भगवान कृष्णा की सुंदर कहानिया – lord Krishna Stories In Hindi

जय श्री कृष्णा दोस्तों. आज हम आपके लिए लाये है. भगवान कृष्णा की सुंदर कहानिया. इन कहनियो में आपको भगवान कृष्ण की महानता और अपने भक्तों के प्रति उनके प्रेम भाव के दर्शन होंगे. इन कृष्ण कहानियों में कुछ कहानिया काफी रोचक है. जैसे कि कृष्ण भगवान के पास हमेशा रहने वाली बांसुरी की अनोखी कहानी. भगवान कृष्ण और कर्मा बाई की खिचड़ी.? तो चलिए पढते है lord Krishna Stories In Hindi

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कृष्णा के बांसुरी की कहानी – lord Krishna Stories In Hindi

द्वापर युग का समय चल रहा था. भगवान श्री कृष्ण के रूप में महाविष्णु अपने आठवा अवतार में जन्म ले चुके थे. सभी देवता, भगवान, सुर, ऋषिमुनी भेस बदलकर एक-एक करके बाल कृष्ण से मिलने आ रहे थे.

वह देख भगवान शिव के मन में भी अपने प्रिय प्रभु से मिलने की इच्छा उत्पन्न हुई. पर वह यह सोच कर रुके हुए थे. की बाल कृष्ण के लिए उपहार के रूप में क्या दिया जाये. जिसे वह हमेशा अपने पास रख सके.

तब शिवजी को याद आया की उनके पास महान ऋषि दधीचि की वज्र की अस्थी (हड्डी) रखी हुई है. ऋषि दधीचि वह ऋषि है जिन्होंने राक्षस एवं असुरों के संहार के लिए. अपनी आत्मा त्याग कर. अपनी वज्र की हड्डिया देवताओं को दान दी थी.जिस ऋषि विश्वकर्मा ने कुछ हतियार बनाये थे.

उस बच्ची हुई एक हड्डी को तराशकर भगवान शिवजी ने एक अत्यंत सुंदर बांसुरी बनाई. फिर जब वह बालक भगवान कृष्ण से मिले तब उन्होंने वही बांसुरी उन्हें भेट करदी. वो सुंदर भेट कृष्ण भगवान को बहुत पसंद आयी.

शिव और कृष्ण भगवान के बिच स्नेह देखकर.उस दिन देवताओं ने भगवान कृष्ण को बांसुरीवाला इस नामसे गौरवान्वित किया. उसी बांसुरी को ही कृष्णा भगवान के अपने अवतार काल के अधिकतम समय हमेशा अपने साथ रखा. तो यह थी कृष्णा के बांसुरी की कहानी.

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भगवान श्री कृष्ण के सिरदर्द की कहानी – lord Krishna Stories In Hindi

द्वापर युग में घटित कृष्ण और राधा की कहानिया कौन नहीं जनता. उस वक्त देवताओं में यह चर्चा थी. की राधा ही भगवान कृष्ण की सबसे बडी भक्त है. पर इस बात से एक व्यक्ति सहमत नहीं थे और वह थे नारद मुनी.

वह अपने आपको ही भगवान कृष्ण का सबसे बडा भक्त मानते थे. पर देवताओं में राधा रानी के विषय में चर्चा सुनकर उन्हें जलन महसूस होने लगी थी. नारद मुनी के स्वभाव से भगवान कृष्ण भी अच्छी तरह अवगत थे.

एक दिन नारद मुनी कृष्ण भगवान से मिलने. द्वारिकापुरी गए थे. उन्हें आता देख भगवान श्री कृष्ण अपना सिर पकडकर बैठे गए. मुनीवर ने उन्हें देखते ही पूछा. क्या हुआ प्रभु आप यूं सिर पकड़कर क्यों बैठे है? .

उसपर द्वारिकाधीश ने उत्तर दिया. मुनिवर आज हमें सिर में बुहत पीडा हो रही है. नारद बोले तो प्रभु इस पीडा को मिटने का क्या कोई उपाय है? . कृष्ण ने कहा हां उपाय तो है.

अगर मेरा सबसे बडा भक्त अपने चरण धोकर. उसका चरण अमृत मुझे पिलाएगा. तो मेरा सिरदर्द पल भर में ठीक हो जायेगा. कृष्ण के मुख से यह उपाय सुनकर कुछ पल के लिए मुनिवर सोच में पड गए.

की हूं तो मैं ही सबसे बडा कृष्ण भक्त. लेकिन अगर मैं अपने पैर धोकर उसका चरण अमृत प्रभु को पिलाऊंगा. तो मुझे नरक जाने जीतन महापाप लगेगा. परन्तु राधा को भी तो सब कृष्ण का बडा भक्त मानते है.

इतना सोचने के बाद भगवान कृष्ण-से आज्ञा लेकर. नारद तुरंत राधारानी के महल में जा पहुंचे और उन्हें प्रभु के सिर में हो रही पीडा एवं उसके उपाय के बारे में वृतांत सुनाया.

वह सुनकर राधा रानी ने एक क्षण का भी विलंब ना करते हुए. अपने चरण धोकर उसका अमृत एक कटोरी में नारद मुने के हाथ में लाकर दिया और कहा मुनिवर मैं नहीं जानती की मैं भगवान कृष्ण की कितनी बडी भक्त हूं.

पर में अपने ईश्वर आराध्य को पीडा में नहीं देख सकती. राधा के मुख से वह सच्चे भक्ति भाव के शब्द सुनकर. नारद मुनी की आंखे खुल गई. और वह समझ गए की राधाराणी ही कृष्ण की सबसे बडी भक्त है और प्रभु श्री कृष्ण ने यह लीला. मुझे समझाने के लिए रची थी.

कर्माबाई की खिचड़ी की कहानी – lord Krishna Stories In Hindi

यह कहानी है भगवान कृष्ण की प्रिय भक्त कर्माबाई की. कर्माबाई बचपन से ही अपने पिता जीवनराम को कृष्ण भगवान की पूजा करते हुए देखती थी. वह कभी भी कृष्ण भगवान भोग लगाये बिना. भोजन ग्रहण नहीं करते थे.

जब कर्माबाई 13 साल की थी. तब एक दिन जीवनराम को तीर्थ पुष्कर स्नान के लिए जाने की इच्छा हुई. साथ में उनकी पत्नी ने भी पुष्कर स्नान की इच्छा प्रकट की. जीवनराम अपनी बेटी को भी लेजाना चाहते थे.

लेकिन दुविधा यह थी की अगर वह सब घर बाहर गए तो. श्री भगवान कृष्ण को भोग लगाएगा कौन? . तब जीवनराम ने इस नित्यकर्म की जिम्मेदारी कर्माबाई को सौंपी और कहा की देखो बेटी कर्मा.

सुबह भगवान कृष्ण को भोग लगाने के पश्चात ही तुम भोजन ग्रहण करना. कर्मा ने भी अपने पिता की हां में हमी भरदी. अगले दिन सुबह कर्माबाई ने उठकर सबसे पहले. गुड और घी डालके बाजरे का खीचड़ा बनाया.

और भगवान कृष्ण की मूर्ति के सामने रख दिया और बोली भगवान मैं ने आपका भोग रख दिया है. आपको जब भूक लगे तब खालेना. तब तक मैं घर के काम पूरे कर लेती हूं. इतना कहकर कर्मा अपने घर कामो में जुट गई.

काम करते-करते बिच-बिच में आकार देखने पर जब कर्माको ज्ञात हुआ. की भगवान ने अभीतक खिचड़ा नहीं खाया है. तब उसे संदेह हुआ. की शायद खिचड़ी में घी और गुड कम है. इसलिए भगवान कृष्ण भोजन ग्रहण नहीं कर रहे है.

तभी कर्माबाई ने खिचड़ा में थोडा गुड और घी मिलया और मूर्ति के सामने बैठ गई. वह बोली भगवान मेरे पिताजी जब खिलाते है. तब तो आप खा लेते हो. तो अब क्यों नहीं खा रहे? .

और अभी तो पिताजी बाहर गए है. उन्हें आने में बहुत दिन लगेगे तब तक आपको भोग लगाने की जिम्मदारी मुझे दी गई है. इसलिए जब तक आप भोजन नहीं खायेंगे. मैं भी कुछ नहीं खाउंगी.

इस तरह जिद पर अड्डी नन्ही कर्मा की प्यारी बातों से कृष्ण भगवान का सिंहासन डौल गया और फिर मूर्ति मेसे आवाज आयी बेटी कर्मा तुमने पर्दा तो किया ही नहीं . तो मैं भोजन कैसे ग्रहण करूं.

तब कर्माबाई ने मूर्ति के आगे अपनी चुनरी का पर्दा किया और कुछ ही समय में कृष्ण मूर्ति के सामने रखी खिचड़ी की थाली खाली हो गई. अब कर्मा रोज सुबह सबसे पहले कृष्णा को बाजरे का खिचड़ा खिलाती और बादमे खुद भोजन ग्रहण करती.

कुछ दिनों बाद घर लौटने पर कर्मा के मां बाप भी कृष्ण की लीला देखकर दंग रह गए. इस तरह कर्माबाई ईश्वर कृष्ण की निस्सीम भक्त बन गई. अपने जीवन के अंतिम दिनों में कर्माबाई भगवान जग्गनाथ की नगरी जग्गनाथ पूरी में एक कुटिया में बस गई थी.

वहा पर एक दिन कर्माबाई की कुटिया के सामने एक तेजस्वी कांति वाला बालक आया और उसने कर्माबाई से कहा मुझे भूक लगी है मां खाना दो. उसवक्त भी कर्मा अपने भगवान कान्हा को खिचड़ा का भोग लगा रही थी.

कर्मा ने उस बालक को भी खिचड़ा खिलाया. उसके बाद से वही बालक हर रोज कर्मा के हाथ का खिचड़ा खाने आता था.यह सिल सिला कई वर्षों तक चलता रहा. वह बालक कोई और नहीं स्वयम जग्गनाथ भगवान थे.क्योंकि जिस दिन कर्माबाई दिहांत हो गया.

उस दिन जग्गनाथ भगवान की मूर्ति की आंखों-सी आंसू बह रहे थे. और उसी रात मंदिर के पुजारी के स्वप्न में जग्गनाथ भगवान आये. और अपने दुखी होने का करना बताया. की उनकी परम प्रिय भक्त कर्माबाई गोलोक सिधार गई है. मैं रोज सुबह उसके हाथ की खिचड़ी खाता था.

अब मुझे खिचड़ी कौन खिलायेगा. अगले दिनसे मंदिर के पुजारियों ने निर्णय लिया. भगवान को रोज बाजरे के खिचड़ा को भोग लगेगा और उस भोग का नाम दिया गया. कर्माबाई की खिचड़ी.

चावल के एक दाने की कहानी – lord Krishna Stories In Hindi

द्वापर युग में पांडव वनवासी का जीवन जी रहे थे और महाकपटी दुर्योधन हस्तिनापुर में एक राज विलासी जीवन जी रहा था. एक दिन महर्षि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ हस्तिनापुर अथिति बनकर पधारे थे.

दुर्योधन ने काफी अच्छे तरह से उनका आतिथेय किया. इसी पवित्र कार्य के बिच दुर्योधन ने अपने मामा शकुनी के साथ मीलकर पांडवो को परास्त करने की एक नइ योजना बनाई.

जब महर्षि दुर्वासा ने कहा की हम अब भोजन करेंगे. तब दुर्योधन बोला की ऋषियों को भोजन करना तो एक महापुण्य का कार्य है. लेकिन महर्षी दुर्वासा में आपसे अनुरोध करता हूं. की इस महापुण्य को प्राप्त करने का अवसर.

मैं अपने बडे भ्राता युधिष्ठिर को देना चाहूंगा. इतना कहकर दुर्योधन ने महर्षि दुर्वासा और उनके शिष्यों को नजदीक के वन में बसे युधिष्ठिर की कुटिया में भोजन करने के लिए भेज दिया. क्योंकि वह जनता था. की दोपहर के उस समय पांडव द्रोपदी सहित खाना खा चुके होंगे और कुटिया में अन्न शेष नहीं होगा.

कुछ ही समय में महर्षि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ पांडवो की कुटिया के सामने थे. वहां युधिष्ठिर ने उनका बडे आदर के साथ स्वागत किया. महर्षि दुर्वासा ने युधिष्ठिर को दुर्योधन के साथ हुआ अपना वार्तालाप बता दिया.

और कहा की मैं और मरे शिष्य स्नान के पश्चात भोजन ग्रहण करंगे. इतना कहकर वह सभी ऋषिगन स्नान करने के लिए. नदीपर की गए. धर्मराज युधिष्ठिर ने यह बात तुरंत जाकर द्रोपदी को बताई.

द्रोपदी ने कहा इस वक्त तो हमारे पास कुछ भी भोजन शेष नहीं है. द्रोपदी का दिल यह सोचकर घबराने लगा. अगर ऋषियों को भोजन नहीं कराया. तो उन्हें महर्षि दुर्वासा के क्रोध और शाप का पात्र बनाना पडेगा.

उस कठिन घडी में द्रोपदी अपने मित्र सखा कृष्ण को याद क्रनेलागी. उसीवक्त लीलाधर कृष्ण ने द्रोपदी की कुटिया के अन्दर प्रवेश किया. उन्हें देखते ही द्रोपदी उनके पास दौड़ती हुई गई और उन्हें अभिवादन करके अपनी समस्य बताने लगी.

कृष्ण ने कहा द्रोपदी तुम्हारी समस्या को कुछ समय के लिए. भूलजाव और सबसे पहले मुझे कुछ खाने को दो. मुझे बडी जोरों की भूक लगी है. तब द्रोपदी ने अक्षयपात्र लाकर कृष्ण के हाथ में दिया.

साथही अपनी समस्या भी बताई. महर्षि दुर्वासा और उनके शिष्य कुछ देर में भोजन करने के लिए आने वाले है. लेकिन घरमें तो जरासा भी भोजन शेष नहीं है. द्रोपदी की बात सुनकर कृष्ण मुस्कुराये और पात्र में देखने लगे. उस पात्र में चावल का सिर्फ एक दाना बचा था.

वह देखकर भगवान कृष्ण बोले ये क्या इसमें तो बहुत खाना बचा है और वह चावल का वह बचा हुआ दाना उन्होनो खा लिया. इधर कृष्ण के चावल का वह दाना खाते ही. उधर स्नान करके नदी से बाहर निकले महर्षि दुर्वासा और उनके शिष्यों का पेट भर गया और उन्हें डकारे आने लगी.

और वह युधिष्ठिर की कुटिया के और जाने के बजाय. अपनी यात्रा के लिए प्रस्थान कर गए. इस तरह चावल के एक दाने से ही कृष्ण भगवान में ऋषियों को पेट भरकर उनके क्रोध और शाप से पांडवो की रक्षा की.

भगवान श्री कृष्ण और कुम्हार की कहानी – lord Krishna Stories In Hindi

यह कहानी भगवान कृष्ण के बाल्य काल की है. बचपन में कृष्ण बडे ही शरारती थे. आये दिन कृष्ण भगवान के नए-नए उलाहने रोज यशोदा मैया के पास आते रहते थे. इन्हीं उलाहनो से तंग आकार एक दिन यशोदा मैया छड़ी लेकर कृष्ण भगवान के पीछे दौड़ी थी.

और मैया से भगाते-भगाते गोविंदा एक कुम्हार के घर घुस गए. उस वक्त कुम्हार अपने काम में व्यस्त था. पर जब कुम्हार की दृष्टि भगवान पर पडी. तब वह बडाही प्रसन्न हो उठा. कृष्ण बोले कुम्हारजी-कुम्हारजी मेरी मैया बहुत क्रोधित है और छड़ी लेकर मुझे ढूंड रही है.

कुछ समय के लिए. मुझे कही छुपा लीजिये. कुम्हार भगवान श्री कृष्ण के अवतार स्वरुप से ज्ञात था. उसने तुरंत कृष्णजी को एक बडेसे मिटटी के घड़े के निचे छुपा दिया.

कुछ समय पश्चात जब यशोदा मैयाने वहां आकार पूछा. क्यों रे कुम्हार! क्या तूने मेरे कान्हा को देखा है? . तो कुम्हार ने जवाब दिया नहीं मैया मैंने नहीं देखा.

कुम्हार और यशोदा मैया के बिच हो रहा सवांद भगवान श्री कृष्ण गौर से सुन रहे थे. फिर जब माता यशोदा वहां से चली गई. तब कान्हा बोले कुम्हारजी मेरी माता यदि चली गई हो. तो मुझे इस घडे से बाहर निकालिए.

कुम्हार बोला एसे नहीं भगवान पहले आपको मुझे वचन देना होगा. की आप मुझे चौरासी लाख यानियों के बन्धन से मुक्त कर देंगे. कुम्हार की बात सुनकर कान्हाजी मुस्कुराये और बोले ठीक कुम्हार मैं वचन देता हूं. की मैं तुम्हे चौरासी लाख यानियों के बन्धन से मुक्ति दे दूंगा.

अब तो मुझे बाहर निकालो. कुम्हार बोला मुझे अकेले को नहीं महाप्रभु मरे पूरे परिवार को भी. चौरासी लाख यानियों के बन्धन से मुक्त करने का वचन दीजिये. तो ही मैं आपको घडे से बाहर निकालूंगा.

इसपर कृष्ण बोले ठीक भैया. मैं उन्हें भी चौरासी लाख यानियों के बन्धन से मुक्त करने का वचन देता हूं. अब तो बाहर निकाल दो.
अब कुम्हार बोला बस प्रभुजी एक विनती और है. उसे पूरा करने का वचन देते है. तो मैं आपको घडे से बाहर निकाल लूंगा . कृष्ण बोले अब वह भी बता दो. कुम्हार ने कहा हे प्रभुजी जिस घडे के निचे आप छुपे है. उस घडे को बनाने के लिए.

लाई गई मिटटी मेरे बैलों पर लाद कर लाई है. आप मेरे उन बैलो को भी चौरासी लाख यानियों के बन्धन से मुक्त करने का वचन दीजिये. कृष्ण भगवान ने कुम्हार का प्राणी प्रेम देखकर उन बैलों को भी मोक्ष देने का वचन दिया.

कान्हा बोले लो तुम्हारी सभी इच्छाएं पूरी हो गई है. अब तो इस घडे से मुझे बाहर निकल लो. इसबार कुम्हार बोला अभी नहीं भगवान. बस एक अंतिम इच्छा शेष रह गई है और वह यह है कि जो भी जीव हम दोनों के बिच हुए इस सवांद को सुनेगा. उसे भी आप इस जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त कर देंगे.

बस यह वचन भी दे दीजिये. तभी मैं आपको इस घड़े से बाहर निकालूंगा. कुम्हार की सच्ची प्रेमभावना देखकर कृष्ण भगवान अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कुम्हार को तथास्तु कह दिया . फिर जाकर कुम्हार ने बाल कृष्ण को घडे से बाहर निकाला.

उनको साष्टांग प्रणाम करके. उनके चरण धोये और वह चरण अमृत प्राशन करके. अपने पूरे घर में उसका छिडकाव किया. अंतमें कुम्हार प्रभु कृष्ण के गले लगकर इतना रोया इतना रोया की उनमे ही विलीन हो गया.

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