मंगल देवता के 108 नाम और जन्म कथा | Mangal devta ke 108 naam

नमस्कार इस लेख में हम Mangal devta ke 108 naam जानने वाले है. इसके अलावा हम ये भी जानेंगे की मंगल देवता कौन है, उनकी उत्पत्ति कैसे हुई और वह मंगल ग्रह के स्वामी कैसे बने. अंत में मंगल ग्रह शांति तथा मंगल देवता को प्रसन्न करने के लिए. कुछ उपाय और मंत्र भी दिए गए है. तो चलिए शुरू करते है.

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मंगल देवता कौन है

मंगल देवता भारतीय ज्योतिष में वर्णित मंगल ग्रह के अधिपति है. पुराणों में इनकी जन्म के बारे में २ कथाएं काफी प्रचलित है. जिनके विषय में आगे में बात करने वाले है. मंगल देवता युद्ध के देवता है. देवी भूमि के पौत्र होने के कारण वह “भौम” नाम से भी प्रसिद्ध है. मंगल देवता पंचाग के सप्तवारों में से मंगलवार के शासक है. इसीलिए मंगलवार को उनकी आराधना शुभ फलदायी मानी जाती है.

उनकी चार भुजाएँ तथा शरीर पर लाल रंग की रोयें होती है. वे हमेशा लाल वस्त्र एवं लाल मालाएं पहने होते है. मंगल देवता के सिर पर शोभायमान स्वर्ण मुकुट, हाथों में अभयमुद्रा, त्रिशूल, गदा और वरमुद्रा होती है. तथा भेड उनका वाहन है. कुछ पुरानों के अनुसर  मंगल देवता को कुंवारा बताया गया है. लेकिन कुछ पुराणों में उनकी जीवनसाथी का नाम ज्वालिनी देवी बताया गया है.

मंगल देवता के 108 नाम | Mangal devta ke 108 naam

भारतीय ज्योतिष अनुसार मंगल ग्रह सबसे अधिक हानिकारक माना जाता है. इसके दोष से बचने के लिए. तथा मंगल देवता को प्रसन्न रखने के लिए. निचे दिए नाम जपना एक सरल उपाय है. इन नामों को नित्य पढ़ना लाभदायक होता है. विशेषता मंगलवार का दिन इसके पठन के लिए विशेष महत्व रखता है.

1.ॐ महीसुताय नमः।

2. ॐ महाभागाय नमः।

3. ॐ मङ्गलाय नमः।

4. ॐ मङ्गलप्रदाय नमः।

5. ॐ महावीराय नमः।

6. ॐ महाशूराय नमः।

7. ॐ महाबलपराक्रमाय नमः।

8. ॐ महारौद्राय नमः।

9. ॐ महाभद्राय नमः।

10. ॐ माननीयाय नमः।

11. ॐ दयाकराय नमः।

12. ॐ मानदाय नमः।

13. ॐ अपर्वणाय नमः।

14. ॐ क्रूराय नमः।

15. ॐ तापत्रयविवर्जिताय नमः।

16. ॐ सुप्रतीपाय नमः।

17. ॐ सुताम्राक्षाय नमः।

18. ॐ सुब्रह्मण्याय नमः।

19. ॐ सुखप्रदाय नमः।

20. ॐ वक्रस्तम्भादिगमनाय नमः।

21. ॐ वरेण्याय नमः।

22. ॐ वरदाय नमः।

23. ॐ सुखिने नमः।

24. ॐ वीरभद्राय नमः।

25. ॐ विरूपाक्षाय नमः।

26. ॐ विदूरस्थाय नमः।

27. ॐ विभावसवे नमः।

28. ॐ नक्षत्रचक्रसञ्चारिणे नमः।

29. ॐ क्षत्रपाय नमः।

30. ॐ क्षात्रवर्जिताय नमः।

31. ॐ क्षयवृद्धिविनिर्मुक्ताय नमः।

32. ॐ क्षमायुक्ताय नमः।

33. ॐ विचक्षणाय नमः।

34. ॐ अक्षीणफलदाय नमः।

35. ॐ चतुर्वर्गफलप्रदाय नमः।

36. ॐ वीतरागाय नमः।

37. ॐ वीतभयाय नमः।

38. ॐ विज्वराय नमः।

39. ॐ विश्वकारणाय नमः।

40. ॐ नक्षत्रराशिसञ्चाराय नमः।

41. ॐ नानाभयनिकृन्तनाय नमः।

42. ॐ वन्दारुजनमन्दाराय नमः।

43. ॐ वक्रकुञ्चितमूर्धजाय नमः।

44. ॐ कमनीयाय नमः।

45. ॐ दयासाराय नमः।

46. ॐ कनत्कनकभूषणाय नमः।

47. ॐ भयघ्नाय नमः।

48. ॐ भव्यफलदाय नमः।

49. ॐ भक्ताभयवरप्रदाय नमः।

50. ॐ शत्रुहन्त्रे नमः।

Mangal devta ke 108 naam

51. ॐ शमोपेताय नमः।

52. ॐ शरणागतपोषनाय नमः।

53. ॐ साहसिने नमः।

54. ॐ सद्गुणाध्यक्षाय नमः।

55. ॐ साधवे नमः।

56. ॐ समरदुर्जयाय नमः।

57. ॐ दुष्टदूराय नमः।

58. ॐ शिष्टपूज्याय नमः।

59. ॐ सर्वकष्टनिवारकाय नमः।

60. ॐ दुश्चेष्टवारकाय नमः।

61. ॐ दुःखभञ्जनाय नमः।

62. ॐ दुर्धराय नमः।

63. ॐ हरये नमः।

64. ॐ दुःस्वप्नहन्त्रे नमः।

65. ॐ दुर्धर्षाय नमः।

66. ॐ दुष्टगर्वविमोचनाय नमः।

67. ॐ भरद्वाजकुलोद्भूताय नमः।

68. ॐ भूसुताय नमः।

69. ॐ भव्यभूषणाय नमः।

70. ॐ रक्ताम्बराय नमः।

71. ॐ रक्तवपुषे नमः।

72. ॐ भक्तपालनतत्पराय नमः।

73. ॐ चतुर्भुजाय नमः।

74. ॐ गदाधारिणे नमः।

75. ॐ मेषवाहाय नमः।

76. ॐ मिताशनाय नमः।

77. ॐ शक्तिशूलधराय नमः।

78. ॐ शाक्ताय नमः।

79. ॐ शस्त्रविद्याविशारदाय नमः।

80. ॐ तार्किकाय नमः।

81. ॐ तामसाधाराय नमः।

82. ॐ तपस्विने नमः।

83. ॐ ताम्रलोचनाय नमः।

84. ॐ तप्तकाञ्चनसङ्काशाय नमः।

85. ॐ रक्तकिञ्जल्कसन्निभाय नमः।

86. ॐ गोत्राधिदेवाय नमः।

87. ॐ गोमध्यचराय नमः।

88. ॐ गुणविभूषणाय नमः।

89. ॐ असृजे नमः।

90. ॐ अङ्गारकाय नमः।

91. ॐ अवन्तीदेशाधीशाय नमः।

92. ॐ जनार्दनाय नमः।

93. ॐ सूर्ययाम्यप्रदेशस्थाय नमः।

94. ॐ घुने नमः।

95. ॐ यौवनाय नमः।

96. ॐ याम्यहरिन्मुखाय नमः।

97. ॐ याम्यदिङ्मुखय नमः।

98. ॐ त्रिकोणमण्डलगताय नमः।

99. ॐ त्रिदशाधिपसन्नुताय नमः।

100. ॐ शुचये नमः।

101. ॐ शुचिकराय नमः।

102. ॐ शूराय नमः।

103. ॐ शुचिवश्याय नमः।

104. ॐ शुभावहाय नमः।

105. ॐ मेषवृश्चिकराशीशाय नमः।

106. ॐ मेधाविने नमः।

107. ॐ मितभाषणाय नमः।

108. ॐ सुखप्रदाय नमः।

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इक्कीस नाम | Mangal devta ke 108 naam

1.  ॐ मंगलाय नमः

2.  ॐ भूमि पुत्राय नमः

3.  ॐ ऋण हर्त्रे नमः

4.  ॐ धन प्रदाय नमः

5.  ॐ स्थिर आसनाय नमः

6.  ॐ महा कायाय नमः

7.  ॐ सर्व कामार्थ साधकाय नमः

8.  ॐ लोहिताय नमः

9.  ॐ लोहिताक्षाय नमः

10.  ॐ साम गानाम कृपा करे नमः

11.  ॐ धरात्मजाय नमः

12.  ॐ भुजाय नमः

13.  ॐ भौमाय नमः

14.  ॐ भुमिजाय नमः

15.  ॐ भूमि नन्दनाय नमः

16.  ॐ अंगारकाय नमः

17.  ॐ यमाय नमः

18.  ॐ सर्व रोग प्रहाराकाय नमः

19.  ॐ वृष्टि कर्ते नमः

20.  ॐ वृष्टि हराते नमः

21. ॐ सर्व कामा फल प्रदाय नमः

मंगल देवता मंगल ग्रह के स्वामी क्यों है | Mangal devta ke 108 naam

मंगल देवता ने जब काशी जाकर भगवान शिव को कड़ी तपस्या करके प्रसन्न किया था. इसके फल स्वरूप महादेव ने मंगल देवता  को शुक्र लोक के भी उपर  मंगल लोक अर्थात मंगल ग्रह का अधिपति बनाया था. इस तरह मंगल देवता को मंगल ग्रह का स्वामी होने का मान भगवान भोलेबाबा ने दिया था.

मंगल देवता की उत्पत्ति कथा

पुराणों में मंगल देवता के जन्म की दो कथाएं है. जो अब हम देखने वाले है.

पहली कथा – स्कंद पुराण अनुसार प्राचीन काल में उज्जयिनी में. अंधकासुर नामके एक भयानक दैत्य का शासन था. उसके पुत्र का नाम कनक था. कनक भी अपने पिता की तरह बेहद शक्तिशाली एवं महा पराक्रमी था. एक बार कनक दानव ने अपनी शक्ति के मद में चूर होकर. देवराज इंद्र को युद्ध की चुनौती दी थी. उस युद्ध में देवता ओं के राजा इंद्र ने कनक दानव का परास्त कर के उसका वध कर दिया. अपने पुत्र की मृत्यु होने पर अंधकासुर ने इन्द्रदेव को मारने की ठान ली. और उनका पीछा करने लगा.

इन्द्रदेव को ज्ञात था की वह अंधकासुर का सामना नहीं कर पाएंगे. इसीलिए अपने प्राणों की रक्षा हेतु. इन्द्रदेव ने महादेव को  गुहार लगाई. और कैलाश पर उनकी शरण में जाकर अभय दान माँगा. शरण आए हुए इंद्र को भोलेनाथ ने अभय प्रदान किया. उसके बाद महादेव और अंधकासुर के बीच एक प्रलयंकारी युद्ध हुआ. उस युद्ध के दौरान लढते वक्त. महादेव के पसीने की बूंद जमीन पर आ गिरी और उसी बूंद से अंगारे के समान लाला तेज वाले मंगल देवता की उत्पत्ति अर्थात जन्म हुआ. इसीलिए मंगल देवता को महादेव पुत्र भी कहा जाता है. Mangal devta ke 108 naam

दूसरी कथा – ब्रह्म वैवर्त पुराण अनुरूप वाराह कल्प में दैत्य राज हिरण्यकश्यप का भाई हिरण्याक्ष पृथ्वी को चुरा कर सागर की गहराई में ले गया था. इस अति कठिन समय में जगत के पालनहार महाविष्णु ने पृथ्वी की रक्षा हेतु वराहावतार लिया. और समुद्र में जाकर हिरण्याक्ष का वध कर के पृथ्वी की रक्षा की और उसे उसके प्राकृतिक स्थान पर फिर से स्थापित कर दिया. अपने भगवान को देख कर देवी पृथ्वी अति प्रसन्न हुई. उन्होंने अपने सकाम रूप में आकर. श्री हारी की वंदना की और उन्हें अपने पति के रूप में पाने की इच्छा प्रकट की.

उस समय वराहावतार का तेज  करोड़ों सूर्यों समान व असह्य था. देवी की इच्छा का मान रखते हुए. पालनहार नारायण अपने मनोहर सुंदर स्वरूप में आ गये. और देवी पृथ्वी के साथ एक दिव्य एक वर्ष बिताया.  तत्पश्चात भगवान और देवी के मिलन से मंगल देवता की उत्पत्ति हुई.

मंगल देवता को प्रसन्न करने के उपाय है | Mangal devta ke 108 naam

  • मंगल देवता की प्रिय वस्तुएं जैसे लाल चंदन, मसूर, तांबा (धातु की वस्तु), गुड़, गेहूं, लाल पुष्प, लाल वस्त्र इन चीजों का श्रद्धा पूर्विक दान करे.
  • रामचरितमानस का पुरे भक्ति भाव से शांत बैठकर पठन करे.
  • मंगलवार के दिन महाबली हनुमानजी की आराधना करे. आपको मंगल ग्रह के साथ- साथ अन्य ग्रह दोषों से भी हमेशा के लिए छुटकारा मिल जायेगा.
  • मंगल देवता के दोष दूर करने के लिए. शिव आराधना करनी चाहिए.
  • इन कुछ उपायों के जरिए. मंगल देवता को प्रसन्न कर के आप मंगल दोष दूर कर सकते है.
  • मंगल देवता को प्रसन्न करने हेतु मंगलवार को व्रत रख कर उनकी आराधना करनी चाहिए.

मंगल देवता किस राशी के स्वामी है?

मंगल ग्रह मेष और  वृश्चिक राशी के स्वामी होते है.

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मंगल देवता का पौराणिक मंत्र

धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।

कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम्॥

मंगल देवता का वैदिक मंत्र

ॐ अग्निर्मूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम् अपाँरेताँ सि जिन्वति॥

मंगल देवता बीज मंत्र

ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:

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भगवान के १०८ नाम

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