bhoot ki sacchi ghatna

भूत की सच्ची घटना पर आधारित कहानियाँ | Bhoot ki sacchi ghatna

Bhoot ki sacchi ghatna : इस पोस्ट में हमने भूत प्रेत एवं चुड़ैल की सच्ची घटना से प्ररित अनुभव लिखे है. इन कहानियो को अंत तक जरुर पढ़े.

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1. भूतहा फ्लैट नंबर 303 | bhoot ki sacchi ghatna

हेल्लो दोस्तों मेरा नाम है रवि शास्त्री. यह भूत की घटना उस वक़्त की है. जब मुझे और मेरे दोस्त अमर को अहमदनगर MIDC में सिक्योरिटी गार्ड की जॉब मिली थी. फिर हम दोनों पुणे से अहमदनगर आ गए थे. नए शहर में नौकरी मिलने के बाद सबसे पहला और बड़ा प्रश्न था. रहने की जगह कहा मिलेगी.

किस्मत से कंपनी के मैनेजर पुणे से थे. इसलिए उन्होंने 2 दिन के लिए कंपनी में रहने की जगह दी थी. अगले इतवार हम एक रियल एस्टेट ब्रोकर से मिले. उसने हमें एक पुरानी बिल्डिंग में फ्लैट किराए पर दिया. जिसका नंबर था 303.

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हमने उस ब्रोकर को ३ महीने का किराया एडवांस दिया और उसी दिन श्याम 6 बजे. सामान लेकर नए फ्लैट में रहने गए.

वहापर सामान सेट करते वक्त रसोई में अमर को एक पुराना क्रिकेट बैट मिला. वह बैट मैंने रसोई की दीवार पर रखदिया था. सामान सेट करने के बाद रात का खाना खाकर ठीक 10 बजे हम बिस्तर पर सोने चले गए.

दुसरे दिन मेरी नाईट शिफ्ट थी और अमर की सुबह 6 बजे कि थी. इसलिए उसे 4 बजे उठकर टिफिन बनाना था. मैंने अमर से कहा था कि कुछ भी करना पर टिफिन बनाते वक्त मेरी नींद नहीं टूटनी चाहिए.

तूम  टिफिन बनाकर सुबह जल्दी निकल जाना.

उसने भी हाँ कह दिया.  फिर वह जमींन पर और में खटिया पर सो गए. फ्लैट में 1 झिरो बल्ब चालू था. रसोईघर में जाते वक्त लेफ्ट साइड में बाथरूम और टॉयलेट था. और हम ठीक रसोई के दरवाजे के सामने हॉल में सोये हुए थे.

रात को अचानक मुझे रसोई में किसी के कूदने की, बर्तन और डिब्बे खोलने की आवाजे आने लगी.

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में नींद में ही बोला इतनी जल्दी कैसे सुबह हो गई. अभी तो सोये थे फिर मैंने अमर को आवाज लगाई.  अमर… ऐ.. अमर.. तू टिफिन बना रहा है क्या?  …आवाज थोडा कम कर भाई और मुझे सोने दे..

उससे इतना कहकर मैं फिर से सो गया.

उसके बाद  फिरसे उन्ही आवाजों से मेरी आंखे फिरसे खुली. पर मैं बिस्तर में ही पड़ा रहा. मेरी नजर रसोई की तरफ ही थी. जीरो बल्ब की रौशनी में धुंधला-धुंधला दिख रहा था.

मैंने देखा कि कोई रसोई से निकल कर बाथरूम में घुस गया. मुझे लगा अमर ही होगा. मै उसी तरफ देखता रहा.  20 मिनट हुए लेकिन वह बाहर नहीं आया. मुझे लगा शायद तैयार हो रहा होगा.

फिर मुझे प्यास लगी.  मैं खटिया के नीच हमेशा पनिका लोटा रखता हूँ. वही लेने के लिए जब मैं झुका तब निचे का नजारा देखकर. मुझे झटक लगा. क्योंकि अमर अभी भी निचे जमीन पर ही सोया हुआ था.

अब अगर अमर मेरे सामने था. तो बाथरूम में २० मिनिट से कौन घुसा हुआ था. यह सोचकर डर के मारे मै सिहर उठा.

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मै डर के मारे कांपने लगा था. मैंने उठकर सबसे पहले लाइट के सभी स्विच चालू किये. और घडी देखि उस वक्त ठीक रात के 12 बजे थे. फिर मैंने अमर को उठाया.

और उससे पूछा भाई तू अभी बाथरूम में गया था ना तो तू बाहर कब आया. अमर नीदं में ही आँख मलते हुए बोला नहीं… मैं कही…. नहीं गया था. मेरी नीदं अभी अभी तो तुमने तोड़ी है. तब मैंने जो देखा वह सब उसे बता दिया.

फिर हमने पूरा घर छान मारा. पर हमे कुछ नहीं दिखा. बाद मे अमर बोला कि शास्त्री तुझे वहम हुआ होगा. खुद भी सोजा और मुझे सोने दे. कल सुबह मुझे काम पर जाना है.

फिर जो हुआ था मैं भी उसे वहम मानकर सो गया. अगले दिन सुबह-सुबह पुणे से हमारा गणेश नामका एक दोस्त सरकारी बैंक का एग्जाम देने आया था. क्योंकि उसे अहमदनगर का एग्जाम सेण्टर मिला था.

और वह हमारे साथ ही रुका. उस दिन मुझे नाईट शिफ्ट में जाना था. हम तीनो ने रातका खाना होटल में खाया. और वही से मैं ड्यूटी पर चला  गया. और वह दोनों फ्लैट पर चले गए.

फिर जब मैं अगली सुबह घर पर लौटा. तब अमर और गणेश सामान बाँधकर तैयार बैठे थे. वे दोनों बेहद डरे हुए भी लग रहे थे.

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मैंने दोनों से पूछा की ये सामान क्यों बाँध रखा है. अमर बोला शास्त्री तुझे कल रात वहम नहीं हुआ था. यह घर में सच में भुतहा है. रात को 11 बजे घर आकार हम सीधा बिस्तर पर सोने चले गए थे. मैं खटिया पर सोया था और गणेश निचे जमीन पर.

रात को मुझे बर्तन और गैस के चलू बंद होने की आवाज आने लगी. पर नींद में होने की वजह से मैंने उसपर ध्यान नहीं दिया. और मैं सोता रहा. मुझे लगा था कि गणेश रात को एग्जाम की तैय्यारी कर रहा होगा. और नींद भगाने के लिए कॉफी बना रहा होगा.

लेकिन कुछ समय बाद नींद में ही किसी ने मुझे खिंचके एक जबरदस्त कंटाप बजाय. और नींद में ही गणेश के बाल नोचकर उसका सिर जमीन पर पटक दिया. हम दोनों हडबडा के उठ बैठे.  तब हमें झिरो बल्ब की रौशनी में किसी बच्चे की काली आकृति दिखाई दी.

वह बच्चा हंस रहा था. और हमसे पूछ रहा था. क्या तुम दोनों मेरे साथ क्रिकेट खेलोगे?  बोलो ना खेलोगे क्या?  हम दोनों डर से थर-थर कांप रहे थे.

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पर हम कुछ बोले या चिल्लाए इससे पहले ही. वह भूत  हमारे सामने तेजी से रसोईघर में जाकर. वह क्रिकेट का बैट लेकर आया. जो हमे मिला था. उसके बाद वह  बाथरूम में घुस गया. और देखो अभी तक बहर नहीं निकला. उसी के डर से हम रात भर सोये नहीं है.

रात भर हमने हनुमान चालीसा का पाठ किया. और अब सामान पैक करके बैठे है. यह सब सुनने के बाद हमने रसोई में रखे हुए बर्तन और गैस वैसे ही छोड दिया. और हॉल में जो सामना था. वो सब लेकर कंपनी में चले गए.

बाद में  मैंने आस पास के पड़ोसियों पूछ ताच की थी. तब उन्होंने बताया कि वह बिल्डिंग बनते समय वहापर एक बच्चे की ऊपर से गिरकर  मौत हुई थी.  अभी तक उस बच्चे की आत्मा वही भटक रही है.

कभी-कभी वह बच्चा आसपास और बिल्डिंग वालो को दीखता है. और कभी कभी उसे देखने वालों को अपने साथ क्रिकेट खेलने को कहता है.  यह थी भूतहा फ्लैट नंबर 303 सच्ची घटना पर आधारित कहानी.

2. भुतहा हॉस्टल की घटना | bhoot ki sacchi ghatna

हेल्लो दोस्तों यह सच्ची भूत की सच्ची घटना मुझे बिपिन यादव ने भेजी है. यह  १९९० की घटना है. जब बिपिनदा मुंबई में अपनी पढाई पूरी करने आये थे.

मुंबई में वह एक हॉस्टल में रुके थे, जो भूतहा था. उस वक्त उनके साथ कुछ डरावनी घटनाएं हुई थी. अब आगे की कहानी बिपिनदा के शब्दों में:

बिपिन :- मेरा परिवार वडोदरा में रहता है. पर मुझे वडोदरा शहर में कोई रूचि नहीं थी. मैं मुंबई में रहना चाहता था. इसलिए बारावी कक्षा के बाद मैं घरवालों से अनुमति लेकर. अपनी आगे की पढाई पूरी करने मुंबई आ गया.

वहां पर मै दो दिनों तक एक होटल में रुका था और तीसरे दिन मुंबई पश्चिम में एक अच्छे से बॉयज हॉस्टल में अपना एडमिशन कराया.

वह हॉस्टल 2 मंजिल वाली एक इमारत थी. हर एक मंजिल पर 20 कमरे थे. उसमे से मुझे दूसरी मंजिल पर 28 नंबर का कमरा मिला था.

उस वक्त हॉस्टल में नए साल की एडमिशन बस शुरू ही हुई थी. और में वहां दूसरी मंजिल पर रहने वाला पहला और अकेला विद्यार्थी था. बाकि पूरा हॉस्टल खाली था. मेरे अलवा वहा 3 लोग और थे.

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जो कैंटीन और रजिस्ट्रेशन संभाल रहे थे. उस दिन एडमिशन लेकर मैंने सुबह 10 बजे के आस पास मेरा सामन होटल से वहां शिफ्ट कर दिया.

मै 3 दिन की भाग दौड़ से थका हुआ था. इसलिए सामान रखने के बाद तुरंत सो गया. कुछ समय बाद मेरी नीदं दरवाजे की आवाज से टूटी.

कोई दरवाजा खट खटा रहा था. उस वक्त दोपहर के साढ़े बार बज रहे थे. मैने नींद में ही जाकर दरवाजा खोला. दरवाजे पर हाफ चड्डी और सफेद कुर्ता पहने एक जवान लड़का खडा था.

उसने कहा दोपहर का खाना तैयार है. कैंटीन में आकर खा लीजिए. मुझे भूक तो लगी ही थी. मैंने कहा ठीक है आता हूँ.

उसके बाद मै तुरंत ही कैंटीन में जा पंहुचा. तो वहां के लोगों (स्टाफ) ने कहा. आज कैंटीन में खाना नहीं बना है. दोपहर का खाना बाहर से मंगवाकर आपके कमरे में पहुँचाया जायेगा.

यह सुनकर मै उन लोगों पर चिढ गया. और गुस्से में बोला अगर कमरे में ही खाना पहुंचाना था. तो वह लड़का भिजवा कर! मेरी नींद खराब करके निचे क्यों बुलवाया.

वे बोले हमने किसी को नहीं भेजा. फिर मैंने कहा की फिर वह हाफ चड्डी और सफेद कुर्ते में कौन आया था? तुम्हारा भुत! वे बोले आपको या तो वहम हुआ है. या तो आपके साथ किसी ने मजाक किया है.

फिर पहले ही दिन बवाल ना हो इसलिए. मै अपने कमरे में चला गया. पर मेरे दिमाग में वह लड़का छप चूका था.

मैंने सोचा की अगली बार वो देखेगा. तो कंटाप बजाये बिना छोडूंगा नहीं उसको. उसके बाद वापस बेड पर लेटते ही मेरी आंख लग गई.

और लगभग १५ मिनिट के बाद नीदं में ही मेरे कान पर किसी ने जोर से कंटाप बजा दिया. मै हड़बड़ाकर उठा और अपना कान और गाल सहलाने लगा.

सच में उस वक्त बहुत कसकर लगी थी. मैंने आस पास, बेड के निचे, अलमारी में सब जगह देख लिया. मगर कमरे में कोइ भी नहीं था. खिड़की भी अन्दर से बंद थी. और दरवाजे की कुंडी भी लगी हुए थी. फिर सोचा की शायद मैंने कोई बुरा सपना ही देखा होगा. पर जब सवा एक बजे कैंटीन वाला मेरे लिए खाना लेकर आया था.

तब वह मुझे खाने की थाली देते हुए बोला. साहब आपका गाल इतना लाल लाल क्यों है? मैने उससे थाली लेकर मेज पर रख दी.और भागते हुए बाथरूम में गया. देखा तो सच में मेरा गाल थोडा सुजा हुआ था. जैसी की अभी-अभी किसी ने लप्पड़ मारा हो. उस वक्त मुझे थोडा डर भी लगा था.

पर मैंने खुद को तसल्ली दी. सोचा की वह सिर्फ एक बुरा सपना था. और गाल पर किस कीड़े ने काट लिया होगा. बाथरूम से फ्रेश होकर लौटने में मुझे कुल १५ मिनिट लगे थे. कमरे में फैली हुई खाने की खुशबु से ही लग रहा था.आज मटन की दावत पक्की है.

मैंने खाना खाने के लिए. उस थाली पर से दूसरी थाली हटाई. और देखा तो किसी ने रोटिया बीच में से खायी हुई थी. और मटन के पिस (बोटिया) की जगह पर सिर्फ और सिर्फ हड्डियां थी. पूरा मांस किसी ने खा लिया था. उस वक्त मै इतनी जोर से चिल्लाया था.

की पुरे कैंटीन का स्टाफ मेरे कमरे में इकट्ठा हो गया था. मैने कैंटीन के मैनेजर को थाली में हड्डियां और रोटिया दिखाई. तो वह फटी आँखों से देखता ही रह गया. मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था. फिर मेरे गुस्से को ठंडा करने के लिए. उसने अपने लोगों से खाने की एक और थाली मंगवा दी.

और मुझसे माफी मांगकर अपना सिर खुजाते-खुजाते वहां से चला गया. दोपहर का खाना खा कर. मै कुछ जरूरी चीजें लेने बाजार चला गया. श्याम को वापस लौटाने के बाद कमरे में जाने से पहले. मैंने कैंटीन में जाकर पूछा की रात का खाना कमरे में ही भिजवाओगे याफिर मुझे निचे आना होगा.

मैनेजर ने कहा कैंटीन शुर हो गई है और खाना भी तैयार है. आप हाथ मुँह धोकर 8 बजे कैंटीन में आ जाइए. मै भी ठीक समय पर कैंटीन में पहुँच गया. और कैंटीन स्टाफ के साथ ही खाना खाया. उन्होंने मुझे बताया वह सब भी हॉस्टल में नए है.

हॉस्टल के मालिक और वार्डन आज रात को आने वाले है. खाना खत्म कर के मै अपने कमरे में चला गया. सोने से पहले मैंने दरवाजा खिड़की सब ठीक से बंद कर लिए और तुरंत ही सो गया. उसके कुछ ही समय के बाद फिरसे किसीने नींद में ही मेरे कान के निचे कंटाप बजा दिया. लेकिन इसबार ज्यादा गुस्से में मारा था. मेरा कान और गाल सुन्न हो गये थे.

जब मैंने उठकर देखा तो इसबार वह अन्दर से बंद कमरा खाली नहीं था. खिड़की के कांच से आरही पिली रौशनी में काफी साफ दिख रहा था. वही सफेद कुर्ती वाला लड़का मेरी तरफ पीठ करके खड़ा था.यह एक भूत है. यह समझने में मुझे देर नही लगी.

डर से मेरे हाथ पैर कांपने लगे थे. मुझे लगा की आज मेरी जिदंगी की आखरी रात है. मै बस उसकी ही तरफ देख रहा था. की वह धीरे-धीरे पीछे मुडा.  उसकी अंगारे जैसी लाला-लाल चमकती आंखे देखकर. मैंने उसी वक्त बिस्तर गिला कर दिया था.

वह भूत सिर्फ एक लाइन बोला “मेरे कमरे से निकल जाओ” इतना कहकर भागते हुए. बंद दरवाजे के पार निकल गया. उस के वहा से जाते ही.

मैंने अपने कांपते हुए हाथों से दरवाजा खोला. और बिना आवाज किये सीधा कैंटीन में गया. वहा पुराने वार्डन और हॉस्टल के मालिक बैठे थे. वार्डन ने मेरी हालत देखते हुए. कुर्सी पर बिठाकर मुझे पानी पिलाया. हॉस्टल के मालिक मुझे बोले हमे पता है. तुम क्या बात करने आए हो.

और तुम्हारे साथ क्या हुआ होगा. इसलिए तुम पहले वो सुनो जो मै अब बताने वाला हूँ. तुम्हारे सभी सवालों के जवाब तुम्हे मिल जाएंगे. फिर वह बोलने लगे. यहाँ का पुराना स्टाफ कल आने वाला है. और अभि मौजूदा स्टाफ नया है. इसलिए उन्होंने गलती से तुम्हे कमरा नंबर 28 दे दिया.

जो की हमेशा बंद रखा जाता है. क्योंकि आज से 8 साल पहले. उस कमरे में चिदंबर नामका लड़का रहता था. किसी अंजान कारण वश उसने उसी कमरे में आत्माहत्या कर ली थी.

तब से आज तक उसका भूत वही भटक रहा है. उसके मरने के बाद कमरा नंबर २८ में हमे दो तीन बार भुत प्रेत की घटना हेई. फिर हमने उसे हमेशा के लिए बंद कर दिया. पर मै और वार्डन साहब सिर्फ 2 दिनों के लिए बाहर गए थे, और नए स्टाफ को यहाँ के कायदे कानून पता नहीं थे.

इसलिए उन्होंने गलती से तुम्हे उस भूतहा कमरे की चाबी सौंप दी. फिर वार्डन ने कहा की चिदंबर की प्रेत आत्मा ने आज तक. किसी दुसरे कमरों में रहने वालो को कभी भी तंग नहीं किया है.उसे सिर्फ कमरा नंबर 28 से ही मतलब है. इतना सब कुछ देखने और सुनने के बाद मै थोडी देर शांत बैठा था. फिर हॉस्टल के मालिक ने मुझे समझाया.

तुम्हे यहाँ से भागने की जरूरत नहीं है. मै तुम्हारा सामान नीचे की मंजिल पर अभी के अभी रखवा देता हूँ. वह प्रेत आत्मा तुम्हे वापस तंग नहीं करेगी. हॉस्टल के मालिक का विनम्र स्वभाव देखकर. मै कुछ और बोला नहीं सका. उसके बाद मैं उस हॉस्टल में 3 साल तक रहा.

नमस्कार दोस्तों आपको ये सभी bhoot ki sacchi ghatna पर आधरित कहानियाँ कैसी लगी. ये हमे कमेंट करके जरूर बताएं. और सिर्फ आपके लिए और भूत की सच्ची घटना पर आधारित कहानियाँ आ रही है. इस ब्लॉग को विजिट करते रहिये. साथी ही साथ और भी बेहतर भूत की कहानियों की लिंक निचे दी गई है उसे भी जरुर पढ़े.

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