सुमित्रानंदन पंत की जीवनी | Sumitranandan Pant Ki Jivani

सुमित्रानंदन पंत वह कवी थे. जिन्होंने सात वर्ष की आयु से ही कविता की पंक्तियां रचना शुरू कर दिया था. वह कविताओं की रचना अत्यंत सहज किया करते थे. आज यह दुनिया उन्हें एक युग प्रवर्तक कवि के रूप में भी पहचानती है. सुमित्रानंदन पंत हिंदू साहित्य के जगत में छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक माने जाते हैं. साहित्य जगत में उन्हें विलियम वर्ड्सवर्थ नाम से ख्याति मिली प्राप्त है. आज इस लेख में हम sumitranandan pant ki jivani देखने वाले है.

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सुमित्रानंदन पंत की जीवनी | Sumitranandan pant ki jivani

नाम सुमित्रानंदन पंत
जन्म20 मई 1900
जन्म स्थान उत्तर-पश्चिम प्रांत,कौसानी गांव
मौत28 दिसम्बर 1977
मृत्यु स्थानउत्तर प्रदेश, इलाहाबाद
पेशा लेखक, कवि
भाषा हिंदी, संस्कृत, बँगला और अंग्रेजी
पुरस्कार पद्म भूषण, ज्ञानपीठ पुरस्कार

सुमित्रानंदन पंत का आरंभिक जीवन

सुमित्रानंदन पंत का जन्म साल 1900 मई 20 को बागेश्वर ज़िले के कौसानी गांव में हुआ था. उनके जन्म के कुछ घंटो के बाद ही. उनकी माताजी का देहांत हुआ था. सुमित्रानंदन पंत भरण पोषण उनकी दादी जी ने किया था. वह अपने माता-पिता की आठवीं संतान थे. जन्म के पश्चात उनका नाम गोंसाई दत्त रखा गया था. लेकिन उन्हें अपना नाम कभी भी पसंद नहीं था.

इसलिए उन्होंने आगे चलकर अपना नाम सुमित्रानंदन पंत रख लिया. उनके पिता चाय के बगीचे में प्रबंधक के पद पर कार्यरत थे. पंत जी के भाई संस्कृत व अंग्रेजी के जानकार होने के साथ साथ. हिन्दी व कुमाऊँनी भाषा में कविताओं की रचना करते थे. सुमित्रानंदन का बचपन कौसानी. जैसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण स्थान पर. कुदरत को निहारते हुए बीता था. शायद इसी बात ने उन्हें कवी हृदय बना दिया.

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सुमित्रानंदन पंत की शिक्षा व उपाधि

सुमित्रानंदन पंत की प्राइमरी कक्षा की शिक्षा कौसानी में स्थित वर्नाक्यूलर स्कूल में हुई. वहां से आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए. उन्हें अल्मोड़ा के गवर्नमेंट स्कूल में जाना पड़ा. वहां पर ही उन्हें अपना नाम गोसाईं दत्त बदलकर  सुमित्रानंदन पंत रखा था. साल 1918 में वह अपने मँझले भाई के साथ काशी में आकार क्वींस कॉलेज में शिक्षा ग्रहण करने लगे.

वहां से हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण होने के बाद. वह इलाहाबाद के म्योर कॉलेज पढ़ने चले गए. साल 1921 महात्मा गाँधी जी की अगवाई में असहयोग आंदोलन हो रहा था. उस समय बापूजी के कहने पर. भारतीयों ने ब्रिटिश विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं अन्य अंग्रेज सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार किया था.

देशभक्त सुमित्रानंदन पंत जी ने भी कॉलेज की पढ़ाई आधी छोड़ दी. उन्होंने अपने आगे की पढाई घर पर ही जारी रखते हुए. हिन्दी, संस्कृत, बंगाली और अंग्रेजी भाषा के साहित्य का अध्ययन किया था.

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सुमित्रानंदन पंत का वैवाहिक जीवन

सुमित्रानंदन पंत आजीवन अविवाहित रहे. उन्होंने कभी शादी नहीं की.

सुमित्रानंदन पंत की नौकरी व व्यवसाय | Sumitranandan pant ki jivani

सुमित्रानंदन पंत साल 1938 में रूपाभ नामक पत्रिका में संपादक के रूप में कार्यरत थे. साल 1950 से 1957 तक उन्होंने आकाशवाणी में परामर्शदाता के पद पर काम किया था. आगे चलकर उन्होंने अपना जीवन साहित्य सृजन व सेवा में अर्पित कर दिया.

सुमित्रानंदन पंत का साहित्यिक परिचय | Sumitranandan pant ka sahityik parichay

सुमित्रानंदन पंत के साहित्य जीवन की शुरुआत बाल्यकाल से ही हो गई थी. जब सात वर्ष आयु के सुमित्रानंदन चौथी कक्षा में पढ़ रहे थे. उसी समय उन उन्होंने कविता लिखना शुरू किया था. जब वह अल्मोड़ा में रहते थे. उस समय वहापर कई सारी साहित्यिक गतिविधियाँ होती रहती  थी. जिसमे सुमित्रानंदन पंत भाग लिया करते थे.

जब उन्होंने कविता लेखन की शुरुआती  की थी. तब उन्होंने ‘बागेश्वर के मेले’, ‘वकीलों के धनलोलुप स्वभाव’ जैसी छोटी मोटी कविताएँ लिखी थी. अपने शिक्षा काल में जब वह ८ वी कक्षा में थे. उस वक्त उनका परिचय नाटककार गोविन्द बल्लभ पंत, श्यामाचरण दत्त पंत, इलाचन्द्र जोशी व हेमचन्द्र जोशी  जैसी हस्तियों से हुआ था. उनसे सुमित्रानंदन काफी प्रभावित हुए थे.

वह अपने स्कूल में होने वाले नाटक में अक्सर स्त्री की भूमिका निभाया करते थे. जिसकी स्कूल में काफी सराहना होती थी. अल्मोड़ा से निकलने वाले अल्मोड़ा नामक अखबार में उनकी कविताएं छापती थी. जिसे लोगों द्वारा काफी पसंद किया जाता था. साल 1916 की छुट्टियों में जब वह अपने घर कौसानी गए थे. उस खाली समय में उन्होंने “हार” नामक शीर्षक से. २०० पन्नों का उपन्यास लिखा था. सुमित्रानंदन पंत के  जीवनकाल में उनकी 28 पुस्तकें प्रकाशित हुई थी. जिनमें कविताएं, पद्य-नाटक और निबंध शामिल हैं.

सुमित्रानंदन पंत कुछ रचनाएँ निम्नलिखित है | Sumitranandan pant ki jivani

कविताएं

वीणा (1919)

ग्रंथि (1920)

पल्लव (1926)

गुंजन (1932)

युगांत (1937)

युगवाणी (1938)

ग्राम्या (1940)

स्वर्णकिरण (1947)

स्वर्णधूलि (1947)

उत्तरा (1949)

युगपथ (1949)

चिदंबरा (1958)

कला और बूढ़ा चाँद (1959)

लोकायतन (1964)

गीतहंस (1969)

कहानियाँ

पाँच कहानियाँ (1938)

उपन्यास

हार (1960)

आत्मकथात्मक संस्मरण

साठ वर्ष : एक रेखांकन (1963)

सुमित्रानंदन पंत के पुरस्कार व सम्मान |Sumitranandan pant ka jeevan parichay

1. साहित्य अकादमी पुरस्कार (1960) – बूढ़ा चाँद’ काव्य संग्रह लेखन के लिए.

2. पद्मभूषण(1961) – हिंदी साहित्य सेवा के लिए.

3. ज्ञानपीठ(1968) – चिदम्बरा लेखन के लिए.

4. सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार.

सुमित्रानंदन पंत की अमर स्मृतियाँ

सुमित्रानंदन पंत के गाँव कौसानी में. जहाँ उनका घर है. वह आज सुमित्रा नंदन पंत साहित्यिक वीथिका’ नामक संग्रहालय बन चुका है. कौसानी वह गाँव है जहाँ सुमित्रानंदन बाल्यकाल बीता था. उस संग्रहालय में  उनके कपड़े, चश्मा, कलम व आदि व्यक्तिगत वस्तुएं सुरक्षित रखी हुए है. Sumitranandan pant ka jeevan parichay

इसके अलावा उनको प्राप्त हुए. ज्ञानपीठ पुरस्कार का प्रशस्तिपत्र, हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा मिला साहित्य वाचस्पति का प्रशस्तिपत्र एवं उनकी रचनाएं वहां पर मौजूद है.

सुमित्रानंदन पंत के अनमोल विचार | Sumitranandan pant ki jivani

1. जिस प्रकार अनेक रंगों में हँसती हुई फूलों की वाटिका को देखकर. दृष्टि सहसा आनंद-चकित रह जाती है. उसी प्रकार जब काव्य-चेतना का सौंदर्य हृदय में प्रस्फुटित होने लगता है, तो मन उल्लास से भर जाता है.

2. कलाकार के पास हृदय का यौवन होना चाहिए. जिसे धरती पर उड़ेल कर उसे जीवन की कुरूपता को सुंदर बनाना है.

3. यथार्थ का दर्पण जिस प्रकार जगत की बाह्य परिस्थितियाँ हैं, उसी प्रकार आदर्श का दर्पण मनुष्य के भीतर का मन है.

4. हमारा मन जिस प्रकार विचारों के सहारे आगे बढ़ता है. उसी प्रकार मानव-चेतना प्रतीकों के सहारे विकसित होती है.

5. कोई यथार्थ से जूझकर सत्य की उपलब्धि करता है और कोई स्वप्नों से लड़कर. यथार्थ और स्वप्न दोनों ही मनुष्य की चेतना पर निर्मम आघात करते हैं और दोनों ही जीवन की अनुभूति को गहन गंभीर बनाते हैं.

6. स्वप्नद्रष्टा या निर्माता वही हो सकता है. जिसकी अंतर्दृष्टि यथार्थ के अंतस्तल को भेदकर. उसके पार पहुँच गई हो. जो उसे सत्य न समझकर केवल एक परिवर्तनशील अथवा विकासशील स्थिति भर मानता हो.

सुमित्रानंदन पंत का निधन  | Sumitranandan pant ki jivani

महाकवि सुमित्रानंदन पंत जी का निधन. साल 1977, दिसम्बर, 28 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था.

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