नीलकंठ पक्षी का पौराणिक महत्व, रोचक तथ्य एवं सम्पूर्ण जानकारी | Neelkanth pakshi

दोस्तों हमें बताया जाता है की नीलकंठ पक्षी को देखना बहुत ही शुभ होता है. लेकिन ऐसा क्यों यह सवाल भी हर किसी के मन में आता ही है और वे इस पक्षी के बारे में जानना चाहते हैं. इसलिए आज इस लेख में हम Neelkanth pakshi के पौराणिक महत्व तथा लोक प्रचलित मान्यताओं के साथ इस पक्षी के रोचक तथ्य और सम्पूर्ण जानकारी देनेवाले है. तो चलिए शुर करते है.

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नीलकंठ पक्षी के बारे में रोचक तथ्य | Neelkanth pakshi

कहा जाता है की नीलकंठ पक्षी आग की ओर आकर्षित होते है. लेकिन यह सच नहीं है, दरअसल कीड़े आग की ओर आकर्षित होते है और उन्हीं को खाने के लिए. नीलकंठ पक्षी आग के इर्द गिर्द चक्कर काटते रहते है.

क्या आपको पाता है? Neelkanth pakshi बाज (hawk) की आवाज की नकल कर सकता है, विशेषता यह लाल-कंधों वाले बाज़ (Red-shouldered hawk) की आवाज निकालता है. ऐसा वह खाना खोजते हुए. अपने आस पास के अन्य पक्षियों को भगाने के लिए करता है.

नीलकंठ पक्षी को अक्सर खेतों में चलने वाले ट्रॅक्टर का पीछा करते हुए देखा जाता है. क्योंकि ट्रॅक्टर चलाते वक्त खुदी जानेवाली. जमींन की मिट्टी से निकलने वाले बहुत से कीड़ों को यह अपना भोजन बनाते है.

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यह पक्षी मांसाहारी तो होता है. लेकिन कभी दुसरे पक्षियों के अंडे तथा चूजों का शिकार नहीं करता है.

Neelkanth pakshi को गोडावण पक्षी (Great Indian bustard) के आस-पास देखा जाता है. क्योंकि यह उसके द्वरा खोजे गए कीड़ों को खाता है.

इस पक्षी को अंग्रजी भाषा में Indian Roller bird कहते है. नीलकंठ पक्षी को यह नाम इसकी एक खूबी की वजह से दिया गया है. यह उड़ते वक्त आसमान में 360 डिग्री में घूमते हुए हवाई करतब कर सकता है. ऐसा वह प्रजनन के मौसम में तथा हमला या बचाव करते समय करता है.

नीलकंठ नर और मादा दोनों भी बारी-बारी अंडो को सेते है. और अंडो से बच्चे बाहर आने बाद उनकी देखभाल करते है.

यह कोई प्रवासी पक्षी नहीं है. हालाकिं, ये मौसम के परिवर्तन अनुसार अपना स्थान बदल सकते है.

नीलकंठ मादा या नर दोनों भी दिखने में एक समान होते है, इस पक्षी प्रजाति में कोई भी मौसमी परिवर्तन नहीं देखा जाता.

नीलकंठ कभी-कभी किंगफिशर पक्षी की तरह मेंढकों और मछलियों का शिकार करने के लिए पानी में गोता भी लगता है.

भारतवर्ष में ओडिशा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना इन ४ राज्यों ने “neelkanth pakshi” को राज्य पक्षी घोषित किया है.

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इस पक्षी को ईरान देश मी स्थित खुज़ेस्तान प्रांत के ग्रामीणों इलाकों में “Little King” नाम से पहचान मिली हुई है.

भारत में बिटिश राज्य के समय में  इसे आम भाषा में  ‘blue jay’ कहा जाता था. आज भी कई जगह इस नाम का उपयोग किया जा रहा है.

Indian roller शिकार के लिए जमीन से 3–9 मीटर की ऊंचाई पर बैठा देखा गया है. जहाँ से यह जमीन के कीड़े व अन्य शिकार के लिए निचे उड़ कर उन्हें आसानी से पकड लेता है.

यह चुने हुए इलाकें में रहना पंसद करता है. और अपने इलाकें की सुरक्षा के लिए. वह तीन मंजिला ऊंचाई पर उड़ते हुए गश्त लगाता है. अपने क्षेत्र में घुसपैठिया नजर आते ही. वह तुरंत हमला कर देता है.

नीलकंठ पक्षी कोरासीडाई (Coraciidae) नामक. दुनिया के सबसे पुराने पक्षी परिवार का सदस्य है.

भारत में इस पक्षी की सबसे अधिक आबादी देखी जाती है. दक्षिण भारत के खेती बाडी वाले इलाकों में लगभग 50 नीलकंठ पक्षी प्रति वर्ग किमी के घनत्व पर नजर आते हैं.

इस पक्षी की आवाज काफी कठोर होती है. यह लगभग किसी कौआ सामान ज्ञात होती है.

कई बार European roller bird को Indian roller bird समझा जाता है. लेकिन ध्यान से देखने पर इन दोनों में फरक दिखाई देता है. युरोपियन रोलर की लंबी गर्दन और पूंछ होती है. इसका सिर में पूरा नीला होता है. और युरोपियन रोलर कुछ हद तक एक प्रवासी पक्षी भी माना जाता है.

भारत में साल 1887 में वन्य पक्षी संरक्षण अधिनियम 1887 के तहत neelkanth pakshi के शिकार पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए थे. बाद में वन्य पक्षी और पशु संरक्षण अधिनियम 2012 के तहत भी इस पक्षी को संरक्षण प्राप्त हुआ है.

नीलकंठ पक्षी का पौराणिक महत्व व मान्यताएं | Neelkanth pakshi

प्राचीन काल से ही neelkanth pakshi का दर्शन दुर्लभ एवं लाभदायक माना गया है. इसके दर्शन करने वाले इंसान को अपने कार्य में सफलता प्राप्त होती है. और उसके घर के धन तथा अनाज में भी बढत होती है. नीलकंठ के दर्शन (देखने) के लिए सुबह से लेकर श्याम तक कोई भी समय मंगल होता है. खास करके दशहरे के दिन इसका दिखाना अत्यधिक शुभ माना जाता है. इसके पीछे एक पौराणिक महत्व जुडा हुआ है.

त्रेता युग में भगवान श्री राम को रावण का वध करने से पहले नीलकंठ पक्षी के दर्शन हुए थे. उसके बाद रावण से हुए युद्ध में प्रभु राम को विजय प्राप्त हेई थी. रावण का वध करने के बाद जब श्री राम प्रभु को ब्राह्मण हत्या का पाप लगा था. तब राम और लक्ष्मण दोनों ने एक साथ मिलकर भगवान भोलेनाथ की आराधना की थी और खुद को ब्राह्मण हत्या के पाप से मुक्त किया. उस समय भगवान शिव राम जी को दर्शन देणे हेतु नीलकंठ पक्षी के रूप में प्रकट हुए थे.

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जनश्रुति और धर्मशास्त्रों के अनुसार नीलकंठ पक्षी भगवान शिव का ही रूप होता है. इसलिए दशहरे के दिन हर कोई नीलकंठ पक्षी के दर्शन की कामना करता है.

भारत के पूर्वी भाग में रहने वाले कुछ आदिवासीयों के लिए परंपरा अनुसार नीलकंठ पक्षी के दर्शन बेहद दुर्भल एवं उत्कृष्ट शगुन का प्रतिक होता था.

बंगाल के कुछ लोग नीलकंठ पक्षी के नजर आते ही भगवान महाविष्णु के प्रति समर्पण दिखाते हुए. विशेष दोहे का उच्चारण करते थे. तथा अपने मृत्य के समय पर भी नीलकंठ पक्षी के दर्शन की मांग करते थे.

कुछ सालों पहले भारत में इस पक्षी को भविष्यवक्ता माना जाता था. इसलिए भविष्य बताने वाले लोग नीलकंठ पक्षी का पखं अपने सिर पर लगाते थे.

नीलकंठ पक्षी की सम्पूर्ण जानकारी | Indian roller in hindi

नीलकंठ पक्षी का वैज्ञानिक वर्गीकरण | neelkanth pakshi

नीलकंठ पक्षी को वैज्ञानिक भाषा में “कोरेशियस बेन्गालेन्सिस” कहा जाता है. यह कोरैसीफ़ोर्मीस नामक जीववैज्ञानिक गण का एक मशहूर सदस्य पक्षी है. नीलकंठ पक्षी उन कई पक्षी प्रजातियों में से एक है. जिन्हें मूलतः सन १७५८ में “Systema Naturae” (किताब) के १० वे  संस्करण मे कार्ल लीनियस द्वरा उल्लिखित किया गया था.

Neelkanth pakshi कहा पाया जाता है

नीलकंठ पक्षी को अक्सर रस्ते के किनारे लगी हुई लोहे की तारों पर विश्राम करते हुए देखा जा सकता है. इसके रहने योग्य अनुकूल स्थान उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में होता है. जहाँ पर यह मुख्य रूप से विचरण करता है.यह पक्षी एशिया के इराक, संयुक्त अरब अमीरात, दक्षिण-पश्चिमी एशिया से भारतीय उपमहाद्वीप तक निवास करता है. नीलकंठ पक्षी के पसंदिता स्थानों में खेती बाड़ी का इलाका, कम घने जंगल और घास के खुले मैदान शामिल है.

नीलकंठ पक्षी कैसा दिखता है – indian roller in hindi

नीलकंठ पक्षी आक्रामक और प्रभावशाली स्वभाव के होते है. इनका शरीर चुस्त और फुर्तीला होता है. इसकी लम्बाई 65-74 सेंटीमीटर होती है.  इनके पंखो का फैलाव तकरीबन 65-74 सेमी और भार (वजन) 166–176 ग्राम होता है. इनका  सिर बडा, छोटी गर्दन, छोटे पैर और पंख चौड़े होते है. इसके आंखों के आसपास की त्वचा फीकी नारंगी, और पैर पीले-भूरे रंग के होते है. नीलकंठ की चोचं भूरे रंग की होती है. आपकी बेहतर जानकारी के लिए. इसकी एक तस्वीर निचे दी हुई है.

नीलकंठ पक्षी का घोंसला, प्रजनन, अंडे एवं  बच्चों (चूजे) की जानकारी
  • नीलकंठ पक्षी घोंसला बनाने के लिए पेड़, ईमारत के खाली खांचे तथा कठफोड़वा पक्षी के पुरने घोसलें का भी इस्तेमाल करते है.
  • इनका प्रजनन काल मार्च से जून महीने तक होता है. हालाँकि दक्षिण भारत क्षेत्र में ये थोडा पहले शुरू होता है. प्रजनन मौसम के दौरान नीलकंठ नर मादाओं को रिझाने के लिए. बहुत सुंदर-सुदंर हवाई कलाबाजी का प्रदर्शन करते है.
  • प्रजनन के बाद मादा 3 से 5 अंडे देती है. इसके अंडों का आकार 33 मिमी × 27 मिमी व रंग सफेद होता है. इन अंडो को नर और मादा दोनों मिलकर सेते है. लगभग 17 से 19 दिनों के पश्चात अंडो में से चूजे बाहर आते है.
  • नीलकंठ पक्षी अपने घोसलें के रक्षा के प्रति काफी आक्रामक होता है. यह कौवे तथा गिद्ध जैसे चालाक शिकारी पक्षियों पर भी भारी पड़ते है. अगर इंसान भी इनके घोसलें के निकट आता है. तो यह पक्षी सिर पर गोता लगाते हुए चोचं से हमला करते है.
  • अंडों से बाहर आने के बाद बच्चे (चूजे) 30 से 35 दिनों के भीतर उड़ना सीखते है.
नीलकंठ पक्षी का आहार | neelkanth pakshi kya khata hai

नीलकंठ पक्षी सर्वहारी होते हैं. इनको अधिकतर जमींन पर शिकार करते हुए देखा जाता है. इनके भक्ष्य-पदार्थों में बीज, बलूत कीड़े, छिपकली, झींगुर, टिड्डे, मकड़ी, तितली, बिच्छू, छोटे सांप, मेंढक और बहुत से उभयचर शामिल हैं. विशेषता यह पक्षी पंखों वाले दीमक के झुंडों की ओर मोहित होते है. इनके भोजन में तकरीबन 50% भृंग और  25% टिड्डे एवं झींगुर होते हैं. नीलकंठ पक्षी रोशनी की ओर आकर्षित होने वाले कीड़ों का शिकार करने में काफी माहिर होते है.

नीलकंठ पक्षी की आबादी कम होने के कारण

भारत में 1960 दशक के मध्य और 1980 के मध्य के बीच अलीगढ़ और नई दिल्ली के बीच राजमार्ग पर देखे जानेवाली नीलकंठ पक्षियों की तादाद बड़े पैमाने पर घट गई थी. क्योंकि इनकी रस्ते के किनारों पर खाने एवं बैठने की आदतों की वजह से याता याता के दौरान. वे वाहनों से टकरा जाते थे.

इस पक्षी की बिजली के तारों पर बैठने की आदत की वजह से भी बिजली का झटका लगने का खतरा बना रहता है. राजस्थान में कौआ के बाद सबसे अधिक बिजली का झटका लगने वाला नीलकंठ दूसरा पक्षी है.

20 वीं शताब्दी की शुरवात में खुबसूरत व रंगीन पंखो की आंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत ज्यादा मांग थी. उस समय सुंदर पंखो के लिए नीलकंठ पक्षी सबसे अधिक मारे जाने वाले पक्षियों में से एक था.

Neelkanth pakshi उप प्रजातियाँ

पक्षीविज्ञान को अभी तक नीलकंठ कि 2 उप प्रजातियाँ पहचान में आयी है. वे दोनों कुछ इस प्रकार है.

1. C. b. benghalensis – यह नीलकंठ की उप प्रजाति पश्चिम एशिया से उत्तर भारत के विन्ध्याचल पर्वत शृंखला तक पाया जाती है.

2. C. b. indicus – यह उप प्रजाति मध्य, दक्षिणी भारत और श्रीलंका में पायी जाती है.

Neelkanth pakshi की अन्य जानकारी

नीलकंठ पक्षी के विषय में एक और बात निरीक्षण में आती है. यह जब बैठा होता है. उस वक्त इसका रंग फीका नजर आता है. लेकिन जब नीलकंठ उडान भरता है. तब यह चमकीला दीखता है.

जून महीने के मध्य से अगस्त के मध्य तक इनके पंख झड़ना शुरू होता है. जो तकरीबन नवंबर और मार्च की शुरुआत में खत्म होता है.

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