कबूतर की संपूर्ण जानकारी | Information About Pigeon In Hindi

हेल्लो दोस्तों इस लेख में हम कबूतर पक्षी के विषय में संपूर्ण जानकरी प्राप्त करने वाले है. जिसमे हम कबूतर के रोचक व महत्वपूर्ण तथ्य जाननेवाले है. साथ ही साथ आपको भारत में पायी जानेवाली १० सबसे खुबुसुरत कबूतर की प्रजातियाँ, कबूतर पक्षी का इतिहास, कबूतर किस चीज का प्रतिक है और कबूतर की प्रतियोगिता (race) कबसे शुरू हुई. इस तरह की ढेर सारी जानकरी मिलनेवाली है. इस लेख के उपयोग से आप कबूतर पर essay भी लिख सकते है. याफिर अपने किसी प्रोजेक्ट में भी जानकरी इस्तेमाल कर सकते हो. तो चलिए दोस्तों शुरू करते है.

कबूतर की ३२ रोचक व महत्वपूर्ण जानकारियां | Information About Pigeon In Hindi

1) Pigeon यह नाम Latin शब्द “pipio” से लिया गया है. इसका अर्थ है “chirping bird” अर्थात चहकने वाला पक्षी.

2) दुनियाभर में कबूतरों की सबसे अधिक प्रजातियाँ इंडोमलायन जैवभूक्षेत्र और स्ट्रेलेशियन जैव क्षेत्रों में बसती है.

3) क्या आप जानते है? कबूतर रात में भी उड़ सकते है. चाँद की रौशनी में उड़ते वक्त सही दिशा का पता लगने के लिए, कबूतर सितारों की स्थती का इस्तेमाल करते है.

4) “New World ground dove” यह दुनिया कि सबसे छोटी कबूतर प्रजाति है, इसका वजन २२ ग्राम होता है और यह लगभग गौरैया के आकार का होता है. इसकी तस्वीर आप निचे देख सकते है.

Pigeon in hindi
New World ground dove

5) “The Victoria crowned pigeon” यह दुनिया की सबसे बडी कबूतर नस्ल है. इसकी लंबाई लगभग 74 सेमी और वजन 2.5 किलोग्राम तक होता है. इसकी तस्वीर आप निचे देख सकते है.

The Victoria crowned pigeon
The Victoria crowned pigeon

6) कबूतर सही रास्ता और दिशा खोजने में माहिर होते है. इन्हें किसी भी अपरिचित स्थान पर छोड़ने पर ये अपने घरपर आसानी वापस लौट सकते है. अब सवाल उठता है की कबूतर ये सब कैसे करते है? इसके विषय में आगे हम विस्तार से बात करनेवाले है. इसे अंत तक पढ़ते रहे.

7) 12 वीं शताब्दी के दौरान बगदाद में संदेश पहुँचाने के लिए. सबसे पहले कबूतर उपयोग शुरू हुआ था. इस कार्य में कबूतर के पैर में छोटी चिट्ठी बांधकर संदेश भेजा जाता था.

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8) शुरुवात में संदेश भेजने के लिए. कबूतर की एक विशेष नस्ल का निर्माण किया गया था. जिसे “Homing Pigeon” कहा जाता है. आज के आधुनिक यूग में संदेश पहुँचाने के लिए. कबूतरों का उपयोग तो होता नहीं है. तो अब homing pigeon के वंशजो का  उपयोग कबूतरों की प्रतियोगिता (race) में किया जा रहा है.

9) आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है. अंडे देनेवाले कबूतर पक्षी अपने बच्चों को खुदका दूध पिलाते है. इसमें और रोचक बात यह है की नर और मादा दोनों भी बच्चों को स्तनपान करा सकते है.

10) कबूतर के दूध को क्रॉप मिल्क कहा जाता है. जो इसे अपने सीने के जरिए बच्चों को पिलाते है. इसकी पुष्टि के लिए कबूतर के बच्चे की दूध पीते हुए तस्वीर निचे दे रहे है.

pigeon feeding crop milk
pigeon feeding crop milk

11) कबूतर को वैज्ञानिक भाषा में “कोलम्बिडाए” नाम से पहचाना जाता है.

12) दरअसल  कोलम्बिडाए यह एक पक्षियों का जीववैज्ञानिक कुल है. जो कोलम्बिफोर्मीस के गण का एकमात्र कुल है. इस कुल में सभी प्रकार के कबूतर शामिल है.

13) कबूतरों के पास इतनी बुधिमत्ता होती है की वे सिखाये जाने पर किसी भी भाषा की वर्णमाला के अक्षरों को पहचान सकते है.

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14) वर्णमाला पहचानने के साथ-साथ कबूतरों में गणित के अंक पहचानने की काबिलियत भी होती है. ये किसी विशेष संख्या में चीजों को अलग व संयुक्त करने की परीक्षा में सफल हुए है.

15) गाँव और शहरों में हर जगह जो कबूतर हमे सबसे ज्यादा संख्या में दीखते है. उन्हें घरेलू कबूतर, रॉक पिजन, या रॉक डव्ह कहते है. निचे दी गई तस्वीर में आप देख सकते है.

pigeon information in hindi
रॉक पिजन

16) इस रॉक पिजन का वैज्ञानिक नाम “कोलंबा लिविया डोमेस्टिका” है. यह विश्व का सबसे प्राचीन पालतू पक्षी है. मिस्र की प्राचीन चित्रलिपि में भी घरेलू कबूतर का उल्लेख आज भी मौजूद है.

17) वैज्ञानिकों को कई एसे सबूत भी मिले है, जिससे यह साबित हुआ है की कबूतर और मनुष्य का साथ लगभग ५००० साल से भी ज्यादा पुराना है. जिसके विषय में कबूतरों के इतिहास की जानकारी भी आगे हम देखने वाले है. जो काफी रोचक है.

18) वुडलैंड, उष्णकटिबंधीय वर्षावन, घास के मैदान, सवाना, मैन्ग्रोव और चट्टानी क्षेत्र. जैसे इलाके कबूतरों की आबादी के लिए सबसे अधिक अनुकुल स्थान होते है.

19) घरेलू कबूतर ६००० फिट से भी अधिक ऊंचाई पर उड सकते है. इनके उड़ने की गति तकरीबन १५० किलोमीटर प्रति घंटा तक हो सकती है.

20) Pigeon की नेत्र दृष्टि काफी हद तक असामन्य होती है. ये पक्षी लगभग 26 मील दूर अपने लक्ष व किसी वस्तु को साफ-साफ देख सकते है.

21) कबूतर की विभिन्न प्रजातियों का बसेरा दुनिया के हर हिस्से में है. हालाँकि, ये पक्षी अंटार्कटिका और सहारा जैसे दुर्गम स्थानों पर नहीं रहते.

22) कबूतरों की अब तक 351 प्रजातियों की खोज हुई है, लेकिन उसमे से लगभग १३ प्रजतियां विलुप्त हो चुकी है.

23) आप ने कभी सुना होगा की कबूतर उड़ते समय उल्टी दिशा में गोता लगा सकते है. यह सच है इस नस्ल का नाम होता है “टंबलर कबूतर” इसकी काबिलियत की वजह से इसे खेल व प्रतियोगिता में इस्तेमाल किया जा रहा है.टंबलर कबूतर की तस्वीर निचे दी गई है.

Tumbler pigeons
टंबलर कबूतर

24) भारत के तमिलनाडु राज्य का राज्यपक्षी पन्ना कबूतर है, जिसे मरकती पंडुक नाम से भी पहचाना जाता है. ये बेहद खुबसूरत होता है, जो उपोष्णकटिबंधीय भारतीय उपमहाद्वीप, म्याँमार, थाइलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया में भी पाया जाता है.

Common Emerald Dove
पन्ना कबूतर

25) हमारे भारत के महाराष्ट्र राज्य का राज्य पक्षी “हरा कबूतर” ( Yellow-footed green pigeon) है. इसे वैज्ञानिक भाषा में “ट्रेरन” कहते है. हरा कबूतर को महाराष्ट्र में हरियल पक्षी नाम से पहचाना जाता है. अब मै आपको इसके विषय में एक रोचक बात बताता हूँ.

Yellow-footed green pigeon
हरियल पक्षी

26) हरा कबूतर के विषय में एक मान्यता है यह कभी भी जमीन पर पैर नहीं रखता. यह जब भी जमिन पर उतरता है, उस वक्त अपने पैरों में लकड़ी का टुकड़ा पकडके उतरता है. यह बहुत ही खूबसूरत होता है. निचे इसकी तस्वीर आप देख सकते है. pigeon in hindi

27) Pigeon के चाहने वालों ने आज तक इसकी कई नस्लों को विकास किया है और आज भी कर रहे है. इन नई नस्लों को fancy pigeons कहा जाता है.

28) सन १९०७ में कबूतरों का उपयोग एरियल फोटोग्राफी में भी किया जाता था, एरियल फोटोग्राफी का अर्थ है जमीन से काफी ऊंचाई पर असमान से तस्वीरे लेना. जूलियस नूब्रोनर नामक एक जर्मन फार्मासिस्ट ने इस फोटोग्राफी के लिए एक विशेष  कैमरा ईजाद किया था, जिसे कबूतरों के गले में बांध कर उन्हें आसमान में उड़ाया जाता था और तस्वीरे ले जाती थी.

29) Kabutar के पास कम से कम आवृत्ति (frequency) वाली ध्वनी सुनने की अद्भुत क्षमता होती है. जिससे वह ज्वालामुखी विस्फोट व तूफान जैसी कुदरती आपदाओं को पहले से ही भांप लेते है.

30) ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में हुए कबूतरों के अध्ययन में कुछ आश्चर्यकारक बात सामने आयी है. ये पक्षी बिल्डिंग, सडक, और  ट्राफिक सिग्नल को किसी लैंडमार्क की तरह इस्तेमाल करते है, इस तरह सही रस्ते को याद रखकर वे असमान में सही दिशा में मुड़ते है.

31) संदेशवाहक कबूतरों ने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान समय रहते. दुश्मन के गुप्त संदेश पहुँचा कर अनगिनत मासूम लोगों के प्राण बचाए थे.

32) Kabutar को इंसानों के चेहरे काफी लंबे अरसे तक याद रहते है. ये अपने मालिक एवं पार्क और मैदान में दाना डालने वालों के चेहरे भी याद रखते है.

भारत में पायी जाने वाली 10 सबसे खूबसूरत कबूतर प्रजातियाँ | Pigeon in hindi

Laughing Dove (लाफिंग डव्ह) – कबूतर की यह प्रजाति भारतीय उपमहाद्वीप की निवासी है. इसकी पूंछ छोटी व लंबी होती है. लाफिंग डव्ह सूखी झाड़ी और अर्ध-रेगिस्तानी आवासों में रहना पसंद करता है. भारत के आलावा यह प्रजाति ऑस्ट्रेलिया में little brown dove, laughing turtle dove, palm dove और Senegal dove नाम से परिचित है.

Laughing dove
Laughing dove

Common Emerald Dove (कॉमन एमराल्ड डव्ह) – इस कबूतर प्रजाति को चाल्कोफ्स इंडिका और ग्रे कैप्ड एमराल्ड डव्ह ( grey-capped emerald dove) नाम से भी पहचान मिली है.  यह प्रजाति खास तौर से भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षत्रों में रहती है. रंग रूप की वजह से स्थानिक लोग इसे हरा कबूतर नाम से संबोधित करते है.

Common Emerald Dove species
Common Emerald Dove

Spotted Dove (चित्तीदार कबूतर) – यह पक्षी भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया में निवास करता है. इसकी पूंछ सीमित लंबी होती है.  Spotted Dove छोटे वन, बगीचे और शहरों में रहने के लिए जगह चुनता है. Spotted Dove को इसके मूल नाम के अलावा mountain dove, pearl-necked dove, lace-necked dove और spotted turtle-dove नाम से संबोधित किया जाता है.

Spotted Dove
Spotted Dove

Oriental Turtle Dove (ओरिएंटल टर्टल डव्ह) – यह कबूतर प्रजाति यूरोप, पूर्व में एशिया से लेकर जापान देश तक पायी जाती है. ओरिएंटल टर्टल डव्ह का मुख्य आहार चारा, सूरजमुखी, गेहूं, और बाजरा और विविध प्रकार के बीज होता है.

oriental turtle dove
oriental turtle dove

Red Collared Dove – यह छोटे आकार की kabutar प्रजाति है, जिसे आप निचे दी गई तस्वीर में देख सकते है. इसके पंख हल्के भूरे और सिर नीले-भूरे रंग का होता है. ये पक्षी एशिया के उष्ण कटिबंध इलाखे में निवास करते है. इनकी सबसे अधिक आबादी भारत के पंजाब राज्य में दिखाती है.

red collared dove
red collared dove

Eurasian Collared Dove – यह कबूतर प्रजाति भारत, यूरोप और एशिया की मूल निवासी है. यह मानव बस्ती के नजदीक रहते है. इसकी लांबाई 32 सेमी और भार 125-240 ग्राम होता है. इसकी आबादी संतुलित है. Eurasian Collared Dove की गर्दन पर सफेद रंग का एक आधा काला पट्टा होता है और इनका रंग भूरा होता है.

Eurasian Collared Dove
Eurasian Collared Dove

Nilgiri Wood Pigeon (निलगिरी वुड पिजन) – इस पक्षी को इसके बडे आकार से पहचानना आसान हो जाता है. निचे इसकी तस्वीर भी दी गई है. निलगिरी वुड पिजन की आबादी दक्षिण-पश्चिमी भारत में पश्चिमी घाट के नम पर्णपाती जंगलों और शोलों में निवास करती है. ये कबूतर नीलगिरि पहाड़ियों और पश्चिमी घाटों में छोटे छोटे समूह बनाकर रहते है, इनका रंग गहरा भूरा होता है.

Nilgiri Wood Pigeon
Nilgiri Wood Pigeon

Nicobar Pigeon (निकोबारी कबूतर) – यह भारत में पायी जाने वाली सबसे सुंदर व आकार में बडी कबूतर प्रजाति है. निचे दी गई तस्वीर में आप देख सकते है. ये अण्डमान और निकोबार द्वीपों पर झुंड घूमते हुए पाये जाते है. निकोबार कबूतर की लंबाई 40 सेमी होती है व मादा का आकार नर से थोडा छोटा होता है.

nicobar pigeon
nicobar pigeon

Rock Dove – यह  भारत में पायी जाने वाली सबसे आम कबूतर प्रजाति है. रॉक डव्ह सर्वाहारी होते हैं. पुरे भारत में ये किसी भी तरह के इलाके में रह सकते है. भारत में रॉक डव्ह को सबसे अधिक संख्या में पाला जा रहा है. इसकी लंबाई 29 से 37 सेमी तक होती है. रॉक डव्ह का वजन 238-380 ग्राम या इससे अधिक भी हो सकता है.

rock dove
Rock Dove

Common Wood Pigeon (कॉमन वुड पिजन) – ये भी आकार में एक बड़ी कबूतर प्रजाति है. इनके आहार में लार्वा, चींटियों और छोटे कीडे होते है. इतिहास में यह पक्षी “ring dove” नाम से प्रसिद्ध था. दक्षिण-पूर्व इंग्लैंड के क्षेत्र में इसे “कल्वर” नाम से भी पहचानते है.  इसकी लंबाई 38 – 44.5 सेमी और वजन लगभग 300–615 ग्राम होता है.

Common Wood Pigeon
Common Wood Pigeon

कबूतरों की उड़ने की प्रतियोगिता (Race) कब से शुरू हुई?

आप सभी के मन में कभी न कभी ये सवाल जरुर आया की होगा. की कबूतरों की उड़ने की प्रतियोगिता कबसे शुरू हुई थी? तो यह रहा उसका जवाब ये है की कबूतरों की उड़ने की प्रतियोगीता सर्व प्रथम साल १८१८ बेल्जियम में हुई थी, इस प्रतियोगीता में कबूतरों को १६० किलोमीटर का अंतर तय करना पडा था. उसके बाद से मानो पूरी दुनिया में कबूतर  मनोरंजन व कमाई का एक जरिया बन गए.

कबूतर का इतिहास हिंदी में | History of pigeon in hindi

प्राचीन इतिहास के पन्नो पर इंसानों को और कबूतरों के एक साथ रहने के कई वर्णन मिले है. जिमसे में से सबसे पुरातन है, 300 ई.पू में मिस्र के पांचवे राजवंश का जो कबूतरों को पाला करते थे.

1150 में इराक की राजधानी बगदाद के सुलतान ने कबूतरों का इस्तेमाल डाक सेवा के लिए किया था.

साल 1206 से 1227 तक मंगोल साम्राज्य के राजा चंगेज खान ने भी. अपने साम्राज्य के संदेश व्यवस्थापन के लिए. कबूतरों का ही  उपयोग किया था.

सन १८४८ की क्रांति के घोर समय में यूरोप में संदेश वाहक का कार्यभार कबूतरों ने ही संभला था.

अमेरिकी तटरक्षक सेना ने सन १९७० और १९८० में हुए समुद्री जहाजों के हादसों में खोये हुए. पीड़ितों को खोजने के लिए, कबूतरों का इस्तेमाल किया था. और इस रक्षा मोहिम में कबूतरों ने तटरक्षक सैनिकों के मुकाबले काफी अच्छा प्रदर्शन किया था.

कबूतर एक ऐसा पक्षी है, जिसके माध्यम से इतिहास में काफी सारी लड़ाईयां शांति संदेश भेजकर रोकी गई है. जिससे लाखों लोगों को जीवनदान मिला है.

प्राचीन भारत के साथ-साथ अन्य देशों के राजा महाराजा. अपने संदेश को सही जगह व सही व्यक्ति के हाथ में पहुचाने के लिए. कबूतर भी इस्तेमाल करते थे.

प्राचीन समय की ग्रीक में भाषा कबूतर को पेरिस्टरा नाम से संबोदित किया जाता था.

प्राचीन गिल गमेश के महाकाव्य में कबूतरों का उल्लेख साफ-साफ दर्ज है. इस कहानी में महान उत्नापिष्टम ने जल प्रलय के समय में जानवरों एवं इंसानों को अपनी नाव पर सरक्षित रखा था. बाद में जब प्रलय शांत हुआ. तब उसने इंसानों व पशु के लिए आश्रय स्थान धुंडने के लिए. कबूतर और कौवे दोनों को आसमान में छोड़ा था. उन दोनों पक्षियों में से सिर्फ कबूतर ही वापस लौटे थे. इस बात उत्नापिष्टम अंदाजा लगा लिया की कौवे को जमीन मिल गई होगी इसीलिए व वापस नहीं लौटे.

अमेरिका में कबूतरों को ४०० साल पहले ले जाया गया था. उसके बाद से ये पुरे यूनाइटेड स्टेट्स में फैल गए.

Kabutar किस चीज का प्रतीक है? | Pigeons in hindi

Dove is symbol of peace

सफेद कबूतर (Dove) ने उनके सुनहरे इतिहास में संदेश पहुँचाकर. अनेक लोंगों के प्राण बचाए है एवं अनेक प्रेमियों को भी मिलवाया है. साथी ही साथ सफेद रंग शांति का प्रतिक होता है. इसी वजह से कबूतर को आज भी शांति, स्वतंत्रता और प्रेम का प्रतीक माने जाते है.

घरेलू सफेद कबूतर को “शांति कपोत” नाम से भी पहचान मिली हुई है.

पश्चिमी एशिया के लेवेंट में प्राचीनकाल में कबूतर को कनानी देवी अशेरा का प्रतिक मानाकर पूजा की जाती था.

ग्रीक के प्राचीन शास्त्रों में कबूतरों को ग्रीक की देवी “एफ़्रोडाइट” के लिए पवित्र माना जाता था.

हिन्दू पुराणों के अनुसार कबूतर को प्रेम और सौन्दर्य की देवी, महान कामदेव की पत्नी “देवी रति” का वाहन माना जाता है.

आखिर कबूतर अपने घर का रास्ता कैसे ढूंढ लेते हैं?

हमने इस लेख की शुरुआत में बात की थी की कबूतरों को इनके घर से दूर, किसी भी अपरिचित व नए स्थान पर छोडने पर भी ये पक्षी आसानी से अपने घर लौट आते है. आपका प्रश्न था की यह कैसे संभव है.

तो अब हम इसी विषय पर हम बात करते है.

किसी भी कबूतर को अनजान स्थान से अपने घर लौटने के लिए दो चीजों की आवश्यकता होती है.

१ ) “मैप सेंस” – इसमें कबूतर को अपनी भौगोलिक स्थिति की जानकारी की जरूरत होती है.

२ ) “कम्पास सेंस” – इसमें कबूतर को अपने नए स्थान से सही दिशा में घर की ओर उड़ान भरनी पडती है.

अब सवाल यह उठता है की कबूतर कम्पास सेंस और मैप सेंस का इस्तेमाल कैसे करते है.

इस विषय में एक लोकप्रिय धारणा है की यह पक्षी धरती के चुंबकीय क्षेत्र को. अपने सिर में छोटे चुंबकीय ऊतकों (चुंबकत्व) के जरिये महसूस करने में सक्षम होता है. साथ ही साथ वह सूरज की दिशा को समझता है.

इन सभी कारणों से कबूतर कही से भी अपने घर लौटने  में सक्षम होते है.

Dove और Pigeon में क्या अंतर है?  pigeon information in hindi

क्या आप जानते है, सफेद कबूतर को पण्डुक नाम से जाना जाता है. लेकिन अंग्रजी भाषा में इसे pigeon के बजाय dove कहा जाता है. आप यह बात ध्यान में रखे कबूतर और पण्डुक दोनों भी कबूतर ही है, उनके कुल भी एक ही है. लेकिन सिर्फ दोनों के  रंग में फर्क होता है. सफेद कबूतरों को ज्यादातर पण्डुक या dove कहा जाता है.

Pigeon meaning in hindi | कबूतर का मतलब हिंदी में

Pigeon का हिंदी अर्थ “कबूतर” होता है.

कबूतर के पास गजब की याददाश्त होती है, ये अपना आसमानी मार्ग कभी नही भूलते, यह पक्षी ३००० किलोमीटर तक का सफर पूरा करके, अपने घर पर वापस लौट सकते है. इसलिए ज्ञानीयोंने इनका इस्तेमाल संदेश पहुँचाने के लिए किया था.

Pigeon की खूबसूरती व समझदारी की वजह से काफी सारे लोग इसे अपने आशियाने में बडे शौक से पालते है.

ये पक्षी इंसानों के साथ काफी मिलनसार होते है और अपने मालिक के से आजीवन वफादारी निभाते है.

कबूतर ही एक ऐसा पक्षी है जिसने अपनी सामान्य क्षमता का उपयोग असामान्य कामों के लिए किया है. इतिहास में हुए कई युद्धों में कबूतरों ने बहुत से लोगो के प्राणों की रक्षा की है, जिसके लिए कबूतरों को “क्रोक्स डी ग्युरे” जैसे पदकों से सम्मानित किया गया है.

आज के समय में मनोरंजन के लिए. सफेद कबूतर का इस्तेमाल सबसे अधिक किया जा रहा है, क्योंकि वह पहेलियाँ सुलझाने में और अन्य जटिल कार्यो को पूरा करने में अधिक माहिर होते है. और घरेलू कबूतरों का इस्तेमाल जीव विज्ञान प्रयोगशाला में प्रयोग के लिए भी हो रहा है.

कबूतर का आहार | Kabutar kya khata hai

कबूतरों के आहार में लगभग सब कुछ शामिल है, ये पक्षी मक्का, बाजरा, जौ और ज्वार जैसे लगभग सभी प्रकार के अनाज के साथ-साथ इंसानों का खाना रोटी व पके हुए दाल-चावल भी खाते है. जो प्रजातियाँ जंगल व पहाड़ियों पर निवास करती है, वे फल, फूल एवं फलों की कलियाँ, पत्तियाँ घोंघे, कीट और पतगं भी खाते है.

कबूतर रेत, चिकनी मिटटी, चुना, बजरी, तथा गोबर खाकर अपने शरीर की नमक की जरुरत को पूरा करते है. अब आप सोच रहे होंगे की ये पक्षी रेत, कंकड़ व मिटटी क्यों खाते है?  इसका उत्तर – निगले हुई इन ठोस चीजों से कबूतरों के पेट में खाना पिसने का काम होता है.

कबूतर पानी को अपनी चोंच से चूसकर पीते है और अपनी उर्जा को संतुलित रखने के लिए. इन्हें प्रतिदिन ३० मिलीलीटर पानी की आवश्यकता होती है, पानी के अभाव में इसकी पूर्ति करने के लिए, Pigeon कभी-कभी बर्फ का उपयोग भी कर सकते है.

शहर में पाए जानेवाले कबूतरों की एक विशेष आदत होती है, अगर उन्हें हम लगातार सिर्फ एक ही प्रकार का दाना डाले, तो वह कुछ दिनों बाद खाना बंद कर देते है, इसीलिए उन्हें मिश्रित अनाज खिलाया जान चाहिए, जिसमे बाजरा, गेहूं और चावल के दानों को एक साथ मिलाकर कबूतरों को खिलाये जाते है.

कबूतर की शारीरिक संरचना कि जानकारी

कबूतर नियततापी पक्षी है, नियततापी का अर्थ है – वह पशु जिनका खून अन्य शीतरक्ती पशु-पक्षियों की तुलना में अधिक गर्म होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि वे अपनी अंदरूनी चयापचय प्रक्रिया कि मदत से शरीर की गरमी को कायम राखते है. इसी वजह से कबुतर थंड के मौसम में भी खुद को गर्म रख पाते हैं.

Kabutar के छोटे से सिर और चोंच के बीच त्वचा की एक छोटीसी झिल्ली होती है.

भारत देश में  पाए जाने वाले बहुतायत कबूतरों का रंग सफेद और स्लेटी होता है.

कबूतर के पंखो की मांसपेशियों का भार इसके वजन का लगभग ३१% से ४४%  होता है.

इसका दिल १ मिनिट ६०० बार धडकता है, जबकि इंसानों का दिल सिर्फ ७२ बार धडकता है.

एक घरेलू कबूतर का औसत जीवनकाल ६ से ७ साल हो सकता है, इसकी उम्र अधिकतर प्रजाति और मानव हस्तक्षेप पर भी निर्भर करती है.

कबूतर का घोंसला व निवास स्थान | Pigeon in hindi

अपना घोंसला बनाने के लिए, ये पक्षी किसी में चीज का उपयोग करते है. जैसे की पडी  हुई रस्सी, लकड़ी का टुकड़ा इत्यादि इत्यादि. कबूतर दुसरे पक्षियों के निर्जन घोसलों का इस्तेमाल भी करते है.

इनके घोंसले के सन्दर्भ में एक बात काफी सच है की कबूतर का घोंसले काफी कमजोर होता है, क्योंकि वे इसे बनाने पर ज्यादा ध्यान नहीं देते.

कबूतर की भिन्न प्रजातियाँ शहर, गाँव,रेगिस्तान की मनुष्य बस्ती, समशीतोष्ण वन, और प्रवाल द्वीप की बंजर रेत, बजरी के स्थान और लगभग हर जगह पर भी पाए जाते है.

कबूतर की प्रजातियों में rock pigeon की तादाद सबसे अधिक है. इनका नियमित निवास स्थान ब्रिटेन, आयरलैंड से उत्तरी अफ्रीका, यूरोप, अरब, मध्य एशिया, भारत, हिमालय, चीन और मंगोलिया में होता है. kabutar in hindi

कबूतर का प्रजनन,अंडे व बच्चों की जानकरी.

शारीरिक रूप से ६ माह की उम्र तक युवा कबूतर प्रजनन के लिए. सक्षम बन जाते है और ये पक्षी पुरे सालभर में कभी भी प्रजनन करते है.

कबूतर अपने पुरे जीवनकाल में सिर्फ एक ही साथी चुनते है और पूरी जिंदगी उसी के साथ ही बताते हैं.

आमतौर पर मादा कबूतर अधिकतम ३ अंडे देने की क्षमता रखती है. हालाँकि, बहुत बार इन्हें सिर्फ 2 अंडो के साथ ही देखा गया है.

pigeon eggs
कबूतर के अंडे

कबुतर पक्षियों में गजबी की समझदारी होती है, जिमसे नर और मादा कबूतर दोनों मिलकर अंडो को सेते है. अधिक अवसरों पर मादा कबूतर को रात के समय और नर कबूतर को दिन के समय अंडो को सेते हुए देखा गया है. अंडो में से चूजे बाहर आने के लिए १८ से १९ दिन का समय लगात है. चूजों के इस दुनिया में कदम रखने के बाद 4 हप्तों में वह उडना सीख जाते है व घोंसला छोड देते है

दूध पीते व बढ़ रहे कबूतर के बच्चों को स्क्वैब कहते है और जब ये दूध पीना छोड देते है, तब इन्हें स्क्वीकर कहा जाता है.

pigeon squab
कबूतर के बच्चे.

कबूतर के चूजे (बच्चे) दिखाना बहुत ही दुर्लभ होता है, क्योंकि मादा कबूतर अपने बच्चों के प्रति अधिक संवेदनशील होती है. ये उन्हें पूरी तरह से सक्षम होने के बाद ही अपने से दूर जाने देती है.  Pigeon in hindi

कबूतर का जोडा अपने अंडो व घोंसले के प्रति बेहद संवेदनशील होते है, याद रखे अगर किसी ने इनके अंडे या घोंसले से छेड़खानी की तो ये उसे चोचं मार सकते है. एवं बदला लेने के लिए पीछा भी कर सकते है.

Kabutar ki awaaz kaise hoti hai

कबूतरों की आवाज काफी गहरी होती है, जो कुछ “गूटर-गूं, गूटर-गूं“ इस प्रकार होती है.

यह पक्षी केवल हर्ष, आनंद के समय पर ही गूटर-गूं, गूटर-गूं आवाज निकालते  है. हालाँकि, जब ये पीडा व किसी अन्य मनोदशा में कोई आवाज नहीं करते है.

Frequently asked questions about pigeon (FAQs) कबूतर से सम्बंधित बारबार पूछे जानेवाले प्रश्न

Q1) कबूतर को क्या खिलना चाहिए?

A- कबूतरों को बाजरा और गेहूं सबसे अधिक पसंद है. लेकिन यह पक्षी रोज-रोज एक ही प्रकार का अनाज खाना नहीं पसंद करते. सबसे अच्छा उपाय आप इन्हें मक्का, जौ और ज्वार जैसे सभी प्रकार के अनाज को मिक्स करके खिलाए. जो इनकी सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है. कबूतर के आहार को विस्तार से समझ ने के लिए यह लेख पढ़े.

Q2) सफ़ेद कबूतर किस चीज का प्रतिक है?

A- सफेद कबूतर का संदेश पहुँचाने वाला अपना एक सुनहरा इतिहास है. इस पक्षी ने समय पर संदेश पहुँचाकर अनेक लोगों के प्राण बचाए है. और बहुतसे सच्चे प्रेमियों को भी मिलवाया है. इस वजह से सफेद कबूतर शांति और प्रेम का प्रतीक माने जाते है. कबूतर और भी बहुत सी चीजों के प्रतिक है.

Q3) कबूतर की उम्र कितनी होती है?

A- कबूतर का जीवनकाल ६ से ७ सालों का हो सकता. ये उनकी प्रजाति पर निर्भर करता है.

Q4) कबूतर के अंडे कितने दिन में फूटते हैं?

A- कबूतर के अंडों में से चूजे बाहर आने के लिए १८ से १९ दिन का समय लगता है.

Q5) कबूतर के बच्चे कितने दिन में उड़ने लगते हैं?

A- कबूतर के बच्चे 4 हप्तों के भीतर उडना सीख जाते है.

निष्कर्ष (Conclusion)

इस लेख में हमने कबूतर के संदर्भ में विस्तार से बात की है. जिमसे हमने कबूतर रोचक तथ्य व इतिहास के साथ अन्य विषयों पर भी चर्चा की है. इस लेख के अंत मै बस यही कहना चाहूँगा की आज इंसानों के द्वारा जंगल व मैदानी ईलाके नष्ट किये जा रहे है. साथी ही साथ मनोंरजन व भोजन के लिए भी कबूतर का शिकार हो रहा है. जिस वजह से कबूतरों की कई प्रजातियाँ विलुप्ति की कगार पर खडी है और कुछ तो पूरी तरह से विलुप्ति हो भी चुकी है. उदाहरण के तौर पर Zenaida graysoni, डोडो और यात्री कबूतर ये प्रजातियाँ अब दिखाई नहीं देती.. तो हम कबूतर का शिकार नहीं करना चाहिए व जंगल को भी बचाना चाहिए. ताकि हमारी आनेवाली पीढ़िया भी कबूतर की बहुतसी दुर्लभ प्रजातियों को देख सके.

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