सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय | Subhadra kumari chauhan biography in hindi

सुभद्रा कुमारी चौहान भारत की विख्यात कवयित्री एवं कहानीकार थी. वह एक देशभक्त कवयित्री होने के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानी भी थी. १८ मार्च १९२३, जबलपुर में हुए. झंडा सत्याग्रह में सहभागी होनेवाली वह पहली महिला सत्याग्रही थी. जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पडा था.

देश की आझादी में असहयोग आंदोलन से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन तक सुभद्रा कुमारी चौहान की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है. आज इस लेख में मध्यम से हम सुभद्रा कुमारी चौहान के जीवन से परिचित होने वाले है. आपके लिए इसी लेख के अंत में उनकी लिखी कुछ प्रसिद्ध कहनियों के लघु सारांश भी दिए है.

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1 सुभद्रा कुमारी चौहान की जीवनी – Subhadra kumari chauhan biography in hindi

सुभद्रा कुमारी चौहान की जीवनी – Subhadra kumari chauhan biography in hindi

नाम सुभद्रा कुमारी चौहान
जन्म तिथि १६ अगस्त १९०४
जन्म स्थान इलाहाबाद, निहालपुर गाँव
मृत्यु तिथी१५ फरवरी १९४८
मृत्यु स्थान मध्य प्रदेश,सिवनी
मृत्य कारण वाहन दुर्घटना.
व्यवसायकवयित्री एवं कहानीकार
भाषा हिंदी
प्रसिद्ध रचनाएँझाँसी की रानी(कविता) बिखरे मोती (कहानी संग्रह)
शिक्षा ९ वी कक्षा पास
विद्यालय नामक्रास्थवेट गर्ल्स स्कूल
नागरिकता भारतीय
पिता ठाकुर रामनाथ सिंह
माता धिराज कुंवर <-Ref-मिला तेज से तेज (BIO)
जीवनसाथीठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान
संतान 5
बेटेअजय चौहान, विजय चौहान और अशोक चौहान
बेटीसुधा चौहान और ममता चौहान

सुभद्रा कुमारी चौहान आरंभिक जीवन – Subhadra Kumari Chauhan Early Life

सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म १६ अगस्त, १९०४ इलाहाबाद के निहालपुर गाँव में नाग पंचमी के दिन हुआ था. उनकी माता का नाम  एवं पिताजी का नाम ठाकुर रामनाथ सिंह था. पेशे से वह जमींदार थे. सुभद्रा कुमारी की ३ बहने व २ भाई थे.

उनके पिता साक्षरता के प्रति एक जागरूक इंसान थे. उन्हीं की कडी निगरानी में सुभद्रा की शिक्षा आरंभ हुई. उनका स्वभाव बचपन से ही साहसी व विद्रोही था. सुभद्रा कुमारी चौहान को निरक्षरता, जातीभेद, अंधविश्वास व अंधभक्ति से चिढ थी. इसके विरुद्ध वह हमेशा लढती थी.

उनके इसी स्वभाव की वजह से आगे चलकर वह अंग्रेजो के विरुद्ध लढी. सुभद्रा बचपन से ही तीक्ष्ण बुद्धि वाली थी. वह बाल्यकाल से ही हिंदी साहित्य में गहरी रूचि रखती थी.

सुभद्रा कुमारी चौहान की शिक्षा – Subhadra Kumari Chauhan’s education

सुभद्रा कुमारी चौहान का विद्यार्थी जीवन प्रयागराज मे ही बिता था, पिता रामनाथ सिंह ने उनका दाखिला “क्रास्थवेट गर्ल्स स्कूल” में करवाया था. जो सिर्फ महिलाओं का स्कूल था. स्कूल के भीतर उन्हें खले, कूद की पूरी आजादी मिलती थी. सुभद्रा के कवयित्री जीवन की शुरवात स्कूल के समय से ही हो चुकी थी. अपनी लिखी कविताओं की वजह से वह पुरे स्कूल में मशहुर थी.

उस समय वह अधिकतर कविताओं की रचना. घर से स्कूल घोड़ागाड़ी में आते-जाते ही किया करती थी. उन्हें किसी भी कविता की रचना के लिए दिमाग पर ज्यादा जोर नहीं देना पड़ता था. वह बडेही आसानी से कवताएँ लिख दिया करती थी. सुभद्रा स्कूल की पढाई में भी अव्वल थी. इसके लिए उन्हें हर साल इनाम भी मिलते थे.

क्रास्थवेट गर्ल्स स्कूल में उनकी मुलाकात महादेवी वर्मा से हुई थी. वह सुभद्रा की जूनियर थी. उनके अलावा महादेवी वर्मा भी स्कूल में अपनी कवताओं के लिए पहचानी जाती थी.आगे चलकर वह दोनों पक्की सहेलियाँ बनी व कविता, कहानिया व आदि हिन्दी साहित्य में सफलता प्राप्त की. साल १९१९ में ९ वी कक्षा की पढाई पूरी करने के बाद सुभद्रा कुमारी चौहान का विवाह हो गया.

सुभद्रा कुमारी चौहान का वैवाहिक जीवन – Subhadra Kumari Chauhan’s married life

“सुभद्रा कुमारी” का ब्याह सन १९१९ में खंडवा के “ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान” हुआ था. यह विवाह उन दोनों की रजामंदी से ही हुआ था. ठाकुर लक्ष्मण सिंह पेशे से एक नाटककार थे. ब्याह होने के बाद वह अपने पति के साथ जबलपुर रहने आ गई. सुभद्रा कुमारी सास के कायदे में रहकर याफिर घर की चौखट के भीतर जीवन बिताने के लिए नहीं बनी थी.

उनके अंदर कवयित्री प्रतिभा की एक गहराई थी. और अब जीवनसाथी  के रूप में उन्हें एक ऐसी शक्शीयत मिली थी. जो उनकी परिभा को और निखारने के लिए प्रेरित कर रही थी. शादी के बाद भी सुभद्रा कुमारी का लेखन कार्य जारी रहा. कविता एवं कहानियों में वह अपने मन कि भावनाओं को एवं सामाजिक स्थिति को  बडी कुशलता से व्यक्ति करती थी.

जिसे उनके चाहने वाले दिल से पसंद करते थे. सुभद्रा कुमारी चौहान और ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान ने शादी महज डेढ़ साल बाद ही अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सदस्यता स्वीकारली. और वह दोनों भी सच्चे मन से सत्याग्रह में शामिल हो गए थे. उन्होंने अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण अवसर जेल में ही बिताए है.

उनकी ५ संतान हुई २ कन्या ३ कुमार नाम : सुधा, ममता, अजय, विजय और अशोक. सुभद्रा कुमारी चौहान का स्वभाव स्नेह और गंभीरता का अनोखा संगम था. उन्होंने बडे ही सहज व निश्छल भाव से देश और परिवार की सेवा में खुदको समर्पिकर दिया था.

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सुभद्रा कुमारी चौहान का असहयोग आंदोलन में योगदान

साल १९२१ में भारत में महात्मा गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन हो रहा था. देश के प्रति अपने कर्तव्य को समझते हुए. सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपने पति के कांग्रेस की सदस्यता स्वीकारली थी. उन्होंने काफी सालों तक मध्य प्रान्त की असेम्बली में कांग्रेस कि सदस्य रहकर. समाजसेवा और राजनीती में अपना अखंड योगदान दिया.

असहयोग आंदोलन में उन्हें “कर्मवीर” पत्रिका के संपादक माखनलाल चतुर्वेदी का अमूल्य मार्गदर्शन प्राप्त हुआ था. जिससे सुभद्रा कुमारी को आगे बढने में मदत मिली. वह घर-घर में जाकर कांग्रेस का संदेश पहुंचती थी. गली,नुक्कड़ व चौराहे पर खडे रहकर अपनी बुलंद आवाज में नागरिकों को सत्याग्रह में सहभागी होने के लिए आवाहन करती थी.

१८ मार्च १९२३, जबलपुर में झंडा सत्याग्रह हुआ था. सुभद्रा कुमारी चौहान इसमें भाग लेने वाली देश की पहली सत्याग्रही महिला बनी थी. उन्हें साल 1923 से 1942 के भीतर दो बार करावास की सजा हुई. जो उन्होंने हसते-हसते कबूल की थी. कारावास की कठोर सजा को भुगतने के बाद भी वह रुकी नहीं. बल्कि उन्होंने आंदोलन में अपना सहभाग जारी रखा.

वह नए युवक व युवतियों को आंदोलन में शामिल होने के लिए हरदम प्रोत्साहित करती थी. इसके लिए सभाएँ होती थी और उन सभाओं में सुभद्रा कुमारी भी बोलती. उनकी भाषा शैली व वक्तृत्व कौशल को देखते हुए. टाइम्स ऑफ इंडिया के एक पत्रकार ने उनका उल्लेख सरोजिनी नाम से किया था.

वह एक लेखिका होने के साथ-साथ देश की आझादी के लिए लढने वाली योद्धा भी थी. इस सत्याग्रह में उन्होंने एक देशभक्त कवयित्री के रूप में विशेष भूमिका निभाई थी. उनकी लिखी कविताएँ वीर रस से परिपूर्ण होती है. उनके द्वरा किए जाने वाले भाषण व सवांद में ऐसी ही ओजस्वी कविताएँ होती थी.

जिसे सुनकर देश के नागरिकों की रग-रग में देशभक्ति की ज्वाला भडक उठती थी. वह वतन के लोगों को विदेशी वस्तुओं को छोड़कर स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने के लिए बढ़ावा देती थी. सत्याग्रह के दौरान ही उन्होंने अपने बच्चों का पालन पोषण करते हुए, समाज एवं राजनीती के लिए अपना अमूल्य योगदान दिया.

सुभद्रा कुमारी चौहान आजादी मिलने के बाद भी जनसेवा कर रही थी. साल १९४७ को जब हमारा देश आझाद हुआ था. उस वक्त देश के कोने-कोने में जश्न का मौहोल था, लेकिन उन्होंने उस दिन भेड़ाघाट में जाकर खान के मजदूर परिवारों को कपड़े व मिठाई बाँटी थी.

सुभद्रा कुमारी चौहान का साहित्यिक परिचय

कविता लेखन योगदान

सुभद्रा कुमारी चौहान को बचपन साहित्य लेखन में आत्म रुचि थी. साल १९१३ में जब वह ९ वर्ष उम्र की थी, तभी उनकी पहली कविता प्रयागराज की प्रसिद्ध पत्रिका मर्यादा में प्रकाशित हुई थी. उस कविता का शीर्षक था “सुभद्राकुँवरि” यह कविता नीम के पेड कर लिखी गई थी. इस कविता में उन्होंने प्रकृति के प्रति अपना प्रेमभाव दर्शया है.

सुभद्रा कुमारी की साहित्यिक रचनाएँ हिंदी खड़ीबोली भाषा में है. जो पढने व समझने में सरल व स्पष्ट होती है. उनकी रचनाओं में तत्कालीन सामाजिक परिस्थिति के साथ-साथ भारतीय संस्कृति का सच्चा वर्णन होता था.

उन्हें एक देशभक्त कवि की उपमा भी दी गई है, १९१७ में हुए जलियाँवाला बाग हत्याकांड के अमानवीय नर नरसंहार से उनके मन को काफी ठेस पहुंची थी. उसके कुछ साल बाद सुभद्रा कुमारी चौहान ने “जलियाँवाले बाग में वसंत” की रचना की इस कविताने हर देशवासियों के मन में क्रांति की ज्वाला भडका दी थी. वीर रस से परिपूर्ण इस कविता की लोगों द्वरा काफी सराहना की गई.

उनका पहिला कविता संग्रह “मुकुल” १९३० में प्रकाशित हुआ था. जिसे हिंदी साहित्य जगत में बेहतर सफलता मिली थी. विशेषता बाल-साहित्य अंतर्गत लिखी गई “झाँसी की रानी” यह कविता आज भी भारत देश के लोगों का कंठहार है.

इसी एक कविता की सफलता ने सुभद्रा कुमारी को भारतीय हिंदी सहित्य जगत में अमर बना दिया है. सुभद्रा कुमारी के २ कविता संग्रह प्रकाशित हुए थे. जिसमे कुल मिलकर ८८ कविताये थी. उन कविताओं की लिस्ट आगे दी गई है.

कविता संग्रह के नाम निम्नलिखित है

  • मुकुल
  • त्रिधारा

सुभद्रा कुमारी चौहान की ८८ कविताओं की सूची

  1. अजय की पाठशाला
  2. अनोखा दान
  3. अपराधी है कौन
  4. आराधना
  5. आहत की अभिलाषा
  6. इसका रोना
  7. उपेक्षा
  8. उल्लास
  9. करुण-कहानी
  10. कलह-कारण
  11. कुट्टी
  12. कोयल
  13. खिलौनेवाला
  14. चलते समय
  15. चिंता
  16. जल समाधि
  17. जलियाँवाला बाग में बसंत
  18. जाने दे
  19. जीवन-फूल
  20. झण्डे की इज़्ज़त में
  21. झाँसी की रानी की समाधि पर
  22. झांसी की रानी
  23. झिलमिल तारे
  24. ठुकरा दो या प्यार करो
  25. तुम-कितनी बार बुलाया तुमको
  26. तुम-जब तक मैं मैं हूँ
  27. नटखट विजय
  28. नीम
  29. पतंग
  30. परिचय
  31. पानी और धूप
  32. पारितोषिक का मूल्य
  33. पुत्र-वियोग
  34. पुरस्कार का मूल्य
  35. पुरस्कार कैसा
  36. पूछो
  37. प्रतीक्षा
  38. प्रथम दर्शन
  39. प्रभु तुम मेरे मन की जानो
  40. प्रियतम से
  41. फूल के प्रति
  42. बालिका का परिचय
  43. भ्रम
  44. मत जाओ
  45. मधुमय प्याली
  46. मनुहार
  47. मातृ-मन्दिर में
  48. मातृ-मन्दिर में-1
  49. मातृ-मन्दिर में-2
  50. मातृ-मन्दिर में-3
  51. मानिनि राधे
  52. मुन्ना का प्यार
  53. मुरझाया फूल
  54. मेरा गीत
  55. मेरा जीवन
  56. मेरा नया बचपन
  57. मेरी कविता
  58. मेरी टेक
  59. मेरी प्याली
  60. मेरे पथिक
  61. यह कदम्ब का पेड़
  62. राखी
  63. राखी की चुनौती
  64. रामायण की कथा
  65. लोहे को पानी कर देना
  66. विजई मयूर
  67. विजयादशमी
  68. विजयी मयूर
  69. विदा
  70. विदाई
  71. विदाई-आशे ! किसी हरित पल्लव में जाओ
  72. विदाई-कृष्ण-मंदिर में प्यारे बंधु
  73. विस्मृत की स्मृति
  74. वीरों का कैसा हो वसंत
  75. वे कुंजें
  76. वेदना
  77. व्यथित हृदय
  78. व्याकुल चाह
  79. शिशिर-समीर
  80. सभा का खेल
  81. समर्पण
  82. साध
  83. सेनानी का स्वागत
  84. स्मृतियाँ
  85. स्वदेश के प्रति
  86. स्वागत
  87. स्वागत गीत
  88. स्वागत साज

बाल-साहित्य में योगदान

  • झाँसी की रानी
  • कदम्ब का पेड़
  • सभा का खेल

कहानी लेखन में योगदान

सुभद्रा कुमारी चौहान शुरुवात में सिर्फ कविताएं लिखती थी. लेकिन उस समय पत्रिकाओं के संपादक कविता प्रकाशन के लिए मेहनताना (पैसे) नहीं देते थे. वह गद्य रचना अर्थात कहानिया लिखने की मांग करते थे. और उसके लिए मेहनताना भी देते थे.

अनैतिक कृत्यों से समाज को उत्पन होनेवाली पीड़ा एवं अबला नारी पर होने वाले अत्याचार के विरुद्ध, अपनी भावनाओं को सुभद्रा व्यक्त करना चाहती थी.यह भी एक कारण था, जिसके लिए उन्होंने “गद्य लेखन” को एक उचित सुझाव के रूप में स्वीकार कर लिया.

राष्ट्रीय आंदोलन में सहभागी होने पर सुभद्रा कुमारी चौहान को कारावास की शिक्षा भी मिली थी. जेल से सजा काटकर लौटने के पश्चात उन्होंने ३ कहानी संग्रह प्रकाशित किए थे.

सुभद्रा कुमारी चौहान तीन कहानी संग्रहों के नाम

  • १९३२ – बिखरे मोती – १५ कहानिया.
  • १९३४ – उन्मादिनी – ९ कहानिया.
  • १९४७ – सीधे-साधे चित्र – १२ कहानिया.

इन तीन कहानी संग्रहों को मिलाकर. सुभद्रा कुमारी की कुल ४६ कहानिया प्रकाशित हुई थी. इन सभी कहानियों के नाम हम नीचे दे रहे है.  इमसे से कुछ मशहुर कहानियों के लघु सारांश भी इसी लेख के अंत में दिए हुए है. उसे भी आप जरुर पढे.

सुभद्रा कुमारी चौहान लिखित सभी कहानियों की सूची

बिखरे मोती

  1. भग्नावशेष
  2. होली
  3. पापीपेट
  4. मंझली रानी
  5. परिवर्तन
  6. दृष्टिकोण
  7. कदम्ब के फूल
  8. किस्मत
  9. मछुये की बेटी
  10. एकादशी
  11. आहुति
  12. थाती
  13. अमराई
  14. अनुरोध
  15. ग्रामीणा

उन्मादिनी

  1. उन्मादिनी
  2. असमंजस
  3. अभियुक्त
  4. सोने की कंठी
  5. नारी हृदय
  6. पवित्र ईर्ष्या
  7. अंगूठी की खोज
  8. चढ़ा दिमाग
  9. वेश्या की लड़की

सीधे साधे चित्र

  1. रूपा
  2. कैलाशी नानी
  3. बिआल्हा
  4. कल्याणी
  5. दो साथी
  6. प्रोफेसर मित्रा
  7. दुराचारी
  8. मंगला
  9. हींगवाला
  10. राही
  11. तांगे वाला
  12. गुलाबसिंह

अन्य कहानिया

  1. कान के बुंदे
  2. गौरी
  3. जम्बक की डिबिया
  4. तीन बच्चे
  5. देवदासी
  6. दुनिया
  7. दो सखियां
  8. बड़े घर की बात
  9. सुभागी
  10. एक्सीडेंट

सुभद्रा कुमारी चौहान पर लिखित साहित्य – Subhadra kumari chauhan biography in hindi

मिला तेज से तेज

इस जीवनी को सुभद्रा कुमारी चौहान बेटी “सुधा” ने लिखा था. सुधा कि शादी प्रेमचंद के बेटे अमृतराय से हुई थी. उस समय सुधा कोइ लेखक नहीं थी. लेकिन उनके पति अमृतराय थे. और उनके ही आग्रह पर सुधा ने इस जीवनी की रचना की थी. यह सुभद्रा कुमारी चौहान एवं ठाकुर लक्ष्मण सिंह की संयुक्त जीवनी है.

इस जीवनी के आरंभ में उन दोनों के परिवार के इतिहास से शुरवात हुई है. सुभद्रा एवं उनके पति के परिवार वालों ने उन दोनों को किन कठोर हालातों में पाल पोस कर बडा किया एवं उन दोनों की शादी कैसे हुई. इस बात का भी साफ-साफ वर्णन आपको इसमें पढने मिल सकता है.

मिला तेज से तेज में सुधा ने अपने माँ के राजनैतिक एवं देशभक्ति जीवन के सारे महत्वपूर्ण प्रसंगो पर बखुबी दिव्य रौशनी डाली है.

सुभद्रा कुमारी चौहान के रचनाओं की विशेषता

सुभद्रा कुमारी चौहान ने देश की सांस्कृतिक काव्य धारा में अपना बेजोड योगदान दिया है. जिसे भारतवर्ष हमेशा याद रखेगा. उन्होंने अपनी काव्य रचनाओं में सभी ९ रसों का बडीही सुदंरता से इस्तेमाल किया है. जिसे पाठकों ने खूब प्यार दिया. वह अपने मन उठनेवाली भावनात्मक तरंगो को कविता का स्वरूप देती थी.

सुभद्रा कुमारी चौहान की इसी खासियत की वजह से उनकी कवताएँ और कहानिया लगभग जीवित प्रतीत होती थी. उन्होंने अपनी रचनाओं में हिंदी खड़ीबोली का इस्तेमाल किया है. जिसमे आसन हिंदी शब्दों का प्रयोग होता है.

हिन्दी साहित्य के इतिहास को चार काल खंडो में विभाजित किया गया है.

  • आदिकाल
  • भक्तिकाल
  • रीतिकाल
  • आधुनिक काल

इसमे से आधुनिक काल को ३ युगों में (भाग) विभाजन होता है.

  • भारतेन्दु युग
  • द्विवेदी युग
  • छायावादी युग

इन तीन युगों मे से छायावादी युग में हिंदी साहित्य के गौरव शाली इतिहास के कवियों में सुभद्रा कुमारी चौहान का  नाम पूर्वप्रतिष्ठित है. उन्होंने देशभक्ति की भावना में वीरों का कैसा हो वसंत व  झाँसी की रानी जैसी अमर कविताएँ लिखी.

जब वह माता बनी तब ममता की भावना से प्रेरित होकर उन्होंने के बाल साहित्य की रचना की. आज भी उनकी रचनाओं को पढकर के सुभद्रा कुमारी चौहान को एक महान कवयित्री के रूप याद किया जाता है.

सुभद्रा कुमारी चौहान स्त्रियों की प्रेरणा

सन १९४१-४२ ,जबलपुर होनेवाली सभाओं में काफी भारी संख्या में महिलएं इकठ्ठा होती थी. स्त्रियों के इस जमावड़े के पीछे सुभद्रा कुमारी चौहान का ही विश्वास था. वह महिलाओं के लिए किसी नायिका से कम नहीं थी. उनके भीतर हिंदुस्तानी नारी कि सहनशीलता व मर्यादा का एक अनोखा संगम था. सुभद्रा कुमारी के निश्छल स्वभाव की वजह से उन्हें  नारी समाज का पूरा सहयोग प्राप्त था.

स्त्री साक्षरता, अंध प्रथा, पारंपरिक रूढ़िवाद, छुआछूत, कन्या भ्रूण हत्या इन जैसी और भी स्त्रियों की समस्या के लिए, वह हमेशा लढती थी. वह समजा की स्त्रीयों के दुःख व दर्द को अपना सा मानती थी. स्वधीनता संग्राम में महिलाओं में एक नया जोश व उमंग भरने के लिए. वह विशेष कविताएं भी लिखती थी.

उनमे से कुछ खास पंक्तिया यहाँ पर दे रहे है.

subhadra kumari chauhan

सुभद्रा कुमारी चौहान और महात्मा गांधी जी में वार्तालाप

१९२० – २१, असहयोग आंदोलन में शामिल होने के बाद ने सुभद्रा कुमारी चौहान ने साडी व स्त्री आभूषनों (गहने) का परित्याग कर दिया था. वह सिर्फ खादी से बनी हुई, बिना किनारे की सफेद धोती पहनती थी. वह अपने माथे पर सिंदूर भी नही लगाती थी. उनकी सादी-सरल वेशभूषा में देखकर, बापूजी ने पूछा की बहन! क्या तुम्हारा विवाह हुआ है?

गांधीजी के सवाल पर सुभद्रा कुमारी ने जवाब दिया, हाँ बापूजी मेरा विवाह हो चूका है. और उत्सुकता में उन्होंने यह भी बताया की मेरे साथ मेरे पति भी आंदोलन में शामिल हुए है. यह सुनकर बापूजी आश्वस्त तो हुए लेकिन कुछ हद तक वह नाराज भी हुए. बापूजी ने सुभद्रा को  डांटते हुए कहा. तुम्हारे माथे पर सिंदूर क्यों नहीं है? और तुमने चूड़िया क्यों नहीं पहनी, कल से आते वक्त तुम किनारे वाली साड़ी पहन कर आना.

सुभद्रा कुमारी चौहान के पुरस्कार व सम्मान – Subhadra Kumari Chauhan’s award and honor

  • साल १९३१ में सुभद्रा कुमारी चौहान को मुकुल – कविता संग्रह लिखने के लिए, सेकसरिया पारितोषिक से नवाजा गया था.
  • साल १९३२ में बिखरे मोती – कहानी-संग्रह के लिए, फिर एक बार उनको ही सेकसरिया पारितोषिक का सम्मान प्राप्त हुआ था.
  • साल १९७६ में ६ अगस्त के दिन भारतीय डाकतार विभाग की तरफ से सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में २५ पैसे का डाक जारी किया गया था.
  • २८ अप्रैल २००६ सुभद्रा कुमारी चौहान की देशभक्ति भावना को सम्मानित करने हेतु. भारतीय तटरक्षक दल ने एक नए नियुक्त तटरक्षक जहाज को सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम दिया है.

सुभद्रा कुमारी चौहान निधन – Subhadra Kumari Chauhan death

१४ फरवरी १९४८, नागपुर शिक्षा विभाग की एक सभा में अपनी उपस्थिति दर्ज करने के बाद. १५ फरवरी १९४८ बसंत पंचमी के दिन सुभद्रा कुमारी चौहान कार में अपने घर जबलपुर लौट रही थी. उनकी सेहत के खातिर डॉक्टर ने उन्हें रेल यात्रा ना करने की सलाह दी थी. इसीलिए वह कार से सफर कर रही थी.

उस वक्त कार उनका सुपुत्र चला रहा था. सुभद्रा कुमारी ने देखा की उनके मार्ग में सडक पर कुछ मुर्गी के चूजे चल रहे  है. और उनके ही प्राण बचाने हेतु, हड़बड़ी में सुभद्रा कुमारी ने अपने बेटे से चूजों को बचाने के लिए कहा. उन्हें बचाते हुए तेजी से उनकी कार चूजो के बगल से काटते हुए सडक के नीचे उतरते हुए एक पेड से टकरा गई.

इस हादसे में सुभ्रदा उसी वक्त बेहोश हो गई. बाद में उन्हें नजदीकी अस्पताल में ले जाने पर, वहा के डॉक्टर ने सुभद्रा कुमारी को चौहान मृत घोषित कर दिया. इस तरह अकस्मात कार दुर्घटना के कारण एक महान कवयित्री के जीवन का अंत हो गया.

सुभद्रा कुमारी चौहान की मशहुर कहानियों के लघु सारांश.

1) भग्नावशेष : यह कहानी एक प्रेमी युवक की है. जिसे कवताएँ पढने व सुनने में विशेष रूचि होती है. एक दिन सफर के दौरान वह एक कवी समेल्लन में जाता है. वहां पर उसे एक युवा “कवयित्री” की कवताएँ बहुत पसंद आती है. अगले ही दिन वह उस कवयित्री के घर उससे मिलने पहुंचता है. उन दोनों में काफी अच्छी पहचाना हो जाती है.

संध्या भोजन के बाद कवयित्री को अलविदा कहकर वह अपने आशियाने पर लौट जाता है. अब वह युवक पत्रिकाओं में छपने वाली उस कवयित्री की कविताये पढने में काफी रूचि दिखाने लगता है. कुछ दिनों पश्चात युवक उस कवयित्री को काफी सारे खत भेजता है. किन्तु उसे दूसरी तरफ से किसी भी खत का जवाब नहीं मिलता. और उसकी कवताएँ भी छपना बंद हो जाती है.

इस बात से युवक बैचैन हो जाता है. असल में वह उस कवयित्री के प्यार में होता है. वह युवक कुछ दिनों बाद फिरसे उसके घर मिलने जाता है. लेकिन वहा उसे पता चलता है की कवयित्री के पिताजी के दिहांत के बाद, वह अपने मामा के घर जा चुकी है. निराश युवक उसे ढूंढने की बहुत कोशिश करता है. लेकिन ऐसा कर नहीं पाता.

कहानी के अंत में १० साल बाद युवक एक रेल यात्रा के दौरान स्टेशनपर उसी  कवयित्री से मिलता है. उस समय कवयित्री की शादी एक अधेड़ उम्र के इंसान से हो चुकी होती है. वह दोनों एक दुसरे को पहचान लेते है. लेकिन अब वह युवक अपने प्यार का इजहार नहीं कर सकता था. सुभद्रा कुमारी चौहान इस कहानी में एक प्रेमी युवक की मन स्थिति के विषय में बताया है. कैसे वह कहानी के अतंतक प्यार का इजहार कर नहीं पाता.

2) पापी पेट: यह कहानी उस समय की है. जब भारतीय लोग ब्रिटिश सरकार के पुलिस दल में काम करते थे. कहानी में स्वराज के अधिकार के लिए हो रही एक सभा के दौरान, अंग्रेज सरकार के आदेश से भारतीय लोगों पर लाठी चार्ज होता है. वह लाठी चार्ज करने वाले और कोई नहीं. बल्कि भारतीय नागरिक होते है.

जो पुलिस की नौकरी की वजह से अपने ही लोंगो को बेदर्दी से घायल करते है. लेकिन बाद में उन्हें अपने इस घृणित कार्य का बहुत पश्चाताप होता है. सुभद्रा कुमारी चौहान लिखित इस कहानी का तात्पर्य यह सब उन्होंने अपनी नौकरी के लिए अर्थात पापी पेट को भरने के लिए करना पड़ता है.

3) परिवर्तन : यह कहानी धन और बल के नशे में चूर एक आदमी की है. जिसका नाम है ठाकुर खेतसिंह, उसके कृत्यों से पूरा गाँव परेशान होता है. ठाकुर खेतसिंह गाँव की बहु बेटियों को बलपूर्वक अगवा करके उनका उपभोग करता था. उसके इसी स्वभाव से तंग आकार उसके रिश्तेदार भी उससे दुरी बना कर रहते है.

एक दिन ठाकुर खेतसिंह का भाई हेतसिंह उसके अत्याचार से तंग आकर, आवेश में उसे मारने की कोशीश करता है. लेकिन वह पापी बच जाता है. और हेतसिंह को जेल हो जाती है. ठाकुर खेतसिंह के जीवन में बदलाव तब आता है. जब वह भोगविलास के लिए अनजाने में अपनी बुआ की लड़की को ही उठवाता है.

उसके बाद ठाकुर खेतसिंहके जीवन में परिवर्तन आजाता है और वह अच्छा आदमी बन जाता है. सुभद्रा कुमारी चौहान की इस कहानी में बताया गया है की हर इंसान के जीवन के एक ऐसा पल आता है जब उसके जीवन व स्वभाव में परिवर्तन होता है.

4) दृष्टिकोण : यह कहानी एक बाल विधवा नारी के बारे में समाजे के दृष्टिकोण के विषय में है. कथा की नायिका निर्मला का दृष्टिकोण पावन होता है. वह बुराई में भी अच्छाई देखती रहती है. कहानी में एक बाल विधवा लडकी का गर्भवती होने के कारण समाज व पति द्वरा त्याग कर दिया जाता है. और निर्मला अपने परिवार के विरुद्ध जाकर एक उसकी मदत करती है.

इस अच्छे कार्य के लिए भी निर्मला को अपने पति की मार व सांस का गुस्सा सहन करना पडता है. सुभद्रा कुमारी की इस कहानी में इंसानों के दृष्टिकोण के विषय में समझाया गया है. किस तरह अंध प्रथाओं सच मानकर लोगों का दृष्टिकोण बदल जाता है. जिस कारण वह किसी निरपराध स्त्री के साथ गलत व्यवहार कर बैठते है.

5) नारी हृदय : इस कहानी की शुरवात में शहर में प्लेग की स्थिति का वर्णन दिया गया है. जिसमे शहर में चारो ओर अफरा-तफरी मची हुई है. बीमारी फैलने व मौत के डर से लोग शहर छोडकर जंगल में और खुले मैदानों में रहने जा रहे है. उसी शहर में एक वकील साहब का परिवार रहाता है. शहर में लोग जान बचाकर गाँव भाग रहे है लेकिन वकील साहब अपनी प्रतिष्टा के कारण शहर छोडने को तैयार नहीं  है.

अपने घर में किताबो को इधर से उधर रखते हुए, उन्हें पुराने खतों(letter)  की गड्डी मिलती है. वकील उन खतों को रात में अपने बिस्तर पर पढता है. वह सारे खत किसी प्रमिला नाम की महिला ने भजे होते है. जिसमे वह अपने पति से बार-बार माफी मांग रही होती है. प्रमिला के शब्दों से पता चलता है की वह अपने पति से बहुत प्यार करती है.

पति को व देवता की तरह पुजती है. लेकिन प्रमिला के पति उसके किसी भी खत का जवाब  नहीं दे रहा है. वह खत पढते वक्त वकील की पत्नी अचानक से उसे देख लेती है और चुप के से भागने लगी. उसी वक्त वह वकील उसे पकडकर अपने पास बिठाता है. पत्नी को संदेह हो जाता है की वह सारे खत उसके पति यानिकी वकील ही लिखे गए है. लेकिन फिर भी वह वकील से कहती है की आपने प्रमिला के खत का जवाब क्यों नहीं दे रहे है.

जबकि उसे वकील से झगड़ा करना चाहिए. क्योंकि उसका किसी दूसरी औरत के साथ संबध है. अंत में वकील बाबु अपनी पत्नी को समझाते है की ये सभी खत किसी और के लिए है. जो आज सबह ही उसे कोठरी में पडे मिले है. खत पर लिखा पता व नाम दिखाने पर उसकी पत्नी सच समझ में आता है. लेकिन फिर भी वह कहती है. सारे मर्द एक जैसे ही होते है. और कहनी का अंत हो जाता है. सुभद्रा कुमारी द्वरा लिखी गई इस कहानी में नारी के कोमल स्वभाव का वर्णन मिलता है.

6) चढ़ा दिमाग: इस कहानी की नयिका का नाम शीला है.वह एक लेखीका है. उसका पति एक स्वत्रंता सेनानी है. जिसे सत्याग्रह में भाग लेने की वजह से अंग्रेज सरकार ने कारावास की शिक्षा एवं २०० रुपये जुर्माना की सजा सुनाई है. शीला को अभी-अभी उसकी साहित्य रचनाओं की वजह से काफी सारी प्रसिद्धि होती है.

कहानी में उसका एक मुह बोला भाई भी है. जो खुद भी एक लेखक है. लेखिका होने की बावजूद भी अभीभी उसकी कमाई नहीं हो रही होती. इसीलिए वह गरीबी में दिन कट रही होती है. हालही में मिली प्रसिद्धी की वजह से शिला को बहुत सारे संपादकों के खत आ रहे होते है. लेकिन वह उन सभी खतों के जवाब नहीं दे पा रही है.

इसी बीच शिला को “कल्पलता” नामकी पत्रिका के संपादक का खत मिलता है. जो उसके मुह बोले भाई के लिए होता होता है. पता गलत लिखने की वजह से ऐसा होता है. शील को कल्पलता के संपादक ने इससे पहले भी बहुत से खत भजे हुए थे, और जवाब ना देने की वजह से संपादक ने अपने एक खत में शिला को कहा है.

तुम्हारे इस चढे दिमाग का कुछ ठिकाना भी है. दूसरी ओर शीला के भाई को भी पता गलत लिखने की वजह से उसका खत मिला था. अगले दिन शीला का भाई वह खत लेकर उसके घर पहुँचता है. उसी वक्त कुछ सरकारी आदमी शिला के पति का २०० रूपये जुरमाना वसूल ने आते है. और पैसा ना होने के कारण वह शिला के घर का सामान जप्त कर ले जाते है.

वहा खडा उसका भाई भी कुछ नहीं कर पाता. बस देखता ही रह जाता है. सुभद्रा कुमारी चौहान कि इस कहानी में शीला के मन की अवस्था के बारे में बताया है. किस किस तरह व अपने काम में व्यस्त है. जिस कारण वह हर किसी के खत का जवाब नहीं दे पाती. इसीलिए इसका शीर्षक है चढ़ा दिमाग.

FAQs-About subhadra kumari Chauhan – सुभद्रा कुमारी चौहान के संदर्भ में बार बार पूछे जाने वाले पश्न

Q1. सुभद्रा कुमारी चौहान की माँ का नाम क्या है?

Ans- सुभद्रा कुमारी चौहान की माँ का नाम धिराज कुंवर.

Q2. सुभद्रा कुमारी चौहान की सबसे चर्चित कविता कौन सी है?

Ans- “झांसी की रानी” यह सुभद्रा कुमारी चौहान की सबसे चर्चित कविता है. इस कविता में उन्होंने “वीर रस” का इस्तेमाल किया है. यह कविता भारत की सबसे अधिक गायी जानेवाली कविता है. जिमसे झांसी की रानी की वीरता का बखान है.

Q3. सुभद्रा कुमारी चौहान की मृत्यु कब हुईं?

Ans- सुभद्रा कुमारी चौहान की मृत्यु भारत, मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जिला में एक वाहन हादसे में हेई थी. जब व नागपुर में आयोजित एक सभा से अपने घर जबलपुर के लिए लौट रही थी.

Q4. सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म कब हुआ था?

Ans- सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म भारत, प्रयागराज जिले में शहर के निहालपुर गाँव में  नागपंचमी, सरस्वती पूजा के दिन हुआ था.

Q5. सुभद्रा कुमारी चौहान की भाषा कौन सी है?

Ans- सुभद्रा कुमारी चौहान की भाषा हिंदी है. एवं उन्होंने अपनी सभी रचनाए हिंदी भाषा में ही प्रकाशित की थी.

Q6. सुभद्रा कुमारी चौहान के पति का नाम क्या था?

Ans- सुभद्रा कुमारी चौहान के पति का नाम ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान है. पेशे से वह एक नाटककार थे.

Q7. सुभद्रा कुमारी चौहान का शादी कब हुई?

Ans -सुभद्रा कुमारी चौहान की शादी १६ साल की उम्र में ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान से हुई थी.

हमारा लेखन Subhadra kumari chauhan biography in hindi पढने के लिए आपका धन्यवाद. इस महत्वपूर्ण  लेख अपने सहपाठीयों के साथ भी आवश शेयर करे. और इस लेख में विषय में आपके कमेंट भी जरुर दीजिये.

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