क्या आप बता सकते है? बिना रविवार छुट्टी के पूरा महिना कैसे गुजरेगा? जी हाँ बिना रविवार के पूरा महिना बडाही बोरियत और काफी थकान से भरा रहेगा. तो इस छोटे से लेख में हम जानेंगे की Ravivar ki chhutti kab se shuru hui और इसे किसने शुरू करवाया. इसके पीछे एक छोटी सी पर दिलचस्प कहानी है, जो आपको जरूर पसंद आएगी, तो चलिए शुरू करते है.
Ravivar ki chhutti kab se shuru hui
ब्रिटिश शासन से पहले भारत में कभी भी “रविवार” की छुट्टी का चलन नहीं था. उस समय भारत के अधिकतम नागरिक खेती बाड़ी पर निर्भर थे.
सभी खेतों पर काम करने वाले मजदूर अपने-अपने जरूरतों अनुसार छुट्टी लिया करते थे. फिर जब भारत में ब्रिटिश शासन आया.
तब अंग्रेजों ने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की. उस समय जिन मजदूरों को अंग्रेजों ने अपनी कंपनी में भर्ती करवाया. वह क्रूर ब्रिटिश शासन के शिकार हो गये थे.
कंपनी के मजदूरों को पुरे सप्ताह काम करना पड़ता था. कभी-कभी जो छुट्टी उन्हें मिलती थी, जो अवकाश मिलता था. वह मिलना लगभग बंद ही हो गया था.
मजदूरों को तीन शिफ्ट में काम करना पड़ता था. जिसमे गर्भवती महिलाएं और जबरदस्ती या मजबूरी की वजह से काम करने वाले मजदुर शामिल थे.
Ravivar ki chhutti kab se shuru hui
दूसरी तरफ ब्रिटिश अधिकारी अपनी जरूरतों के अनुसार छुट्टियां लिया करते थे. इसमें और एक बात जो गौर करने लायक थी. की ब्रिटिश अधिकारी हर ravivar के दिन चर्च जाया करते थे.
वह दिन भी उनके लिए छुट्टी की तरह ही होता था. और हमारे भारतीय लोग बिना छुट्टी के काम करते-करते. अधिक तनाव से बीमार होने लगे थे. अगर बीमार होने के कारण छुट्टी ली जाती. तो पगार में से पैसे भी काट लिए जाते थे.
छुट्टी अगले दिन काम पर लौटने पर दोगुना समय के लिए. काम करना पड़ता था. इस तरह से ब्रिटिश शासन में मजदूरों का शोषण चल रहा था.
इन सबके बीच 1848 में पुणे के एक रहिवासी श्री नारायण मेघाजी लोखंडे. कंपनी में बतौर स्टोर कीपर के पद भर्ती हुए. उन्होंने मजदूरो की परेशानियों को नजदीक से देखा, खुद भी महसूस किया.
फिर उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाने की ठान ली. वह इस बात से परिचित थे की फिरंगी सरकार के साथ सीधे-सीधे बात कभी नहीं हो सकती.
इसलिए उन्होंने दीनबंधु नाम के एक अखबार के लिए. आर्टिकल लिखना शुरू किया. उस अखबार का मुख्य हेतु. ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय मजदूरों पर होने वाले अत्याचार और शोषण की करतूत समाज के सामने प्रकट करना.
धीरे-धीरे नारायण लोखंडे जी की मेहनत रंग लाई. ‘दीनबंधु’ जर्नल में प्रकाशित किये जाने वाले. लेखों से क्रांतिकारी, मजदुर और समाज प्रभावित होने लगा.
और 1884 में ‘बॉम्बे हैंड्स एसोसिएशन’ ट्रेड यूनियन की स्थापना की गई. सभी की मांग पर नारायण लोखंडे जी उसके अध्यक्ष बने.
इसी यूनियन के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सामने. मजदूरों की समस्याएं और मांगे रखी. शासन के साथ बातचीत में उन्होंने यह भी कहा था. की रविवार हिंदू देवता “खंडोबा” का दिन होता है.
इसलिए रविवार को भारतीय कामगारों का साप्ताहिक छुट्टी के रूप में घोषित किया जाना चाहिए. लेकिन ब्रिटिश सरकार ने मजदूरों की सभी मांगे खारिज कर दी.
पर अंत में 7 साल के भीषण संघर्ष के बाद. श्री नारायण मेघाजी लोखंडे जी के नेतृत्व में रहने वाली बॉम्बे हैंड्स एसोसिएशन’ के आगे ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा.
उन्होंने 10 जून 1890 इस तारीख को “रविवार” को साप्ताहिक छुट्टी का दिन घोषित कर दिया. इसमें रोचक बात यह है. आज तक भारत सरकार ने कभी भी sunday, अर्थात रविवार को छुट्टी का दिन घोषित नहीं किया है.
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