Rahim Das Ke Dohe In Hindi

रहीम दास के दोहे अर्थ सहित | Rahim Das Ke Dohe In Hindi

Rahim Das Ke Dohe In Hindi:  महाकवि “रहीम दास” बाल्यकाल से ही साहित्य प्रेमी एंव कुशाग्र बुद्धिमत्ता वाले थे. वह एक बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न व्यक्ति थे. कवी होने के साथ-साथ वह कुशल सेनापति, प्रशासक एवं कूटनीतिज्ञ भी थे. आज के इस लेख में हम, रहीम दास के दोहे अर्थसहित देखनेवाले है. सबसे पहले उम रहीम दास का संक्षिप्त परिचय देख लेते है.

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रहीम दास जी का जीवन परिचय और दोहे.

पूरा नाम – अब्दुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ाना

जन्म दिवस – १७ दिसम्बर १५५६

जन्म स्थान – लाहौर

निधन दिवस – १ अक्टूबर १६२७ (उम्र ७०)

समाधि स्थान – अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना का मकबरा, दिल्ली

धर्म – इस्लाम

पत्नी का नाम – माहबानो (बादशाह अकबर की धाय की बेटी)

रहीम दास जी के विषय में निम्नलिखित कुछ खास बाते

  • रहीम दास जी एक कवि अलवा महान सेनापति, प्रशासक और कूटनीतिज्ञ भी थे.
  • रहीम दास जी खान-ए-खाना इस उपाधि से सम्मानित थे.
  • रहीम दास जी इच्छा के अनुसार उन्हें उनकी पत्नी के मकबरे के पास ही दफना दिया गया था.
  • रहीम दास जी ने अपने जीवनकाल में ही खुदके मकबरे का निर्माण करवाया था. वह मज़ार आज भी दिल्ली में मौजूद हैं.

 Rahim Das Ke Dohe In Hindi

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।।

अर्थ: रहीम दास कहते है. प्रेम का रिश्ता कोमल होता है. उसे धोका देकर तोडना ठीक नहीं होता. यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट गया. तो उसे दुबारा मिलाना कठिन हो जाता है. और अगर यह जुड़ भी जाता है. तो उस धागे के बिच में गाँठ बन जाती है.

रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।।

अर्थ: रहीम दास कहते है. मनुष्य के जीवन में आने वाली विपदा भलेही कुछ दिनों की मेहमान होती है. लेकिन इन्ही कुछ दिनों में हम जान पाते है की कौन हमारे लिए हितकारी है और कौन अहितकारी.

पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन।।

अर्थ: वर्षा ऋतू का आगमन होते ही, कोयल मौन साध लेती है. क्योंकि वह ऋतू मेंढको के बात करने का होता है. उसी तरह जीवन में कभी-कभी ऐसा वक्त भी आता है. जब ज्ञानी व्यक्ति को शांत बैठना पड़ता है. क्योंकि उस समय मुर्ख लोगों का बोलबाला होता है.

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग।।

अर्थ: रहीम दास कहते है. उस मनुष्य का जीवन धन्य होता है. जो दुसरो की सहायता करने के लिए. अपना जीवन समर्पित कर देते है. उनका जीवन उसी तरह शोभायमान रहता है, जिस प्रकार मेहंदी लगाने वाले के हाथ भी उसी रंग से रंग जाते है.

रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ।
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।।

अर्थ: आँखों से बहने वाले आंसू दुनिया के सामने मन में हो रही पीड़ा प्रकट करते है. और जिसे घर से बाहर निकाल दिया जाता है. वह इंसान  उस घर के रहस्य दुनिया के सामने रख देता है.

जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं।
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।।

अर्थ: रहीम दास कहते है. किसी बड़े व्यक्ति को छोटा कह देने से. उसका बड़प्पन कभी कम नहीं हो जाता. जैसे भगवान गिरिधर कृष्ण को मुरलीधर कहने से. उनकी अगाध महिना कम नहीं होती.

दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं।।

अर्थ: कौआ और कोयल का रंग एक समान है. जब तक यह दोनों बोलते नहीं. तब तक दोनों में अंतर समझ में नहीं आ सकता. लेकिन जब वसंत ऋतू का आगमन होता है. तब कोयल की मीठी आवाज से दोनों में भिन्नता साफ-साफ नजर आ जाती है.

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

अर्थ: इंसान ने हर काम सूझबूझ के साथ करना चाहिए. क्योंकि यदि किसी कारणवश बनती बात बिगड़ गई तो. तो उसे फिरसे ठीक करना कठिन हो जाता है. जैसे यदि एकबार दुध फट गया. तो लाख कोशिश करने के बावजूद भी उस दुध से मथ कर मखन नहीं निकला जा सकता.

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।

अर्थ: रहीम दास कहते हैं. हमे बडी वस्तु मिलते ही, छोटी वस्तु को निरुपयोगी समझकर उसका त्याग नहीं करना चाहिए. क्योंकि जहां पर  छोटी सी सुई उपयोग में आता है. वहा तलवार भी कुछ नहीं कर सकती.

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।

अर्थ: जो व्यक्ति सच में अच्छे स्वभाव के होते है. वह बुरी संगत में रहकर भी नहीं बिगडते. जैसे कोई जहरीला साप का चंदन के वृक्ष से लिपट कर रहता है. फिर भी सांप के विष का प्रभाव चंदन वृक्ष पर नहीं पड़ता.

Rahim Das Ke Dohe In Hindi

खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय।।

अर्थ: रहीम दास कहते है. जिस तरह खीरे का कड़वापन दूर करने के लिए. उसके उपरी सिरे को काट कर उसपर नमक लगाया जाता है. उसी तरह सैदव कडवे वचन (बाते) बोलने वालों को भी यही सजा देनी चाहिए.

रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार।।

अर्थ: अगर आपका कोई प्रिय सौ बार भी रूठ जाता है. तो उसको बार बार मनाना चाहिए. जैसे अगर मोतियों की माला बार बार टूट जाती है. तो उन मोतियों को धागे बार बार में पिरो लिया जाता है.

जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह।
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।।

अर्थ: इस दुनिया में हमारे देह पर जो भी कुछ आ बीते उसे सहन कर लेना चाहिए. ठीक जैसे जाडा धुप और वर्षा का प्रभाव पड़ने पर भी धरती माता सब कुछ सह लेती है, क्योंकि सहनशीलता ही उसका गुण होता है.

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय।।

अर्थ: रहीम दास कहते है. अपने मन की पीड़ा को मन के भीतर हि छूपाकर रखना चाहिए, क्योंकि दूसरों की समस्याओं को सुनकर लोग उनका मजाक तो उड़ाते है. लेकिन कोई मदत करने का प्रयास नहीं करता.

समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात।।

अर्थ: रहीम दास कहते है, सही समय आने पर वृक्ष फल और फूलों से भर जाता है. लेकिन एक समय ऐसा भी आता है. तब वृक्ष के पत्ते तो झड़ जाते हैं. मनुष्य के जीवन में भी ऐसा ही होता है. सब कुछ हमेशा एक जैसा नहीं रह सकता. इसीलिए बुरे समय में पछताने से कोई लाभ नहीं मिलता. हमे सदैव धीरज से काम लेना चाहिए.

वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।।

अर्थ: पेड़ कभी अपने फल नहीं खाते, नदी कभी अपना जल प्राशन नहीं करती.
उसी प्रकार साधू एवं  सज्जन पुरुष परमार्थ और जनसेवा के लिए देह धारण करते है.

लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार जा।
हनि मारे सीस पै, ताही की तलवार।।

अर्थ: रहीम दास कहते है, तलवार ना लोहे की कही जाएगी ना लोहार की. तलवार तो उस वीर की होती है. जो प्रतिघात से शत्रु का सिर धड से अलग कर, उसके प्राणों का अंत कर देता है.

तासों ही कछु पाइए, कीजे जाकी आस।
रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास।।

अर्थ: जिससे कुछ पाने की उमीद दिखती हो, उसी की कुछ प्राप्त होने की अपेक्षा करना उचित है. क्योंकि जिस सरोवर में पानी ही नहीं, उससे प्यास बुझाने उम्मीद करना व्यर्थ है.

 rahim das ji ke dohe

माह मास लहि टेसुआ मीन परे थल और।
त्यों रहीम जग जानिए, छुटे आपुने ठौर।।

अर्थ: रहीम दास कहते है, जिस तरह माघ महीने के आगमन से पलाश वृक्ष और पानी से बाहर निकाली हुई मछली की अवस्था बदल जाती है. उसी तरह विश्व में अपनी स्थान से छूट जाने पर संसार की अन्य वस्तुओं की दशा भी बदल जाती है.

रहिमन नीर पखान, बूड़े पै सीझै नहीं।
तैसे मूरख ज्ञान, बूझै पै सूझै नहीं।।

अर्थ:  जिस प्रकार नदी के जल में पड़े रहने पर भी पत्थर कभी नर्म नहीं हो सकता. उसी प्रकार मुर्ख व्यक्ति की अवस्था होती है. उसे कितनी भी ज्ञान की बाते सिखायी जाये. फिर भी वह कुछ भी समझ नहीं पायेगा.

ओछे को सतसंग रहिमन तजहु अंगार ज्यों।
तातो जारै अंग सीरै पै कारौ लगै।।

अर्थ: रहीम दास कहते है अधम, व नीच लोगों की संगत से हमे सदैव दूर रहना चाहिए. क्योंकि उनकी संगत से हमेशा नुकसान ही होता है. जिस तरह कोयला गर्म और सुलग रहा होता है. तब वह हमारे शरीर को जला सकता है और कोयला जब ठंडा हो जाता है, तब भी वह हमारे शरीर को काला कर सकता है.

साधु सराहै साधुता, जाती जोखिता जान।
रहिमन सांचे सूर को बैरी कराइ बखान।।

अर्थ: रहीम दास कहते हैं साधू सज्जनों की प्रशंसा करते है. यति योगी और उनके योग मार्ग की स्तुति करते है. लेकिन यह बात भी जान लो एक सच्चे शुर वीर की प्रशंसा उसके प्रतिद्वंदी भी करते है.

वरू रहीम कानन भल्यो वास करिय फल भोग।
बंधू मध्य धनहीन ह्वै, बसिबो उचित न योग।।

अर्थ: रहीम दास कहते हैं खुद निर्धन होकर अपने बंधू-नातलग के सानिध्य में रहना अच्छी बात नहीं है. इससे बेहतर वह वन को अपना निवास स्थान बनाये और फल और अदि के आहार पर जीवित रहे.

संपत्ति भरम गंवाई के हाथ रहत कछु नाहिं।
ज्यों रहीम ससि रहत है दिवस अकासहि माहिं।।

अर्थ: रहीम दास  कहते है जिस तरह दिन में चन्द्रमा निस्तेज हो जाता है. उसी प्रकार व्यसन से पीड़ित मनुष्य अपने धन और संपत्ति का विनाश कर देता है और आभाहीन हो जाता है.

राम न जाते हरिन संग से न रावण साथ।
जो रहीम भावी कतहूँ होत आपने हाथ।।

अर्थ: जो होनेवाला है अगर उस पर हमारा नियंत्रण होता. तो ऐसा क्यों हुआ की भगवान राम सुनहरे हिरन के पीछे दौड़े और उसी वक्त  देवी सीता का रावण द्वारा अपहरण हो गया.  क्योंकि उस घटना को होना ही था. किसी भी होनी पर हमारा बस नहीं चलता.

निज कर क्रिया रहीम कहि सीधी भावी के हाथ।
पांसे अपने हाथ में दांव न अपने हाथ।।

अर्थ: रहीम दास कहते हैं सिर्फ कर्म करना मनुष्य के बस में होता है लेकिन उस कर्म से प्राप्त होने वाले कर्मफल पर इंसान का कोई नियंत्रण नहीं होता है. जैसे चौपड़ खेलते समय पैसे फेंकना तो अपने हाथ में होता है. लेकिन अगला दांव क्या खेला जायेगा. इस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होता.

दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोय।
जो सुख में सुमिरन करें, तो दुःख काहे होय।।

अर्थ: दुःख और संकट समय में सभी भगवान को याद करते है परंतु सुख की घडी में वह ईश्वर को याद करना भूल जाते है.
रहीम दास कहते है अच्छे समय में भी अगर हम प्रभु को याद करंगे. तो बुरा समय आयेगा ही नहीं.

रहिमन रीति सराहिए, जो घट गुन सम होय।
भीति आप पै डारि के, सबै पियावै तोय।।

अर्थ: रहीम दास कहते हैं वह व्यवहार प्रशंसा योग्य होता है. जो घडा और रस्सी की तरह होता है. जब रस्सी से घडा बांधकर कुंए से पानी निकला जाता. तब वह दोनों खुद कष्ट उठाकर दूसरों  की प्यास बुझाते है. उसी तरह इस दुनिया में बहुत से लोग एसे भी होते है, जो खुद कष्ट उठाकर भी दुसरो की मदत करते है.

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।।

अर्थ: रहीम दास कहते है वृक्ष अपने फल खुद नहीं खाते. तालाब अपना पानी खुद नहीं पीते ठीक उसी प्रकार कुछ सज्जन व्यक्ति परोपकार के लिए जीते है. वह अपनी कमाई हुई धन संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा समाज को दान कर देते है.

Rahim Das Ke Dohe In Hindi

रहिमन मनहि लगाईं कै, देख लेहूँ किन कोय।
नर को बस करिबो कहा, नारायण बस होय।।

अर्थ: रहीमदास जी कहते है की यदि आप अपने मन को एकाग्रचित करके कोई भी काम करते है. तो आपको सफलता जरुर मिलती है. उसी तरह मनुष्य अगर सच्चे मन से भक्ति भाव से भगवान को याद करता है तो वह मदत जरुर करते है.

जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को तऊ न छाँड़ति छोह।।

अर्थ: रहीम दास कहते है मछली को पानी प्रति लगाव होता है. जब मछली पकड़ने के लीये जाल पानी में फैंका जाता है. तब वह जाल बाहर निकलते वक्त पानी मछली का मोह छोड़कर. उस जाल से बाहर निकल जाता है. लेकिन मछली उसी जाल में फंस जाती है. अंत मे  वह पानी से बिछड़ना सहन नहीं कर पाती और तुरंत ही अपने प्राण त्याग देती है.

मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय ।।

अर्थ: मन, मोती, फूल, दूध और रस यह जब तक अपने सामान्य रूप में रहते है. तब तक अच्छे लगते है, परंतु यदि एक बार ये फट या टूट जाते है. तो करोडो उपाय करने पर भी यह अपने मूल रूप में नहीं आते.

रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहें, बनत न लगिहैं देर।।

अर्थ: रहीम दास कहते है जब खराब समय चल रहा होता है. तभी मनुष्य का मौन धारण करने में ही समझदारी होती है. फिर जब अच्छा समय शुरु हो जाता है तब बिगडे काम बनने में समय नहीं लगता. तो इस बात को हमेशा ध्यान में रखे और उचित समय का इंतजार करे.

जे गरिब सों हित करें, ते रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।

अर्थ: रहीम दास कहते है जो लोग गरीबों को मदत करने की इच्छा रखते है. वह हर संभव प्रयास करके उनका हित करते है. जैसे भगवान श्री कृष्ण द्वारिका के राजा बनने के बाद भी अपने गरीब ब्राह्मण मित्र सुदामा को कभी नहीं भूले थे. इसी प्रकार गरीबों की मदत करने वाले लोग बड़े महान लोग होते है.

वाणी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय।।

अर्थ: रहीम दास कहते है की एसी मधुर बोली भाषा में बात करें की हर कोई आपसे बात करना चाहे. आपके मुह से निकलने वाली वाणी सुनकर आपके साथ हर किसी को अच्छा महसूस हो.

थोथे बादर क्वार के, ज्यों ‘रहीम’ घहरात।
धनी पुरुष निर्धन भये, करैं पाछिली बात।।

अर्थ: रहीम दास कहते है जिस प्रकार क्वार के महीने में (बारिश और शीत ऋतु के बीच) आकाश में घने बादल जमा होते है और बिना बरसे सिर्फ गरजते है. उसी प्रकार जब कोई घमंडी धनवान व्यक्ति निर्धन होने के बाद भी अपनी अमीरी का रौब जमाने की कोशिश करता रहता है

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय।।

अर्थ: रहीम दास कहते है, एक वक्त  पर एक काम पूरा करने पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि एक समय पर बहुत से कामों  पर ध्यान देने से. मन एकाग्र नहीं रहता और परिणाम वश सभी काम बिगड़ सकते है. जैसे अगर हम एक पेड़ को पानी देना है. तो उसकी जड़ में पानी देना होगा. इसके विपरीत अगर हम एक टहनी, फल, फूल को अलग अलग पानी देत रहे तो उस पेड़ की ठीक से देखभाल नहीं होगी.

धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन हे, जगत पिआसो जाय।।

अर्थ: छोटे जलाशय जैसे की तालाब या कोई गड्डा भी धन्य है क्योंकि उनके पास जाकर  सजीव प्राणी अपनी प्यास बुझाते है. परंतु समुंदर इतना विशाल होने के बावजूद भी कीस की प्यास नहीं बुझाता. उसी तरह इस संसार में कुछ एसे लोग भी होते है. जो खुद गरीब होने पर भी दूसरों की सहायता करते है लेकिन कुछ लोग अमीर और सक्षम होने पर भी किसी की मदत नहीं करते. इस दोहे का मूल अर्थ यह है की परोपकारी लोग सबसे महान होते है.

Rahim Das Ke Dohe In Hindi

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।

अर्थ: इंसान बड़ा होने पर भी कुछ फायदा नहीं होता. जब तक की वह किसी दुसरे की मदत न करना चाहे. जैसे खजूर का पेड़ विशाल होता है. लेकिन उसकी छाव में  कभी कोई बैठ नहीं सकता और नहीं उसके फल का आसानी से स्वाद ले सकता है.

रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्‍यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय।।

अर्थ: रहीम दास कहते है संकट समय में मनुष्य को बाहर से कितनी भी सहायता प्राप्त हो पर उसकी खुद की निजी संपत्ति ही असली सहाय्यक और रक्षक होती है. उसी प्रकार कमल के फूल को तालाब से बाहर निकालने पर. उसे मुरझाने से सूरज भी नहीं बचा सकता.

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।

अर्थ: रहीम दास के अनुसार इस दोहे में पानी के तीन अर्थ है. पहला अर्थ है विनम्रता मनुष्य में हमेशा विनम्र होना चाहिए. दूसरा अर्थ तेज है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं होता. और तीसरा अर्थ है आटा (चुन) से संबंधित है, जिसका पानी के बिना कोई उपयोग नहीं है.

छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।।

अर्थ: बड़े लोगों को माफ करना शोभा देता है. और छोटे लोगों का बदमाशी करना क्षमा करने योग्य होता है क्योंकि उनकी बदमाशी के परिमाण भी छोटे होते है. जिस प्रकार भृगु ऋषि ने भगवान महाविष्णु को लात मारी. इसके जवाब में भगवान महाविष्णु ने उन्हें क्षमा कर दिया. इसी तरह क्षमा करना बड़े लोगों का स्वभाव होना चाहिए.

रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँती विपरीत।।

अर्थ: दृष्ट लोगों से न दोस्ती अच्छी है और नाही दुश्मनी. क्योंकि कुत्ता इंसान को काटे याफिर चाटे दोनों स्तिथि में कोई लाभ नहीं होता.

जे सुलगे ते बुझि गये बुझे तो सुलगे नाहि।
रहिमन दाहे प्रेम के बुझि बुझि के सुलगाहि।।

अर्थ: रहीम दास कहते है आग में पडी लकड़ी कुछ देर सुलगती है और बाद में बुझ जाती है. लेकिन प्रेम विरह अग्नि में एक बार सुलगने वाली व्यक्ति शांत होने के बाद भी अंदर ही अंदर घुटती रहती है.

जो रहीम ओछो बढै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ों जाय।।

अर्थ: जब नीच प्रवृति के कुछ लोग थोडीसी भी पा लेते है. तब वह अपने जीवन में प्रगति होनेपर घमंडी स्वभाव के बन जाते है. ठीक उसी तरह जब एक शरतंज के खेल में एक प्यादा फर्जी स्वरूप लेता है, तब वह टेढी चाल चलने लगता है.

चाह गई चिंता मिटीमनुआ बेपरवाह।
जिनको कुछ नहीं चाहिये, वे साहन के साह।।

अर्थ: जिन लोगों को किसी चीज की चाहत नहीं होती वह राजाओं के राजा की तरह रहते है. क्योंकि उन्हीं की सभी अधिक चीज की आशा नहीं होती एवं उन्हें किसी भी बात की चिंता नहीं सताती, वह बिलकुल ही बेपरवाह होते है.

खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान।।

अर्थ: यह बात पूरी दुनिया जानती है खैरियत, खून, खांसी, खुशी, दुश्मनी, प्रेम और शराब एवं किसी भी प्रकार का नशा कभी छुपाने से भी नहीं छुपता. एक ना एक दिन सामने आ जाता है.

जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढे अंधेरो होय।।

अर्थ: रहीम दास कहते है जो दशा जलते दिए (दीपक) की होती है. वही दशा परिवार (कुल) में जन्मे कुपूत की होती है. जिस तरह दीपक शुरुवात में उजाला देता है. बाद में  बढ़ने के बाद बुझ जाता है. उसी तरह शुरुवात में परिवार के भीतर लड़का पैदा होने पर सबको उम्मीद और खशी मिलती है. पर बड़ा होकर वह लड़का अपने बुरे कर्मो से परिवार को दुखी कर देता है.

रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाहिं।
उनते पहिले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं॥

अर्थ: जो इंसान किसी से कुछ मांगने की स्थिति को स्वीकार करता है. या मांगने की इच्छा रखता है. वह इंसान मरे हुए के सामान होता है. लेकिन जो इंसान किसी भी मांगनेवाले (उम्मीद रखनेवाले) को मना करता है. वह मांगनेवाले से पहले मरा हुआ होता है.

गुन ते लेत रहीम जन, सलिल कूप ते काढि।
कूपहु ते कहूँ होत है, मन काहू को बाढी।।

अर्थ: रहीम दास कहते है जिस प्रकार इंसान एक कुएं में से रस्सी की सहायता से अपने लिए जल निकाल लेता है. उसी प्रकार वह सत कर्मों से दूसरों के मन में अपने लिए आदर और प्यार की भावनाएं निर्माण कर सकता है. क्योंकि मनुष्य का मन कुंए से अधिक गहरा नहीं होता.

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