bhoot pret ki ansuni kahani

भूत पिसाच की अनसुनी कहानी | Bhoot pret ki ansuni kahani

प्रेत आत्मा की अतृप्त इच्छा | Bhoot pret ki ansuni kahani

मेरा नाम प्रमोद है, ये कहानी मेरे गाँव जूनागढ़ की है. हमारे गाँव में खंडू नाम के बुढे चाच रहते थे. उनको दिन में ६ या ७ बीडी बंडल पिने की आदत थी. उनके घर में उनके पत्नी के अलावा, उनका कोई नहीं था, कोई संतान भी नहीं थी.

चाचा किसी के के भी खेत में मजदुरी करके गुज़ारा किया करते थे. उनकी इस बीडी पीने की आदत से उनकी पत्नी और उनके साथ काम करने वाले मजदूरो को भी परेशानी उठानी पडती थी.

एक दिन चाचा बहुत बीमार हो गए, अब वह बिस्तर में पडे रहने लगे, क्योंकि वैद्यजी ने उन्हें घर पर ही रहने की सलाह दी थी, फिर चाची को ही मजूरी करने जाना पडता था. चाचा रोज चाची के पास हाता जोडके विनती करते थे की मुझे बीडी लाकर दो नहीं तो में मर जाऊंगा, या मुझे कमसे कम 5 रूपये तो दे दो, पर चाची उनकी एक नहीं सुनती थी.

Bhoot pret ki ansuni kahani  वीरान घाटी के भूत प्रेत

चाचा ने गाँव के लोगों से भी हात जोडके विनती की थी की उन्हें कोई बीडी बंडल लाकर दे दो, पर गाँव वालो ने भी दया नहीं दिखाई. एक दिन चाची सुबह घरसे मजदूरी के लिए निकल रही थी, चाचा बोले अब मेरा आखरी समय अगया है.

आज तो कम से कम एक बीडी पिला दो, चाची गुस्से में आकार बोली पागल बुढे मरजा और मरने के बाद गाँव में बीडी मागंते फिरना, ऐसा कहकर वह चली गयी.  जब वह श्याम को घर लौटी तब चाचा दरवाजे के पास मरे हुए पड़े थे और उनकी बीडी पिने कीआखरी इछा अधूरी रह गई.

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 गाँव वालो ने मिलके उनका अंतिम संस्कार किया था, दुसरे दिन ही चाचा का ही साथी मजदुर भानुदास रातके वक्त खेतों में फसल को पानी देने गया था, उसने मोटर चालू की और फ़सल को पानी देते-देते बीडी सुलगायी. 

  • कहनी का सबसे रोचक हिस्सा
Bhoot pret ki ansuni kahani

तभी उसे अचानक एक जानी पहचानी आवाज सुनाई दी ऐ भानु चल मुझे भी एक बीडी दे, आवाज सुनते ही भानुदास ने डर के मारे धुआ छोडने  की बजाय निगल लिया, जब वह पीछे मुडा तब उसे खंडू चाचा दिखे, उनका चेहरा पूरा सफेद था, आँखों के निचे काले दाग थे. बदन जैसे सुखके कांटा बनचूका था.

वह बार-बार एक ही चीज बोल रहे थे, भानु एक बीडी पिलादे. मरे हुए खंडू का प्रेत को देखकर भानुदास जगह पर बेहोश फिर भानुदास रात के 1: 30 बजने के बादभी घर नहीं आया है, इसलिए उसके भाई उसे देखने खेत पर आये.

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सभीने जब भानु को बेहोशी की हलत में पाया, तब उसके मुंह पर पानी मारकर उसे जगाने लगे. भानु होश में आया तभी उसने खंडू चाचा के भूत के बारे में सबको बताया और जब भानु ने अपनी जेब टटोली, उसमे से बीडी बंडल गायब था.

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घर लौटते वक्त सबने देखा कि खेत में बने चबूतरे पर पी हुई और कुछ आधी सुलगी बिडीया ती हुई पडी थी.  उस दिन से कभी-कभी खंडू चाचा की भटकती प्रेत आत्मा रातको आने-जाने वाले लोगों से बीडी मांग रही है.

उनके बरसी परभी गाँव वाले खेत के चबूतरे पर बीडी बंडल रख देते है और दुसरे दिन ही  चबूतरा पी हुई बिडियों से भरा होता है. माचिस के बारे में सवाल अगर आपके मन में आ रहा हो तो ये भी बता देता हु की चाचा के जेब में हमेशा माचिस रहती थी, अंतिम संस्कार के वक्त भी उनके जेब में गाँव लोंगो ने माचिस रख दी थी.

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माँ की तडपती रूह (जरुर पढे) | Bhoot pret ki ansuni kahani

दोस्तों इस दुनिया में अगर कोइ एक दिखने वाला भगवान है, तो वह है हम सब को जन्म देने वाली “माँ”, किसी भी परिस्थिति में माँ अपने बच्चो के हित में विचार करना नहीं छोडती.

कभी-कभी मृत्यु होने के बाद भी, उसकी रूह अपने बच्चों की सहायता करने के लिए तडपती है और शायद उसकी ममता के आगे भगवान को भी अपने नियमो को बदलना पडता है.

यह कहनी एक सत्य घटना के आधार पर लिखी गई है, कहानी भेजने वाले का नाम धर्मेश गुप्ता है, वह अहमदनगर के रहिवासी है.

आगे की कहनी धर्मेश जी की शब्दों में.

धर्मेश:- नमस्कार दोस्तों, मेरा नाम धर्मेश है, में अहमदनगर में रहता हूँ.  मेरा सूखी मछली बेचने का व्यापार है, सूखी मछली थोक भाव में खरीदने के लिए, मेरा मुंबई आना जाना लगा रहता है.

मै हमेशा “मालशेज घाट”(NH752) मार्ग से ही आता जाता हूँ, यह घटना साल १९९३  की है. एक दिन रात के वक्त मै अपने छोटे टेम्पो में मुंबई से सुखी मछलिया भरके ला रहा था.

उस वक्त रात के १:३० बज रहे थे, मेरी आँखों पर नींद सी छाने लगी थी.मालशेज घाट जैसे दुर्गम स्थान पर कोई अनहोनी ना हो जाये, इसलिए मैंने टेम्पो सडक के किनारे खडा किया और गाडी से बाहर निकल कर, मुंह पर पानी के छींटे मारने लगा.

तभी अचानक एक औरत मेरे पास दौडते हुए आयी और रोते-रोते बोली मेरी मदत कीजिए, हमारी कार का एक्सीडेंट हो गया है.

मै मुश्किल से बच पायी हूँ, किन्तु मेरा बच्चा और पति कार में ही फसे हुए है और कार बस ढलान से गड्ढे में गिरने ही वाली है.

मैंने भी एक सेकंड की भी देरी न करते हुए, उस औरत को अपनी गाड़ी में बिठा लिया, वह मुझे एक्सीडेंट वाली जगह पर ले गई.

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वहां का नजारा दिल दहलाने वाला था, गाड़ी घने पेड़ों के बीच में जाकर बुरी तरह से फस गई थी और ढलान पर टहनियों के सहारे टिकी थी. 

पेड़ और टहनियों के बीच में फसी उस गाडी के दरवाजे खोलकर, किसी का भी बाहर निकलना लगभग नामुमकिन सा लग रहा था.

यह सोचकर मैंने पीछे मुडकर उस औरत की तरफ नजर डाली, पर वो  मुझे कही नहीं दिखी.

लेकिन मुझे उसके बच्चे की रोने की आवाज आ रही थी, इसलिए मैने अपना ध्यान उसे बाहर निकल ने पर लगा दिया. उस फसी हुई गाडी में काफी अँधेरा था, किन्तु सडक के उसपर से आने वाली लैंप की धीमी-धीमी रौशनी में मुझे पीछे की सिट पर बच्चा दिख गया था,

और आगे की सिट पर दो लोग थे, जो ड्राईवर सिट पर था, उसकी शायद मौत हो चुकी थी,  क्योंकि उसके बाजुसे निकलने वाली पेड़ की नुकीली टहनी उसकी गर्दन में घुस गई थी.

बहुत ही डरावना नजारा था, गाड़ी भी कुछ ही मिनटों में गिरने के इशारे दे रही थी. उसवक्त रातको सडक बिलकुल वीरान थी.

किसी से भी मदत की उम्मीद लगभग ना के बराबर थी, फिर मैंने वही पर पडे एक नुकीले पत्थर से, जैसे तैसे पीछे का कांचफोड कर उस बच्चे को बाहर निकाल लिया.

Bhoot pret ki ansuni kahani  रूह का बदला

ईश्वर की दया से उसे कांच का एक टुकडा भी नहीं लगा था. बाहर निकलते ही  बच्चा वह औरत जहाँ पहले खड़ी थी, वहा देखकर दोनों हाथ आगे करके, किसी को गोद में लेने के लिए कह रहा था.

लगभग आधे घंटे में मैंने लोकल पुलिस को खबर दे दी, पुलिस को उस गड्ढे से कार निकलने में सुबह के ४ बज गए थे.

बाद मे जब कार में पडी उन दो लाशों को बाहर निकला गया, तो में आश्चर्यचकित रह गया, क्योंकि उस कार में जिस औरत की लाश थी, वही औरत रातको मुझे मदत के लिए बुलाकर लायी थी.

लेकिन वह तो कब की मर चुकी थी. फिर जब मैंने उस बच्चे की तरफ देखा, तो मुझे पूरी बात समझ में आ गई की वह औरत तो मर गई थी, मगर उसकी ममता नहीं मरी थी.

मौत होने के बाद भी उसको मुक्ति नहीं मिली पा रही थी, क्योंकि उसकी रूह अपने बच्चे की जान बचाने के लिए तडप रही थी.

कुछ दिन में ही पुलिस की मदत से उस बच्चे की जिम्मेदारी उसके रिश्तेदारों को सौपी गई.

तो मरे दोस्तों कहानी पूरी पढने के लिए धन्यवाद आपको यह Bhoot pret ki ansuni kahani  कैसी लगे ये कमेंट बॉक्स में जरुर बताये.

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