1) भगवान गणेश जी ने ठुकराया तुलसी का रिश्ता | Ganesh ji ki katha
दोस्तों आप सभी को पता है. तुलसी के पत्ते किसीभी पूजा में शुभ माने जाते है. लकिन वही पत्ते गणेश जी की पूजा में वर्जित है. यानकी तुलसी के पत्ते गणेश पूजा में कभी भी इस्तेमाल नहीं होते. अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा ऐसा क्यों ?
तो इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. जो मै अभी आपको सुनाने जा रहा हूँ.
यह उस समय की बात है. जब देवी तुलसी विवाह के लिए. वर ढूंडने के लिए तीर्थयात्रा पर निकली थी. और वर ढूंडते-ढूंडते गंगा किनारे पहुँच गई.
उस वक्त गणेश जी गंगा किनारे तप कर रहे थे. उन्हें देखते ही देवी तुलसी उन पर मोहित हो गई. और उनके मन में गणेश जी से विवाह की इछा उत्पन हो गई.
फिर देवी तुलसी ने गणेश जी के पास जाकर. उनका ध्यान भंग कर दिया. आंखे खोलने के बाद भगवान गणेश जी के सामने देवी तुलसी खड़ी थी. लेकिन सामने एक स्त्री है. इसीलिए अपने क्रोध को नियत्रंण में रखकर.
विनायक भगवान ने पूछा आपका कौन है देवी और मेरा ध्यान भंग करने का क्या कारण? जवाब में देवी तुलसी ने अपने परिचय के साथ गणेश जी से विवाह का बात की.
उत्तर में गणेशजी बोले देवी मै ब्रह्मचारी हूँ. और तुमसे विवाह नही कर सकता. विवाह प्रस्ताव के लिए ना सुनने के बाद देवी तुलसी क्रोधित हो गई.
और उन्होंने गणेश जी को शाप दिया. की उनके दो विवाह होंगे. इसी बात पर गणेश भगवान भयंकर क्रोधित हो उठे. क्योंकि एक तो वह स्त्री है. इसीलिए ध्यान भंग करने पर भी गणेश जी ने कुछ नहीं कहा.
और इतनी विनम्रता से बात करने पर भी. उन्हें शाप दिया गया. फिर गणेश जी ने भी तुलसी को शाप दिया. की तुम्हारा विवाह शखंचूर्ण नाम के असुर होगा.
एक देवी होकर भी उनका विवाह एक राक्षस से होगा. यह जानकार देवी तुलसी विचलित हो गई. और बिंदायक जी से इस कठोर शाप से मुक्ति दिलाने की क्षमा याचना करने लगी.
फिर गणेश जी को तुलसी देवी पर दया आ गई. वह बोले की मेरा शाप तो बदल नहीं सकता. वह तो सच होकर ही रहेगा. लेकिन अगले जन्म में तुम एक पेड़ बनोगी. और
भगवान महाविष्णुजी को तुम अत्यंत प्रिय होगी. उनकी पूजा में भी तुम्हारा एक महत्वपूर्ण स्थान होगा. कलियुग के इंसानों को तुम मोक्ष का मार्ग दिखा ओगी.
लेकिन तुमने मेरा तप भंग किया है और मुझे ब्रह्मचारी होकर भी दो विवाह का शाप भी दिया है. इसलिए मेरी की सी भी पूजा में तुम निषिद्धि होगी.
इस तरह देवी तुलसी भगवान गणेश जी की पूजा में निषिद्धि है. आपकी जानकारी के लिए. में ये भी बता देता हूँ . की तुलसी के पत्ते महादेव जी की पूजा में भी वर्जित है. क्योंकि भगवान शिव शंकर ने देवी तुलसी के पति शखंचूर्ण राक्षस का वध किया था.
2) गणेश जी ने देवताओं के विवाह पर क्यों लगाई बंदी | Ganesh ji ki katha
दोस्तों यह बात तो सभी को पता है. की गणेश जी का मुख हाथी का है. और एक दांत भी टुटा हुआ है. इन्हीं दो कारणों की वजह से उनका विवाह नहीं हो पा रहा था .
इस बात से गणेश महाराज अक्सर नाराज रहा करते थे. एक दिन एक देवता के आग्रह पर. बिंदायक जी उसके विवाह में अपनी उपस्थिति दर्शाने गए थे.
वहां पर कुछ देवताओं ने गणेश जी के विवाह ना होने के कारण उनका उपहास किया. और जिससे गणेश जी बहुत ही नाराज हो गये.
उस दिन गणेश जी ठान लिया. की जब तक मेरा विवाह नहीं हो जाता. तब तक मै किसी भी देवता का विवाह नहीं होने दूंगा.
गणेश जी के पास विवाह और अन्य संदेश लाने का काम. उनके प्रिय वाहन मूषकराज करते थे.
अब मूषकराज जब भी किसी देवता के विवाह का समाचार लाते. तब गणेश जी उसे आदेश देते और मूषकराज अपनी सेना के साथ जाकर उस विवाह के मंडप को गिरा देते.
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एवं बारातियों को भी भगा देते. इस तरह भिन्न -भिन्न प्रकार से विघ्न डालने का काम करते.
इस तरह गणेश जी और मूषकराज की मिलीभगत की वजह से. किसी भी देवता का विवाह नहीं हो रहा था. गणपति जी के व्यवहार से तंग आकार सभी देवता भगवान शिव और माता पार्वतीजी के पास गए.
और इस समस्या का समधान मांगने लगे. भगवान शिव और माता पार्वती ने कहा. की इसका हल तो आपको केवल ब्रह्मदेव जी के पास ही मिल सकता है. कृपा करके आप ब्रह्मलोक जाये.
माता पार्वती और महादेव को प्रमाण करके. सभी देवी देवता ब्रह्माजी के पास प्रकट हुए. देवताओं की समस्या को ठिकसे सुनने के बाद. ब्रह्माजी ने अपनी योग शक्ति से दो कन्याओं का निर्माण किया.
उनका नाम था रिद्धि और सिद्धि. वह दोनों ब्रह्माजी की मानस पुत्रिया थी.
उन्हें लेकर ब्रह्माजी गणेश महाराज के पास गए. और उनसे अपनी पुत्रियों को ज्ञान एवं शिक्षा देने का निवेदन करने लगे. ब्रह्मदेव जी का मान रखने के लिये. एकदंत भगवान ने रिद्धि और सिद्धि को शिक्षा देना आरंभ किया.
उस दिन के बाद से जब भी मूषकराज किसी भी भी विवाह की खबर लेकर आते. तब वह दोनों गणेश जी को अपनी बातो में उलझकर रखती थी.
इस तरह गणेश जी का ध्यान किसी और विषय पर रहता. और दूसरी तरफ देवताओं के विवाह संपन्न हो जाते.
एक दिन बुद्धि के देवता गणेश जी को यह बात के समझ में आ गई. लेकिन उनके क्रोध में आने से पहले ही. ब्रह्मदेव अपनी दोनों पुत्रियों के साथ वहाँपर प्रकट हुए.
रिद्धि और सिद्दी को सामने देखते ही. गणेश जी का क्रोध बढ़ने लगा. बिंदायक जी के मुख से शब्द निकलने के पहले ही. भगवान ब्रह्मदेव जी ने कहा. हे गणेश जी आपने स्वयं ही मेरी पुत्रियों को शिक्षा दि है. और
अब मुझे इन दोनों के विवाह योग्य कोई वर नहीं मिल रहा है. मेरी आपसे विनती है. की आप ही इनसे विवाह करके. मुझे धन्य कीजिये.
परम पिता ब्रह्मदेव जी की शांत वाणी सुनकर. गणेश जी का क्रोध शांत हो गया. और वह उस विवाह प्रस्ताव के लिए. हंसी खुशी राजी हो गए.
विवाह के बाद अपनी दोनों पत्नियों से उन्हें दो पुत्र प्राप्त हुए. जिनका नाम रखा गया शुभ और लाभ. यह थी गणेश जी के विवाह की कथा
३) गणेश जी कैसे बने पाताललोक के सम्राट | Ganesh ji ki katha
एक बार गणेश भगवान पराशर ऋषि के आश्रम में मुनि पुत्रों के साथ खेल रहे थे. तभी वहाँपर पाताल लोक से कुछ नाग कन्यायें आयी.
उन्होंने भगवान शिव के पुत्र बालक बिंदायक जी को देखते ही. उन्हें अपने साथ अतिथि सत्कार के लिए. पाताल लोक पधारने का आग्रहपूर्वक निवेदन किया.
भगवान गणेश जी उन्हें ना नहीं कह पाए. और उनके साथ पाताल लोक के लिए निकल पड़े. वहाँ पहुँचते ही पाताल लोक वासियों ने. विनायक जी का स्वागत बड़े प्रेम और आदर भाव से किया.
अतिथि सत्कार के पश्चात जब वह सैर सपाटे पर निकले. तब उनकी मुलाकात पाताल लोक यानिकी नाग लोक के राजा वासुकी के हो गई.
बालक गणेश जी ने सम्राट वासुकी को विनम्रता से प्रणाम किया. लेकिन वासुकी बातो बातों में गणेश भगवान का उपहास करने लगे. उनके स्वरुप का मजाक उड़ाने लगे.
यह बात गणेश जी को बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी. और उन्होंने वासुकी को युद्ध में चारों खाने चित्त करके. उसके फन पर पैर रख दिया. और उसका का निचे गिरा हुआ राज मुकुट उठाकर स्वयं पहन लिया.
राजा वासुकी और गणपति महाराज के लड़ाई की खबर. वासुकी के भाई महान शेषनाग तक पहुँच गई. और वह बड़ी तेजी से अपने भाई को मदत करने के लिए दौड़े.
शेषनाग युद्ध स्थान पर पहुंचते ही गर्जाना करते हुए बोले. की कौन है वो जिसने मेरे भाई की ये हालत की है.
गर्जना की ललकार सुनते ही. एकदंत गणेश जी शेषनाग के सामने प्रकट हुए. और अपने सामने पार्वती नंदन पराक्रमी गणेश जी को देखते ही. उनकी शक्ति और ईश्वर स्वरूप को पहचानने वाले शेषनागजी ने.
उनका अभिवादन किया और तत्काल पाताल लोक के राज सिंहासन पर बिठाकर. राजा घोषित कर दिया.
यह थी गणेश जी के पाताल लोक के राजा बनने की कथा.
4) गणेश जी क्यों की बारह की नौकरी | Ganesh ji ki kahani
इस कहानी को गणेश जी के व्रत के बाद एवं अन्य किस व्रत के बाद पढना शुभ माना जाता है. इसे अंततक जरुर पढे “जय गणेश”
एक बहुत समय पहले की बात है. एक दिन गणेश जी धरती पर सैर कर रहे थे. सैर करते करते वह एक अनाज के खेत में पहुंच गए. और भूक लगने के कारण उन्होंने खेत में से 12 अनाज के दाने तोड़ कर खा लिए.
वह खेत सेठ धनीरामजी का था. बाद में बिंदायक जी को अपने किये पर पछतावा होने लगा. क्योंकि उन्होंने सेठजी को बिना पूछे ही. उनके खेत से अनाज चुरा लिया था.
फिर गणेश जी ने सोचा की अपने किये बुरे कर्म का प्रायश्चित तो करना ही पड़ेगा. इसलिए उन्होंने सेठजी के यहा 12 साल के लिए नौकरी करने की ठान ली. उसके बाद अगली ही सुबह विनायक जी
१३ से १४ साल के लड़के का रूप लेकर नौकरी मांगने के लिए. धनीराम सेठजी के घर पर पहुंचे. और उन्हेंने सेठजी को अपना नाम गणेशा बताया. विनायक भगवान की बुद्धिमानी की परीक्षा लेने के बाद.
सेठजी ने खुशी-खुशी नौकरी भी देदी. अब गणेश महाराज एक सामान्य मनुष्य के रूप में सेठजी के ही घर पर रहने लगे.
एक दिन सेठजी की पत्नी श्याम को. घर का काम खतम करने के बाद. राख से हाथ धोने जा रही थी. वह देख गणेश जी ने सेठानी जी के हाथ पकडकर जबरदस्ती मिटटी से धुलवा दिए.
गणेश जी की इस हरकत से सेठानी आग बबूला हो गई. और उन्होंने सेठीजी के कमरे में जाकर गणेशा की शिकायत कर दी. सेठानी से सबकुछ सुनने के बाद सेठ धनीराम ने गणेशा को बुलाया. और इस हरकत का कारण पूछा.
गणेश जी बोले की सेठानी श्याम के समय राख से हाथ धो रही थी. ऐसा करने से घर की लक्ष्मी नाराज होकर चली जाती है. इसलिए मैंने उनके हाथ मिटटी से धुलवाए. इससे घर पर माता लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है.
यह सब सुनकर सेठजी ने सोचा गणेशा की सोच तो बड़ी सच्ची और अच्छी है. उसके कुछ दिन बाद कुंभ मेले का शुभ अवसर आया. सेठजी ने गणेशा को बुलया और कहा. सेठानी जी को कुभं मेले में स्नान कराके लाव.
अब सेठानी और गणेशा स्नान के लिए. मेले में पहुंचे. वहा पहुंचे के बाद सेठानी नदी के किनारे बैठकर नहाने लगी. उन्हें ऐसा करते देख. गणेशा दौड़ा दौड़ा आया. और सेठानी जी के दोनों हाथ पकडकर.
उन्हें नदी के अन्दर लेकर गए. और उनसे पानी में डूब की लगवाई. और फिर किनारे पर ले आए. अब गणेशा की इस हरकत से तो सेठानी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया.
और घर आते आते वह पुरे रास्ते गणेशा को ताने पर ताने मार रही थी. लेकिन विनायक जी सब कुछ शांति से सुन रहे थे. घर आते ही सेठानी ने सेठजी के पास फिरसे गणेशा की शिकायत कर दी.
सेठजी ने तुरंत ही गणेशा को बुलाया और पूछा की तुमने ऐसा क्यों किया? गणेश जी बोले सेठजी सेठानी नदी के किनारे बैठकर गंदे से पानी में नहा रही थी.
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तो मैंने उन्हें नदी में ले जाकर साफ पानी में डुबकी लगवाई. ऐसा करने से उन्हें अगले जन्म में बहुत बड़ा राजपाठ और वैभव मिलेगा. सेठजी की ने सोचा की गणेशा के विचार कितने अच्छे है.
मेरे परिवार का भला सोचता है. कुछ दिन बाद सेठजी के घरपर पूजा थी. पंडित जी आने के बाद सेठजी ने गणेशा को कहा जाओ और सेठानी जी को बुलाकर लावा.
सेठजी के आज्ञा अनुसार गणेश जी सेठानी को बुलाने गए. उस वक्त सेठानी काली चुनरी ओढ़ कर आ रही थी. वह देखते ही बिंदायक जी ने वह काली काली चुनरी लेकर फाड़ दी.
और कहा की पूजा के लिए लाल रंग की चुनरी ओढ़ कर आइए. अब सेठानी बहुत ज्यादा नाराज हो गई और गणेशा पर चिल्लाने लगी. वह आवाज सुनकर सेठजी वहां पर भागते हुए आये.
और पूछा की क्या हुआ? तब सेठानी बोली गणेशा ने मेरी चुनरी फाड़ दी. तब सेठजी ने भी गणेशा को बहुत डांटा. जवाब में गणेश जी ने कहा की सेठजी पूजा में कभी काला वस्त्र नहीं पहनते.
इससे शुभ काम सफल नहीं होते. इसीलिए मैंने ऐसा किया. सेठजी ने सोचा कि गणेश है तो बहुत ही समझदार है.
इसी तरह लीला रचते हुए. उस घर गणेश जी के 12 साल बीत गए.
फिर एक दिन सेठजी ने नया कारोबार शुरू करने से पहले. घर में पूजा रखी थी. पूजा करते – करते उनको याद आया की पूजा की सामुग्री में बिंदायक जी की मूर्ति तो है ही नहीं.
तब उन्होंने तब उन्होने अपने नौकर गणेशा को पूजा घर से भगवान विनायक जी की मूर्ति लाने के लिए कहा. तब गणेशा बोला की मुझे ही मूर्ति समझकर पूजा में विराजमान कर लो.
आपके सारे शुभ काम सफल हो जायेंगे. यह बात सुनकर सेठजी गुस्सा हो गए. और बोले गणेशा तुम अब तक सेठानी से मजाक करते थे. अब मुझसे भी करने लगे.
उत्तर में गणेश जी ने मुस्कुराते हुए कहा. नहीं सेठजी मै मजाक नहीं कर रहा.
मै सत्य वचन कह रहा हूँ. इतना कहने के बाद नौकर गणेश जी ने अपना असली रूप धारण कर लिया.
साक्षात गणेश भगवान को सामने देखते ही सेठ और सेठानी उनके के चरणों में लीन हो गये. और अपनी पूजा संपन्न की. उसके पश्चात भगवान गणेश जी देखते ही देखते अंतर्धान हो गए.
बाद में सेठ और सेठानी को बहुत पछतावा होने लगा. की स्वयं भगवान हमारे घर नौकरी कर रहे थे. और हमने उनके साथ कितना बुरा व्यवहार किया. उनसे बहुत काम कराया. यह सोच-सोच कर दोनों दुखी होने लगे.
उसी रात सेठ और सेठानी के सपने में गणेश जी प्रकट हुए. और उन्हें समझाया की मैंने 12 साल पहले तुम्हारे खेत से 12 अनाज के दाने बिना पूछे तोड़ लिए थे.
और उसका दोष दूर करने के लिए. मै बारह साल से तुम्हारे यहा नौकरी कर रहा था.
अगले ही दिन से सेठजी पर गणेश जी की माया हो गई. उनका व्यापार दिन दोगुना और रात चौगुना तररकी करने लगा. धनीराम सेठजी के जीवन की काया पलट हो गई.
हे गणेश जी जैसी माया अपने धनीराम सेठजी पर की. वैसी ही माया इस कहानी को पढनेवाले और सुननेवाले हर एक व्यक्ति पर करना. कथा अधूरी हो तो इसे पूरी करना. और अगर हमसे कोई गलती
हो गई हो. तो उसे क्षमा करना.
जय गणेश….. जय बिंदायक.
5) अमर सुहाग और अमर पीहर बुधवार व्रत कथा | Bindayak ji ki kahani
बहुत सालो पहले गणेश पूरी नाम का गाँव था. उस गाँव में विनायक और बिंदु नाम के एक भाई बहन रहा करते थे. वह दोनों एक दुसरे से बहुत प्यार करते थे. और हमेशा एक दुसरे का खयाल रखते थे.
बिंदु का एक नित्य नियम था. हर रोज सुबह वह घर के सारे काम पुरे करने के बाद. अपने भाई विनायक का मुंह देखकर ही खाना खाती थी.
कुछ सालो बाद दोनों के विनायक ने अपनी बहन का विवाह ही पासके ही गाँव के एक व्यापारी रचाया. उसके ससुराल वाले काफी भले लोग थे.
शादी के बाद भी बिंदु ने अपना नित्य नियम कायम रखा था. वह हर सुबह सुसराल के घर का काम जल्दी जल्दी खतम करके के. अपने मायके भाई का मुंह देखने जाती थी. ससुराल से मायके तक बिंदु जिस रास्ते से जाती थी.
वह रास्ता खेतों से होकर गुजरता था. वहां पर घनी झाड़ियों के बीच. एक खेजड़ी के पेड़ के निचे गणेश जी की एक छोटीसी सुंदर मूर्ति रखी होती थी.
बिंदु हर रोज आते वक्त उस मूर्ति के सामने हाथ जोडकर बोलती थी. हे गणेश जी मेरे जैसा अमर सुहाग और मेरे जैसा अमर पीहर (मायका) सबको दीजिए. इतना कहकर जब वह मायके जाने के लिए निकलती.
तब घनी झाड़ियों के कांटे उसके पैरों में चुभा करते. एक दिन रोज की तरह बिंदु मायके पहुंची और भाई का मुंह देखकर उसके पास बैठ गई.
उसवक्त उसकी भाभी की नजर बिंदु के पैरो पर गई. भाभी ने पूछा की आपके पैरो में क्या हुआ है. वह सुनकर बिंदु ने जवाब दिया की आते वक्त खेतो की घनी झाड़ियों के बीच गिरे हुए. कांटे मेरे पांव में चुभ गए है.
उसके बाद जब वह वापस अपने ससुराल लौट गई. तब भाभी ने अपने पति विनायक से कहा की आपकी बहन के पैरो में कांटे चुभ गए है. कल फिरसे ना चुभे इसलिए. आज ही आप रास्ता साफ करवा दीजिये.
वह सुनते ही विनायक ने उसी वक्त कुल्हाड़ी उठाई. और खेतो की घनी झाड़ियाँ काटकर रास्ता साफ कर दिया. लेकिन झाड़ियाँ काटते वक्त. उसके हातो एक गलती हो गई.
और झाड़ियों के साथ-साथ गणेश जी की मूर्ति भी वहा से हटा दी गई. और इसी बात पर भगवान गणेश जी नाराज हो गए. और भाई विनायक के प्राण हर लिए.
अगली सुबह जब अंतिम संस्कार हेतु. गाँव के लोग विनायक को ले जा रहे थे. तब उसीकी पत्नी ने रोते हुए कहा. रुकिए इनकी बहन आनेवाली है. उसका नियम है. की वह अपने भाई का मुंह देखे बिना नहीं रह सकती.
फिर लोग बोले आज देख लेगी लेकिन कल क्या करेगी?
दूसरी तरफ बिंदु रोज की तरह अपने भाई से मिलने ससुराल से आ रही थी. रास्ते में आते वक्त उसे रास्ता साफ सुथरा दिखाई दिया. लेकिन उसका ध्यान जब रोज की तरह बिंदायक जी के स्थान पर गया.
तब उसने देखा की गणेश जी मूर्ति अपने स्थान पर नहीं है. फिर उसने तुरंत ही मूर्ति को ढूंडकर उसकी नियमित जगह पर स्थापित कर दिया.
और हाथ जोड कर बोली. हे गणेश भगवान मेरे जैसा अमर सुहाग और मेरे जैसा अमर पीहर (मायका) सबको दीजिए. यह कहकर आगे बढी.
अपने भक्त की बात सुनकर गणेश भगवान सोचने लगे. अगर मैंने इसका कहना नहीं सुना. तो मुझे कौन मानेगा? कौन पुजेगा मुझे? तब गणेश जी ने बिंदु को आवाज दी और बोले सुनो बेटी इस खेजड़ी की सात पत्तियां लेकर जा.
और उसे कच्चे दूध में घोलकर अपने भाई के उपर छींटा मार देना. वह उठकर बैठ जाएगा.
वह आवाज सुनकर बिंदु इधर उधर देखने लगी. उसे आस पास कोई भी नहीं दिखाई दिया. फिर उसने सोचा ठीक है, जैसा सुना वैसा कर लेती हूँ. और वह खेजड़ी की ७ पत्तियां तोडकर अपने भाई के घर ले गई.
मायके पहुंचते ही उसने देखा की भाई के घर लोग इकट्ठा हुए है. भाभीजी रो रही है. और सामने भाई का शव(लाश) रखा है. उसके बाद बिंदु सुनी हुई उस आवाज के हिसाब से. खेजड़ी की सात पत्तियां कच्चे दूध में घोलकर भाई पर छींटे मार दिए.
उसके बाद चमत्कार हुआ. और गणेश भगवान की कृपा से भाई विनायक उठकर बैठ गया.
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भाई के उठते ही वह अपनी बहन से बोला मुझे बहुत ही गहरी नींद आ गई थी. वह सुनकर बिंदु बोली इस तरह की नींद किसी दुश्मन को भी नसीब ना हो. और उसने भाई को पूरी कहानी बता दी.
तो यह थी मान्यता अनुसार बुधवार को सुनी जानेवाली गणेश जी की कथा.
हे गणेश भगवान इस कहानी को पढने वाले और सुनने वाले को हमेशा खुश रखना, कहानी अधूरी हो तो इसे पूरी करना. और हमसे कोई गलती हो गई हो तो क्षमा करना.
जय श्री बिंदायक
6) गणेश जी ने दी खीर की दावत | Ganesh ji Ki Kheer Wali Kahani
यह बहुत समय पहले की बात है. एक दिन कैलाश पर्वत पर भ्रमण कर रहे. गणेश जी के मन में विचार आया. क्यों ना धरती के लोगो की परीक्षा ली जाये. और देखे की वह कितने नम्र और विश्वास पात्र है.
उसके बाद गणेश जी अपने माता पिता की आज्ञा लेकर. धरती के एक गाँव में प्रकट हुए. उन्होंने एक बालक का रूप धारण कर लिया. और एक हाथ में एक चम्मच भर के दूध और दुसरे हाथ में एक चुटकी भर चावल लिए.
और गाँव में उन्हें जो भी मिलता. उससे पूछते क्या आप मेरे लिए इस चावल और दूध की खीर बनाकर दे सकते है?
उन के हाथ में पकडे हुए. चावल और चमच में दूध देखकर हर कोई हसता. और कहता इतने से दूध और चावल से खीर नहीं बनती बेटा.
और कई लोगो ने तो मजाक भी उड़ाया. इस तरह गणेश भगवान गाँव के लोगो से पूछते-पूछते. एक कुटिया के नजदीक पहुंचे.
उस कुटिया के बाहर एक बूढी माई बैठी थी. बालक गणेश जी उस बूढी माई से पूछा. माई क्या आप मेरे लिए. इस चावल और दूध की खीर बनाकर दे सकती है? माई को उस बालक पर दया आ गई.
वह बोली हा बेटा मै तेरे लिए खीर जरुर बना दूंगी. इतना कहकर माई घर के अंदर गई. और दो छोटी कटोरिया लेकर वापस आयी.
बिंदायक जी बोले माई इतनी सी कटोरीया काफी नहीं होगी. तुम अपने घर के सबसे बडे बर्तन लाओ. फिर बूढी माई ने बालक गणेश का मन रखने के लिए.
घर में से दो सबसे बड़े बर्तन लाये. और गणेश जी के सामने रख दिए. और गणेश जी ने एक बर्तन में चावल और दुसरे बर्तन में दूध डालना शुरू किया.
फिर देखते ही देखते बूढी माई घर के अंदर से एक-एक करके सारे बर्तन लाती गई . और गणेश जी की माया से वह बर्तन दूध और चावल से भरते गए.
ऐसा करते-करते उस घर के सभी बर्तन भर गए. अब विनायक भगवान बोले माई तुम खीर बनाकर रखो. मै तुम्हारे घर के पीछे वाले कुएं से स्नान करके आता हूँ.
माई के मन में एक सवाल आया. वह बोली बेटा मै इतनी सारी खीर बनाकर क्या करूँ. इसपर बालक गणेश जी बोले. माई तुम गाँव के सभी घरो को खीर खाने का निमंत्रण दे देना. आज गाँव में खीर की दावत होगी.
फिर गणेश भगवान स्नान के लिए प्रस्थान कर गए. माई ने गाँव के सभी लोगो को निमंत्रन दे दिया. और उसे निमंत्रन बाटता देख गाँव के लोग कानाफूसी करने लगे. की इस गरीब बुढिया के पास कल तक खाने के लिए कुछ नहीं था.
लेकिन आज सब को निमत्रंन दे रही है. फिर भी माई का उत्साह देखकर. गाँव के सभी लोगो ने वह न्योता स्वीकार किया.
निमत्रंन देने के बाद बूढी माई अपनी कुटिया में जाकर खीर बनाने लगी. और गणेश जी की माया से खीर इतनी अच्छी बन रही थी. की उसकी भीनी-भीनी खुशबु पुरे गाँव में फैलने लगी.
बूढी माई खीर बनाने के बाद कुछ देर के लिए बाहर गई. तभी पास ही में रहने वाली उसकी बहु खीर की खुशबू सूंघते-सूंघते आयी. उसने देखा की खीर चूल्हे पर चढ़ी हुई है. और माई घर पर नहीं है.
खीर की खुशबु की वजह से बहु से रहा नही गया. उसने 2 कटोरिया में खीर निकली. और एक कटोरी में घर में रखी भगवान गणेश की मूर्ति को भोग लगाया. और दूसरी कटोरी लेकर दरवाजे के पीछे बैठकर खाने लगी.
कुछ समय बाद बूढी माई ने स्नान करने गए बालक गणेश जी को आवाज लगाई. और गणेश जी वहाँपर हाजिर हो गये. माई बोली बेटा तुम्हारी खीर बन चुकी है. आओ बैठो मै तुम्हे परोसती हूँ.
माई की बात पूरी होने के बाद. विनायक जी ने बड़े ही प्यारे स्वर में कहा. माई तुम्हरी बहु ने भोग लगा दिया है. और वह खाकर मेरा पेट तो अब भर चूका है. तुम बाकि की खीर गाँव के लोगो को खिला देना. और
बची हुई खीर रात को सोते समय कुटिया के चारों कोनो में कटोरियों में रख देना. इतना कहकर बालक गणेश वहां से चले गए.
फिर गाँव के लोग आने लगे. और श्याम होते-होते सभी लोगो ने. पेट भर के खीर खाई. फिर भी एक बड़ा पतीला भर के खीर बच गई. फिर वही खीर माई ने बालक गणेश के कहने अनुसार.
रात को सोते समय कटोरियों में भरकर. कुटिया के चारो कोनो में रख दी. उसी रातको बुढिया माई के सपने में आकार उस बालक ने गणेश भगवान के रूप में दर्शन दिए.
सुबह जब माई उठी. तो उसने देखा की चारो कोनो में जो खीर रखी थी. वह सभी कटोरिया हीरे मोती और सोने के आ भूषनो से भरी हुई थी.
इस तरह एक गरीब बुढिया माई पर गणेश भगवान की माया हुई. और उसके जीवन की काया पलट गई.
हे गणेश जी जिस तरह आपने बूढी माई पर माया की उसी तरह माया इस गणेश कहानी को पढनेवाले और सुनने वाले पर करना. कहानी अधूरी हो तो इसे पूरी करना. और अगर कोई गलती हो गई हो तो हमे क्षमा करना. ||जय गणेश|| जय विनायक
7) बुधवार व्रत कथा – निसंतान दंपत्ति पर गणेश जी की कृपा | Ganesh Ji Ki Katha
एक गाँव में एक सेठ और सेठानी रहते थे.वह बहुत ही धार्मिक प्रवृति के थे. और गणेश भगवान के अनन्य भक्त भी थे. वह दोनों बिना चुके हर बुधवार गणेश जी का व्रत रखते थे. और
श्याम को ग्यारह ब्राह्मणों को भोजन खिलाने के बाद ही अपना व्रत खोलते थे. सेठ जी का काफी बड़ा परिवार था. वह सब आपस में बड़े प्यार और भाईचारे से रहते थे.
लेकिन सेठ और सेठानी की कोई संतान नहीं थी. इस विषय पर परिवार और गाँव के लोग. आपस में काना फुंसी करते थे. कहते की सेठानी बांझ है. यह सब बाते सुनकर सेठ और सेठानी बहुत दुखी होते थे.
एक बुधवार के दिन सेठ और सेठानी. गणेश जी की पूजा संपन्न कर के मंदिर से बाहर आ रहे थे. तभी उन्हें सीढियों पर एक छोटा सा बच्चा अकेले बैठा हुआ दिखा. बच्चे को देखते ही. दोनों उसके पास गए. और
पूछा की तुम्हारे माता पिता कहा है. लेकिन बच्चे ने अभी तक ठिकसे बोलना नहीं सिखा था. इसीलिए वह बोल नही पाया. वह दोनों बच्चे के पास श्याम तक बैठे रहे.
तब तक पंडित जी और सेठीजी ने नौकरों ने. आस पास जाकर बच्चे के माता पिता को खोजने कोशिस की. लेकिन उन्हें बच्चे के माता पिता या बच्चा खोने की कोई भी खबर नहीं मिली.
फिर पंडित जी ने सेठ और सेठानी को बच्चा अपने घर लेजाने के लिए कहा.
और साथ में यह भी कहा की अगर बच्चे के माता पिता यहां पर आते है. तो मै स्वयं उन्हें आपके पास ले आऊंगा. सेठ और सेठानी खुशी-खुशी उस नन्हे बालक को अपने साथ घर ले गए.
सेठानी ने बच्चे का नाम अपने आराध्य भगवान गणेश जी के नाम पर गणेशा रखा. और बड़े लाड प्यार से उसका पालन पोषण शुरू कर दिया.
कुछ दिनों बाद उसी गाँव में एक ठग पति पत्नी आए. उनका इरादा गाँव के सबसे आमिर आदमी को ठगने का था. वह दोनों ठग गणेश मंदिर की सीढियों पर बैठे सोचे विचार कर रहे थे.
कुछ समय बाद वहाँपर पडिंतजी आये. और गाँव में अंजान लोग दीखते ही. उनसे पुछा की क्या आपका बच्चा खो गया है. दोनों ठग तो चोरी चकारी के लिए बहाना ढूंढ ही रहे थे. इसीलिए उन्होंने हाँ कह दिया.
तब पंडित जी ने कहा चिंता की कोई बात नहीं. आपका बच्चा एक सेठजी के घर पर पल रहा है. और पंडित जी उन दोनों को सेठजी के घर पर ले गए.
गणेशा के माता पिता आये है. यह खबर सुनकर सेठ और सेठानी बहुत दुखी हुए. सेठजी ने उन दोनों पति पत्नी को एक रात के लिए. अपने अतिथि गृह में ठहराया.
अब वह दोनों ठग सिर्फ मौके की फिराक में थे. और उसी रात सब लोग सो जाने के बाद. एक एक करके सभी कमरों की तलाशी लेने लगे.
और तलाशी लेते-लते वह दोनों तिजोरी वाले कमरे में पहुंच गए. छानबीन के वक्त होनेवली छोटी मोटी आवाजो से सेठजी का एक नौकर जग गया. और
आवाज की दिशा में तिजोरी वाले कमरे के नजदीक आ पंहुचा. उसने चुपके से अंदर झांक कर देखा. तो दोनों मेहमान कीमती सामान चुरा रहे थे. नौकर ने वह देखते ही धीरे से उस कमरे के बाहर से कुंडी लगा दी. और
चोर-चोर बोल कर पुरे घर में हल्ला कर दिया. शोर गुल की आवाज सुनते ही. घर के सारे लोग इकट्टा होगये. फिर सेठजी ने उन दोनों को कमरे से बाहर निकाला. और सुबह-सुबह पंचायत में हाजिर कर दिया.
और सरपंच जी को पूरा मसला बताया. और कहा की यह दोनों तो चोर है. अब हम गणेशा इन दोनों को नहीं देंगे. लेकिन वह दोनों ठग पति पत्नी अपनी जिद्द पर अड गए. और
बच्चे को ले जाने की जिद्द करने लगे. सरपंची जी ने इस समस्या एक तोड़ निकाला. और सेठानी और उस दूसरी औरत को गणेशा के सामने खड़ा कर दिया. और
कहा जिसके भी आंचल से दूध की धार गणेशा के मुह में जाएगी. बालक गणेशा उसके पास रहेगा.
फिर वह दोनों आंचल सामने रखकर खड़ी हो गई. सेठानी मन ही मन गणेशी जी के नाम का जाप कर रही थी.
और देखते ही देखते गणेश जी की कृपा से सेठानी जी के आंचल से दूध की धारा गणेशा के मुह में गिरी.
इस तरह गणेशा सेठ और सेठानी के साथ हमेशा के लिए रहने लगा.
तो यह बुधवार व्रत को सुनी और पढ़ी जानेवाली गणेश जी की कथा.
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