vampire story in Hindi :- यह वैम्पायर की कहानी ४ भागो में लिखी गई एक धारावाहिक है. जिन्हें वैम्पायर स्टोरीज में दिलचस्पी है. ये कहानी उन सभी को डर और रोमांच के सफर पर ले जानेवाली है. तो चलिए दोस्तों शुर करते है vampire story in Hindi
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वैम्पायर डायरीज भाग 1 Vampire Story In Hindi
में हु संदीप आज में मेरी पर्सनल डायरी का आखरी पन्ना लिख रहाहु। मेरी मां ने मुझसे कहता बेटा एक दिन तुम्हे तुम्हारी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी जंग लढनि है। इसलिय तुम्हारी ज़िन्दगी में आने वाली मामूली रूकावटो से कभी डगमगाना नहीं। तो आज ही का वह दिन हे। जब मैंने वह जंग जितली है।
और इंतज़ार कर रहा हु सूरज के निकले का ताकि में सुरोदय देख सकु अख्रिबार। अगर मैं आज उस शैतान को रोकने में नाकामयाब होता। तो हो सकता था वह पूरे गांव को निगल जाता। साल है 1858 मुझे मुंबई के बॉयज हॉस्टल में दादाजी का ख़त मिला। की मुझे अहमदनगर में वडनेर नामक गांव में तुरंत बुलाया है।
- नायक का प्रवेश
में वहा श्याम 7 बजे पंहुचा बस स्टैंड पर मुझे लेने के लिया बाबुकाका आये थे। स्टैंड पूरा सुमसाम था। लग रहा था वहा कोई रहता है भी के नहीं? बाबूकाका मुझे ले जाने के लिया घोडागाड़ी लाये थे। वो मेरी उनसे पहली मुलाकात थी।
क्यों की मेरे जन्म के बाद दादाजी ने मुझे माता पिता के साथ गांव से दूर भेज दिया था। मुझे देखते ही बाबुकाका मेरा पास आकर बोले। आप छोटे सरकार हो ना पाटिल घराने के वारिस। मैंने कहा हा मैं ही हूं। बाबू काका ने कुछ ही मिनीटो में मेरा सामान घोड़ा-गाड़ी में रख दिया।
- पुश्तैनी हवेली
और में चल पड़ा हमारी पुश्तैनी हवेली की तरफ। तक़रीबन 20 मिनिट चिल चिलाती ठंडी हवा का मज़ा लेते हम हवेली पहुंचे। वहा पोहोचने पर मेरा पहला सवाल था। की मेरे दादाजी कहा है? काका बोले अभी वह सो रहे है। आप उनसे कल सुबह मिल सकते है।
अभी आप हात मुह धो लीजिये औरखाना खाकर आराम कीजिए । जब मै हवेली की तरफ़ बड़े ध्यान देख रहा था। तब मेरे मन से मझे अंत चेतना मिल रही थी। की अब मेरी ज़िन्दगी में कुछ भयानक होनेवाला है। जिसके बारे में मेरा मन कल्पना नहीं कर पा रहा था। उसके बाद मै नहा धोकर फ्रेश हो गया।
बाबूकाका कि पत्नी वीरांगना काकीने मेरे स्वागत में बहुत सारे पकवान बनाए थे। में खाने पर इस तरह से टूट पड़ा। जैसे कि हफ्ते भर से खाना नहीं खाया हो। खाने के बाद मैं आंगन में टहलने लगा। मन में एक सवाल बार बार उठ रहा था। इतने सालो बाद दादाजी ने अचानक इसतरह जल्दी में क्यों बुलाया?
वैम्पायर डायरीज भाग 1 Vampire Story In Hindi
और अपने एक लोते नाती को लेने वह ख़ुद क्यों नहीं आये? इनसबमे मन यादों की गहराई में कुछ ढूंढ रहा था। बाबूकाका ने मुझे मेरा कमरा दिखाया जोकि एक बेडरूम कम पुस्तकालय ज़्यादा था। मुझे कमरे में लेजाने के बाद वह बोले की। ये आपके पिताजी का कमरा था। उनका बचपन यही गुजरा था।
और आज से यह आपके हवाले। इस कमरे में आपको आपके पूर्वजों का इतिहास और रहस्य मिलेंगे। किताबो से मुझे लगाव था ही। तो मेरा भी मन वहा लग गया। जगह न होने की वजह से मुझे नींद नहीं आरही थी। तो मैंने किताबों को छानना शुरू कर दिया।
किताबों को बनाते वक्त एक चीज मेरे निरीक्षण में जल्द ही आयी। वहापरा सारी किताबे नर पिसाच और गुप्त धन के विषय में थी। और एक भी किताब के ऊपर किसी लेखक का नाम या फिर किसी प्रकाशक का नाम नहीं था। सारी कताबे हात से लिखी थी। और सबके कव्हर भी हात से चित्र निकले हुए थे।
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- ख़ुफ़िया दरवाजा
उन किताबो की अलमारी को चेक करते करते। जब मैंने अलमारी के निचले हिस्से की आखरी किताब को निकला। तभी जमींन पर अचानक से एक दरवाजा खुल गया। अचानक से खुलनेवाले दरवाजे की वजह से मैं हड़बड़ा गया था। मैंने किताबे वही छोड़ी और उस तहखाने के पास गया।
और जब मैंने अन्दर झांकर देखा। तब मुझे नजर आये मेरे दादाजी राजाराम पाटिल। वो बोले आओ बेटा। मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था। मैं तहखाने की सीढियों से जैसे-जैसे निचे उतर रहा था। वैसे-वैसे अन्दर ठंड बढ़ रही थी। मेरे निचे पहुंचने के बाद। दादाजीने दिवार पर एक सुनहरी चाबी लगाकर दरवाजा बंद कर दिया।
कैदी नर पिशाच Vampire Story In Hindi
मैं उनके साथ तहखाने के अन्दर गया। वहा जो देखा वह देखके मेरी रूह कांप गयी। वहापर अधमरी हालत में एक नर पिसाच चांदी के पिंजरे में कैद था। मैंने दादाजी को पुछा कि ये सब क्या बला है। वो बोले ये शैतान का श्राप है। और इस श्राप को तुम्हे मिटाना है।
क्योंकि तुम उस भविष्यवाणी का हिस्सा हो जो 100 साल पहले हमारे पूर्वजों लिखी थी। तुम इस गांव की आखरी उमीद हो संदीप। वह सब सुनकर मुझे झटका-सा लगा। पर मैंने अपने मन को पक्का कर लिया। फिर दादाजी मुझे तहखाने के दुसरे कमरे में ले गए।
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वैम्पायर डायरीज भाग 1 Vampire Story In Hindi
उन्होंने ने मेरी आंखों में देखा। और बोले संदीप तुम कुछ पूछो इससे पहले ही में तुम्हे पूरी कहानी बताता हु। हम दोनो एक चबूतरे पर बैठ गए। और दादाजीने कहानी बताना शुरू किया। वह बोले आज से ठीक 100 साल पहले। वडनेर एक हस्ता खेलता बढती आबादी वाला गांव था|
सब तरफ़ खुशहाली थी। तुम्हारे परदादा गांव के सबसे आमिर और विद्वान आदमी थे। सभी उनकी बहुत इज्जत करते थे। इस गांव पर कोई भी आपत्ति आये। तो सबसे पहले तुम्हारे परदादा यशवंतराव पाटिल मदत के लिए आगे आते थे। सब कुछ सही चल रहा था।
पर एक दिन सुबह यशवंतराव और उनके छोटे भाई संग्राम दादा खेत में खुदाई कर रहे थे। उसी वक़्त यशवंतराव को एक बड़ा संदूक मिला। जिसपर चांदी के अक्षरों में कुछ लिख था। पर वह भाषा उनको पढने नहीं अति थी।
संदूक पर चांदी का ताला भी था। और उसपर खतरे को दर्शाने वाले चिन्ह थे। उसवक्त यशवंतरावजी को अंत चेतना भी मिल रही। थी की वह संदूक मुसीबत है।
शेष कहानी अगले भाग में Vampire Story In Hindi कहनी का ये भाग आपको कैसा लगा कमेंट जरुर कीजिये
Vampire Story In Hindi के सभी भाग इन हिंदी
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- वैम्पायर डायरीज भाग 3
- वैम्पायर डायरीज भाग 4 (अंत)
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