sahastrarjun aur ravan ka yudh

माहिष्मती सम्राट और रावण का युद्ध – Sahastrarjun Aur Ravan Ka Yudh

Sahastrarjun Aur Ravan Ka Yudh इस ब्लॉग पोस्ट में रावण और माहिष्मती सम्राट सहस्त्रार्जुन हुई प्रलयंकारी मुठभेड़ की कहानी है.और महाबली सहस्त्रार्जुन का जीवन परिचय दिया गया है.

सहस्त्रार्जुन माहिष्मती के राजा महाराजा कृतवीर्य और रानी पद्मिनी की संतान थे. राजा कृतवीर्य और रानी पद्मिनी ने गंधमादन पहाड़ पर घन घोर तप किया था और जब उनकी तपस्या से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए.

Sahastrarjun Aur Ravan Ka Yudh माहिष्मती सम्राट और रावण युद्ध का परिणाम ?

तब दोनों पति पत्नी ने वरदान के स्वरूप में एक महावीर पुत्र की मांग की थी. जिसे भगवान विष्णु ने पूरा किया. और जब उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई. तब उन्होंने उसका नाम अर्जुन रखा.

पौराणिक कथाओं में यह भी मान्यता है. सहस्त्रार्जुन भगवान विष्णु के ही अवतार थे.

अर्जुन ने कड़ी तपस्या करके ब्रह्मदेव से वरदान के स्वरूप में 1000 हातों की मांग की थी. इसतरह उन्हें इस संसार में अर्जुन से सहस्त्रार्जुन यह नाम मिला.

आगे चलकर अपने पिता कार्तवीर्य की मृतु के बाद.”सहस्त्रार्जुन माहिष्मती के सम्राट बने. उन्होंने ब्रह्मा ,विष्णु ,और महेश के अवतार दत्तगुरु को अपना गुरु मान लिया.

सहस्त्रार्जुन की कड़ी तपस्या और सेवा को देख भगवान दत्तात्रेयजी प्रसन्न हुए. और उन्हें योगविद्या, अणिमा और लघिमा यह सिद्धियां वर के स्वरूप में सहस्त्रार्जुन को दी.

इस तरह बहुत से दुर्लभ वर और सिद्धियों से परिपूर्ण सहस्त्रार्जुन ने माहिष्मती साम्राज्य को बहुत अच्छे तरीके से संभला था.

एक दिन सहस्त्रार्जुन अपनी 5000 रानियों को लेकर नर्मदा नदी में स्नान करने गए थे. सहस्त्रार्जुन की एक रानी ने उनसे कहा महाराज आपने इन “सहस्त्र हाथो से बहुत सारे युद्ध किये होंगे.

हमे भी तो कोइ पराक्रम दिखाईये. सहस्त्रार्जुन ने अपनी रानीयों को खुश करने के लिए. उसिव्क्त अपने 1000 हाथोसे नर्मदा नदीका बहता पानी रोख लिया. पानी का बहाव रुक जानेसे नर्मदा नदीके पात्र से पानी बाहर उछलने लगा.

Sahastrarjun Aur Ravan Ka Yudh माहिष्मती सम्राट और रावण युद्ध का परिणाम ?

उसी समय सहस्त्रार्जुन से कुछ ही दूर त्रिलोक विजेता रावण नदी किनारे बैठकर शिव आराधना कर रहता.

नदी के पात्र में से अचानक पानी बाहर उछलने से रावण की शिव पूजा सामुग्री उसी में बह गई.

पूजा में इसप्रकार अकारण विघ्न आने से रावण का ध्यान विचलित हुआ. और वह क्रोधित हो उठा. उसने उसिवक्त अपने सैनिक भेजकर.

इस विघ्न उत्पत्ति का पता लगाने के लिये भेजा. जब सैनिक यह खबर लायी की “माहिष्मती सम्राट सहस्त्रार्जुन अपनी रानियों के साथ जलक्रीडा कर रहे है.

इसलिए उन्होंने अपने हाथो से नर्मदा का बहाव रोक के रखा है. रावन उसवक्त अपने विश्व विजय के घमंड में चूर था.उसने राजाओ और देवताओ से सहस्त्रार्जुन के पराक्रम के बारे में सुना भी था.

रावण उसी वक्त सहस्त्रार्जुन के पास गया. और उसके प्रति अपशब्दों का प्रयोग करने लगा. और अपने त्रिलोक विजय का डंका बजाने लगा.

रावण के अपशब्दों का प्रहार रुक नहीं रहा था. इसपर सहस्त्रार्जुन ने कहा आप एक ब्राह्मण है. इसलिय मै कुछ कह नहीं रहा हूँ. पर अब मेरे संयम का बांध टूट रहा है.

इसलिए आप यहा से चले जाये. पर रावण की आँखों पर घमंड का पर्दा था. उसने सहस्त्रार्जुन को युद्ध की चुनौती दे दी. सहस्त्रार्जुन ने भी वह चुनौती हसते हसते स्वीकार कर ली.

फिर शुरू हुआ महा प्रलयंकारी युद्ध. मायावी रावण ने हर तरह की माया का प्रयोग किया. सहस्त्रार्जुन ने भी अपने युद्ध कौशल का परिचय दिया.

अंत में सहस्त्रार्जुन ने रावण को अपनी सबसे बड़ी शक्ति का प्रयोग किया . उसने अपने 1000 हाथो से रावण को धुल में मिला दिया. जब रावण थक गया.

तब सहस्त्रार्जुन ने उसे बंदी बनाके अपने राज्य माहिष्मती के कारागृह में रखा. इस घटना का वृतांत जब रावण के दादा पुलस्त्य ऋषि के कानो पर पड़ा.

उसी क्षण उन्होंने माहिष्मती साम्राज्य की ओर प्रस्थान किया. माहिष्मती साम्राज्य में पुलस्त्य ऋषि जैसे महात्मा के आगमन का सहस्त्रार्जुन ने खुद आकार स्वागत किया.

और उनका अतिथि सत्कार भी बड़े आदर सन्मान के समेत हुआ. पर जाते वक्त पुलस्त्य ऋषिने सहस्त्रार्जुन से दान करने की अभिलाषा जताई.

और दान में कारागृह में बंदी अपने वंशज रावण को मांग लिया.और इस प्रकार सहस्त्रार्जुन ने रावण को अपने कारागृह से मुक्त भी करदिया. और दोनों में मित्रता भी होगई.

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