खून की प्यासी चुड़ैल Bhutiya Chudail Ki Kahani

Bhutiya Chudail Ki Kahani :- इस कहानी को पढने के बाद शायद आप भी चुड़ैल के अस्तित्व पर विश्वास करने लगेंगे. पढ़िए डरा देनेवली प्यासी चुड़ैल की भयानक कहानी.

खून की प्यासी चुड़ैल Bhutiya Chudail Ki Kahani

ये उस वक़्त की कहानी है.जब मैं गाँव में अपनी दादी के साथ रहता था.मेरी उम्र 15 साल थी. मुझे भूत प्रेतों चुड़ैल इन सबको असली में देखने का शौक चढ़ा था. चुड़ैल की कहनीया तो मै बड़े मजे से सुनता था. और हमेशा  बोलता था कि कितना मज़ा आयेगा अगर किसी चुड़ैल से सचमे मेरी मुलाकात हो जाए तो.

मेरी दादी की किराना और ढूध की डेरी ऐसी दो दुकाने थी. दादी और मैं मिलके दोनों दुकान चलते थे. गाँव में हमारा बड़ा नाम था. हर रात को दुकान बंद करके दादी घर चली जाती. और मैं अपने दोस्तों के साथ चौराहे पर बैठकर. एक दुसरे को भूत प्रेतो की कहानिया सुनते. कभी-कभी गाँव के बडे बूढ़े भी हमारे साथ बैठ के हमें चुड़ैल की कहानिया सुनाते.

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और कभी कभी तो गाँव वालो से छुपते छुपाते हम तरह-तरह की हॉन्टेड जगह पर जाते भी थे. इन सब में सब से आगे मैं होता था. मुझे उन अमानवी शक्तियों को ललकार ने का बड़ा शौक था. पर मेरी ज़िन्दगी में एक दिन ऐसा आया कि मुझे एहसास  होगया. कि मैं कितनी बड़ी मुसीबत को बुलावा देरहा था.

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उस रात दुकान बंद करके दादी घर पर चली गई थी. और मैं दोस्तों के साथ दुकान की सीढ़ियों पर ही पंचायत लगाके बैठ गयाथे. मेरे एक दोस्त बाबूलाल ने चुड़ैल की एक सच्ची घटना बताई. पड़ोस के गाँव वाले कुछ लोग हप्तेभर पहले रात को जंगल से लौट रहे थे.

उसी वक़्त उनपर एक चुड़ैल ने हमला कर दिया था. उनमेसे एक को तो उसने किसी शिकार की तरह दबोच लिया. और उसकी गर्दन पर अपने लम्बे नुकीले दात गड़ाकर खून गटकने लगी. बाकि लोग जैसे तैसे जान बचाके भागे निकले थे. और उनका वह दोस्त जिसका चुड़ैल ने खून पिया था. वह अगले ही दिन जंगल में तालाब के पास बेहोशी की हालत में मिला था.

लोग उसे हॉस्पिटल में ले गये वह बच तो गया. पर उसके शरीर में हमेशा खून के कमी रहने लगी थी. और आज सुबह ही उसकी मौत हो गेई. अब उस जंगल के रास्ते से उस गाँव का कोई भी आता जाता नहीं. वह हमारे गाँव के लम्बे रास्ते से होकर जाते है.

मै बोला कि ये चुड़ैल भूत प्रेत सब कुछ अफवा होगी. जंगल में कुछ औरही ही कांड हो रहा होगा. फिर मज़ाक-मजाक में हम सब में शर्त लगी जो कोई जंगल के बीचो बीच जाके पुराने पीपल के पेड़ पर लाल कपडा बाँध के आयेगा.

वो सब से बड़ा जिगरवाला माना जायेगा. उस चनोती के लिए तीन लोग आगे आए मै,आशीष और विवेक और दुसरे ही दिन रात को दुकान बंद करने के बाद. सब ने घरपे बोल दिया कि दोस्त का बर्थडे है. थोडा लेट आएंगे. और फिर मैंने एक लाल रिबिन जेब में राख ली.

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और विवेक की मोटरसाइकिल पर हम रात के 9 बजे निकले. और बाकि दोस्त जंगल की सीमा रेषा के पास खड़े रहे. आशीष मोटरसाइकिल चला रहा था. उस दिन चाँदनी रात थी इस वज़ह से आसपास का नजारा ठीक ठाक दिख रहा था.

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तीनो को डर भी लग रहा था. पर बात अब इजत की थी. इस लिए वह काम करना ही था. आशीष मोटरसाइकिल चलाने में उसताद था. इसलिए जंगल वाले रास्तो पर बाइक हर बार वही चलता था. हम जंगल के बीचो बीच पीपल के पास पहुंचे. मैं बाइक से उतरा और विवेक मुझे टोर्च लाइट का फोकस दिखने लगा.

मैने लाल रिबिन निकली और जाके पीपल की टहनी को बाँध दी. और जब मैं पीछे मुड़ा तब एक नुकीले पत्थर से ठोकर लगके. मुंह के बल गिर गया. मेरे पैर में गहरी चोट  लगी .  और खून पानी की तरह बहने लगा. मेरे दोस्तों ने मुझे सहारा देकर बाइक पर बिठाया.

फिर हम गाड़ी स्टार्ट करके गाँव की तरफ़ निकल पड़े. बस थोड़ी ही दूर गए थे. की पीछे किसी की गुर्रा ने आवाज़ आयी. आशीष ने मोटरसाइकिल रोकदी, और हम तीनो ने बाइक पर ही बैठे-बैठे पीछे मुडके देखा. और उस वक्त  जो नजरा हमारी आँखों के सामने था. उस देखकर कुछ समय के लिए हमारे दिल धडकना नाक साँस लेना भूल गये.

क्योंकी मेरा खून जिन पत्थरों पर गिरा था. उन पत्थरों को एक औरत एक-एक करके चाट रही थी. वह औरत पूरी तरह खून से नहाई हुई थी. सिर्फ उसकी आँखों की सफ़ेद पुतलिया दिख रही थी. खून चाटते वक़्त वह हमारी तरफ़ ही दिख रही थी.

कहानी का अंत  

तभी अचानक उसने पत्थर फैका और हमारी तरफ़ झपट पड़ी. और फिर आशीष ने किसी रेसर की तरह बाइक भगाई. मै उसे देखने के लिए पीछे मुड़ा था. तो वह औरत चार पैरो पर किसी नरभक्षी भेडिये की तरह हमारा पीछा कर रही थी.

एक पल के लिए तो उसने हमें पकड़ ही लिया था. पर क़िस्मत से आशीष के हात में बाइक थी. उसने गाड़ी 80 या शायद 90 के स्पीड से भगाई थी. और जब हम जंगल की सीमा के बाहर आ गये तब नजाने. वो भयानक चुड़ैल कही गायब हो गई.

हमारे वापस लौटने तक सारे बडबोले बजर बट्टू दोस्त घर भाग चुके थे. फिर अगले दिन दादीने देखा कि मैं कुछ परेशांन और डरा हुआ हु. तो उसने मुझेसे सब सच-सच उगलवा लिया. और मैंने भी सब हक़ीक़त बता दी. उस दिन दादी ने मुझे खूंटे से बांधकर मारा था.

और बाकि दोस्तों के भी घर जाकर दादीने यह कारनामा बता दिया. सब को जम के मार पड़ी. फिर दादी ने सिर्फ़ दो दिनों के अन्दर हमारी दोनों दुकान और बंगाल गाँव के पाटिल को बेच दिया. और एक रात तो जबरन उसने मुझे हनुमानजी के मंदिर में सुलाया था.

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उसकेबाद मै गाँव छोड़ने को तैयार नहीं था. पर दादी मुझे मार कूट के मुंबई ले आयी. जहा मै अभी भी रहता हूँ. कुछ दिनों बाद जब सब नार्मल होगया . फिर मैंने दादी से गाँव छोड़ने का कारण पूछा. तब दादी ने मुझे बताया कि पत्थरो पर गिरा हुआ. मेरा खून चाटने वाली वह औरत एक रक्तपिसचिनी चुड़ैल थी. और अब उसको मेरे खून का चस्का लगया है.

अभीभी वह चुड़ैल मेरी तलाश में भटक रही होगी. इसलिए मेरी सुरक्षा के लिये दादी ने गाँव छोड़ने का निर्णय लिया. लेकिन  दादी के कहने के अनुसार अगर वह रक्तपिसचिनी चुड़ैल आज भी मुझे ढूंड रही है. तो आपको क्या लगता है. क्या वह मुझे यहांपर भी ढूंड पायेगी?

तो दोस्तों आपको ये Bhutiya Chudail Ki Kahani कैसी लगी ये  ये कमेंट करके जरुर बताये .

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