भारतेन्दु हरिश्चंद्र वह साहित्यकार थे. जिन्होंने केवल 35 वर्ष की अल्पायु में ही 72 ग्रन्थों की रचना कर दी थी. उन्हें भारत के हिंदी साहित्य का पितामह कहा जाता है. भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने साहित्य क्षेत्र में किए हुए.
अद्वितीय योगदान की वजह से 1857 से 1900 तक के कालावधि को भारतेन्दु युग कहा जाता है. हरिश्चंद्र यह उनका मूल नाम है. साल 1980 में उनकी बढ़ती जनप्रियता से प्रभावित होकर.
काशी के कुछ विद्वानों ने उन्हें ‘भारतेंदु’ की उपाधि से सम्मानित किया. ‘भारतेंदु’ का अर्थ होता है, भारत का चंद्रमा. आज इस लेख के में हम भारत के युग प्रवर्तक साहित्यकार bhartendu harishchandra ki jivani देखनेवाले है.
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भारतेन्दु हरिश्चंद्र की जीवनी | Bhartendu harishchandra ki jivani
नाम | भारतेन्दु हरिश्चंद्र |
जन्म तारीख | 9 सितम्बर, 1850 |
जन्म स्थान | उत्तर प्रदेश, वाराणसी |
मृत्यु तारीख | 6 जनवरी, 1885 |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु स्थान | उत्तर प्रदेश, वाराणसी |
व्यवसाय | कवि, लेखक,रंगकर्मी |
काल | आधुनिक काल |
लेखन विषय | सामाजिक एवं आधुनिक हिन्दी साहित्य |
उल्लेखनीय रचना | अन्धेर नगरी, भारत दुर्दशा |
भारतेन्दु हरिश्चंद्र का आरंभिक जीवन
भारतेन्दु हरिश्चंद्र का जन्म साल १८५० में ९ सितम्बर को, उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था. उनके पिता का नाम गोपालचंद्र था. जो खुद भी एक कवी थे. उनकी रचनाएँ “गिरधरदास” इस उपनाम से प्रसिद्ध होती थी.
भारतेन्दु हरिश्चंद्र का बाल्यकाल काफी विकट मनस्थिति से घिरा हुआ रहा. क्योंकि पांच साल की आयु में उनकी मां गुजर गई. उनके पिताजी के दूसरे विवाह के पश्चात उनकी सौतेली माता से उन्हें कभी माँ का स्नेह नहीं मिल पाया.
फिर जब वह १० साल के हुए. तो उनके पिताश्री भी गुजर गए थे. भारतेन्दु हरिश्चंद्र एक वैश्य परिवार में जन्मे थे. उनकी घर की आर्थिक स्थिति उत्तम थी.
भारतेन्दु हरिश्चंद्र की शिक्षा
भारतेन्दु हरिश्चंद्र की आरंभिक शिक्षा ठीक से न हो सकी. केवल प्रथापालन के अनुसार होती रही. उन्होंने घर पर ही हिंदी, उर्दू, बंगला और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया.
उसके पश्चात उन्होंने वाराणसी में स्थित क्वींस कॉलेज प्रवेश लिया. लेकिन उनका मन पढ़ाई लिखाई के विषय में कभी केन्द्रित हुआ ही नही. परंतु तीव्र बुद्धिमत्ता के कारण वह ३ से ४ सालों तक उत्तीर्ण होते रहे.
अपनी शिक्षा ग्रहण करते समय. भारतेन्दु हरिश्चंद्र ,अंग्रेजी के ज्ञाता तथा लेखक राजा शिवप्रसाद ‘सितारेहिन्द के सानिध्य में आए थे. वह उन्हें अपना गुरु मानते हुए. उनके पास जाते थे. भारतेन्दु हरिश्चंद्र को अगेजी भाषा का ज्ञान उन्हीं से प्राप्त हुआ था.
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भारतेन्दु हरिश्चंद्र का वैवाहिक जीवन
भारतेन्दु हरिश्चंद्र का विवाह १३ साल कि आयु में ही मुन्ना देवी से हुआ था.
भारतेन्दु हरिश्चंद्र का साहित्यिक परिचय | Bhartendu harishchandra ka sahityik parichay
भारतेन्दु हरिश्चंद्र पंधरा वर्ष की अल्पायु में ही साहित्य में रुची दिखाना आरंभ किया था. आगे चलकर १८ वर्ष की आयु में ही उन्होंने “कविवचनसुधा” नामक खुदकी पत्रिका छापना आरंभ कर दिया था.
इस पत्रिका की विशेषता थी कि इसमें उस जमाने के बड़े-बड़े विद्वानों तथा साहित्यकारों की रचनाएं छपती थी. जब वह २० वर्ष आयु के हुए. तब उन्हें ऑनरेरी मजिस्ट्रेट बनने का गौरव प्राप्त हुआ.
साथ ही भारतेन्दु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिन्दी साहित्य के जनक के रूप पहचान प्राप्त हुई थी. कविवचनसुधा के अलावा सन उन्होंने 1873 में ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन’ और 1874 में ‘बाला बोधिनी’ नामक पत्रिकाएँ निकाली थी.
भारतेन्दु हरिश्चंद्र को हिंदी में आधुनिकता का प्रथम रचनाकार माना जाता है. हिंदी साहित्य की दुनिया में आधुनिक काल का प्रारंभ उन्ही के हाथों से ही हुआ था.
देश की गरीबी, पराधीनता, भ्रष्ट तथा क्रूर शासकों द्वारा सामान्य जन जीवन का शोषण इन जैसे तत्कालीन सामाजिक घटनाओं एवं विपत्तियों को उन्होंने अपने साहित्य को विषय बनाया था. हालांकि वह अन्य विषयों पर भी लिखते थे.
भारतेन्दु हरिश्चंद्र अपनी रचनाओं में. ब्रिटिश राज का कडा विरोध करते थे. वह एक असाधारण प्रतिभा के धनी थे. उन्होंने साहित्य के हर के क्षेत्र में अपना योगदान दिया था. अपने जीवन काल में उन्होंने ने कवि, लेखक, नाटककार, साहित्यकार एवं सम्पादक जैसे सभी कार्यो में सफलता हासिल की थी. bhartendu harishchandra ki jivani
हिन्दी पत्रकारिता और काव्य के क्षेत्र में उनका योगदान उल्लेखनीय था. भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी ने केवल 34 साल की उम्र में ही. विभिन्न विषयों पर विशाल साहित्य संग्रह की रचना कर दी थी.
नाटक के क्षेत्र में उनका योगदान तो मील का पत्थर साबित हुआ है. हिंदी भाषा में नाटकों की शुरुआत भी भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने ही की थी. उनके पहले भी नाटकों की रचना होती थी. लेकिन खड़ीबोली में अधिक से अधिक नाटक लिखकर.
उन्होंने ने ही हिन्दी नाटक को ख्याति दिलाई थी. एक नाटककार के रूप में शुरवात. उन्होंने विद्यासुन्दर नामक बंगला नाटक के अनुवाद करने से की थी.
भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने साहित्य के आलावा समाज सेवा में भी बडा योगदान दिया था. गरीब, मित्र, परिवार तथा जरूरतमंदों की सहायता में भी उन्होंने काफी सारा धन दान कर दिया था.
भारतेन्दु हरिश्चंद्र की प्रमुख रचनाएँ | Bhartendu harishchandra ki jivani
भारतेन्दु हरिश्चंद्र लिखित नाटक
- वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति (१८७३ई., प्रहसन)
- सत्य हरिश्चन्द्र (१८७५,नाटक)
- श्री चंद्रावली (१८७६, नाटिका)
- विषस्य विषमौषधम् (१८७६, भाण)
- भारत दुर्दशा (१८८०, ब्रजरत्नदास के अनुसार १८७६, नाट्य रासक),
- नीलदेवी (१८८१, ऐतिहासिक गीति रूपक)।
- अंधेर नगरी (१८८१, प्रहसन)
- प्रेमजोगिनी (१८७५, प्रथम अंक में चार गर्भांक, नाटिका)
- सती प्रताप (१८८३,अपूर्ण, केवल चार दृश्य, गीतिरूपक, बाबू राधाकृष्णदास ने पूर्ण किया)
भारतेन्दु हरिश्चंद्र अनुवादित नाटक
- विद्यासुन्दर (१८६८,नाटक, संस्कृत ‘चौरपंचाशिका’ के यतीन्द्रमोहन ठाकुर कृत बँगला संस्करण का हिंदी अनुवाद)
- पाखण्ड विडम्बन (कृष्ण मिश्र कृत ‘प्रबोधचंद्रोदय’ नाटक के तृतीय अंक का अनुवाद)
- धनंजय विजय (१८७३, व्यायोग, कांचन कवि कृत संस्कृत नाटक का अनुवाद)
- कर्पूर मंजरी (१८७५, सट्टक, राजशेखर कवि कृत प्राकृत नाटक का अनुवाद)
- भारत जननी (१८७७,नाट्यगीत, बंगला की ‘भारतमाता’के हिंदी अनुवाद पर आधारित)
- मुद्राराक्षस (१८७८, विशाखदत्त के संस्कृत नाटक का अनुवाद)
- दुर्लभ बंधु (१८८०, शेक्सपियर के ‘मर्चेंट ऑफ वेनिस’ का अनुवाद)
भारतेन्दु हरिश्चंद्र की काव्यकृतियां Bhartendu harishchandra ki jivani
- भक्तसर्वस्व (1870)
- प्रेममालिका (१८७१)
- कार्तिक स्नान
- वैशाख महात्म्य
- प्रेम सरोवर
- प्रेमाश्रुवर्षण
- जैन कुतूहल
- प्रेम सतसई श्रृंगार
- प्रेम माधुरी (१८७५)
- प्रेम-तरंग (१८७७)
- उत्तरार्द्ध भक्तमाल (१८७६-७७)
- प्रेम-प्रलाप (१८७७)
- होली (१८७९)
- मधु मुकुल (१८८१)
- राग-संग्रह (१८८०)
- वर्षा-विनोद (१८८०)
- विनय प्रेम पचासा (१८८१)
- फूलों का गुच्छा- खड़ीबोली काव्य (१८८२)
- प्रेम फुलवारी (१८८३)
- कृष्णचरित्र (१८८३)
- प्रातः स्मरण
- उरेहना
- तन्मय लीला
- दानलीला
- रानी छद्म लीला
- संस्कृत लावनी
- बसंत
- मुंह दिखावनी
- उर्दू का स्यापा
- प्रबोधिनी
- नये जमाने की मुकरी
- सुमनांजलि
- बन्दर सभा (हास्य व्यंग्य)
- बकरी विलाप (हास्य व्यंग्य)
- विजय वल्लरी
- विजयिनी विजय वैजयंती
- जातीय संगीत
- रिपुनाष्टक
भारतेन्दु हरिश्चंद्र का निबंध संग्रह | Bhartendu harishchandra jivan parichay
- नाटक
- कालचक्र (जर्नल)
- लेवी प्राण लेवी
- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?
- कश्मीर कुसुम
- जातीय संगीत
- संगीत सार
- हिंदी भाषा
- स्वर्ग में विचार सभा
- रामायण का समय
- काशी
- मणिकर्णिका
- कश्मीर कुसुम
- बादशाह दर्पण
- उदयपुरोदय
- संगीत सार
- जातीय संगीत
- तदीयसर्वस्व
- वैष्णवता और भारतवर्ष
- नाटकों का इतिहास
- सूर्योदय
- ईश्वर बड़ा विलक्षण है
- बसंत
- ग्रीष्म ऋतु
- वर्षा काल
- बद्रीनाथ की यात्रा
- एक अद्भुत अपूर्व स्वप्न
भारतेन्दु हरिश्चंद्र का यात्रा वृत्तान्त
- सरयूपार की यात्रा
- लखनऊ
भारतेन्दु हरिश्चंद्र लिखित आत्मकथा
- एक कहानी- कुछ आपबीती कुछ जगबीती
भारतेन्दु हरिश्चंद्र लिखित उपन्यास
- पूर्णप्रकाश
- चन्द्रप्रभा
भारतेन्दु हरिश्चंद्र का निधन | Bhartendu harishchandra ki jivani
अपने जीवन के अंतिम समय में भारतेन्दु हरिश्चंद्र के ऊपर. कर्जा काफी अधिक बढ़ चुका था. साल 1985, 6 जनवरी को भारतेन्दु हरिश्चंद्र. जैसे देश हित चिंतक एवं साहित्य जगत के महान दैदीप्यमान सितारे का निधन हो गया.
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