hanuman aur bali ka yudh इस ब्लॉग पोस्ट में आपको किष्किंधा के महाराज बालि और पवनसुत हनुमानजी के बिच हुए युद्ध की एक अजब और रोचक पौराणिक कथा पढने मिलेगी.
हनुमान और बालि की इस कहानी का उल्लेख महाकाव्य रामायण के किष्किन्धाकाण्ड इस भाग में मिलता है. जिसके बारे में काफी काम बाते लिखी है.
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Hanuman Aur Bali Ka Yudh-जब शत्रु का आधा बल खींचने वाले बालि के सामने आये हनुमानजी
ऋक्षराज के पुत्र किष्किंधा नरेश वानरराज बालि को उसके धर्मपिता इद्रंदेव से एक चमत्कारी कंठ हार मिला था. उस सुनहरे हार के बारे में पुरानो में उल्लेख है.
की वह हार स्वयं ब्रम्हदेव ने मंत्रोसे सिद्ध करके इद्रंदेव को दिया था. जिसे पहनकर कोई भी रणभूमि में उतरता, तो उसके सामने आने वाले किसी भी प्रतिद्वंद्वी की आधी शक्ति क्षीण होकर हार पहने हुए सजीव में समा जाती.
बालि पहले से ही बलवान था, पिता इंद्रदेव द्वारा दिए गए हार से बलि और अधिक बलवान और अजय हो गया था. बालि ने धरती के कई महान राजा, असुर,और राक्षसों को परास्त करदिया था.
उसे बार-बार मिलने वाली विजय से वह घमंडी और उत्पाती होगया था.
एक दिन अपनी ही मस्ती में चूर बालि वन विहार करने गया था. अपनी शक्ति के प्रदर्शन में बालि वन के वृक्षों को एक-एक कर उखड़ फैंकने लगा.
और साथही जोर-जोर से बड़ी आवाज में हुंकार भरने लगा. उसी वन के एक वृक्ष के निचे परम शक्ति स्रोत महबली हनुमान राम का ध्यान करते हुए बैठे थे.
बालि के हुंकार भरने से और वृक्षों को उखाड़ फेंकने से बजरंगबली के राम ध्यान में विघ्न उत्पन हुआ. हनुमान जी अपना आसन तोड़ कर उठे.
और बालि को समझाया. हे वानराज बालि आपका बल और शौर्य पूरा संसार जनता है. तो कृपया इस वन की शांति भंग न करे और मेरे प्रभु श्री राम के ध्यान में बाधा न डाले.
Hanuman Aur Bali Ka Yudh-जब शत्रु का आधा बल खींचने वाले बालि के सामने आये हनुमानजी
हनुमान जी के विनम्रता से समझाने पर भी अहंकारी बालि ने प्रति उत्तर में हनुमान जी को बुरा भला कहा और प्रभु राम को भी ललकारा.
वह बोला तू जिसकी पूजा करता है. मै उस राम को भी युद्ध में परास्त करसकता हूँ. तू चाहे तो खुद भी प्रयास करले. महाबली विनम्र स्वभाव वाले हनुमान जी कभी युद्ध नहीं चाहते थे.
पर घमंडी बालि ने प्रभु श्री राम को ललकारा यह बात हनुमान जी को पसंद नहीं आयी. इसीलिए उन्होंने बालि की चुनौती स्वीकार कर ली. दुसरे दिन दोनों में मल्लयुद्ध होने वाला था.
अगली सबह जब हनुमानजी ने राम आराधना पूरी की तब स्वयं ब्रह्मदेव हनुमानजी के समक्ष प्रगट हुए और उनसे बालि को मुर्ख समझकर उसके साथ युद्ध नहीं करने का निवेदन किया.
लेकिन बजरंगबली ने कहा उसने प्रभु श्री राम को चुनौती दी है. मै अगर इस युद्ध से पीछे हट गया तो संसार क्या कहेगा? ब्रह्मदेव हनुमानजी का स्वभाव भली भांति जानते थे.
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Hanuman Aur Bali Ka Yudh-जब शत्रु का आधा बल खींचने वाले बालि के सामने आये हनुमानजी
फिर उन्होंने कहा हे अंजनी पुत्र. इस युद्ध के लिय आप जरुर जाये पर आप अपनी अपार शक्ति का सिर्फ 10 वा हिस्सा लेकर जाये.
हनुमान जी ने परम पिता का मान रखने के लिय. अपनी अपार शक्तियां उनके पास रखी और उसमे से सिर्फ 10 वा हिस्सा धारण किया
और युद्ध के लिए चले गए. दूसरी तरफ अहंकारी बालि भी युद्ध की पूर्व तैयारी करके रण भूमि में युद्ध करने के लिए खड़ा था. जब हनुमानजी मल्लयुद्ध के लिए.
बालि के साथ मैदान में उतरे तब ब्रम्हदेव के हार के वरदान से हनुमानजी की शक्ति धीरे-धीरे बालि में समाने लगी और पल भर में बालि जमीन पर रेंगने लगा.
उसे महसूस होने लगा की उसके शरीर की नसे फटने वाली है. शरीर में कोई ऐसा बल समा रहा है. जिसे वह धारण करने के लायक नहीं है.
फिर उसकी नजर हनुमान जी पर पड़ी वह टस से मस नहीं हुए थे. वह किसी पर्वत के समान अचल खड़े थे. बालि ने कांपने वाले हाथों से गले में से हार निकाल दिया.
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और हनुमानजी के चरणों में गिर कर क्षमा की याचना की. अपने द्वरा किये गए. प्रभु राम के अपमान के लिय वह लज्जित था. फिर विनम्र हनुमानजी ने भी बालि को माफ़ करदिया. और वहांसे अंतर्ध्यान हो गये.
तो इस तरह रहा हनुमानजी ने बालि का घमंड चूर-चूर किया.
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