इस पोस्ट में हम bhairav ji ke 108 naam पढने वाले है. इसी लेख में भगवान काल भैरव जी के उत्पति की पौराणिक कथा. तथा भैरव जी के बारे में अन्य धार्मिक बातें भी बताई गई है. उसे भी आप जरुर पढे.
|| जय कालभैरव ||
काल भैरव जी के 108 नाम| Bhairav ji ke 108 naam
1. ॐ ह्रीं भैरवाय नम:
2. ॐ ह्रीं भूतनाथाय नम:
3. ॐ ह्रीं भूतात्मने नम:
4. ॐ ह्रीं भू-भावनाय नम:
5. ॐ ह्रीं क्षेत्रज्ञाय नम:
6. ॐ ह्रीं क्षेत्रपालाय नम:
7. ॐ ह्रीं क्षेत्रदाय नम:
8. ॐ ह्रीं क्षत्रियाय नम:
9. ॐ ह्रीं विराजे नम:
10. ॐ ह्रीं श्मशानवासिने नम:
11. ॐ ह्रीं मांसाशिने नम:
12. ॐ ह्रीं खर्पराशिने नम:
13. ॐ ह्रीं स्मारान्तकृते नम:
14. ॐ ह्रीं रक्तपाय नम:
15. ॐ ह्रीं पानपाय नम:
16. ॐ ह्रीं सिद्धाय नम:
17. ॐ ह्रीं सिद्धिदाय नम:
18. ॐ ह्रीं सिद्धिसेविताय नम:
19. ॐ ह्रीं कंकालाय नम:
20. ॐ ह्रीं कालशमनाय नम:
21. ॐ ह्रीं कला-काष्ठा-तनवे नम:
22. ॐ ह्रीं कवये नम:
23. ॐ ह्रीं त्रिनेत्राय नम:
24. ॐ ह्रीं बहुनेत्राय नम:
25. ॐ ह्रीं पिंगललोचनाय नम:
26. ॐ ह्रीं शूलपाणाये नम:
27. ॐ ह्रीं खड्गपाणाये नम:
28. ॐ ह्रीं धूम्रलोचनाय नम:
29. ॐ ह्रीं अभीरवे नम:
30. ॐ ह्रीं भैरवीनाथाय नम:
31. ॐ ह्रीं भूतपाय नम:
32. ॐ ह्रीं योगिनीपतये नम:
33. ॐ ह्रीं धनदाय नम:
34. ॐ ह्रीं अधनहारिणे नम:
35. ॐ ह्रीं धनवते नम:
36. ॐ ह्रीं प्रतिभागवते नम:
37. ॐ ह्रीं नागहाराय नम:
38. ॐ ह्रीं नागकेशाय नम:
39. ॐ ह्रीं व्योमकेशाय नम:
40. ॐ ह्रीं कपालभृते नम:
41. ॐ ह्रीं कालाय नम:
42. ॐ ह्रीं कपालमालिने नम:
43. ॐ ह्रीं कमनीयाय नम:
44. ॐ ह्रीं कलानिधये नम:
45. ॐ ह्रीं त्रिलोचननाय नम:
46. ॐ ह्रीं ज्वलन्नेत्राय नम:
47. ॐ ह्रीं त्रिशिखिने नम:
48. ॐ ह्रीं त्रिलोकभृते नम:
49. ॐ ह्रीं त्रिवृत्त-तनयाय नम:
50. ॐ ह्रीं डिम्भाय नम:
51. ॐ ह्रीं शांताय नम:
52. ॐ ह्रीं शांत-जन-प्रियाय नम:
53. ॐ ह्रीं बटुकाय नम:
54. ॐ ह्रीं बटुवेषाय नम:
Bhairav ji ke 108 naam
55. ॐ ह्रीं खट्वांग-वर-धारकाय नम:
56. ॐ ह्रीं भूताध्यक्ष नम:
57. ॐ ह्रीं पशुपतये नम:
58. ॐ ह्रीं भिक्षुकाय नम:
59. ॐ ह्रीं परिचारकाय नम:
60. ॐ ह्रीं धूर्ताय नम:
61. ॐ ह्रीं दिगंबराय नम:
62. ॐ ह्रीं शौरये नम:
63. ॐ ह्रीं हरिणाय नम:
64. ॐ ह्रीं पाण्डुलोचनाय नम:
65. ॐ ह्रीं प्रशांताय नम:
66. ॐ ह्रीं शांतिदाय नम:
67. ॐ ह्रीं शुद्धाय नम:
68. ॐ ह्रीं शंकरप्रिय बांधवाय नम:
69. ॐ ह्रीं अष्टमूर्तये नम:
70. ॐ ह्रीं निधिशाय नम:
71. ॐ ह्रीं ज्ञानचक्षुषे नम:
72. ॐ ह्रीं तपोमयाय नम:
73. ॐ ह्रीं अष्टाधाराय नम:
74. ॐ ह्रीं षडाधाराय नम:
75. ॐ ह्रीं सर्पयुक्ताय नम:
76. ॐ ह्रीं शिखिसखाय नम:
77. ॐ ह्रीं भूधराय नम:
78. ॐ ह्रीं भूधराधीशाय नम:
79. ॐ ह्रीं भूपतये नम:
80. ॐ ह्रीं भूधरात्मजाय नम:
81. ॐ ह्रीं कपालधारिणे नम:
82. ॐ ह्रीं मुण्डिने नम:
83. ॐ ह्रीं नाग-यज्ञोपवीत-वते नम:
84. ॐ ह्रीं जृम्भणाय नम:
85. ॐ ह्रीं मोहनाय नम:
86. ॐ ह्रीं स्तम्भिने नम:
87. ॐ ह्रीं मारणाय नम:
88. ॐ ह्रीं क्षोभणाय नम:
89. ॐ ह्रीं शुद्ध-नीलांजन-प्रख्य-देहाय नम:
90. ॐ ह्रीं मुंडविभूषणाय नम:
91. ॐ ह्रीं बलिभुजे नम:
92. ॐ ह्रीं बलिभुंगनाथाय नम:
93. ॐ ह्रीं बालाय नम:
94. ॐ ह्रीं बालपराक्रमाय नम:
95. ॐ ह्रीं सर्वापत्-तारणाय नम:
96. ॐ ह्रीं दुर्गाय नम:
97. ॐ ह्रीं दुष्ट-भूत-निषेविताय नम:
98. ॐ ह्रीं कामिने नम:
99. ॐ ह्रीं कला-निधये नम:
100. ॐ ह्रीं कांताय नम:
101. ॐ ह्रीं कामिनी-वश-कृद्-वशिने नम:
102. ॐ ह्रीं जगद्-रक्षा-कराय नम:
103. ॐ ह्रीं अनंताय नम:
104. ॐ ह्रीं माया-मन्त्रौषधी-मयाय नम:
105. ॐ ह्रीं सर्वसिद्धि प्रदाय नम:
106. ॐ ह्रीं वैद्याय नम:
107. ॐ ह्रीं प्रभविष्णवे नम:
108. ॐ ह्रीं विष्णवे नम:
भैरव जी की उत्पति | kaal bhairav ke 108 naam
अगहन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भैरव जी की उत्पत्ति हुई थी. इसी तिथि को भैरवाष्टमी कहा जाता है. भैरव जी की उत्पति की एक से अधिक कथाएं पुरानों में वर्णित है. हम यहा पर ३ कथाएं दे रहे है
भैरव जी की उत्पति कथा १
पुराणों के अनुसार भयानक दैत्य अंधकासुर के अत्याचार से देवता एवं धरती लोक त्रस्त था. अंधकासुर अपनी शक्तियों के मद में इतना अहंकारी हो गया था. की वह देवों के देव महादेव पर ही आक्रमण कर बैठा. इसी अततायी दैत्य का वध करने हेतु भगवान शिव जी के रुधिर से भैरव जी की उत्पति हुई थी.
भैरव जी की उत्पति कथा २ | bhairav baba ke 108 naam
यह प्रारंभ काल की बात है. एक बार ब्रह्मदेव ने भगवान भोलेनाथ की वेशभूषा और उनके गणों की रूपसज्जा को देख कर. उनकी अवहेलना की थी. अर्थात अपमान किया. ब्रह्मदेव के व्यंगपूर्ण शब्दों को महादेव ने दुर्लक्ष किया. लेकिन उनके शरीर से उसी समय कम्पायमान और विशाल दण्डधारी एक प्रचण्डकाय काया उत्पन हुई.
वही है भैरव जी यह काया ब्रह्मदेव का संहार करने के लिए आगे बढी. लेकिन महादेव के रोकने पर ही शांत हो गई. आगे चलकर महादेव ने महाभैरव जी को काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया. भैरव जी की पत्नी का नाम भैरवी है. जिसे महादेव के कहने पर देवी पार्वती ने अपने अंश से उत्पन किया था.
भैरव जी की उत्पति कथा ३ | kaal bhairav ke 108 naam
प्रजापति दक्ष की कन्या देवी सती ने अपने पिता की इच्छा विरुद्ध जाकर. भगवान भोलेनाथ से विवाह रचाया था. भगवान शिव शंकर के मूल स्वरूप से अनजान प्रजापति दक्ष अपनी पुत्री से बहुत अधिक नाराज हुए.
एक दिन प्रजापति दक्ष ने एक महायज्ञ का आयोजन किया. जिसमे पालनहार विष्णु तथा रचनाकार ब्रह्मा सहित कई अन्य महान ऋषि मुनि आमंत्रित थे. लेकिन प्रजापति की नाराजगी के कारण महादेव व देवी सती आमंत्रित नहीं थे.
भोलेनाथ के मना करने पर भी देवी सती अपने पिता के महायज्ञ में पहुंची. अपनी पुत्री को देखते ही प्रजापति दक्ष का गुस्सा उमड़ पडा और उन्होंने भगवान महादेव के प्रति अपशब्द कह डाले. जिसे देवी सती सह नही पाई. उन्होंने यज्ञ कुंड के स्वयं का दाह कर लिया.
अपनी पत्नी के विषय यह समाचार मिलने के बाद. महादेव ने भैरव जी का अवतार लेकर प्रजापति दक्ष का वध कर दिया. इस तरह काल भैरव जी यह तीन कथाएं काफी प्रचलित है.
भैरव जी का मनपसंद भोग
भैरव जी भगवान शिव के पांचवे अवतार है. वह अपने भक्तों की हर तरह के भय से रक्षा प्रदान करते है. काल भैरव की आराधना भारत, श्रीलंका, नेपाल और तिब्बत में भी की जाती है. भगवान भैरव जी एक दयालु और शीघ्र प्रसन्न होने वाले महान देवता हैं. उज्जैन में भैरव जी की जागृत प्रतिमा है. जहाँ लाखो भक्त उनके दर्शन से तृप्त होते है.
भगवान काल भैरव जी को हलवा, खीर, मीठे पुए , जलेबी का भोग लगाया जाता है. जो उनका मनपसंद हैं. भैरव जी को लगाया हुए मिठाइयों का भोग काले कुत्ते को खिलाना चाहिए. तथा भैरव जी को लगाया हुआ. काली उडद की दाल से बने दही भल्ले, पकोड़े व अदि भोग किसी गरीब व्यक्ति को खिलाना चाहिए.
भारतीय शात्रीय संगीत में एक राग नाम भैरव रखा गया है. जो भगवान भैरव जी से ही प्रेरित है. पुरे भारतवर्ष में भैरव जी को भिन्न- भिन्न नामों से पूजा जाता है. दक्षिण भारत के श्रद्धालु भैरव जी को शास्ता नाम से पूजते है. काशी का काल भैरव मंदिर भैरव जी का सबसे अधिक प्रसिद्ध मंदिर है.
भैरव जी कैसे दीखते है | Bhairav ji ke 108 naam
कोलतार से भी गहरा काला रंग, विशाल प्रलंब, स्थूल शरीर, अंगारकाय त्रिनेत्र, काले डरावने चोगेनुमा वस्त्र, रूद्राक्ष की कण्ठमाला, हाथों में लोहे का भयानक दण्ड , डमरू त्रिशूल और तलवार, गले में नाग , ब्रह्मा का पांचवां सिर , चंवर और काले कुत्ते की सवारी.
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नमस्कार दोस्तों मै हूँ संदीप पाटिल. मै इस ब्लॉग का संस्थापक और लेखक हूँ. मैने बाणिज्य विभाग से उपाधि ली है. मुझे नई नई चीजों के बारे में लिखना और उन्हें आप तक पहुँचाना बहुत पसंद है. हमारे इस ब्लॉग पर शेयर बाजार, मनोरंजक, शैक्षिक,अध्यात्मिक ,और जानकारीपूर्ण लेख प्रकशित किये जाते है. अगर आप चाहते हो की आपका भी कोई लेख इस ब्लॉग पर प्रकशित हो. तो आप उसे मुझे [email protected] इस email id पर भेज सकते है.