ganga ji ke 108 naam

गंगा जी के 108 नाम एवं गंगा पृथ्वी अवतरण कथा | Ganga Ji Ke 108 Naam | Ganga Ke Naam

नमस्कार, सनातन धर्म की पवित्र मान्यता के अनुसार. गंगा जी में स्नान करने से मनुष्यों के सारे पाप धुल जाते है. और उसे जीवन मरन के इस अनंत चक्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है. गंगा जी क्षमा, जीवन, शुद्धि, पवित्रता की देवी है. इनकी कृपा से मनुष्यों को पुण्य फल की प्रति होकर. उनका जीवन सुखमय बन जाता है. आज इस लेख में हम ganga ji ke 108 naam एवं वह धरती पर कैसे आयी. इसकी कथा जानने वाले है.

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Ganga Ji Ke 108 Naam

1. ओंकार स्वरूपिणी गंगा – ॐ गंगायै नमः।

2. त्रिपथगा देवी – ॐ त्रिपथगादेव्यै नमः।

3. शम्भुमौलिविहारिणी – ॐ शम्भुमौलिविहारिण्यै नमः।

4. जाह्नवी – ॐ जाह्नव्यै नमः।

5. पापहन्त्री – ॐ पापहन्त्र्यै नमः।

6. महापातकनाशिनी – ॐ महापातकनाशिन्यै नमः।

7. पतितोद्धारिणी – ॐ पतितोद्धारिण्यै नमः।

8. स्त्रोतस्वती – ॐ स्रोतस्वत्यै नमः।

9. परमवेगिनी – ॐ परमवेगिन्यै नमः।

10. विष्णुपादाब्जसम्भूता – ॐ विष्णुपादाब्जसम्भूतायै नमः।

11. विष्णुदेहकृतालया – ॐ विष्णुदेहकृतालयायै नमः।

12. स्वर्गाब्धिनिलया – ॐ स्वर्गाब्धिनिलयायै नमः।

13. साध्वी – ॐ साध्व्यै नमः।

14. स्वर्णदी – ॐ स्वर्णद्यै नमः।

15. सुरनिम्नगा – ॐ सुरनिम्नगायै नमः।

16. मन्दाकिनी – ॐ मन्दाकिन्यै नमः।

17. महावेगा – ॐ महावेगायै नमः।

18. स्वर्णश्रृंगप्रभेदिनी – ॐ स्वर्णशृङ्गप्रभेदिन्यै नमः।

19. देवपूज्यतमा – ॐ देवपूज्यतमायै नमः।

20. दिव्या – ॐ दिव्यायै नमः।

21. दिव्यस्थाननिवासिनी – ॐ दिव्यस्थाननिवासिन्यै नमः।

22. सुचारुनीररुचिरा – ॐ सुचारुनीररुचिरायै नमः।

23. महापर्वतभेदिनी – ॐ महापर्वतभेदिन्यै नमः।

24. भागीरथी – ॐ भागीरथ्यै नमः।

25. भगवती – ॐ भगवत्यै नमः।

26. महामोक्षप्रदायिनी – ॐ महामोक्षप्रदायिन्यै नमः।

27. सिन्धुसंगगता – ॐ सिन्धुसङ्गगतायै नमः।

28. शुद्धा – ॐ शुद्धायै नमः।

29. रसातलनिवासिनी – ॐ रसातलनिवासिन्यै नमः।

30. महाभोगा – ॐ महाभोगायै नमः।

31. भोगवती – ॐ भोगवत्यै नमः।

32. सुभगानन्ददायिनी – ॐ सुभगानन्ददायिन्यै नमः।

33. महापापहरा – ॐ महापापहरायै नमः।

34. पुण्या – ॐ पुण्यायै नमः।

35. परमाह्लाददायिनी – ॐ परमाह्लाददायिन्यै नमः।

36. पार्वती – ॐ पार्वत्यै नमः।

37. शिवपत्नी – ॐ शिवपत्न्यै नमः।

38. शिवशीर्षगतालया – ॐ शिवशीर्षगतालयायै नमः।

39. शम्भोर्जटामध्यगता – ॐ शम्भोर्जटामध्यगतायै नमः।

40. निर्मला – ॐ निर्मलायै नमः।

41. निर्मलानना – ॐ निर्मलाननायै नमः।

42. महाकलुषहन्त्री – ॐ महाकलुषहन्त्र्यै नमः।

43. जह्नुपुत्री – ॐ जह्नुपुत्र्यै नमः।

44. जगत्प्रिया – ॐ जगत्प्रियायै नमः।

45. त्रैलोक्यपावनी – ॐ त्रैलोक्यपावन्यै नमः।

46. पूर्णा – ॐ पूर्णायै नमः।

47. पूर्णब्रह्मस्वरूपिणी – ॐ पूर्णब्रह्मस्वरूपिण्यै नमः।

48. जगत्पूज्यतमा – ॐ जगत्पूज्यतमायै नमः।

49. चारुरूपिणी – ॐ चारुरूपिण्यै नमः।

50. जगदम्बिका – ॐ जगदम्बिकायै नमः।

51. लोकानुग्रहकर्त्री – ॐ लोकानुग्रहकर्त्र्यै नमः।

52. सर्वलोकदयापरा – ॐ सर्वलोकदयापरायै नमः।

53. याम्यभीतिहरा – ॐ याम्यभीतिहरायै नमः।

54. तारा – ॐ तारायै नमः।

Ganga Ji Ke 108 Naam

55. पारा – ॐ पारायै नमः।

56. संसारतारिणी – ॐ संसारतारिण्यै नमः।

57. ब्रह्माण्डभेदिनी – ॐ ब्रह्माण्डभेदिन्यै नमः।

58. ब्रह्मकमण्डलुकृतालया – ॐ ब्रह्मकमण्डलुकृतालयायै नमः।

59. सौभाग्यदायिनी – ॐ सौभाग्यदायिन्यै नमः।

60. पुंसां निर्वाणपददायिनी – ॐ पुंसां निर्वाणपददायिन्यै नमः।

61. अचिन्त्यचरिता – ॐ अचिन्त्यचरितायै नमः।

62. चारुरुचिरातिमनोहरा – ॐ चारुरुचिरातिमनोहरायै नमः।

63. मर्त्यस्था – ॐ मर्त्यस्थायै नमः।

64. मृत्युभयहा – ॐ मृत्युभयहायै नमः।

65. स्वर्गमोक्षप्रदायिनी – ॐ स्वर्गमोक्षप्रदायिन्यै नमः।

66. पापापहारिणी – ॐ पापापहारिण्यै नमः।

67. दूरचारिणी – ॐ दूरचारिण्यै नमः।

68. वीचिधारिणी – ॐ वीचिधारिण्यै नमः।

69. कारुण्यपूर्णा – ॐ कारुण्यपूर्णायै नमः।

70. करुणामयी – ॐ करुणामय्यै नमः।

71. दुरितनाशिनी – ॐ दुरितनाशिन्यै नमः।

72. गिरिराजसुता – ॐ गिरिराजसुतायै नमः।

73. गौरीभगिनी – ॐ गौरीभगिन्यै नमः।

74. गिरिशप्रिया – ॐ गिरिशप्रियायै नमः।

75. मेनकागर्भसम्भूता – ॐ मेनकागर्भसम्भूतायै नमः।

76. मैनाकभगिनीप्रिया – ॐ मैनाकभगिनीप्रियायै नमः।

77. आद्या – ॐ आद्यायै नमः।

78. त्रिलोकजननी – ॐ त्रिलोकजनन्यै नमः।

79. त्रैलोक्यपरिपालिनी – ॐ त्रैलोक्यपरिपालिन्यै नमः।

80. तीर्थश्रेष्ठतमा – ॐ तीर्थश्रेष्ठतमायै नमः।

81. श्रेष्ठा – ॐ श्रेष्ठायै नमः।

82. सर्वतीर्थमयी – ॐ सर्वतीर्थमय्यै नमः।

83. शुभा – ॐ शुभायै नमः।

84. चतुर्वेदमयी – ॐ चतुर्वेदमय्यै नमः।

85. सर्वा – ॐ सर्वायै नमः।

86. पितृसंतृप्तिदायिनी – ॐ पितृसन्तृप्तिदायिन्यै नमः।

87. शिवदा – ॐ शिवदायै नमः।

88. शिवसायुज्यदायिनी – ॐ शिवसायुज्यदायिन्यै नमः।

89. शिववल्लभा – ॐ शिववल्लभायै नमः।

90. तेजस्विनी – ॐ तेजस्विन्यै नमः।

91. त्रिनयना – ॐ त्रिनयनायै नमः।

92. त्रिलोचनमनोरमा – ॐ त्रिलोचनमनोरमायै नमः।

93. सप्तधारा – ॐ सप्तधारायै नमः।

94. शतमुखी – ॐ शतमुख्यै नमः।

95. सगरान्वयतारिणी – ॐ सगरान्वयतारिण्यै नमः।

96. मुनिसेव्या – ॐ मुनिसेव्यायै नमः।

97. मुनिसुता – ॐ मुनिसुतायै नमः।

98. जह्नुजानुप्रभेदिनी – ॐ जह्नुजानुप्रभेदिन्यै नमः।

99. मकरस्था – ॐ मकरस्थायै नमः।

100. सर्वगता – ॐ सर्वगतायै नमः।

101. सर्वाशुभनिवारिणी – ॐ सर्वाशुभनिवारिण्यै नमः।

102. सुदृश्या – ॐ सुदृश्यायै नमः।

103. चाक्षुषीतृप्तिदायिनी – ॐ चाक्षुषीतृप्तिदायिन्यै नमः।

104. मकरालया – ॐ मकरालयायै नमः।

105. सदानन्दमयी – ॐ सदानन्दमय्यै नमः।

106. नित्यानन्ददा – ॐ नित्यानन्ददायै नमः।

107. नगपूजिता – ॐ नगपूजितायै नमः।

108. सर्वदेवाधिदेवै: परिपूज्यपदाम्बुजा  – ॐ सर्वदेवाधिदेवैः परिपूज्यपदाम्बुजायै नमः।

॥ इति श्री महाभागवते महापुराणे श्रीगङ्गाष्टोत्तरशतनामावलिः सम्पूर्णा ॥

गंगा जी को त्रिपथगा नाम से भी पूजा जाता है. जिसका अर्थ होता है (त्रिलोक में बहनेवाली)  गंगा जी इस ब्रह्मांड में इकलौती एसी महान नदी है. जो स्वर्ग, पृथ्वी, और  पाताल इन तीनों लोकों में बहकर सभी का उद्धार करती है.

गंगा जी की पृथ्वी अवतरण कथा

यह कथा काफी प्राचीन है. श्री राम के पूर्वज राज सगर को ६०००० संतान (पुत्रों) की प्राप्ति हुई थी.  कुछ वर्षों बाद राजा सगर ने अपने साम्राज्य की अखंड समृद्धि हेतु. एक अनुष्ठान का आयोजन करवाया. अनुष्ठान मे एक घोडा था. जो उसके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था. सगर राजा के अनुष्ठान की भव्यता को देखकर.

देवराज इंद्र को उससे ईर्ष्या हो गई थी. इसी कारण उन्होंने चल रहे उसे पवित्र अनुष्ठान में से वह अश्व चुरा लिया. अनुष्ठान से उस अश्व के ओझल होने की वजह से राजा बेहद परेशान हो उठे. इसलिए उन्होंने अपने ६०००० पुत्रों को घोडे के अनुसंधान में भेज दिया. वे सब उसकी तलाश में धरती पर इधर उधर  भटकने लगे.

अश्व को ढूंडते हुए जब वे पाताल लोक में पहुंचे. तब वहापर वह घोडा तपस्या में लीन एक ऋषि के पास बंधा हुआ दिखा. वह दृश्य देख राजा के पुत्रों ने तपस्या में लीन. उस ऋषि को ही दोषी मान लिया. और सभी ने उस ऋषि के विरुद्ध अपशब्दों का इस्तेमाल करना शुरू किया.

कुछ ही समय में उन्होंने मिलकर ऋषि की तपस्या को भंग कर दिया. परिणाम वश सालों से तपस्या में लीन उस ऋषि की आंखे खुलते ही. उनकी नजर सगर राजा ६००००० पत्रों पर पडी और वह सभी जलकर भस्म हो गए. यह उस ऋषि के तपों बल के तेज था. मारे गए उन सभी का अंतिम संस्कार ना होने के कारणवश.

वे प्रेत योनी में भटकने लगे. आगे चलकर सगर राजा के एक महान वंशज भगीरथ ने. अपने पूर्वजों को यानिकी राजा के उन ६०००० पुत्रों को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने की ठान ली. इसलिए उन्होंने गंगा जी को स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर लाने का प्रण लिया. जिससे उनके पूर्वजों के पाप धुल सके. और अंत में उन्हें मोक्ष मिल सके.

महाराज भगीरथ ने अपनी कठोर तपस्या से परम पिता ब्रह्मा को प्रसन्न किया. ब्रह्मदेव भगीरथ की बात मान गए. उन्होंने गंगा जी को पृथ्वीलोक पर अवतरित होकर. पाताल लोक में प्रवेश करने के आदेश दिया.  जिससे भगीरथ के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति हो सके. अब गंगा जी पूरे वेग और सामर्थ्य के साथ धरती पर प्रकट होनेवाली थी. उनकी गति से पृथ्वीलोक का विनाश भी संभव था. इस परिणाम को समझनेवाले भगीरथ ने. कैलाश पर विराजमान भोलेबाबा के समक्ष गुहार लगाई. और उनसे प्रार्थना की के वह गंगा जी के प्रचंड वेग को धीमा कर दे.

भगवान महादेव ने समस्त संसार एवं जीवन सृष्टि की भलाई के लिए. आकाश मार्ग से पृथ्वी पर गिरनेवाली गंगा जी को. अपने सिर पर धारण कर लिया. गंगा जी अपने पुरे वेग से भगवान शिव के सिर पर गिरने लगी.

उन्होंने गंगा जी  को अपनी जटाओं में बांध लिया. जिससे उसकी छोटी छोटी धाराएँ तैयार होकर. पृथ्वी पर धीमी-धीमी बहने लगी. महादेव के स्पर्श से गंगा जी और भी पवित्र हो गई. गंगा जी के धरती पर आने से भगीरथ के पूर्वजों को मुक्ति मिलने के साथ-साथ समस्त संसार का कल्याण हो गया.

हमारे इस लेख में दिए गए ganga ji ke 108 naam अन्य भक्तों को भी जरूर दें. तथा इस लेख में और भी देवताओं के 108 नाम दिए गए है. वे सब भी जरुर पढे. आपके लिए हम अध्यात्मिक लेख लाते रहेंगे. इस लेख के बारे में आपके कमेंट में जरूर प्रदान करें. धन्यवाद.

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