Bhoot Pret Ki Sachi Kahaniyan

भूत प्रेत की सच्ची कहानिया Bhoot Pret Ki Sachi Kahaniyan

नमस्कार दोस्तों Bhoot Pret Ki Sachi Kahaniyan इस ब्लॉग पोस्ट में लोगों द्वारा हमे भेजी गई. भूत प्रेत की सच्ची कहनिया और उससे जुडे डरावने अनुभव लिखे है. जो आपको भी डर का एहसास करा सकती है. इस पोस्ट में और भी नई नई भुतहा कहानिया ऐड हो रही है.

दिल दहला देने वाली भूत प्रेत की डरावनी कहानियां!!!!

1.पुराने खंडहर के भूत-प्रेत bhoot pret ki sachi kahaniyan

मेरा नाम है अखिलेश यह एक एक सच्ची भूतहा कहनी है. जो ५ अगस्त १९८८ मरे जन्म दिन पर हमारे साथ कोकण में घटी थी. जब हम ३ दोस्त राजू , माधव और मै मेरे जन्म दिन पर पार्टी के लिए. गाँव में कोइ एकांत जगह ढूंड रहे थे.

जहाँ पार्टी करते हुए. घरवाले या गाँववाले हमे पकडे नहीं. उसदिन मेरा दोस्त माधव बोला क्यों न हम गाँव के पुराने खंडहर में पार्टी करे. तभी राजू बोला नहीं वहा पर पहले एक तांत्रिक पिसाच साधना और भूत प्रेत उतारने का काम करता था.

और एक दिन खंडहर से वह मांत्रिक रहस्यमय ढंग से अचानक गायब हो गया था. और उस दिनसे आजतक कभी नहीं दिखा. अब उस जग भूत प्रेतों घूमते है. मैं बोला उस घटना को बीते हुए. बहुत साल हो गए है. आज वह सिर्फ एक पुराना खंडहर है.

और भूत प्रेतों की अफवाये होने की वजह से हमे वहा कोई ढूंढ भी नहीं पायेगा. उस वक़्त मेरी बात में माधव ने भी हाँ में हाँ मिलायी थी. फिर हम दोनों ने राजू को भी वहा आने के लिए मना लिया था.

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श्याम को ठीक 7 बजे एक बड़ी चार्जिंग बैटरी और शराब की बोतले लेकर. सेलिब्रेशन करने उस मांत्रिक वाले भूतहा खंडहर पहुँचे.

तब मैं और माधव भूत प्रेतों पर यक़ीन नहीं किया करते थे. उस श्याम हुआ ये था  की जब मैंने हमारे ग्लास भर रहा था. तब माधव रेडियो पर धीमी आवाज़ में गाने लगाने ने व्यस्त था. और राजू डर के मारे उस भूतहा खंडहर में इधर उधर देख रहा था.

मैंने तीनो के ग्लास फुल कर दिए थे. पर जब सबने चियर्स करने के लिए. अपना अपना ग्लास उठाया. तब तीनो के तीनो ग्लास खाली थे. मैं चौंक गया वह दोनों मेरी तरफ़ शक्क की नज़र से देखने लगे.

और कहा की हमारे हिस्से की भी तू ही पी गया. मैं कंफ्यूज था की. ये क्या हो गया. गुस्से में मैंने माधव को कहा अब तू ग्लास भर और राजू को कहा तू नज़र रख. उसने मेरे सामने फिर से ग्लास भरे. पर जब फिरसे हमने ग्लास उठाये.

और चियर्स किया तब फिरसे तीनो के तीनो गिलास खाली थे. यकींन करो सबकी फटके हाथ में आचुकी थी. माधव और मुझे पसीना छुट गया. Bhoot Pret Ki Sachi Kahaniyan

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राजू का तो रोना निकल गया. फिर हमे भी यक़ीन हुआ. की राजू की बात सच थी. खंडहर पर सच में कोइ भूत प्रेत का साया है. फिर हमने सारा सामान उठाया और खडंहर से बाहर निकल ने के लिए सरपट दौड़ लगाई.

पर लगभग बीस मिनिट तक हमें बाहर का रास्ता नहीं मिल रहा था. कुछ भी करके हम उस भयानक जगह से निकल नहीं पा रहे थे. मानो किसी भूल भुलैया या कहो छलावे में फस कर रह गए थे.

हम बार बार चक्कर काट कर एकही जगह पहुच रहे थे. तब भागते भागते माधव को किसी धक्का देकर जमीन पर गिर दिया. उसे धक्का खाके जमीन पर गिरते हमने देखा भी. उसिवक्त उसके हाथ से एक बोतल ज़मीन पर गिर कर फूट गई .

और शराब ज़मीन पर फ़ैल गई थी. तभी  कुछ ही सेकंड्स सारी शराब भापं बनकर उड़ भी गई. जैसे की किसी अदृश्य काली शक्ति ने पिली. फिर राजू बोला हमारे पास जितनी भी बोतले और चकना है.

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सब यही छोड़ दो. हमने वैसा ही किया. फिर जाकर हम उन प्यासी आत्माओं के खडंहर से बाहर निकल पाए. उस दिन पहली बार मुझे और माधव को अमानवीय उन शक्तियों पर यकीन होने लगा.

तबसे हम किसी भी पुराणी भूत प्रेतों वाली जगह से दूर रहते है. और एक बात मेरे समज में आयी हममें कितना भी साहस हो तो भी इन काली शक्तियों को कभी छेडना नहीं चाहिए.

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2.बिना सिर का प्रेत – bhoot pret ki sachi kahaniyan

मेरा नाम अजित पठान है. मै ठाणे का रहने वाला हूँ. ये सच्ची भूतहा कहानी साल १९९० की है. जब मै ९ साल का था. वो भयानक रात और वो डरावना नजारा. आजभी कभी कभी मुझे सपने में दिखाई देता है.

१९९० के “मई” महीने में पिताजी, ताऊजी बड़े भैया और  मैने. कसारा घाट में नाईट कैंपिंग करने की योजना बनाई थी.

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हम घरसे श्याम ६:०० बजे निकले थे. और रातके ९:२० तक कसारा घाट में पहुंचे थे.

हम पहली बार जंगल कैंप के लिए गए थे. वह सब तरफ से घनी झाड़ियाँ और बिचमे अच्छी खासी सुखी घास वाली जगह थी. और उस जगह बहुतसे अजीब तरह के प्राचीन पत्थर भी थे.

जिनपर एक  विचित्र भाषा में कुछ लिखा था. कोई अलग ही लिपि थी. हमने कार एक अच्छी जगह पार्क की. सबको तेज भूक लगी थी. तो हमने सबसे पहले चूल्हा जलाया. और पापा साथ में लायी हुई. मुर्गी काटने उन्ही अजीब पत्थरों के नजदीक गये थे.

बडे भैया, मै और ताऊजी बाकी तैयारियों में जुट गए. थोड़ी ही देर में जब पापा मुर्गी काटकर वापस आये. तो ताऊ बोले ये क्या झाड़-पत्ती काटके  लाये हो मुर्गी कहा है. फिर पापा ने भी उनके हाथ की तरफ देखा और वो झाड़-पत्ती देखकर.

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चौंक गए और झटके से उसे दूर फैंक दिया. पापा ताऊजी को बोले अरे नहीं भैया मै तो मुर्गी ही काटके लाया था. फिर ताऊजी बोले बिट्टू बेटा (मेरे पापा का घर का नाम बिट्टू है) अभी पार्टी शुरू भी नहीं हुई.

और तुजे चढ़ भी गई. हम दोनों भाई भी इस बात पर बहुत पर हंसे थे. फिर पिताजी और ताऊजी दोनों मिलके उसी जगह गए और देखा की मुर्गी वही पड़ी थी.

पापा बस सोचते ही रहा गए. की अभी उनके साथ ये क्या हुआ था?  फिर ताऊजी ने खुद मुर्गी काटी. और जब वो दोनों चूल्हे के पास आये. तब हमने पापा की चीखे सुनी की और जब हमने पीछे मुडके देखा. Bhoot Pret Ki Sachi Kahaniyan

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तो वो भयानक नजारा देखकर हम सब दहशत से दहल उठे. क्योंकि ताऊजी के हाथ में कोई कटी हुई मुर्गी नहीं. बल्कि किसी इंसान का कटा हुआ सिर था. ताऊजी ने थर थर कांपते हुए.

वो भयानक मुंडी घनी झाड़ियों में फेंक दी. हमने सब समान लाइट्स, टेंट बर्तन चूल्हा वही छोड़ दिया.

और जान बचके भागने लगे. ताऊजी गाड़ी स्टार्ट करने लगे. पर गाड़ी थी की स्टार्ट होने का नाम नहीं ले रही थी. तभी हमने वही कैंपिंग के लिए एक झाड़ी पर मिनी-लाइट बांधी थी. उसीकी धीमी-धीमी रौशनी में हमें दिखा.

की उन्हीं पत्थरों के बीच में से एक काली आकृति ऊपर उठी. और धीरे-धीरे हमारी तरफ बढ़ने लगी. और जब वो काला साया थोडा साफ दिखयी दिया.

तो डर से हम तीनो की चीख निकल गई थी. क्योंकि उसके कंधो पर सर नहीं था. बस उसका धड लड़खड़ाते हुए हमारी ओर आ रहा था. और शायद उसका ही सर हमने अभी-अभी  झाड़ियों में फेंका होगा. उस भयानक बिना सर वाले प्रेत को हमारी ओर आते देख.

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भय से हमारी दिलकी धड़कने बढ़ रही थी. पर उस वक्त नसीब से गाड़ी स्टार्ट हो गई. पर मुसीबत अभी खतम नहीं हुई थी. वो सिरकटा प्रेत हमारी गाड़ी के साथ साथ भाग रहा था.

और ताऊजी छोडके हम तीनो डर के मारे चिला रहे थे. उसदिन हमेशा धीमी गति से गाड़ी चलाने वाले ताऊजी ने उनकी जिंदगी में अबतक की सबसे तेज गति में गाड़ी चलाई थी. उस भयानक प्रेतात्मा ने पक्की सड़क लगने तक हमारा पीछा किया था.

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3. वसुंधरा रेस्ट हाउस की रात – bhoot pret ki sachi kahaniyan

एक विदेशी कंपनी को गोवा में नया प्लांट स्थापित करना था.इसलिए कंपनी ने उनके सबसे होनहार ऑफिसर रवि को गोवा भेजा. उसके रहने और खाने का इंतजाम वह वसुंधरा रेस्ट हाउस में किया था.एक लम्बे सफर के बाद.

रवि रात को ११ वसुंधरा रेस्ट हाउस पंहुचा और फ्रेश होने के बाद जब वह खाना खाने के लिए. मेज पर आया तब पौने बारह बज रहे थे. रेस्ट हाउस का गार्ड हीरालाल उसे कांपते हाथो से खाना परोस रहा था.

और वो बार बार घडी की और देख रहा था. रवीने उसके चहरे पर दिख रहे डर का का कारण पूछा. तब वो बोला की इस रेस्ट हाउस में ११ के बाद रुकना मतलब मौत. रवि बोला वो कैसे.

फिर हीरालाल बोला यहाँ पर रातके १२ बजे के बाद प्रेत आत्माए घुमती है. रवि बोला उसका भूतो पर बिलकुल विश्वास नहीं है.पर घडी में ११:५५ होते ही बिना बताये हिरालाल दरवाजे से बाहर भाग गया. Bhoot Pret Ki Sachi Kahaniyan

रवि उसको भागता देखके ठहाके मारकर हंसने लगा. उसने आराम से खाना खत्म किया और सोने से पहले नहाने और ब्रश करने बाथरूम में गया. वह बाथरूम में टूथब्रश कर ही रहा था की उसे अचानक बहुत ठंड महसूस हुई.

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उसने इस बात पर गौर नहीं किया की मई के महीने में इतनी ठण्ड कैसे? ब्रश करने के  बाद वो नहाने चला गया.

शावर लेते वक्त उसे एसा लगा की बाथरूम में और भी कोई है.पर इस बात को उसने अपना वहम माना और नहाने लगा. तभी अचानक बंगले की लाइट चली गई.

और नहाते नहाते रवि किसी से टकराके बाथरूम में ही गिर पड़ा. चोट लगने पर वो जोर से चिलयाया. पर उसकी दर्दभरी आवाज सुनकर भी हीरालाल अंदर नहीं आया. रवि नहाकर अँधेरे में ही गिरते पड़ते. बाथरूम से बाहर निकला.

तब तक लाइट आचुकी थी. उसको हीरालाल पर बहुत गुस्सा आरहा था. क्योंकि उसकी आवाज सुनकर भी उसे देखने नहीं आया. वो टॉवेल लपेट कर बाहर आया और दुर से ही देखा तो हिरलाल आंख बंद कर के बैठा है.

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रवीने उसे बुरा भला सुनाया. और सुबह काम से निकलवाने की धमकी दी पर हीरालाल ने कोई जवाब नहीं दिया. वह बस अपनी जगह आंख बंद कर के बैठा रहा. वो वैसे ही पैर पटकते हुए जाकर सो गया.अगली सुबह रवि की आंख बहुत शोर शराबे में खुली. आवाजे सुनकर वह कमरे से बाहर निकला.

रवि को दिखा की उसके ऑफिस के लोग और पुलिस  घर में घूम रहे है. हीरालाल वही दरवाजे के पास खड़ा था. रवीने उससे जाकर पूछा ये सबलोग यहाँ क्या कर रहे है? और ये पुलिस क्यों आयी है?. पर  इस बार भी हिरलाल ने कोई जवाब नहीं दिया.

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फिर उसे स्ट्रेचर लेकर दो वार्ड बॉय बाथरूम में जाते दिखे. रवि भी उनके पीछे-पीछे गया. वहाँपर पुलिस और कंपनी के मालिको ने घेरा बनाया था. रवि चिल्ला रहा था की क्या हो रहा है. मुझे भी बताओ. पर रवि की आवाज किसी को सुनिई नहीं दी.

और जब  रवीने खुद आगे जाकर देखा. की वहा क्या है. फिर जो नजारा उसने देखा उसे देखकर उसकी उसकी आंखें फटी की फटी रह गई. क्योंकि बाथरूम में उसकी लाश पड़ी थी. (यह लेखक द्वरा लिखी कहानी है)

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4. कब्रिस्तान का सोना – bhoot pret ki sachi kahaniyan

सालो बाद एक चोरी के इल्ज़ाम में हुई सजा काटके मानसिंग अपने गाँव शैतान पूरा में लौटा था. गाँव में आतेही आदत अनुसार वह सबसे पहले जुआ खाने में पंहुचा और श्याम तक सारे पैसे जुए में उड़ा दिये.

पैसे खतम होने के बाद मारपीट करने की वज़ह से उसको जुआ खाने से बाहर निकाल दिया. फिर मानसिंग कुछ देर के लिए बाजूवाले चबूतरे पर जाकर लेट गया. कुछ देर के लिए उसकी आँख लगी ही थी.

की उसे अजीब-सी आवाजे सुनिई दी. मानसिंग की नींद टूटने से वह थोडा गुस्से में था. उसने उठके देखा. तो वहा चबूतरे पर एक बूढ़ा आदमी अकेला बैठा था. जिसके दाहिने हाथ में तीन उंगलिया नहीं थी.

और वह बार-बार एक सिक्का हवामे उछाल रहा था और बाजूमे देखके किसी से पूछता चित या पट और ख़ुद जितने पर उछल-उछल कर ताली बजा रहा था.और हारने पर रोता. पर चबूतरे पर तो वह अकेला ही बैठा था.

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तो वह बात किस्से कर रहा था? उसने ने सोचा की ये कोई पागल लगता है. तभी उसकी नज़र उस सिक्के पर पड़ी जो वह बार-बार उछाल रहता. वह था खरा शुद्ध सोना.

सिक्का देखते ही मानसिंग उसके पास जाकर बैठा और वह सिक्का उससे छिनने की कोशिश की. पर छीन नहीं पाया. वह बुढा आदमी उससे दूर जाके खड़ा होगया और बच्चे की तोतली आवाज़ में बोला मैं अपना सोना किसी को नहीं दूंगा.

तुम्हे अगर चाहिए तो कब्रिस्थान से जाकर निकल लो. वहा बहुत सारा सोना है. मानसिंग को कुछ समझ नहीं आया. वह उससे वह सिक्का छीनता इस्ससे पहले ही. उस पागल ने हवामे ही किसी के कंधे पर हाथ रखा, और कहा चलो हम कही और जाके खेलते है और भागते हुए गाँव में चला गया.

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मानसिंग को पक्का यक़ीन हुआ. की वह बुढा सौ प्रतिशत पागल है. पर उसकी की नज़र में वह खरे सोने का सिक्का भर गया था. उसके बाद वह घर पर लौटा. पर अभी भी उसके दिमाग़ में उस पागल बूढ़े ने कही वह बात और सोने का सिक्का घूम रहा था.

बिस्तर पर लेटे-लेटे रातभर वह कब्रिस्थान और सिक्के के बारे में सोच रहा था. तभी उसे अचानक कुछ याद आया उसने तैखने में जाकर एक पुराना संदूक बाहर नीकाला.

और उसमे कुछ ढूँढने लगा. उसे वैसा ही एक सोने का पुराना सिक्का मिला. जैसा उस पागल के हाथ में था. फिर उसे उसके दादाजी की कही Bhoot Pret Ki Sachi Kahaniyan  बात याद आयी. कई सदियों पहले गाँव में जब लोग मरते थे. तब उनके मुँह में सोने का सिक्का या सोने की कोई वस्तु रखके उन्हें जंगले वाले पुराने कब्रिस्तान में दफनाया करते थे.

पर धिरे धीरे वह प्रथा बंद हो गई और भूत प्रेतों के ख़ौफ़ से सारे लोग जंगल छोड़कर यहा आकार बस गए. बादमे वह पुरना कब्रिस्तान कुछ अघोरी तंत्रिकोने मंत्र तंत्र की शक्तियों से-से हमेशा के लिए बंद करवा दिया. फिर उसके बाद से उस कब्रिस्तान की भयानक प्रेत आत्माओ के डर से वहा कोई क़दम नहीं रखता.

इतना सब कुछ समझ ने के बाद मानसिंग के मन में एक शैतानी खयाल ने जन्म लिया. उस कब्रिस्तान में से सोना निकलने का खयाल. उसने उसी रात तैखने से खुदाई का सामान. मशाल और कुल्हाड़ी ली और चल पड़ा अकेले ही मुर्दों को जगाने.

रातके लगभग 12: 30 बजे उसने ने बड़ी सावधानीसे गाँव पार किया और थोडा दूर जाके मशाल जलाई. कुछ ही समय में वह कब्रिस्थान पंहुचा और बिना किसी भूत प्रेतों और डर की परवा किए.

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उसने पहली कब्र खोदी उसमे एक बच्चे का कंकाल था. मानसिंग ने कंकाल के मुह में उंगलिया डालके वह सोने का सिक्का निकल लिया. उसी वक़्त उसे हवामे अचानक बहुत ज़्यादा ठंड महसूस होने लगी. कहते है ना अगर आस पास कोई भूत प्रेत का साया हो.

तो अचानक ही ग़ज़ब की ठण्ड महसूस होती है.ये उसीका संकेत था. पर मानसिंग के आँखों पर लालच का पर्दा था. सोने के आलावा वह किसी और के बारे में वह सोच ही नहीं पा रहा था.

फिर उसने और एक कब्र को खोदके कंकाल के मुह से सिक्का निकल लिया. मानसिंग ने दोनों कब्रों को पहले जैसा मिटटी से ढक दिया. और उनपर एक ख़ास निशान बनाया. ताकि अगली बार उसे पहचान सके. मानसिंग सुबह होने से पहले जंगले से बाहर निकल आया.

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पर वह इस बात बिलकुल भी अंजान था. की उसने अपनी दर्दनाक मौत का भयानक खेल शुरू कर दिया है. इसी तरह वह और दो दिन कंकालो के मुह से सिक्के निकलते रहा. पर कहते है ना हर चीज के अंत का एक सही समय निश्चित होता ही.

वैसेही इस सबका भी अंत उसी रात को होने वाला था. क्योंकि वह रात अमावस्या की थी. मतलब सारी काली शक्तियों के जगने का समय. मानसिंग हमेशा की तरह मध्यरात्रि कब्रिस्थान में पंहुचा.

अबतक उसने 5 कब्रों में से सोना निकला था और इसबार उसने छटी कब्र खोदनी शुरू की और जब उसे कंकाल मिला. तब हमेशा की तरह उसने खोपड़ी के मुह में उंगलिया डाली और वह सोनेका सिक्का धुंडने लगा.

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तभी उसकी उंगलियों को उस कंकाल के मुह में  कुछ महसूस होने लगा और अचानक उस कंकाल का जबड़ा कस गया किसी जाल तरह और उसकी उंगलिया उसमे फस गई.

भय से मानसिंग को पसीना छुटने लगा. तभी उस कंकाल के हाथ पाँव हिलने लगे और अचानक उस पूरे कंकाल में जान आने लगी और वह धिरे-धिरे पूरी ताकत के साथ उसने ज़मीन पर बैठे हुए मानसिग को भी अपने साथ खड़ा कर दिया.

डर से मानसिंग की घिग्घी बँध गई. साक्षात् एक प्रेत का कंकाल उसके सामना खड़ा था. तभी उसे पीछे किसी के होने का एहसास हुआ और जब उसने पीछे मुडके देखा.

तब उसकी रूह कांप उठी. क्यंकि उसने आजतक जितनी भी कब्रों में से सोना निकला था. वह सभी कब्रों के कंकाल मिटटी से एक के बाद एक बाहर निकल रहे थे.

वह दृश दिल दहला ने वाला था. धिरे धीरे सारे कंकाल उसकी तरफ़ चलके आ रहे थे.पर असली डर और दर्द एक एहसास मानसिंग को तब हुआ. जब उसको अपनी उंगलियों के न होने का एहसास हुआ.

उसके दाहिने हाथकी तीन उंगलिया उस कंकाल के दातों में थी और वह उसे चबा रहा था. मानसिंग खून से सना हाथ लेकर ज़मीन पर गिरा और भागने की कोशिश करने लगा. पर वह चाह कर भी वहा से भाग नहीं पा रहा था.

क्योंकि डर के मारे उसके पैरो से जान निकल गई थी. फिर एक के बाद एक सारे प्रेत उसके इर्द गिर्द खड़े हो गये और पूरे जंगले ने के दर्दनाक चीख सुनी और अब हर रोज़ मानसिंग जेब में 6 सोने के सिक्के लेकर गाँव में घूमता है.

और अकेलेमे ही कई लोंगो से बात करते दिखाइ देता है. क्योंकि उस कब्रिस्थान के सोने पर एक भयानक शाप था.

जो भी वहासे सोना चुराने का अपराध करता है. कब्रिस्तान के भूत प्रेत उसे पागल कर देते है.

मतलब जिन कंकालो का सिक्का निकला जाता है. वह उनकी प्रेत  आत्माए सिक्का निकलने वाले के साथ जीवन भर के लिए बात करते रहती है. (यह लेखक द्वरा लिखी कहानी है)

5. पीपल के पेड़ वाली लाश bhoot pret ki sachi kahaniyan

हितेश और अकबर हिरा बस्ती में रहने वाले दोस्त गाँव के लोगों को अचानक डराने के लिए मशहूर थे. लोगों को डराने में उन्हें एक अलग ही मज़ा मिलता था.

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पर उनकी इस आदत से उनके घर वाले और गाँव वाले दोनों परेशान थे. अचानक डराने के बाद गाँव के कुछ लोगों ने उनसे कई मर्तबा कहा भी था.की जब तुम पर बीते गी तब तुम्हें पता चलेगा.

की असली डर एहसास क्या होता है? उन दोनों का एक और शौक भी था. और वह था असली भूत प्रेतों को ढूँढना. उन्हें जब भी किसी भूत प्रेत आत्मा के बसेरे वाली जगह का पता चलता.

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तब वह दोनों उस जगह जाकर भटकने वाली भूत प्रेतों को आवाज़ देकर बुलाने की कोशिश करते. एक दिन उन्होंने गाँव के चौराहे पर लोगों से सुना की हमारे गाँव के जंगल में से शहर के लिए.

जो पुराना रास्ता जाता है ना. उसी रस्ते पर सबसे बड़ा जो पीपल का पेड़ है. उस पर सालो पहले हमारे गाँव के बिरजू को दाहिना हाथ और बायाँ पैर काट के लटकाया था. क्योंकि बगल वाले गाँव की निर्मला नाम की विधवा से वह प्रेम करता था.

एक दिन जब घर के सब लोग सरपंचजी के बेटे की शादी में गए थे.तब बिरजू छुपके से निर्मला से मिलने गया था. उसवक्त उन दोनों को समय का ध्यान नहीं रहा. Bhoot Pret Ki Sachi Kahaniyan

और जब निर्मला के घर वाले वापस लौटे तो उन्होंने बिरजू और निर्मला को एक साथ पलंग पर पाया. फिर निर्मला के भाई बिरजू के खून के प्यासे हो गए. और बिरजू प्राण बचाने साइकिल लेकर जंगल में भागा गया था.

पर पीपल के पास वह उन भाईयो के हाथ लगा. उन्होंने किसी वहशी दरिंदों की तरह बेरहमी से उसका दाहिना हाथ और बायाँ पैर कुल्हाड़ी से काट कर अलग कर दिए थे.

उसके शरीर पर कोई ऐसी जगह नहीं बची थी की जिसपर खून नहीं था. फिर उसको उसी पीपल के पेड़ पर लटका दिया. और निचे उसकी साइकिल रख दी थी.

दो दिनों तक उसकी साइकिल पर उसका खून टप-टप टप करके गिरता रहा. बहुत भयंकर मौत मारा था वो. उस नज़ारे को देखने वाले की रूह कांप उठती थी.

उस वक़्त से लेकर आजतक बिरजू की प्रेतात्मा जंगल में साइकिल की घंटी बजते हुए भटकती है.और रातको अगर कोइ गलती से भी वहा जाता है. तो उसे उस पेड़ पर लटकती बिरजू की लाश दिखती है.

हितेश और अकबर ने सारी बाते ठीक से सुन ली थी. और अब उन दोनों को एक नया भूत और भूतिया जगह मिल चुकी थी. अगले ही दिन पोर्णिमा थी. और हितेश का जन्मदिन भी था.

तो वह दोनों श्याम को ही मोटर साइकिल लेकर सिनेमा देखने शहर गए. और आते वक़्त जान-बुचकर हाईवे छोड़कर जंगल के कच्चे रस्ते से आये, और जब दोनों पीपल के पास पहुचे.

तब उन्होंने गाड़ी की हेड लाइट की रौशनी में अपना हमेशा का प्रेतात्माओ को ललकारने का तमाशा चालू कर दिया. अकबर पेड़ के पास गया. और बोला कहा है बे बिरजू डरपोक साले सामने आ.Bhoot Pret Ki Sachi Kahaniyan

हितेश ने भी दो चार भले बुरे शब्द कह दिए. तभी अचानक तेज और बर्फ जैसी ठंडी हवाए चलने लगी. और उस भयानक श्मशान घाट  जैसी शांति में एक आवाज़ गूंजी ट्रिंग… ट्रिंग… ट्रिंग… ट्रिंग… ये आवज सुनते ही दोनों के रोंगटे खड़े हो गए.

दोनों फटा फट गाड़ी पर बैठकर वहासे भागने लगे. हितेश गाड़ी को किक पर किक मार रहा था. पर गाड़ी कुछ भी करके.स्टार्ट नहीं हो रही थी, और उस साइकिल की घंटी की आवाज़ अब धीरे-धीरे बढ़ रही थी. नज़दीक आ रही थी.

तभी उनकी गाड़ी चालू हो गई; और पल भर के लिए दोनों खुश हो गए. की अब इस भूतहा जंगले बाहर निकल जायेंगे. हितेश ने गाड़ी तेजी से गाँव की बस्ती की ओर दौड़ाई. और लग बघ आधे घंटे तक गाड़ी चलते रहा.

तभी पीछे बैठा अकबर बोला भाई अबतक बस्ती क्यों नहीं आयी. 10 मिनिट का तो रास्ता है और ये सभी पेड़ एक जैसे क्यों लग रहे है. हितेश बोला में भी कबसे वही सोच रहा हूँ. तभी एक जगह गाड़ी धक्के खाते हुए अचानक बंद पड़ गई और सामने का नजारा देख कर दोनों की रुह कांप उठी.

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दोनों की रगों में बहता खून मानो भयरस बन गया. क्योंकि उनकी गाड़ी उसी पीपल के सामने रुकी थी. और उसपर बिरजू की लाश लटक रही थी.

उसके निचे रखी साइकिल पर उसका खून टप-टप टप की आवाज़ करते हुए गिर रहा था. और पास में ही उसके कटे हुए हाथ और पैर पड़े थे. इस भयानक नजरे को देख. उन्होंने मोटरसाइकिल वही छोड़ दी और हड़बड़ी में बस्ती छोड़ शहर की तरफ़ भागने लगे.

पोर्णिमा के चाँद की रौशनी में लगभग ठीक ही दिख रहा था. फिर भी गिरते पड़ते दोनों भूत-भूत चिलाते हुए भाग रहे थे. तभी फिर से उन्हें वह ट्रिंग-ट्रिंग की आवाज़ सुनाई देने लगी, और उसीके डर से दोनों बेसुध भागते रहे.

कुछ देर बाद जब उन्हें पक्की सडक दिखने लगी. तब वह आवाज अचानक बंद-सी हो गई. आवाज़ बंद होने के बाद उन्हें लगा की शायद उस प्रेत आत्मा की हद वही तक थी.

उन्होंने खुदको थोड़ी तस्सली दी और एक दुसरे का हाथ पकड कर धीरे-धीरे चलने लगे. रोड के नज़दीक पहुंचे ही थे. की उन्हें फिर से एक बार ट्रिंग-ट्रिंग आवाज़ सुनाई दी दोनों घबराकर आसपास देखने लगे.

तो सामने एक आदमी खड़ा था जिसने एक हाथ में लाल टेन थी और दुसरे हाथ से साइकिल पकड़ राखी थी. उसने पास आकार पूछा अरे लडको सुंनो तो ये हिरा बस्ती जाने का रास्ता कौनसा है.

उस आदमीके मुह से अपनी बस्ती का नाम सुन कर दोनों का ख़ौफ़ थोडा कम हुआ. उन्होंने कहा ये सामने वाली सडक से जाईये 40 मिनिट का रास्ता है. दोनों को पसीने से नहाते देख. उस आदमी ने हसते हुए पूछा.

तुम दोनों कही से दौड़ लगा के आ रहे हो क्या. या फिर कोई प्रेत आत्मा देख ली. दोनों ने भी बिरजू और पीपल के पेड़ वाली सारी हक़ीक़त बता दी. वह आदमी भी सब बड़ी ग़ौर से सुन रहा था. तभी उसने बाते सुनते-सुनते लालटेन साइकिल पर टांग दी और दोनों से बात करते-करते  उनके नज़दीक गया.

और सिर्फ़ एक सवाल पूछा कौन-सा हाथ और कौन-सा पैर कटा था. पर इस सवाल का जवाब उसने ख़ुद ही दिया. उसने अपना दाहिना हाथ उखाड़कर उसने हितेश के सामने फैंका और बायां पैर उखाड़ कर अकबर के सामने फैंका और उन्हें अपना खून से सना हुआ विकृत रूप दिखाया.

असली प्रेतात्मा को सामने खड़ा देख. दो नो की आंखे फटी की फटी रह गई. एक शब्द भी उनकी ज़ुबान से निकल नहीं पाया. दोनों बर्फ की तरह वही जम गए.

कुछ क्षण में ही उनके शरीर ज़मीन पर गिरे और सिर्फ डर से ही उनकी मौत हो गई. और अब उनकी असली आत्मा देखने की इछा भी पूरी हो चुकी थी. क्या आपकी कोइ इछा है. किसी असली प्रेत को देखने की ? कमेंट करके जरुर बताये.

हल्लो दोस्तों  यह ब्लॉग पोस्ट पढने के लिए आपका धन्यवाद . इसी ब्लॉग पोस्ट को विजिट करते रहे. मै आपके लिए भूत और प्रेतात्माओ की सत्य कहानिया पोस्ट करते रहता हूँ. और इस ब्लॉग पोस्ट पे कौन सि कहानी आपको सबसे ज्यादा पसंद आयी ये कमेंट करके जरुर बताये. (यह लेखक द्वरा लिखी कहानी है)

6.कब्रिस्तान से आयी 2 प्रेतात्मा bhoot pret ki sachi kahaniyan

हेल्लो दोस्तों यह भूतहा कहानी  मुझे उमेश त्रिपाठीजी ने भेजी है. जो पटना में रहते है. यह भुतहा कहानी उनके परिवार के एक सदस्य के साथ घटित हुई थी. आगे की कहानी उमेशजी के शब्दों में.

उमेश :- हेल्लो दोस्तों यह भुतहा कहानी साल १९९९ की है. जब मैं मेरी बहन रीना और हमारा चचेरा भाई अमित हम तीनो मेरे जन्मदिन की पार्टी करके.

रातको शहर से घर पर लौट रहे थे.उसवक्त ११:४५ बज रहे थे. और बस स्टॉप से घर तक आने के लिए. एक भी ऑटो रिक्शा नहीं था.

और ज्यादा देर बस स्टॉप रुकना ठीक नही था. क्योंकि वहा नशीडी और बेवडे घुमने लगे थे. इसलिए मैंने ही उन दोनों को कहा की आज के लिए चलके जाते है.

दोनों मेरी बात मान गए. फिर हम तीनो लगभग सवा एक घंटे में घर पर पहंचे. उसवक्त सब सो गए थे. इसलिए बिना आवाज किये. हम तीनो भी जाकर सो गए.

सुबह जब सब लोग उठे तो घर में एक अजीब  तमाशा लगा हुआ था. मेरा चचेरे भाई अमित रीना के कपडे पहनकर. सज सवर के आईने के सामने बैठा था. बिलकुल लडकियों की तरह.

उसने हाथो में चुडिया भी पहन रखी थी. उन्हीको वो बार बार कान के पास खनका रहा था.जैसे लडकिया करती है वैसे.

उसे ऐसा देखकर सब लोग अवाक थे. की अमित ऐसा क्यों कर रहा है. और जब मेरे संपत चाचा अमित के पिता उसके पास जाकर.

गुस्से में बोले अमित सुबह सुबह तुमने यह क्या नया नाटक लगा रखा है. फिर अमित ने मुड़कर जिस भयानक नजर से संपत चाचा को देखा. Bhoot Pret Ki Sachi Kahaniyan

उससे वह दो कदम पीछे हट गए. में भी ठीक उनके पीछे ही खड़ा था. उसकी आंखे जैसे अंगार बरसा रही थी. और अमित साफ साफ एक लड़की की आवाज में चाचा को बोला.

“तू कौन है बे.” “जो मेरे ही घर में मुझे ही डांट रहा है”.

यह सुनकर मरे चाचा का माथा सनक गया. और जब उन्होंने उसे मरने के लिए हाथ उठाया. तब अमित ने उनका हाथ पकड के मरोड़ दिया.

और फिर एक बड़े बुजुर्ग आदमी की भारी आवाज में बोला. “मेरी बेटी पर हाथ उठाने की तेरी जुर्रत कैसे हुई. और चाचा को एक कसके कंटाप बजा दिया.

और बोला “ऐ चल जा मेरे लिए अंगेजी शराब की बोतल और एक तली हुई मुर्गी ला.

वह कंटाप इतनी जोर से लगा की चाचा को चक्कर आने जैसा महसूस हुआ था. इसलिए जब चाचा उसके सामने वाली कुर्सी पर सिर पकड़कर पर बैठ गए. Bhoot Pret Ki Sachi Kahaniyan

तब अमित एकदम से बोला क्या हुआ पापा? सिर दुःख रहा है क्या? आपके लिए दवाई लाऊ.

यह विचित्र नजारा देखकर. सब लोग हैरान हो गए थे. क्योंकि अमित जितना अपने पापा की इजत करता है. उतनी और किसी की नहीं करता. पर आज उसने अपने पिताजी पर हाथ कैसे उठा दिया?.

संपत चाचा को तो जैसे सदमा लगा था. बादमे अमित फिर से आईने के सामने सजने सवर ने लगे.

उधर रीना रूम से बाहर निकली. सबको एक जगह खड़ा देखकर. उसने पूछा सब लोग एसे क्यों खड़े है?. फिर उसकी नजर अमित पर गई.

फिर उस पगली ने गुस्से में आकर उसके बाल नोच डाले. और टपली मारकर बोली अभी के अभी मेरा ड्रेस उतार. और मेकअप के बॉक्स को तो छूना भी मत.

सब रीना को मना कर रहे थे. उसके पास खड़ी मत रहे. पर उसको तो सिर्फ अपनी ड्रेस चहिये थी.

फिर अमित ने कुर्सी से उठकर उसेके भी कंटाप बजा दिया. उसके कान से तो सीधा खून निकला था.

फिर रीना अपना कान पकड कर एक जगह शांत बैठ गई. जैसे की वह सुन्न पड़ गई है.

फिर अमित नजाने कैसे अचानक बेहोश होकर जमीन पर गिर गया. फिर मैंने ही उसे उठाकर बेड पर लेटा दिया था.

उसके बाद तक़रीबन आधे घंटे के बाद उसे होश आया. उठते ही पूछा मुझे ये रीना के कपडे किसने पहनाये है?

मैंने कहा तूमने खुद पहने है. और आज तो तूने संपत चाचा और रीना को मारा भी.

वह बोला मैंने ऐसा कुछ नहीं किया. मै तो अभी अभी सोकर उठा हूँ. यह सुनकर तो सबको झटका लगा. उसके बाद दोपहर तक ऐसा ही चलता रहा.

कभी रीना की ड्रेस पहनता. तो कभी अगंरेजी शराब और तली हुई मुर्गी मांगता. कभी भारी आवाज में बात करता. तो कभी लड़की की आवाज में बात करता.

फिर पड़ोस वाली निर्मल आंटी ने ये सब नजारा देखा. तो वह बोली इस पर किसी भूत प्रेत का साया लगता है. और वही अमित से यह सब कारवा रही है.

फिर उन्होंने उनके पहचान के एक ओझा बाबा को बुलवाया. बाबा ने अमित की सारी हरकते देखकर कहा.

इसपर एक मरे हुए बाप और बेटी का भुत चढ़ा है. उन दो प्रेत आत्माओं की अकाल मृतु हुई थी. और अभी तक उनकी प्रेत आत्माए इस संसार से मुक्ति पाने के लिए भटक रही है. Bhoot Pret Ki Sachi Kahaniyan

फिर उन्होंने सवाल पूछा. कल रात को यह लड़का (अमित) कहा गया था?. मै ने कहा की कल मेरा जन्मदिन था.

इसलिए एक छोटीसी पार्टी करने हम शहर गए थे. अमित भी हमारे साथ आया था. ओझा बाबा बोले बस इतना ही.क्या अमित ने घर पर लौटते वक्त कुछ अजीब चीज देखि थी?.  याफिर किसी अनजान और सुमसाम जगह गया था क्या ?

तब मुझे याद आया की घर के रास्ते में जो कब्रिस्तान पड़ता है. आते वक्त हमने उसके अंदर जाकर एक गोल चक्कर लगाके आने की शर्त लगाई थी.

और वह शर्त अमित ने जीती थी. वह अकेला पुरे कब्रिस्तान का गोल चक्कर लगाके आया था.

यह बात मैंने बाबा को बतादी. मेरी बात सुनकर ओझा बाबा बोले फिर तो तुम लोगों ने ही दोनों प्रेत आत्मा को घर में बुलवाया है.

उस वक्त मरे पिताजी मुझे बहुत चिलाये थे. फिर ओझा बाबाने उपाय बताया. एक जोड़ी लड़की का ड्रेस एक बोतल अंग्रेजी शराब और तली हुई मुर्गी.

अमित पर से उतार कर.(जैसे नजर उतार ते है) कब्रिस्तान में रखकर आओ. फिर अमित ठीक होगा. फिर हमने बाबा ने बताया वैसे हो किया.

लड़की की ड्रेस. अंग्रेजी शराब, तली हुई मुर्गी और कुछ सामान लिखके भी दिया था. वह सब रातको ही दादाजी उस कब्रिस्तान में रखकर आये.

फिर अगली सुबह तक अमित पर से वह साया उतर गया.और वो रोज की तरह बात करने लगा. पर अमित को उसने क्या क्या किया और घर में किस किस को पिटा कुछ भी याद नहीं था.

Bhoot Pret Ki Sachi Kahaniyan to be continued…………

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