मुंशी प्रेमचंद भारत के सबसे अधिक प्रसिद्ध कथानायक व उपन्यासकार थे. उन्हें बीसवीं शताब्दी का सर्वश्रेष्ट हिंदी व उर्दू साहित्यकार माना जाता है. उनकी कई साहित्यिक रचनाओं को अंग्रेज़ी, रूसी, चीनी तथा जर्मन सहित अन्य भाषाओं में भी लोकप्रियता मिली है. उन्होंने लगभग १५ उपन्यास, ३०० से अधिक कहानियाँ, ३ नाटक, १० अनुवाद, ७ बाल पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख व आदि साहित्यों की रचना की है.
प्रेमचंद द्वारा लिखित “गोदान” उपन्यास का सिर्फ भारतीय साहित्य में ही नहीं, विश्व साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान है. हिंदी, उर्दू साहित्य तथा उपन्यास के क्षेत्र में प्रेमचंद के अद्वितीय योगदान को देखते हुए. बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें “उपन्यास सम्राट” कहकर सम्मानित किया था.
आज हम इस लेख के में मुंशी प्रेमचंद के जीवन से परिचित होने वाले है. इसमें हमने प्रेमचंद द्वरा लिखित प्रसिद्ध उपन्यासों का “लघु सारांश” भी दिया है. जिसे पढकर आप प्रेमचंद के विचारों की गहराई को और ठीक से समझ सकते है.
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मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय | Munshi premchand ka jeevan parichay
पेशेवर नाम मुंशी प्रेमचंद
वास्तविक नाम धनपत राय
जन्म 31 जुलाई 1880
जन्म स्थान उत्तर प्रदेश, वाराणसी, लमही
मृत्यु 8 अक्टूबर 1936 (56 आयु)
पिता अजायबराय
माता आनंदी देवी
भाषा हिंदी, उर्दू व फारसी
व्यवसाय लेखक, पत्रकार, अनुवादक व संपादक
राष्ट्रीयता भारतीय
उल्लेखनीय रचनाएँ गोदान, सेवासदन, कर्मभूमि, रंगभूमि व निर्मला
मुख्य लेखन विषय समाजिक व कृषि जीवन
प्रेमचंद का आरंभिक जीवन
आधुनिक हिंदी साहित्य के जन्मदाता प्रख्यात मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880, वाराणसी के लमही गाँव में हुआ था. प्रेमचंद का वास्तविक नाम “धनपत राय श्रीवास्तव” था. उनकी माताजी का नाम आनन्दी देवी एवं पिताजी का मुंशी अजायबराय था, जो लमही गाँव के पोस्ट ऑफिस में डाकपाल (postmaster) के पद पर थे. प्रेमचंद का बचपन कठिनाइयों से घिरा हुआ था.
जब वे ७ साल के थे तभी उनकी माताजी का देहांत हो गया. उसके बाद दो साल के भीतर ही पिताजी का दूसरा विवाह हो गया. लेकिन बालक प्रेमचंद को सौतेली माँ कभी प्रेम नहीं मिला. जब वह १५ साल के थे. तब उनकी इच्छा के विरुद्ध उनका विवाह करा दिया था. मुंशी प्रेमचंद की शादी के एक साल के बाद उनके पिताजी का भी स्वर्गवास हो गया था. और किशोरावस्था में ही उन पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई.
प्रेमचंद की शिक्षा व उपाधि | Munshi Premchand Education
७ साल की उम्र में प्रेमचंद के पिताजी ने उनका दाखिला गाँव के एक मदरसा (शैक्षिक संस्थान) में करवाया था. जहां हिंदी व उर्दू भाषा में सिखाया जाता था. प्रेमचंद को बचपन से ही पढ़ने-लिखने में रुचि थी. इसलिए १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया, साथ ही साथ उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ ‘शरसार’, मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों के साथ भी मित्रता कर ली.
पिता के देहांत के बाद प्रेमचंद के ऊपर परिवार की जिम्मेदारी आ गई थी, इसलिए उन्हें पढ़ने के साथ-साथ नौकरी भी करनी पड़ी थी. जीवन में अनेकों बाधाएं आने बाद भी उन्होंने पढ़ना और आगे बढ़ना कभी नहीं छोड़ा. साल १८९८ में प्रेमचंद मैट्रिक (१० वी कक्षा) की परीक्षा उत्तीर्ण हुए और तुरंत ही स्थानीय विद्यालय में अध्यापक की नौकरी करने लगे.
उनकी शिक्षा के बारे में अधिक चर्चा करे तो, मुंशी प्रेमचंद जी साल १९१० में अंग्रेजी, दर्शन, फ़ारसी और इतिहास लेकर इण्टर, अर्थात १२वी कक्षा उत्तीर्ण हुए. और १९१९ में अंग्रेजी, फ़ारसी और इतिहास विषय लेकर बैचलर ऑफ आर्ट की उपाधि प्राप्त कर ली थी.
प्रेमचंद का वैवाहिक जीवन | Munshi Premchand married life
मुंशी प्रेमचंद का वैवाहिक जीवन उस सदी की “बाल विवाह प्रथा” अनुसार १५ साल की उम्र में ही शुरू हुआ था. और न चाहते हुए भी परिवार वालों की मर्जी से उन्हें जबरन विवाह करना पडा था, जो की आगे चलकर बुरी तरह से असफल रहा. प्रेमचंद “आर्य समाज” से काफी प्रभावित थे, जिन्होंने उस समय विधवा विवाह आंदोलन की शुरुवात की थी. मुंशी प्रेमचंद ने इस आंदोलन में अपना समर्थन जताते हुए, सन १९०६ में अपना दूसरा विवाह बाल विधवा “शिवरानी देवी” से रचाया, और फिरसे एक बार उनके पारिवारिक जीवन शुरुआत हो गई.
उनकी ३ संतान हुई, २ पुत्र और १ कन्या तीनों के नाम : श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव. शिवरानी देवी शिक्षित महिला थी. किस्मत से उन्हें भी अपने पति जैसी पढने व लिखने में रुचि थी. उनके द्वारा लिखित रचनाएं “चाँद” व “हंस पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुई थी. शिवरानी देवी ने कई सारी कहानिया व “प्रेमचंद की जीवनी भी लिखी जिसका शीर्षक था “प्रेमचंद घर में” इस जीवनी के बारे में हम आगे बात करने वाले है.
प्रेमचंद की नौकरी व व्यवसाय | Premchand’s job and business
स्कूल के समय में प्रेमचंद ने किताबों के एक व्यापारी के यहाँ नौकरी की थी. इस नौकरी पर खाली समय में वह अपना हिंदी व उर्दू साहित्य पढने का शौक पूरा किया करते थे, साथ में उनका जेब खर्च भी निकल जाता था. साल १८९८ में मेट्रिक उत्तीर्ण करने के पश्चात वह एक मिशनरी विद्यालय में शिक्षक की नौकरी नियुक्त हुए. नौकरी करते-करते उन्होंने आगे की पढ़ाई भी जारी रखी थी.
साल १९१९ में प्रेमचंद को उपाधि प्राप्त हुई और वे एक सरकारी विद्यालय के शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर पद नियुक्त हुए. उस समय भारत में महात्मा गाँधीजी की अगवाई में असहयोग आन्दोलन हो रहा था. सन १९२१, गोरखपुर में हुए एक भाषण के दरम्यान गांधीजी ने भारत वासियों को सरकारी नौकरी छोडने का आवाहन किया था. जिसका तीव्र समर्थन करते हुए, २३ जून को देशभक्त प्रेमचंद जी ने अपनी सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया.
उसके उपरांत उन्होंने लेखन को ही अपने मूल व्यवासय के रूप में स्वीकार कर लिया. मुंशी प्रेमचंद उस दौर के मर्याद और माधुरी जैसी कुछ अन्य पत्रिकाओं के सपांदक भी रह चुके है. जहाँ उनके लेखन कार्य की काफी सराहना की गई. जिससे प्रेमचंद को साहित्य लेखन क्षेत्र में आगे बढने की भरपूर प्रेरणा भी मिली. कुछ साल अनुभव प्राप्त करने के बाद उन्होंने अपने शुभचिंतक प्रवासीलाल के साथ मिलकर “सरस्वती प्रेस” खरीदाकर हंस (मासिक) और जागरण (साप्ताहिक) का प्रकाशन किया. लेकिन यह नया व्यवसाय प्रेमचंद को रास नहीं आया और कंपनी घाटे में चली गई.
उसके बाद वह अपनी किस्मत अजमाने मुंबई आ गये और मोहनलाल भवानी की सिनेटोन कम्पनी में बतौर लेखक के पद पर कार्यरत हो गए. १९३४ में आयी मजदूर फिल्म की कहानी मुंशी प्रेमचंद ने ही लिखी थी. मुंबई में तीन साल रहने के बाद कुछ आपसी कारणों की वजह से. प्रेमचंद अचानक से कंपनी का १ साल का कॉन्ट्रैक्ट पूरा किये बिना ही. २ महीने की तनख्वाह छोड़कर बनारस लौट गए .
प्रेमचंद का साहित्यिक जीवन में कदम – premchand ka sahityik parichay
मुंशी प्रेमचंद शुरुआत में “नवाब राय” नाम से उर्दू भाषी लेखक थे. उन्होंने अपने लेख (Article) शीर्षक “पहली रचना” में लिखा था. उनकी लिखी सबसे पहली रचना कभी प्रकाशित ही नहीं हुई. जो की एक नाटक था. वो नाटक उनके मामाजी की हास्यप्रद प्रेम कहानी पर आधारित था.
इनका पहला उर्दू उपन्यास १९०३ में एक धारावाहिक के रुप में प्रकाशित हुआ था. जिसका नाम है “असरारे मआबिद’ इस उपन्यास की सफलता को देखते हुए. बाद में इसी उपन्यास को हिंदी भाषा में “देवस्थान रहस्य” नाम से भी प्रकाशित किया गया था. प्रेमचंद का दूसरा उर्दू भाषी उपन्यास है हमखुर्मा व हमसवाब, इसका हिंदी भाषी संस्करण १९०७ में “प्रेमा” नाम से प्रकाशित हुआ था.जिसने लोगों की काफी वाहवाही बटोरी.
मुंशी प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह सन १९०८ में “सोज़े-वतन” शीर्षक से उर्दू भाषा में प्रकाशित किया गया था. जिसमे ५ भिन्न-भिन्न कहानिया थी.
वे ५ नाम निम्नलिखित है.
१) दुनिया का सबसे अनमोल रतन
२) शेख मखमूर
३) यही मेरा वतन है
४) शोक का पुरस्कार
५) सांसारिक प्रेम
इस कहानी संग्रह में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी. जो ब्रिटिश सरकार को रास नहीं आयी. और उन्होंने “सोजे वतन” की सारी उपलब्ध प्रतियाँ जब्त करके नष्ट कर दी और “नवाब राय” के लेखन कार्य पर कडी रोक लगादी. इसी कारणवश लेखक “नवाब राय” अपना नाम बदलकर “प्रेमचंद “नाम से लिखने लगे. प्रेमचंद यह नाम रखने की सलाह उनके मित्र दयानारायन निगम ने दी थी.
“प्रेमचंद नाम” से लिखित उनकी पहली कहानी शीर्षक “बड़े घर की बेटी” यह था. जो १९१० में प्रकाशित हुई थी. वैसे तो उनकी सभी कहानियाँ हिंदी व उर्दू में प्रकाशित हेई है. लेकिन १९१८ प्रकाशित उनका पहला हिंदी भाषी उपन्यास “सेवासदन” ने प्रेमचंद को विशेष ख्याति दिलाई. उसके उपरांत वह आधुनिक हिंदी साहित्य के सम्राट बनकर उभरे.
प्रेमचंद ने अपने जीवन में विविध विषयों पर उपन्यास, कहानिया, नाटक, पत्र, बाल साहित्य और निबधों का लेखन किया. किन्तु जो प्रतिष्ठा उन्हें उपन्यास व कहानियों द्वारा मिली. वो उन्हें किसी अन्य रचना से प्राप्त नहीं हुई.
मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएँ – Munshi premchand ka jeevan parichay
प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यास तथा उनके लघु सारांश
असरारे मआबिद : यह उपन्यास ८ अक्टूबर १९०३ से लेकर १ फरवरी १९०५ तक, एक उर्दू धारावाहिक के रूप में “आवाज खल्के” नामक साप्ताहिक में प्रकाशित किया गया था. इसमें धार्मिक स्थलों में विलासिता से भरा हुआ जीवन एवं धार्मिक पाखंडों का पर्दाफाश किया है. यह प्रेमचंद का सबसे पहला उर्दू उपन्यास है. जिसे हिंदी भाषा में देवस्थान रहस्य नाम से प्रकाशित किया था.
हमखुर्मा व हमसवाब : यह उपन्यास एक युवा प्रेमी जोड़े की कहानी है. किरदारों के नाम है “अमृतराय और प्रेमा”. कहानी में लड़की “प्रेमा”, अमृतराय से बेइंतहा मोहब्बत करती है. लेकिन अमृतराय न चाहते हुए भी अपने प्यार को छोड़ रहे है. यह दिलचस्प उपन्यास अंत तक पढने के लिए मजबूर कर देता है.
हमखुर्मा व हमसवाब को पूरा पढे बिना आप रह नहीं पाओगे. १९०७ में प्रकाशित इस उर्दू उपन्यास का हिंदी संस्करण “प्रेमा” नाम से उपलब्ध है. जो हमारे लिए इंटरनेट पर मुफ्त में पढने के लिए उपलब्ध है.
प्रेमाश्रम : प्रेमचंद ने इस उपन्यास को पहले ‘गोशाए-आफियत’ नाम से उर्दू भाषा में लिखा था. लेकिन उन्होंने इसे सबसे प्रथम हिंदी भाषा में ‘प्रेमाश्रम’ शीर्षक से १९२२ में प्रकाशित किया. ये वो समय था जब भारत में “किसान आंदोलन” हो रहे थे. इसी कारण यह उपन्यास किसान बधुओं को समर्पित था. जो उनकी खेती बाड़ी की समस्याओं के संदर्भ में था.
किसान जीवन पर लिखा गया मुंशी प्रेमचंद का यह पहला उपन्यास था. जिसमे जमींदार, ताल्लुकेदार, पुलिस और अन्य सरकारी मुलाजिम जैसी सभी की सामाजिक भूमिका व उससे भारत के किसान पर पडने वाले प्रभाव का विवरण था.
रंगभूमि : यह उपन्यास १९२५ में प्रकाशित किया गया था. रंगभूमि का नायक एक अँधा गरीब भिखारी है, जिसका नाम “सूरदास” होता है. इसमें भारत जब अंग्रजो के अधीन था. उस काल की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक समस्याओं का बखान है. उपन्यास में कथानायक सूरदास जीवन में आनेवाली. अनेकों बाधाओं को मुह तोड़ जवाब दते हुए आखिर में एक महाननायक बनकर उभरता है. इस उपन्यास को काफी बडी सफलता मिली. इसके लेखन के लिए प्रेमचंद को मंगलप्रसाद पारितोषिक भी मिला था.
निर्मला : सन १९२५ में इस उपन्यास को धारवाहिक के रूप में प्रकाशित किया गया था. निर्मला उपन्यास भी मुंशी प्रेमचंद की सबसे अधिक लोकप्रिय रचनाओं की सूचि में आता है. इसकी नायिका का नाम “निर्मला है. दहेज ना देने की कमजोरी की वजह से उसकी शादी कशोर अवस्था में ही एक बूढ़े आदमी से करावा दी जाती है. जो उसकी पिता की उम्र का होता है. और निर्मला को अपना जीवन दुख व बैचेनी में बिताना पड़ता है. यह उपन्यास पूरी तरह से नारी जीवन को समर्पित है.
रूठी रानी : इस उपन्यास में राजा की वीरता और उसके एक से ज्यादा विवाह करने के दुष्परिणाम बताए गए है. साथ ही इसमें राजदरबार में होनेवाली साजिश, उससे राज्य को होने वाले नुकसान एवं राजा की सामन्ती व्यवस्था के भीतर स्त्री पर होनेवाले अत्याचार. के साथ और भी बहुत सी चीजों के बारे में लिखा गया है. रूठी रानी यह उपन्यास १९०७ में अप्रैल से अगस्त महीने तक प्रकाशित हुआ था.
सेवासदन : इस उपन्यास का मुख्य केंद्र बिंदु स्त्री समस्या है. मुंशी प्रेमचंद ने इसमें दहेज प्रथा, दहेज न देने पर बहु/पत्नी पर होने वाले जुल्म, पति द्वारा त्याग किए जाने पर अबला नारी का गलत कदम उठाना. इस तरह के बहुत से विषयों पर सेवासदन में लिखा गया है. यह प्रेमचंद का हिंदी भाषा में प्रकाशित होनेवाला पहला उपन्यास है. यह उपन्यास प्रेमचंद के ‘बाजारे-हुस्न’ नामके उर्दू उपन्यास का हिंदी संस्करण है. जिसे १९१८ में प्रकाशित किया था.
कायाकल्प : यह उपन्यास प्रेमचंद द्वारा लिखे गए सभी उपन्यासों से भिन्न है. कायाकल्प आध्यात्मिक चीजों पर आधारित है. जिसमे पुनर्जन्म, भावी जन्म, चेतना, लोक, परलोक और चमत्कार के साथ भौतिक विषयों पर ज्ञान की रोशनी डाली गई है. जो पढने के लिए काफी रोचक और महत्वपूर्ण है. इस उपन्यास को मुंशी प्रेमचंद ने १९२६ में प्रकाशित किया था.
अहंकार : यह उपन्यास फ्रेंच साहित्य “थायस: अनातोल फ्रांस” का हिंदी संस्करण है. जिसका अनुवाद खुद प्रेमचंद ने किया था. और इसको “कायाकल्प” के साथ १९२६ में ही प्रकाशित किया गया था. यह उपन्यास आपको १८०० वर्ष पूर्व पहले की दुनिया की सैर पर ले जाता है. ये वो समय था जब अमिर लोग एक विलासिता जीवन जीते थे और गरीब जनता पर जुल्म ढाते थे. इस उपन्यास में हर तरह के लोगों का वर्णन पढ़ने को मिलता है, जैसे कोई प्रकृतिवादी होता है, कोई दुखवादी, कोई शंकावादी या कोई मायावादी होता है. यह उपन्यास इंटरनेट पर मुफ्त में पढने के लिए उपलब्ध है.
प्रतिज्ञा : इस उपन्यास का नायक “विधुर अमृतराय” है. जो एक विधवा स्त्री से शादी रचा कर. उसका जीवन सुखमय बनाने की इछा रखता है. दूसरी तरफ कथा की नायिका एक गरीब बेबस विधवा है. और समाज के कुछ निरंकुश भेड़िये उसकी बेबसी व गरीबी का फायदा उठाने की ताक में है. मुंशी प्रेमचंद ने ‘प्रतिज्ञा’ में एक विधवा महिला को बाहरी समाज में किस तरह अपना जीवन घुट-घुट कर जीना पड़ता है. इसका जीवित वर्णन अपने शब्दों में दिया है. यह उपन्यास उन्होंने १९२७ में प्रकाशित किया गया था. जिसकी समाज में काफी सराहना हुई.
गबन : मुंशी प्रेमचंद को मध्यम वर्गीय समाज की गहरी समझ थी. इस उपन्यास में रमानाथ और उसकी पत्नी जालपा के वैवाहिक जीवन का विवरण है. जिसमे बताया गया है की किस तरह एक मध्यम वर्गीय परिवार सिर्फ दिखावे के लिए. जरूरत से अधिक खर्चा करता है. इसी कारण कर्ज में डूब जाता है. जब पत्नी की फिजूल जरूरते आमदनी से पूरी नहीं होती. तब पति भ्रष्टाचार का सहारा लेने लगता है. “गबन” भी प्रेमचंद के प्रमुख उपन्यासों में से एक है. जिसे आज भी लोग पढ रहे है. “गबन” उपन्यास सन १९२८ में प्रकाशित किया गया था.
कर्मभूमि : इस उपन्यास को प्रेमचंद ने १९३२ में प्रकाशित किया था. “कर्मभूमि” एक राजनीतिक उपन्यास है, इस उपन्यास में मुंशी प्रेमचंद ने पारिवारिक समस्याओं को सुलझा रही आम जनता को “राजनीतिक आन्दोलन” में भाग लेते हुए कथित किया है. इसमें समाज की बहुत सी जटिल समस्याओं का वर्णन दिया हुआ है. उदाहरण के तौर पर – गरीबों की रहने के घर की समस्या, भारतीय नारी के मर्यादा की रक्षा और ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा भारतीय जनता का होनेवाले शोषण. मुंशी प्रेमचंद ने कर्मभूमि में क्रांति का पक्ष रखा है. जो उस समय की बहुत बडी बात थी.
गोदान : यह प्रेमचंद का “अंतिम पूर्ण उपन्यास” है. जिसका प्रकाशन १९३६ में हुआ था. “गोदान” उस समय के ग्रामीण जीवन की जीती जागती प्रतिमा है. इसमें २० वी शताब्दी के चौथे दशक के समाज का सच्चा वर्णन है. जिसमें गावं और शहर दोनों तरफ के जीवन की समस्याओं का उल्लेख हुआ है. गोदान में पति, पत्नी और ३ बच्चों का एक परिवार है. जिन्हें “गाय” पालने की गहरी तमन्ना होती है. अब वे किस तरह गाय को कर्जा लेकर खरीदते है. उसके उपरांत परिवार को कौन-कौनसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है यह आपको उपन्यास पढने से पता चल जाएगा. मुंशी प्रेमचंद का यह उपन्यास अमर माना जाता है. क्योंकि आज भी पूरी दुनिया में गोदान को गहरी रूचि से पढ़ा जाता है.
मंगलसूत्र : यह प्रेमचंद का “अंतिम अपूर्ण उपन्यास” है. जिसे उनके पुत्र अमृतराय ने पूरा किया था. इसका प्रकाशन अमृतराय ने पिता के देहांत के अनेक वर्षो पश्चात साल १९४८ में किया था. मंगलसूत्र एक साहित्यिक (लेखक) की जीवन कथा पर आधारित है. जिसमे प्रेमचंद ने एक लेखक के जीवन में आने वाली समस्याओं का वर्णन किया है. इस उपन्यास को वह खुदकी आत्मकथा के रूप में पूरा करना चाहते थे. लेकिन वे इसे कभी पूरा कर न सके.
किशना : यह उर्दू भाषी उपन्यास मासिक पत्रिका “ज़माना” में साल १९०७ के अक्तूबर महीने में प्रकाशित हुआ था.
जलवए ईसार: यह उर्दू उपन्यास १९२१ में प्रकाशित किया गया था.
प्रेमचंद का कहानी लेखन में योगदान – munshi premchand ka jeevan parichay
प्रेमचंद एक आम आदमी परिवार में जन्मे थे. बचपन से ही उन्होंने ने पैसे की तंगी, मनचाही चीजों के लिए तरसना या उनका न मिलना इन सभी मध्यम वर्गीय परेशानियों को नजदीक से महसूस किया था. ७ साल की उम्र में माँ के गुजर जाने के बाद प्रेमचंद को सौतेली माँ से प्यार की जगह नफरत मिलती रही. इस तरह प्रेमचंद का बचपन दु:खी व विकट मनोदशा में गुजरा था.
अकेलेपन में उन्होंने किताबों को अपना साथी बनाया था. खाली समय में वह पढने में ही व्यस्त रहते थे. उनकी पढने की आदत व बचपन से जवानी तक मिले हुए कडवे अनुभव ही. एक बेजोड़ व अद्भुत सच्चाई बनकर. उनके लेखन शैली में उतर गए थे. इसलिए प्रेमचंद की कहानियों में उनके गहरी सच्चाई की झलक साफ-साफ नजर आती है.
“दुनिया का सबसे अनमोल रतन” इस कहानी को उनकी पहली कहानी माना जाता है. जो जून 1908 सोजे वतन के संग्रह में प्रकाशित हुई थी. लेकिन इस बात पर कई लोगों की अलग राय है. वे “सांसारिक प्रेम और देश-प्रेम” इस कहानी को प्रेमचंद की पहली कहानी मानते है. जो अप्रैल १९०८ को उर्दू पत्रिका ज़माना में पहले ही प्रकाशित हुई थी.
प्रेमचंद के जीवनकाल में उन्होंने तकरीबन १० कहानी संग्रह प्रकाशित किए थे. जिनके नाम कुछ इस प्रकार है. १) सोजे वतन २) सप्त सरोज ३) नवनिधि ४) प्रेमपूर्णिमा ५)प्रेम-पचीसी ६)प्रेम-प्रतिमा ७)प्रेम-द्वादशी ८)समरयात्रा ९) मानसरोवर: भाग १ व भाग २ और १०) कफन.
प्रेमचंद की कहानियों में एक और विशेष चीज हमे “देखने” मिलती है. वह मध्यम वर्ग जनता के भिन्न-भिन्न चित्रों का इस्तेमाल करते है. कहानी के नायक/ नायिका और किरदारों को कुछ इस प्रकार लिखते है की पढनेवाले कहानियों को अपने आस पास हो चुकी, हो रही या होनेवाली घटनाओं से जोड़ने लगते है. यही स्पष्ट कारण है, जिस वजह से मुंशी प्रेमचंद की कहानिया आज भी अमर है. मृत्य उपरांत प्रेमचंद की कहानियाँ “मानसरोवर” नाम से ८ खंडों में प्रकाशित हुई थी.
प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियों के नाम
मुंशी प्रेमचंद का नाटक क्षेत्र में योगदान – munshi premchand ki jivani
प्रेमचंद द्वारा लिखित नाटकों में समाज में हो रही तत्कालीन घटनाओं की छवि होती थी. १९२३ में उन्होंने शीर्षक “संग्राम “ यह नाटक लिखा था. इसमें किसानों की कर्ज की जरूरतें, कर्ज लेने के कारण, कर्ज ना चुकाने की वजह से उगाई हुई फसल को आधे दामों पर बेचने की नौबत. इन जैसे विषयों पर लिखा था. इस प्रकार मुंशी प्रेमचंद ने किसन जीवन को केंद्र में रखकर “संग्राम “नाटक को एक जीवित स्वरूप दिया था. लेकिन यहां पर एक बात हम जरुर कहना चाहेंगे. मुंशी प्रेमचंद ने अपने जीवन में जो शोहरत और रुतबा उपन्यास और कहानिया लिखकर कमाया है. वह उन्हें किसी दुसरे साहित्य से नहीं मिला.
प्रेमचंद द्वारा लिखित नाटकों के नाम
- संग्राम (१९२३)
- कर्बला (१९२४)
- प्रेम की वेदी (१९३३)
प्रेमचंद के पत्र, बाल साहित्य व निबंध
प्रेमचंद के सुपुत्र अमृतराय ने अपने पिता के कथेतर रचनाओं के संग्रह का संपादन व प्रकाशन किया था. जिसका शीर्षक रखा था “प्रेमचंद : विविध प्रसंग” यह दो खण्डों में प्रकाशित किया गया था. इसके पहले खंड में मुंशी प्रेमचंद के वैचारिक निबंध व आदि समाविष्ट थे. दुसरे खंड में प्रेमचंद द्वारा लिखित विविध पत्रों का संग्रह था.
प्रेमचंद के द्वरा लिखित निबंध, संपादकीय साहित्य, टिप्पणियाँ व अदि साहित्य का संग्रह “प्रेमचंद के विचार” नाम से प्रकाशित किया था.
प्रेमचंद द्वारा लिखित बाल साहित्य के नाम
- रामकथा
- कुत्ते की कहानी
- दुर्गादास
“दुर्गादास: यह एक उपन्यास है, लेकिन इसे बाल साहित्य का दर्जा दिया गया है. क्योंकि यह एक वीर कथा है, जिसमे बच्चों को बेहतर नैतिक सीख मिलती है.
प्रेमचंद द्वारा लिखित निबंधों के शीर्षक
मुंशी प्रेमचंद के जीवन पर आधारित ३ प्रमुख रचनाएँ | munshi premchand ki jivani
- प्रेमचंद घर में : इस पुस्तिका को प्रेमचंद की दूसरी बीवी शिवरानी देवी ने लिखा था. इसमें उन्होंने मुंशी प्रेमचंद यह शख्सियत अपने परिवार, घर व रिश्ते नातों के नजरिये से कैसी है. इस विषय में लिखा है. यह किताब १९४४ में प्रकाशित हुई थी. लेकिन प्रेमचंद के नाती प्रबोध कुमार ने २००५ में इसे फिरसे प्रकाशित करवाया था.
- प्रेमचंद कलम का सिपाही : यह भी प्रेमचंद की जीवनी है. जिसे प्रेमचंद द्वारा लिखित पत्रों को आधार बनाकर लिखा गया है. इसके लेखक प्रेमचंद के सुपुत्र अमृतराय है एवं प्रकाशन वर्ष सन १९६२ है.
- कलम का मजदूर: प्रेमचंद की इस जीवनी की रचना मदन गोपाल ने की थी. जो की प्रेमचंद परिवार के सदस्य नही थे. इसका प्रकाशन साल १९६४ में हुआ था.
प्रेमचंद का सिनेमा और टेलीविजन क्षेत्र में योगदान
भारतीय सिनेमा एवं टीवी धारावाहिक में भी मुंशी प्रेमचंद का काफी बडा योगदान रहा है. उनकी लिखी कहानिया एवं उपन्यासों पर फिल्म तथा धारावाहिक भी बने है. जो उस समय काफी लोकप्रिय थे.
प्रेमचंद गुजरने के २ वर्ष उपरांत उनका मशहूर उपन्यास “सेवासदन” पर फिल्म बनी. जिमसे मुख्य किरदार सुब्बालक्ष्मी ने अदा किया था. इस फिल्म ने सफलता का असमान छुआ था.
२० वी शताब्दी के सर्वश्रेष्ट फिल्म निर्देशक सत्यजित रायने प्रेमचंद की लिखित २ कहानियों पर यादगार सिनेमा बनाये थी. जिसे दर्शकों ने काफी प्यार दिया. फिल्मों के नाम है. १९७७ में आयी शतरंज के खिलाड़ी और १९८१ में आयी सद्गति.
इनकी कहानिया हिंदी व उर्दू भाषा तक ही सिमित नहीं थी. १९७७ में प्रेमचंद की शीर्षक “कफ़न” कहानियों के संग्रह के आधार पर तेलगु भाषा में भी फिल्म बनी. उस फिल्म का नाम था “ओका ऊरी कथा” यह फिल्म सर्वश्रेष्ठ तेलुगू फिल्म के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित भी हुई थी. साल १९३६ में गोदान उपन्यास व १९६६ में गबन उपन्यास पर बनी फिल्मे भी काफी चर्चा में रही.
१९८० में डी डी नेशनल टीवी पर आनेवाली धारावाहिक “निर्मला” भी प्रेमचंद का उपन्यास “निर्मला” पर ही आधारित था.
इस तरह प्रेमचंद फिल्मी दुनिया में छोटे वा बडे दोनों पर्दोपर अपनी गहरी छाप छोड़ चुके हैं.
प्रेमचंद की अमर स्मृतियाँ – munshi premchand ka jeevan parichay
- मुंशी प्रेमचंद के सम्मान में ३१ जुलाई १९८० को उनकी जन्म शताब्दी के अवसर पर भारतीय डाक विभाग ने ३० पैसे कीमत का डाक टिकट जारी किया था.
- मुंशी प्रेमचंद गोरखपुर के जिस स्कूल में अध्यापक की नौकरी करते थे, वहां पर “प्रेमचंद साहित्य संस्थान” की स्थापना की गई है. जिसे आप आज भी जाकर देख सकते है.
- प्रेमचंद की १२५ वी सालगिरह के अवसर पर सरकार द्वारा घोषणा की गई थी की उनके जन्म स्थान लमही गाँव में मुंशी प्रेमचंद का स्मारक और शोध एवं अध्ययन संस्थान की स्थापना की जाएगी.
मुंशी प्रेमचंद के अनमोल वचन | Munshi Premchand Quotes in hindi
उपन्यास सम्राट प्रेमचंद का निधन
प्रेमचंद खुद को कलम का मजदुर मानते थे. उनका कहना था, जिस दिन वह कुछ लिखते नहीं, उन्हें अन्न ग्रहण करने का कोई अधिकार नहीं. और यह बात उन्होंने साबित भी की. प्रेमचंद अपने जीवन के अतिंम दिनों में भी “मंगलसूत्र” उपन्यास की रचना कर रहे थे. लेकिन वह कभी इसे पूरा नहीं कर पाए और ८ अक्टूबर १९३६ को किसी लम्बी बीमारी के चलते प्रेमचंद का निधन हो गया. मुंशी प्रेमचंद के गुजर जाने के बाद उनके पुत्र अमृतराय ने उनका अधुरा उपन्यास मंगलसूत्र को पूरा किया था.
Munshi Premchand FAQs – मुंशी प्रेमचंद के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
Q1. प्रेमचंद के अंतिम उपन्यास का नाम क्या है?
Ans- गोदान यह मुंशी प्रेमचंद का अंतिम “पूर्ण” उपन्यास है. और मंगलसूत्र यह उनका अंतिम “अपूर्ण” उपन्यास है. जिसे प्रेमचंद के निधन के बाद उनके पुत्र अमृतराय ने पूर्ण किया है.
Q2. प्रेमचंद की शिक्षा क्या थी?
Ans- प्रेमचंद ने १९१९ में अंग्रेजी, फारसी और इतिहास लेकर बैचलर ऑफ आर्ट की उपाधि प्राप्त की हुई थी.
Q3. प्रेमचंद का पहला उपनाम कौन सा था?
Ans- प्रेमचंद जी ने जब लेखन कार्य की शुरुआत की थी तब वह “नवाब राय” नाम से मशहूर थे. अर्थात उनके लेख, उपन्यास एवं कहानिया “नवाब राय” नाम से प्रकाशित होते थे.
Q4. प्रेमचंद की सबसे मशहूर कृति क्या है?
Ans- “गोदान” यह प्रेमचंद की सबसे मशहूर कृति मानी जाती है. गोदान यह उनका अंतिम पूर्ण उपन्यास है. जिसे दुनियाभर में आज भी बडी रूचि से पढ़ा जा रहा है.
Q5. प्रेमचंद की पहली रचना कौन सी है?
Ans- “असरारे मआबिद’ यह उपन्यास प्रेमचंद की पहली रचना है. जिसे १९०३ में एक धारावाहिक स्वरूप में प्रकशित किया गया है. जिसे काफी बेहतर सफलता मिली थी.
Q6. प्रेमचंद कौन से युग के लेखक थे?
Ans- कहानिया,उपन्यास एवं अदि हिंदी साहित्य के लेखन क्षेत्र में साल १९१८ से १९३६ के समय कालखडं को “प्रेमचंद युग” कहा जाता है.
Q7. मुंशी प्रेमचंद की कुल कितनी रचनाएं हैं?
Ans- मुंशी प्रेमचंद ने कुल १५ उपन्यास, ३०० से अधिक कहानियाँ, ३ नाटक, १० अनुवाद, ७ बाल-पुस्तकें, हजारों पृष्ठों के लेख व अन्य साहित्यों की रचना की है.
Q8. प्रेमचंद के चार उपन्यास कौन-कौन से हैं?
Ans- प्रेमचंद के चार उपन्यास निम्नलिखित है:
१. असरारे मआबिद
२. हमखुर्मा व हमसवाब
३. प्रेमाश्रम
४. रंगभूमि
Q9. प्रेमचंद को कौन कौन से पुरस्कार मिले हैं?
Ans- प्रेमचंद के पुरस्कार निम्नलिखित है:
- ३१ जुलाई १९८० प्रेमचंद के सम्मान में उनकी जन्म शताब्दी के अवसर पर भारतीय डाक विभाग ने ३० पैसे कीमत का डाक टिकट जारी किया था.
- गोरखपुर में मुंशी प्रेमचंद के नाम से “प्रेमचंद साहित्य संस्थान” की स्थापना की गई है.
- प्रेमचंद के गाँव लमही में उनका स्मारक और शोध संस्था की सरकार द्वरा स्थापना की जानेवाली है.
Q10. उपन्यास सम्राट के नाम से किसे जाना जाता है?
Ans- प्रेमचंद को उपन्यास सम्राट नाम से भी पहचाना जाता है. यह नाम उन्हें बंगाल के मशहूर उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने दिया था.
Q11. प्रेमचंद की माता का नाम क्या था?
Ans- प्रेमचंद की माता का नाम आनन्दी देवी था.
Q12. अमृत राय ने प्रेमचंद को कौन सी उपाधि दी थी?
Ans- अमृत राय ने अपने पिता को “कलम का सिपाही” नामकी उपाधि दी थी.
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