वह पत्ते दोनों हाथो के बीच रगड़ेते हुए. मुह में कुछ मंत्र बुदबुदाने लगा. बादमे वह पत्ते उसने फूंक मारके जय के साप काटी हुई जगह पर मल दिए.

जय ने पूछा भाई विजय ये तुम क्या कर रहे हो. वह बोला मै पिछले साल की छुट्टियो में एक आश्रम में गया था. उधर मुझे एक पहुंचे हुए ज्ञानी ऋषि मिले थे. उन्होंने मुझे एक मंत्र दिया था.

उस मंत्र के उच्चरण से किसी भी तरह का जहर उतर जाता है. देखो तुम्हे पैर पर ठंडक महसूस हो रही है ना. जय के पैर पर सचमे ठंडक महसूस हो रही थी. इसलिए वह भी शांत हो गया.

फिर विजय उसे सहारा देते हुए. घर ले गया. घर आने के बाद जय ने माँ को जो कुछ हुआ. वह सब बता दिया. बाद में जब विजय अपने घर जाने के लिए. वहासे से बाहर निकला. तब जय की माता ने उसे रोकते हुए पूछा.kahani lekhan in hindi for class 10

बेटा विजय तुम कौनसे आश्रम में गए थे. वहा के ऋषिमुनी का नाम तो बताओ. तब विजय बोला आंटीजी, मै किसी भी में आश्रम नहीं गया था.  और नाही किसी ऋषिमुनि से मिला हूँ.  दरअसल जय को जिस साप ने कांटा था. वह बिलकुल भी जहरीला नहीं था. वह बस एक मामूली साप था.

मैंने बस उसका डर कम करने के लिए. थोडा झूट बोला. अगर मैने वह झूट नहीं बोला होता. तो डर से ही जय की हालत और बिगडसकती थी. जय की माँ भी उसकी बात समझ गई.

पर जाते जाते माताजी ने. एक और बात पूछी. वह बोली फिर जय के पैर पर तुमने कौनसी जडीबुटी लगाई. जो वो इतना ठंडक पंहुचा रही थी. विजय बोला वह तो सिर्फ मामूली मेहँदी के झाड़ के पत्ते थे.

और कुछ भी नहीं. वह सुनकर तो माताजी की हंसी छुट गई. और दोनों एक साथ हंसने लगे.

मोरल -जिदंगी में कितने भी विकट हालत का सामना करना पडे. उस समय हमेशा बुद्धिमानी और धैर्य से काम लेना चाहिए.

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विश्वास की शक्ति  kahani lekhan in hindi for class 10

एक बार की बात है. विश्वास नगर गाँव में अनुपम नाम के एक पंडित रहा करते थे. उनका सदाशिव नाम का एक बेटा था. वह बडाही चतुर था.

पंडित अनुपम का भगवान पर बहुत विश्वास था. तथा मंदिर में आनेवाले साधू व संतो की भी वह खूब सेवा किया करते थे.

एक दिन पंडित अनुपम अचानक ही एक लाइलाज बीमारी से पीड़ित हो गए. पंडितजी को स्वस्थ करने के लिए. बहुतसे वैद्यों और हाकिमो ने प्रयास किये. पर किसी भी तरह वह ठीक नहीं हो रहे थे.

सदाशिव से अपने पिताजी की पीड़ा देखी नहीं जा रही थी.वह उन्हें पहले जैसा स्वस्थ देखना चाहता था. पर वह दिन ब दिन कमजोर होते जा रहे थे.

एक दिन पाठशाला मै गुरूजी विश्वास की शक्ति का महिमा सुनाराहे थे. सदाशिव वह ध्यान से सुनरहा था.अंत में गुरुजी बोले की विश्वास की शक्ति से कुछ भी संभव है.

यह बात सदाशिव के दिमाग में घर कर गई. उसके बाद सदाशिव सोचने लगा की पिताजो को विश्वास की शक्ति से कैसे ठीक किया जाये.

वह इसी सोच में डूबा था. तभी उसने रात को सोते समय पिताजी को भगवान का जाप करते देखा. सदाशिव समझ गया की पिताजी का भगवान पर सबसे ज्यादा विश्वास है. और तभी उसके दिमाग में एक तरकीब आयी.kahani lekhan in hindi for class 10

अगली सुबह जल्दी उठकर सदाशिव नदी पर. स्नान करने चला गया.और जब वह घर लौटा. तब उसके पिताजी आंगन मै बैठे भगवान का जाप कर रहे थे.

वह उनके पास गया और उनके हाथ में एक अमरूद दिया. और तुरंत उसे खाने के लिए कहा. पिताजी ने पूछा तुम्हे यह फल किसने दिया. सदाशिव ने जवाब में कहा.

मै जब सबुह स्नान करने नदी पर गया था. वहा मुझे एक बहुत ही तेजस्वी साधू मिले. मैंने उन्हें आपकी बीमारी के बारे में बताया. तो उन्होंने भगवान के नमो से अभी मंत्रित करके.यह अमरुद मुझे दिया.

और कहा की यह फल तुम्हारे पिताजी को खिला दो वह शीघ्र ही ठीक हो जायेंगे. पंडितजी की साधू संतो पर गहरी निष्ठा थी. इसलिए ईश्वर का नाम लेकर वह अमरुद उन्होंने तुरंत खा लिया.

उसके कुछ ही दिनों बाद पंडितजी आश्चर्य जनक रूप से ठीक हो गये. तब सदाशिव को विश्वास का महिमा समझ आया क्योंकि वह तो किसी साधू से मिला ही नहीं था. उसने तो वह फल पास के गाँव की एक बाग से तोड़ लाया था.

पर वह जानता था. की उसके पिताजी का साधू संतो पर बहुत विश्वास है. और उसी विश्वास की वजह से वह लाइलाज बीमारी से मुक्त होगये.

मोरल :विश्वास की शक्ति से सबकुछ संभव है. हमारा जैसा विश्वास होता है वैसे हमारी जिंदगी बन जाती है.

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दानवीर कर्ण की महानता kahani lekhan in hindi for class 10

ये द्वापर युग की बात है. भगवान श्री कृष्ण हेमशा से दानवीर कर्ण के सबसे बड़ा दानी होने का समर्थन करते थे. दूसरी ओर पाच पांडव भी दान धर्म किया करते थे. मगर मधुसुदन कृष्ण उनकी उतनी प्रशंसा नहीं करते थे. जितनी कुंती पुत्र कर्ण की किया करते थे.

इसी बात पर धर्मराज युधिष्टिर ने कृष्ण भगवान से यह सवाल किया की आप हेमेशा सिर्फ कर्ण को ही दानवीर क्यों मानते है. इसपर भगवान श्री कृष्ण ने हँसते हुए कहा. की समय आनेपर मै तुम्हे इस सवाल का जवाब स्वयम ही दे दूंगा.

इसिप्रकार दिन बिताते गए. एक सुबह कृष्ण अपने प्रिय पाच पांड्वो समेत धर्मराज युधिष्टिर के राज दरबार में बैठे प्रजा के दुःख और समस्या का निवारण कर रहे थे.

उसी दिन राज दरबार में एक वृद्ध ब्राह्मण पधारे. कृष्ण सहित पाच पांड्वो ने उनका विनम्र अभिवादन किया. फिर ब्राह्मण देवता ने राजा युधिष्ठिर समीप अपनी समस्या रखी. वह बोले महाराज आज सुबह मेरी अर्द्धागिनी (पत्नी ) का देहांत होगया है.

उसके अंतिम संस्कार के लिए. मुझे चंदन के लकड़ियों की आवश्यकता है. तो आप वह मुझे दान स्वरूप में अर्पित करे. ब्राह्मण देव की समस्या सुनाने के बाद महाराज युधिष्ठिर ने कोषागार मंत्री को तत्काल आदेश दिया.

की अभी के अभी कोषागार से ब्राह्मण देव के लिए चंदन की लकड़ियों का प्रबंध किया जाये. मंत्री तुरंत ही सैनिकों को लेकर. राज्य कोषागार में गए. और थोड़ी देर से लौटे.

उन्होंने महाराज को बताया की. राज्य के कोषागार में चंदन की लकडिया नहीं बची. साथही ये भी समाचार सुनाया की. इस वक्त हमारे राज्य में चंदन की लकडिया उपलब्ध नहीं है.

यह सुनाने के बाद राजा युधिष्ठिर ने ब्राह्मण देव को अपनी दुविधा सुनाई. और लकडिया उपलब्ध ना होने के कारण उनसे माफ़ी भी मांगी. तभी इतनी देर से शांत मुद्रा में बैठे भगवान कृष्ण बोले हे ब्राह्मण देव आप चिंतित न हो.kahani lekhan in hindi for class 10

मै आपको इस समस्या का समाधान दूंगा. उसके बाद कृष्ण युधिष्टिर के साथ ब्राह्मण का भसे बदल कर .उस ब्राह्मण देवता को लेकर. दानवीर कर्ण के राज प्रसाद में पहुचे.

और वहापर भी उस ब्राह्मण देव ने अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार के लिए. चंदन की लकड़िया दान में मांगी. फिर अंगराज कर्ण ने भी मंत्रियो को चंदन की लकड़ियों का प्रबंध करने के आदेश दिए.

उसी आदेश का पालन करते हुए. मंत्री गन थोड़ी ही देर में लौटे. और दानवीर कर्ण को यह समाचार सुनाया की. राज कोषागार सहित पुरे अंग देश में भी कही चंदन की लकडिया नहीं है.

महाराज कर्ण मंत्री गन की पूरी बात सुनाने के बाद. कर्ण सोचने लगे. और तभी उनकी दृष्टी राजदरबार के खंभों पर पड़ी जोकि चंदन की लकड़ियों से बने थे.

कर्ण ने विलंब न करते हुए. मंत्रियों को तुरंत आदेश दिया की. राज महल के खंबे चंदन की लकड़ियों से बने है. उनमे से कुछ तरुंत तोडकार के ब्राह्मण देव को जरूरत अनुसार चंदन की लकडिया दी जाए. और साथही उन्हें सामान पूर्वक उनके घर तक पहुचाया जाये.

कर्ण की दान करने की अटल सोच ब्राह्मण वेश धारण किये हुए. धर्मराज युधिष्टिर अवाक होकर देख रहे थे. कुछ समय के बाद अपने राज्य में लौटने पर. भगवान कृष्ण ने युधिष्टिर से कहा क्यों धर्मराज आपके महल मे भी चंदन की लकड़ियों के ही खंबे है ना? उसदिन के बाद युधिष्टिर भी भगवान कृष्ण के बात से सहमत होगये की अंगराज कर्ण ही सबसे बड़े दानवीर है.

मोरल :कुछ भी दान करते समय उसमे अपना फायदा नहीं देखना चाहिए.

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