nar pishach

वैम्पायर डायरीज भाग 2 | Nar Pishach

Nar pishach : यह एक नर पिशाच की डर एवं रोमांच से भरी कहानी है. जिसे आपने कभी देखा व सुना नहीं होगा. इसके प्रथम भाग की लिंक निचे दी हुई है. इसे पूरा जरुर पढ़ें.

वैम्पायर डायरीज भाग 2 | Nar pishach

उन्होंने वह संदूक फिरसे वही दफनाना चाहा था. पर उनका भाई संग्राम किसी की भी सुनने वालों में से नहीं था. उसे  गुप्त धन पाने की गहरी तमन्ना थी. इसलिए वह संदूक उसने हवेली के भीतर जबरदस्ती लाया. और दिन रात बस उसी संदूक को खोलने की कोशिश करने लगा. परंतु  संग्राम की  हर कोशिश नाकाम रही.

यशवंतराव अपने भाई की इस हरकत से नाराज से ज्यादा चिंतित थे. क्योंकि उन्हें इस बात का पूरा अंदाजा था. कि वह संदूक अगर खुल गया.  तो कोई बड़ी आफत आना तय है. इसलिए  यशवंतराव ने अपने पूरे परिवार को आगाह कर दिया. की कोई भी उनके आदेश के बिना संग्राम के कमरे में कदम नहीं रखेगा.

यशवंतराव ने संग्राम से बात करने के कोशिश भी की. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. संग्राम अब बदल गया था. उसने खाना पीना छोड़ दिया था. यशवंतराव अब परेशान से रहने लगे थे. क्योकि संग्राम अब उस मनहूस संदूक के हवाले हो गया था.

  • शैतानी संदूक  

एक दिन दोपहर को यशवंतराव ध्यान करने बैठे थे. तभी उनकी पत्नी आशाताई यानि की तुम्हारी परदादी उनके पास आयी. और डरे हुए स्वर में बोली की संग्राम को मैंने बिल्ली की गर्दन से खून पिते हुए देखा है.

अपनी पत्नी की कही बात पर यशवंतराव ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. वह बोले की अब वह हमारा संग्राम नहीं रहा. फिर उसी श्याम को हवेली के ऊपर बहुत सारे चमगादड़ मंडराने लगे थे. वातावरण में अजीब-सी नकारात्मक ऊर्जा महसूस होने लगी थी.

वह रात पूरे परिवार ने पूजा घर में महाविष्णु के नाम स्मरण में बिताई. अगले ही दीन यशवंतराव ने संग्राम को. उस संदूक के साथ हवेली से बाहर निकाल दिया. लेकिन कहते है ना. शैतान को उसके जैसे शैतानों का सहारा मिल जाता है. उसी तरह  गाँव में संग्राम के कुछ समर्थक भी थे. जो उसके साथ बुरे काम किया करते थे.

वह सभी लोग कीसी भेड़ के झुंड की तरह, उसके पीछे-पीछे चले गए.  उन्होंने गांव की लक्ष्मण रेखा के बाहर. चमगादड़ पहाड़ी पर एक प्राचीन गुफा को अपना  शैतानी ठिकाना बना लिया.

चमगादड़ पहाड़ी पर शैतान का बसेरा

जब वह सब पहड़ी पर चले गए. तब कुछ दिनों तक तो सब ठीक चलता रहा. लेकिन उसके बाद में  गाँववालो की भैंस, बैल, भेड़, बकरियां गायब होने लगे. और एक दिन जब सभी लोगों ने मिलकर लापता जानवरों को ढूंडा. तब  गायब हुए जानवरों की लाश चमगादड़ पहाड़ के नीचे वाले हिस्से में मिली. उन सभी मरे हुए जानवरों के शरीर में. खून की एक बूंद भी नहीं  थी.

तब से पूरा गांव खौफ के साये में जीने लगा था. और कुछ ही दिनों में जब जानवर लगभग खत्म हो गए.  तो एक अमावस की रात अचानक बच्चे गायब होने का सिलसिला शुरू हो गया. लेकिन उन नन्हे बच्चों की लाशें कभी नहीं मिल पाई. इस तरह से गाँव की आबादी कम होने लगी थी. उस भयानक अंजान खतरे से डरे हुए लोग.  अपने परिवार के साथ गांव छोड़कर जाने लगे थे.

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  • ईश्वर ने दिखाई राह

उसी दौरान एक दिन सुबह यशवंतराव आंगन में बैठकर रामायण पठन कर रहे थे. तभी उनके सामने अचानक कहीं से एक साधु महाराज प्रकट हुए. उनका कद तकरीबन 6 या 6.5 लंबा था. वह शरीर से महा बलवान थे. उन्होंने राम का नाम लिया. और कहा यशवंत मेरे पीछे आओ. तुम्हारे दादाजी जैसे सामोहित हो गए थे.

वह साधु महाराज उन्हें उसी जगह ले गए. जहां से उस मुसीबत की शुरुआत हुई थी. और उन्हें यह आदेश दिया. की जहाँ वह संदूक मिला. उसी जगह और 10 फिट निचे तक खुदाई करो. वहीं पर तुम्हे उस nar pishach को परास्त करने का रहस्य मिलेगा.

पर इस बार तुम सिर्फ उसे कैद कर पाओगे. क्योंकि उस शैतान का अंत समय ने तुम्हारे परपोते के हाथो से लिखा हुआ है.  यही विधि का विधान है. इतना कहकर वह बलवान साधू महाराज पूर्व दिशा में अंतर्ध्यान हो गए.

  • तीन खंजर

जब यशवंतराव ने वहां पर और 10 फीट गहरी खुदाई की. तब उन्हें एक सितारे के आकार का चांदी से बना संदूक मिला. उन्होंने उस संदूक को घर लाया और पूजा विधि करने के बाद ही खोला. उसमें उन्हें चांदी के तीन खंजर, चांदी की चेन और एक किताब मिली.

किताब संस्कृत भाषा में थी और यशवंतराव  संस्कृत भाषा जानते थे. उन्होंने उस किताब को खोला और पढ़ा उसमे लिखा था. कि चंद्रग्रहण की रात को उस शैतान को आजाद करने की विधि पूरी की जाती है.

उसके लिए एक कुंवारी लड़की की बलि देकर. उस नर पिशाच को आजाद किया जाता है. अगर उसे रोका नहीं गया. तो वह शैतान सारे इंसानों को अपनी तरह nar pishach बना देगा. और इस बला को रोकन के लिए. चाँद की रौशनी के नीचे. चांदी के खंजर से उसके दिल पर वार करना होगा.

परंतु एक खंजर से केवल एक ही बार वार किया जा सकता है. ये सब पढ़ने के बाद यशवंतराव चिंतित हो उठे. क्योंकि चंद्रग्रहण उसके दूसरे दिन ही था. यशवंतराव ने सरपंच पर भरोसा करके. कुछ खास मित्रों की सभा बुलाकर एक योजना बनाई.

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वैम्पायर डायरीज भाग 2  | Nar pishach 

सबसे पहले उन्होंने गांव में मौजूद हर एक कुंवारी लड़की को गाँव से दूर भेज दिया. लेकिन लड़कियों को अपनी सुरक्षा में ले जाने वाले विश्वासराव ने धोका दिया. और संग्राम की ही कुंवारी बेटी को रस्म पूरी करने के लिए. अगवा कर लिया गया.

फिर गांव में जैसे आतंक फैल गया. अब कुछ बड़ा अनर्थ होने वाला है. इस डर गांव वाले घरो में ही दुबके बैठे रहे. उस वक्त यशवंतराव के लिये चुनौती दोगुनी हो गई थी. अब तक सामना भाई से था. अब शायद साक्षात् nar pishach से होने वाला था.

उस चांदी के संदूक में चांदी के ३ खंजरों में से. यशवंतराव ने एक अपने पास रख लिया. और शैतान को बंदी बनाने के लिए. उस संदूक में एक चांदी की चेन थी. वह भी उन्होंने साथ में ले ली. चंद्रग्रहण रात के १२ बजे से १ बजे तक चलने वाला था.

उन्होंने अकेले ही जाने का निर्णय लिया. जाने से पहले उन्होंने मुझे नजदीक बुलाया. और साधु महाराज की भविष्यवाणी  के बारे में समझाया. अतं में उन्होंने मुझे इस गुप्त तहखाने के चाबी. और वह दिव्य चांदी का संदूक दिया. और निकल पड़े अकेले ही नर पिशाच को रोकने.

शेष कहानी नीचे दी गई है.

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