1. मेरी पहली आशिकी – school ka pehla pyar
हेल्लो दोस्तों मेरा नाम साहिल है. यह मेरी स्कूल वाली प्रेम कहानी है. ये तब की बात है जब में 9 वी कक्षा में पढ़ रहा था. और मुझे पहली बार प्यार हुआ था.
मेरे पापा पुलिस में थे. उस समय हम लोग ऋषिकेश में रहते थे, एक साल गर्मी की छुट्टियों में अचानक से पिताजी तबादला देहरादून में हो गया और उनके साथ मेरा भी स्कूल बदल गया.
उन्होंने मेरा दाखिला देहरादून के एक कान्वेंट स्कूल में करवाया. उस स्कूल में मेरा पहला दिन था. इसीलिए मैं समय से पहले पहुंचा. school ka pehla pyar
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और हमेशा की तरह क्लास रूम की मेरी मनपसंद जगह बीच वाली स्कूल बेंच पर जाकर बैठ गया. मै अपने बेंच पर नई क्लास की किताबे खोलकर देख रहा था.
उसी समय मेरी लाइफ में उसकी एंट्री हुई. और वह मेरे पास आकर खड़ी हो गई. तब मेरा ध्यान बस किताब में ही था. उसने जरा से तीखे स्वर में कहा हेल्लो मिस्टर यहाँ पर इस लाइन में लड़कियां बैठती है.
और ये मेरी जगह है, चलो तुम वहां दाहिने तरफ वाली लाइन में बैठ जाओ. जहाँ लड़के बैठेते है.
उसके साथ उसकी सहेलियां थी. वह सभी अपने मुंह पर हाथ रखकर हंस रही थी. मै इतनी सारी लड़कियों को अपने आस-पास खड़ा देख थोडा घबरा गया था.
मै हडबडा ते हुए उठा. मैंने एक हाथ में खुली किताब उठाई. और दूसरे हाथ में बैग, जो जल्दी-जल्दी में खुला ही रह गया था. और जैसे ही मै बेंच के बीच से बाहर निकला.
मेरी खुली हुई बैग में से सारी किताबें और कॉपियां निकलकर उसके पैरों के पास गिर गई. अब वह मेरी तरफ देखने लगी और मै उसकी तरफ, अभी कुछ देर पहले सुनी हुई.
उसकी तीखी आवाज से लग रहा था की वह फटसे गुस्सा करेगी. पर अचानक से उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान खील उठी.जो उस वक्त मेरे दिल पर किसी कार्बन कॉपी की तरह छप गई. मै बस कुछ लम्हे उस मुस्कान को देखता ही रहा.
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और उस वक्त क्लास में सिर्फ हम दोनों ही थे. उसकी सहेलियां शायद किसी की चापलू सी करने खातीर क्लास से बाहर चली गई थी.वह हस्ते हुई मुझसे पहले निचे बैठी और मेरी किताबे उठाने लगी. मैने वही उसकी ही बगल वाली बेंच पर लडको की कतार में अपना बैग रखा.और निचे बैठ कर उसके साथ किताबे समेटने लगा. मैंने कहा माफ़ करना. मेरी वजह से तुम्हे तकलीफ हुई. उसने मेरी आँखों में दखते हुए.
कहा, कोई बात नहीं और खड़ी होकर इकट्टा की हुई किताबे मेरे हाथ में रख दी. फिर मैंने पूछा तुम्हारा नाम क्या है? वह बोली प्रणाली. मैने उसके बिना पूछे ही मेरा नाम साहिल बता दिया.
मै बस एकटक प्रणाली को ही देखे जा रहा था. वह पहली नजर में होने वाला प्यार था. उस वक्त उसके दिल का क्या हाल था? ये तो में नहीं बता सकता, लेकिन एक कातिलाना मुस्कान देकर वह दौड़ते हुए क्लास रूम के बाहर चली गई. तब तक स्कूल में छात्रों की चहल पहल होने लगी थी.
कुछ ही देर में नये स्कूल का पहला पीरियड शुरू हो गया. क्लास रूम में मेरी नज़रे तो सामने थी. पर खयालों में बस प्रणाली की ही मुस्कान थी.
मैंने खुदको बहुत रोका पर नजरे भी बार-बार उसकी तरफ मुड रही थी. पर मै जब भी किसी बहाने उसकी तरफ देखता. उसकी नजरे बस ब्लैक बोर्ड पर ही होती थी.
इसी तरह दोपहर लंच टाइम हो गया, क्लास के आधे से ज्यादा बच्चे कैंटीन में लंच करने गए थे. पर मै अपने नए दोस्तों के साथ खाना खाने क्लास में ही बैठ गया.
खुशकिस्मती से प्रणाली भी क्लास मे बैठी थी और उसके पास में बैठने वाली उसकी सहेली मिराली
मेरे पास बैठने वाले सुमित की छोटी बहन थी. यह मुझे तब पता चला जब मिराली सुमित के पास आचार लेने आयी थी. मुझे मेरे प्यार तक पहुचने का रास्ता शायद दिख गया था.
लंच के बाद क्लास फिर चालू हुई. मैंने सुमित से अच्छी वाली फ्रेंडशिप कर ली थी. स्कूल का पहला दिन खतम होने वाला था.
मुझे अभी भी याद है, उस दिन हिंदी का आखरी पीरियड खतम हो रहा था. मेरी नजर सामने थी.
तभी बोतल का एक ढक्कन लुढकते हुए, मेरे पैरो के पास आकर रुक गया. मैंने उसके हाथ में उठाया और बस पूछने ही वाला था की यह ढक्कन किसाका है.
तभी मेरे कानो ने वही मीठी आवाज फिरसे सुनी. साहिल वह मेरी बोतल का ढक्कन है इधर दो. प्रणाली मेरी तरफ देखते हुए बोल रही थी.
उसके चहरे पर वही कातिलाना मुस्कान थी. वो मुस्कान याद कर, घर जाते जाते मेरा तो दिन बन गया. फिर अगले दिन भी मै समय से पहले स्कूल में पंहुचा.
पर प्रणाली स्कूल में ही नहीं आयी थी. मै बस उसकी बैठने की जगह को बार-बार देखे जा रहा था. एक दो बार उसकी सहेली मिरालिने मुझे बेचन अवस्था में देख भी लिया था.
फिर मैंने लंच टाइम में सुमित को मेरे दिल का हाल बताया. सुमित ने उसकी बहन से पूछा की प्रणाली क्यों नहीं आयी. वह मेरी तरफ देखते हुए बोली.
उसे कुछ अर्जेंट काम था, इसलिए वह आज नहीं आ सकी. अगले दिन रविवार था और अब प्रणाली सीधे सोमवार को ही दिखनेवाली थी. यह सोच सोच कर मेरा दिल उदास हो गया था.
अगली सुबह रविवार को जल्दी उठाकर मै जॉगिंग के लिए और मेरा नया एरिया देखने घर से बाहर निकला था. उस शहर में मै किसी को भी नहीं जनता था.
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इसीलिए अकेले ही वहां की गलिया और पार्क के चक्कर काट रहा था. तभी मेरे साथ एक प्यारी दुर्घटना हुई, एक गली में जॉगिंग करते-करते.
मै एक लेडिज साइकिल से टकरा गया और कमाल की बात वह साइकिल प्रणाली चला रही थी. वह भी शायद सुबह-सुबह ताजी हवा में घुमने निकली थी.
जब हम टकराए तब उसने तो खुद को किसी तरह संभाला. पर मेरे दाहिने घुटने चोट आयी और में निचे गिर गया. उस वक्त मेरी नजर प्रणाली के चहरे पर से हट नहीं रही थी.
उसके चेहरे पर काली जुल्फे लहरा रही थी. पिंक जॉगिंग सूट में क्या गजब दिख रही थी. रात भर जिसकी याद में नींद नहीं आ रही थी, वह सुबह मरे सामने थी. ख्वाब है या सच कुछ समय के लिए पता ही नहीं चला.
फिर मुझे जमीन पर गिरा हुआ देख, उसने साइकिल वही छोड़ी. और मेरे पास दौड़ी चली आयी और मुझे सहारा देकर उठाया.
मेरा एक हाथ उसने अपने कंधे पर रखा और मुझे नजदीक के ही एक चौराहे पर बिठा दिया. फिर वहां बैठकर कुछ देर हम दोनों ने बाते की.
उसने मुझे बताया की वह मेरे ही एरिया में ही रहती है. थोड़ी देर इधर-उधर की बाते करने के बाद. जाते वक्त मैंने उससे पूछा क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगी.
जवाब में प्रणाली ने हाँ कहा था. फिर हम रोज एक साथ स्कूल आने जाने लगे. हम दोनों काफी करीबी दोस्त बन गए. एक दुसरे से हर एक बात शेयर करते थे.
स्कूल के बाद घर आकर फोन पर घंटो बात करते थे. फिर मैंने 9 वी कक्षा के अंत में उसे प्रपोज किया था. और उसने हाँ कहा था. मुझे आज भी याद है.
वो हसीन लम्हा प्रणाली मानो जैसे मेरे प्रपोज का ही इंतजार कर रही थी. उस दिन मै अपने बैग में रेड रोज लेकर गया था. हम दोनों क्लास में जल्दी पहुचे थे. और वह Geography का होमवर्क पूरा कर रही थी. मै उसके पास जाकर खड़ा हुआ.
वह बोली क्या हुआ, इस तरह क्यों देख रहे हो और जवाब में मैंने उसे गुलाब देते हुए. I LOVE YOU कह दिया. उसने कुछ पल मेरी आँखों में देखा. और I LOVE YOU TOO बोल कर मुझे HUG किया.
उसके बाद हम 12 वी कक्षा तक साथ रहे और फिर मेरे पापा का मुंबई में तबादला हो गया.
और मुझे मुंबई आना पड़ा मेरी जिंदगी में अचानक से एक खाली पण आ गया था. कभी-कभी फोन पर बातें हो जाती थी. मतलब अभी भी होती है.
पर अब उसकी शादी हो चुकी है और वह पटना में रहती है. मैं आज भी कभी जॉगिंग करने जाता हूँ. तो मुझे उससे टकराने वाला वह लम्हा याद आता है.
और आंखे कुछ देर के लिए नम हो जाती है. दोस्त पूछते है. तेरी आँखों में आँसू है क्या.
फिर मै कहता हूँ. नहीं, बस कुछ कचरा चला गया है. उसके साथ बिताये वह सुनहरे पल. मेरे दिल में हमेशा जिंदा रहेंगे. क्यों की वह मेरा स्कूल का पहला प्यार था और आखरी साँस तक रहगा.
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2. सुनील और त्रिशा प्रेम कहानी – school ka pehla pyar
वह दसवी कक्षा मे मेरा स्कूल का पहला दिन था. जब मै मेरे पहले प्यार से गलती से टकराया था. वहां पर एक छोटासा झगड़ा भी हुआ था. पर हम दोनों को क्या पता की यह छोटासा झगड़ा आगे चलके इतना गहरा रिश्ता बन जायेगा.
की हम एक दूसरे की यादों में हमेशा के लिए बस जायेंगे. मेरा नाम है सुनील कुमार, मै पटना से हूँ और यह मेरी स्कूल लाइफ लव स्टोरी है.
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लव स्टोरी – साल १९९३, मै पहले ही दिन स्कूल के लिए लेट हो गया था और उपर से उसी साल स्कूल के सभी कक्षाओं के बैठने की जगह यानिकी रूम बदल दिए गए थे. इसीलिए, लगभघ 600 की आबादी वाले उस बडे से विद्यालय में.
मै अपनी 10 वी कक्षा का ठिकाना ढूंढ रहा था. इसी हड़बड़ी में भागते-भागते एक घने बालो वाली सुंदर सी लड़की से मेरी टक्कर हो गई.
और उसने जो किताबे पकड रखी थी. वह सारी जमीन पर बिखर गई. किताबे गिरने के बाद वह कुछ समय, मुझे ऐसी घूरती रही की जैसे मैंने उसकी स्कूटर ठोक दी हो.
मै भी उसकी आँखों में हो देख रहा था. क्योंकि मुझे उसे देखकर पहली नजर वाला प्यार जो हो गया था. मेरे चहरे पर मुस्कान थी, पर उसके चहरे पर गुस्सा था. school ka pehla pyar
वह मुझे बोली अंधे हो क्या, या फिर तुम्हारे पिताजी ने स्कूल खरीद लिया है. मैने कुछ भी जवाब नहीं दिया. वह गुस्से में बोला रही थी और मै बस बेशर्मो की तरह मुस्कुराए जा रहा था.
हम दोनों निचे बैठके किताबे इकट्टा करने लगे. मैंने जमा की हुई किताबे उसके हाथ में देते हुए, सॉरी कहा और साथ में यह भी पूछ की तुम कौनसे क्लास में पढ़ती हो.
उसने कहा तुम्हे इससे क्या? सच में वो गुस्से में भी बड़ी प्यारी लग रही थी. फिर उसने मेरे हाथों से किताबे छीनली और अपनी सुंदर और लंबी जुल्फे लहराती हुई वहां से चली गई.
उसे दखने के बाद मै कुछ देर के लिए भूल गया था. की मुझे 10 वी कक्षा ढूंडनि है.
होश मे आते ही मै फिरसे क्लास धुंडने लगा. और कुछ ही मिनटों में अपने क्लासरूम में पहुच गया और हमेशा की तरह आखरी बेंच पर जाकर बैठ गया.
हर साल की तरह स्कूल के पहले दिन सबका परिचय लिया जा रहा था. तभी मुझे वही आवाज फिरसे सुनाई दी जिसके कारण मुझे उस दिन पहली बार अपनी दिल की धड़कन सुनाई दी थी.
उसका नाम सुनने के लिए मैंने अपने आस पास बैठे दोस्तों को चुप कराया. उसका नाम था त्रिशा और थोडी ही देर में मेरे परिचय की बारी आयी तब मैंने अपने पहले प्यार का ध्यान आकर्षित करने के लिए.
खुदका परिचय जान बूझकर उंची आवाज में दिया. उस वक्त तो पुरे क्लास का ध्यान मैने खिंच लिया था. क्लास में उपस्थित गणित अध्यापक शशिकांत, मेरी तरफ देखते ही रहे.
उस पुरे दिन क्लास में मैंने त्रिशा देखने की कोशिश की थी. पर वह भी जान बूझकर अपनी सहेली के पीछे छिपती रही.
किसी तरह उससे बात करने के लिए मै 2 दिन कोशिश करता रहा. मै रोज स्कूल में समय से पहले जाता था. पर कुछ भी करके उससे बात नहीं हो पा रही थी.
हर रोज घर पर जाने के बाद में त्रिशा के बारे में ही सोचता रहता और एक सोमवार को मेरी मेहनत और चाहत रंग लायी.
मै रोज की तरह समय से पहले स्कूल पहुंच गया था और उस दिन ठान लिया था की कुछ भी हो जाये आज त्रिशा से दोस्ती करके ही रहूँगा.
और उसी दिन किस्मत कहो, या संजोग त्रिशा मुझसे पहले ही क्लास में आकार बैठी थी. अब बता नहीं सकता मुझे उस वक्त कितनी खुशी हुई थी.
मैने क्लास में त्रिशा को देखने के बाद उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए, खासने की आवाज की थी. और उसी समय मेरी तरफ देखते हुए. त्रिशा ने जो मुस्कान दी थी ना.
वो आज भी इस कहानी को लिखते वक्त मेरे दिल में संभाल कर राखी हुई है. उस मुस्कान को मै कभी नहीं भूल सकता. जिसे देखने के लिए मै पूरी रात सोया नहीं था.
फिर मै अपनी जगह पर गया और फटा फट बैग रखकर. त्रिशा की बगल वाली बेंच पर जाकर बैठ गया और उससे बोला hii त्रिशा मै…. तुमसे…. दोस्ती करना चाहता हूँ.
त्रिशा ने मेरी दोस्ती को कबूल करते हुए मुझसे शेक हैण्ड किया. वह मेरी सोसाइटी से एक किलो मीटर दूर रहती थी. फिर भी मै श्याम को पैदल ही उसको घर छोड़ने के लिए जाता था.
हम दोनों में काफी गहरी दोस्ती हो गई थी. जिस दिन त्रिशा स्कूल में नही अति थी सब लोग मुझे ही पूछते थे की त्रिशा क्यों नहीं आयी और जिस दिन मै स्कूल नहीं आता था, उस दिन त्रिशा से पूछते थे की सुनील क्यों नहीं आया.
त्रिशा और मै ११ वि कक्षा तक साथ थे वह मेरी जिंदगी का सबसे अच्छा और यादगार वक्त था. मै जब उसके साथ होता था, तब हर गम, हर बुरे खयाल को भूल जाता था. school ka pehla pyar
पर जब हम 12 वी कक्षा में पहुंचे, तब उसके पिताजी ने अचानक से त्रिशा को आगे की पढाई करने के लिए, पुणे उसके मामा के यहाँ भेज दिया.
अब त्रिशा पुणे में ही सेटल हो गई है, उसके पति रियल एस्टेट के एजेंट है. उसके बाद पढाई खतम करके मै भी नौकरी के लिए मुंबई आ गया और यही सेटल हो गया.
त्रिशा के लिए मेरे दिल में आज भी उतना ही प्यार है, जितना पहले था. क्योंकि कोई भी जिंदा दिल इंसान अपने पहले प्यार को कभी नहीं भूलता. इस कहनी को जो कोई भी पढ़ रहा होगा. अगर उसने कभी सच्चा प्यार किया है. तो वह इस बात से कभी इनकार नहीं करेगा.
3. स्कूल के शादी के मंडप तक school ka pehla pyar
हेल्लो दोस्तों मेरा नाम शिरीष है, यह कहानी तब की है जब मैंने 9 वी कक्षा में प्रेवश लिया था. वह स्कूल का पहला दिन था, कक्षा में सभी चेहरे पुराने ही दिख रहे थे. उस दिन मेरे सबसे अजीज दोस्त शशि के साथ मेरी शर्त लगी की इस साल हमारी क्लास में कोई नया एडमिशन नहीं आएगा.
हम दोनों की नजर स्कूल के दरवाजे पर ही टिकी थी. मेरा कहना था की इस साल भी कोई नया एडमिशन नहीं होगा, पर स्कूल की पहली बेल बजने से बस एक ही मिनट पहले एक लड़की ने क्लास में कदम रखा और मै बस उसको देखता ही रह गया.
उसदिन मै पहली बार कोई शर्त हार गया. लेकिन शर्त के साथ-साथ, मै कुछ और भी हारा था और वह था मेरे दिल. वह नई लड़की दिखने में किसी सुंदर गुडिया जैसी खूबसूरत थी. उसने आंखों में मस्कारा लगाया हुआ था. जिससे उसकी आंखे किस सुंदर हिरनी जैसी लग रही थी.
उसे देखते ही जीवन में पहली मेरे सिने में दिल धड़कने का एहसास हुआ था, में कुछ पल उसमे ही खो गया था.
फिर शशि के चिल्लाने से में होश में आया, वह मेरे शर्त हारने पर इतना खुश था की मानो उसके अंदर माता आ गई हो. उसने हमारे लाइन में बैठे करीब-करीब १८ बच्चों को मेरे पहली बार शर्त हारने के बारे में बता दिया था.
वह लड़की लेट आयी थी, इसी वजह से उसे पीछे वाले बेंच पर आकार बैठना पड़ा था और मैं भी पीछे वाली बेंच का ही विद्यार्थी था. पूरा दिन मैं बस छुप-छुप के उसी को ही देखता रहा. मै सोच रहा था की स्कूल छुटने के बाद उससे दोस्ती करूँगा.
बाद में स्कूल की छुट्टी होने के बाद मै उसके पीछे-पीछे ही बाहर निकला. पर बाहर आते ही मेरे उससे बात करने के अरमानों पर पानी फिर गया. क्योंकि उसे लेने के लिए उसके पिताजी आये थे.
घर जाने के बाद मै बस उसी के बारे में ही सोचता रहा. हर जगह बस उसका ही चेहरा नजर आने लगा था. एक पल भी उसे देखे बिना काटना मुश्किल लग रहा था. मुझे अब बस उससे बाते करनी थी.
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अगले दिन मुझे स्कूल जाने के लिए इतना खुशी से तैयार होता देख. मेरी माताजी भी अचरज में पड गई थी. माताजी बोली “तूझे स्कूल जाते वक्त पहली बार खुश देख रही हूँ. कही तेरे सिर पर चोट नहीं आयी. स्कूल में कही टकराया था क्या?
मम्मी की इस बात पर मेरी छोटी बहन खूब हंसी थी. फिर मै स्कूल के समय से आधा घंटा जल्दी पहुचं गया.
और मेरी ड्रीम गर्ल के आने का इंतजार करने लगा. पर पहली क्लास शुरू होने के बाद भी वह नहीं आयी . उस समय मुझे लगा था की अभी के अभी खिड़की से कूदकर घर भाग जाऊ.
पर अचानक किसी ने क्लास में आने की अनुमति मांगी और मेरे चहरे पर खुशी लौट आयी, वो वही थी जिसके दीदार के लिए मैं तरस गया था. वह किसी स्वर्ग की परी जैसा सफेद रंग का सुंदर ड्रेस पहनकर आयी थी. क्योंकि उस दिन उसका बर्थडे था.
फिर हिंदी की अध्यापिका श्रीमती प्रिया ने उसे जन्मदिन की बाधाई दी और पूरी क्लास के सामने अपना परिचिय देने के लिए कहा. उसके परिचय की लाइने मुझे आज भी याद है. वो कुछ इस तरह थी.
“मेरा नाम मधुबाला भूपति वाडिया है.
मै श्रीनगर में रहती हूँ.
मैने अब तक की पढाई. इंदिरा गाँधी विश्वविद्यालय, जामनगर से पूरी की है.
मुझे वॉलीबॉल खेल बहुत पसंद है.
उसके बाद पूरी क्लास ने एक साथ ताली बजाकर उसे जन्मदिन की बधाइयाँ दी थी. उस परी के लिबास में मधुबाला इतनी सुंदर लग रही थी की मेरी नजर उस पर हट नहीं रही थी. मधुबाला ने अपने परिचय में यह भी कहा था की वह श्रीनगर में रहती है, जो मेरे घर विश्वानगर जाते वक्त रस्ते में ही आता है.
स्कूल से छुट्टी होने के बाद मधुबाला अकेली ही घर जा रही थी. मेरा भी रोजका वही रास्ता था. श्रीनगर और विश्वानगर के कुछ गिने चुने ही बच्चे ही स्कूल में पढ़ते थे और वो भी उस दिन सडक पर कही दिख नहीं रहे थे.
वह आगे-आगे चल रही थी और मै पीछे पीछे. मै बड़ी हिम्मत जुटाकर उसके पास गया और फिरसे बर्थडे विश कर दिया. उसने भी मुस्कुराकर धन्यवाद कहा और फिर हम दोनों में बातो का सिल सिला शुरू हुआ.
मेरा नाम शिरीष है, यह जानने के बाद उसने पूछा की तुम कहा रहते हो. मैंने कहा की तुम्हारे घर श्रीनगर से कुछ ही दुर विश्वानगर में रहता हूँ. उससे बाते करते-करते मै कब श्री नगर पहुँच गया मुझे पता भी नहीं चला. school ka pehla pyar
उसदिन पहली बार मैंने किसी लडकी से इतनी ज्यादा बाते की थी और वो भी जिसे पसंद करता हूँ. इसी खुशी से मै तो मानो आसमान में उड़ रहा था. स्कूल वाली प्रेम कहानिया.
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फिर अगले दिन से हर रोज हम दोनों एक साथ स्कूल आया-जाया करते थे. वह सबसे कहती थी की शिरीष मेरा सबसे अच्छा दोस्त है. पर मेरे लिए वह एक दोस्त से कही बढ़कर थी. क्योंकि मैं उसे प्यार करने लगा था.
लेकिन उससे कह नहीं पा रहा था. रोज एक दुसरे के साथ समय बिताते हुए. वह 9 वी कक्षा का साल कब पूरा हुआ पता नहीं चला. फिर हम दोनों 10 वी कक्षा में आ गये. वह साल भी पढाई और हंसी मजाक में अच्छी तरह बीत रहा था.
पर एक दिन जुलाई के आखरी सप्ताह में मधुबाला ने अचानक से स्कूल में आना बंद कर दिया. मैंने 2 दिनों तक उसका इंतजार किया. अब मेरा पढाई से मन उठ चूका था.
मधु से बात न होने के कारण मेरा किसी भी चीज में दिल नहीं लग रहा था. फिर पूछ ताछ करने पर स्कूल के एक टीचर से पता चला की मधुबाला बीमार है.
इसीलिय इतने दिनों से वह स्कूल में नहीं आ रही है. “मधु” बीमार है यह सुनकर मुझे उससे मिलने की तीव्र इच्छा होने लगी. फिर मैंने उसकी जानी दोस्त विद्या को बडी मिन्नत करके. मधुबाला के घर चलने के लिए राजी कर लिया.
स्कूल छुटने के बाद विद्या और मै दोनों मधुबाला के घर गये थे, उसकी माँ ने बडे प्यार से हमारा स्वागत किया. उस वक्त मधुबाला अपने कमरे में आराम कर रही थी.
उसकी माँ ने हमे उसके पास बैठने के लिए कहा और वो चाय नाश्ता लाने चली गई. मधुबाला ने जब मुझे देखा तब वह बहुत खुश हुई थी.उसके चहरे की वह मुस्कान देखने के लिए तो मै तरस गया था. उसे देखकर दिल को एक अलग ही सुकून मिला था.
वह बोली की मुझे पता था शिरीष तुम मुझसे मिलने जरूर आओगे. यह सुनकर मेरा वहा जाना सफल रहा. फिर हमने कुछ देर बैठ के बाते की. और बाद मे उसे गुड बाय कहकर अपने घर लौट गए.
अगले दिन से मधुबाला स्कूल आने लगी, अब मधुबाला का मेरे प्रति नजरिया दोस्ती से प्यार में बदलने लगा था. पर वह खुदसे कुछ बोल नहीं रही थी. फिर स्कूल का वार्षिक समारोह का दिन आया. उस दिन मधुबाला हरे रंग की साड़ी पहनकर आयी थी. क्या कयामत ढा रही थी. उसी दिन क्लास रूम में ही मौका देखकर. मैंने मधुबाला से अपने प्यार का इजहार कर दिया.
और मधु ने भी अपना जवाब i लव यू 2 में दिया था. दसवी का बोर्ड एग्जाम पास करने के बाद हमने एकही कॉलेज में दाखिला करवाया था और आज लगभग ६ सालो से साथ है फिर भी हमारे प्यार में एक तील मात्र भी कमी नहीं आयी. अब हमारी जिंदगी का अगला पडाव शादी होगा.
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नमस्कार दोस्तों मै हूँ संदीप पाटिल. मै इस ब्लॉग का संस्थापक और लेखक हूँ. मैने बाणिज्य विभाग से उपाधि ली है.मुझे नई नई चीजों के बारे में लिखना और उन्हें आप तक पहुँचाना बहुत पसंद है. इस ब्लॉग के लिए. लव स्टोरीज मै खुद लिखता हूँ. और कुछ स्टोरीज फेसबुक फोल्लोवेर्स और इ -मेल द्वारा मिलती है. अगर आप भी अपनी लव स्टोरीज हमारे ब्लॉग पर प्रकशित करना चाहते है.उसे मुझे [email protected] इस email id पर भेज सकते है.